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रविवार, 14 जुलाई 2024

बाग में टपके आम बीनने का मजा

मेरे मित्र प्रोफेसर Sandeep Gupta पिछले दिनों अपने बाग के आम लेकर आए थे। उनके साथ मैं पहले बाग देखकर आया था लेकिन तब आम कच्चे थे। बरौली से 2 किलोमीटर पहले सड़क से लगभग लगा हुआ उनका बाग है। विश्वविद्यालय परिसर से बरौली 12 किलोमीटर है। इस प्रकार #साइकिल_से_सैर के लिए मैंने वहां जाकर आने का आज का लक्ष्य 20 किलोमीटर निर्धारित किया था।

वैसे तो मैं उनके साथ कार से जा चुका हूं लेकिन आज साइकिल से वहां पहुंचने की कोशिश में भटक गया। झिझौली गांव के आगे "बरौली 2 किमी" का माइलस्टोन आया तो मैं उस कच्ची सड़क के मोड़ को तलाशने लगा जो उनके बाग में जाती है। लेकिन वह चकरोड मिली ही नहीं। लगभग 1 किमी आगे जो कच्ची सड़क मिली वह मुझे किसी दूसरे बाग में ले गई। वहां एक पेड़ के नीचे बहुत से आम टपके हुए पड़े थे। मैने दो चार बड़े - बड़े आम उठा लिए। पक्के दशहरी थे। एक तरफ हल्के पीले या धानी झलक के साथ प्रायः हरे रंग के। मैने चारो ओर दृष्टि दौड़ायी ताकि इस बाग के रखवाले को देख सकूं और उसकी सहमति से कुछ आम इकठ्ठे कर उसका मूल्य चुका सकूं। लेकिन दूर - दूर तक रखवाला नहीं दिखा। मैने आम वहीं पर छोड़ दिए। तभी एक लड़का सड़क पर जाता दिखाई दिया। उससे पूछने पर पता चला कि मुख्य सड़क की ओर शायद रखवाला मिल जाय। उसने कहा कि आप ये आम अभी लेकर उधर जा सकते हैं।

मैंने संकोच त्यागकर आम झोली में रखे और मुख्य सड़क पर आ गया और बाग के भीतर झांकता रहा। तभी रखवाले की बरसाती दिखी जहां एक साइकिल खड़ी थी। मैने अपनी साइकिल उस पगडंडी पर उतार दी जो उस ठीहे पर जाती थी। दूर एक पेड़ के नीचे आम बीनता रखवाला दिख गया। मैने उसके पास जाकर उसे पूरी बात बताई और कुछ और आम खरीदने की इच्छा व्यक्त की। उसने कुछ लंगड़ा आम इकठ्ठा कर रखे थे। उसे देते हुए बोला कि यह सब ले जाइए। लेकिन पैसा नहीं लूंगा। मालिक अभी हैं नहीं। मैने उसे चाय पानी के लिए कहकर यथोचित धनराशि जबर्दस्ती थमायी और वापस लौट पड़ा।

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रास्ते में दोनो तरफ आम के बाग ही बाग पड़ते हैं। दशहरी, मालदा और लंगड़ा की जबरदस्त पैदावार हुई है। लेकिन मैं देसी आम तलाश रहा था। पेट्रोल पंप के आगे बढ़ा तो वह बाग मिला जहां मैं एक बार पहले भी आ चुका था। तब देसी आम तैयार नहीं थे। इस बार पूछने पर ठेकेदार ने झट डेगची उठाई और देसी आम बीनने चल पड़े। मैंने भी साइकिल खड़ी की और उसके पीछे चल दिया। पूरे बाग में आम टपके पड़े थे। लेकिन वो एक खास देसी प्रजाति के पेड़ के नीचे रुके। पेड़ से टपके इतने ताजे आमों को देखकर मैं अपना लोभ संवरण नहीं कर सका। देसी आम के अलावा मैने दो चार दशहरी, मालदा और लंगड़ा भी उठा लिए।

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डेगची भरकर हम दोनो वापस लौटे। छंटनी करके आम की तौल की गई। मैंने उसकी मुंहमांगी कीमत चुकाई जो बाजार दर से बहुत कम थी। दो पके आम जो जमीन पर टपकते ही फट गए थे उन्हें वहीं धुलकर मैंने उदरस्थ किया। अहा! क्या स्वाद मिला! उन्होंने आमों की भारी पोटली मेरी साइकिल के कैरियर पर ठीक से बांध दी। मैंने प्रमुदित मन से पैडल दबाया और वापस चल पड़ा।

आगे एक विराम उस महकते धान के खेत पर लेना पड़ा। इसकी बालियां अब भरपूर बढ़ आई हैं। अब चावल के दाने विकसित हो रहे होंगे। दस पंद्रह दिन में यह फसल काटने के लिए तैयार हो जायेगी। इसके ठीक सामने सड़क की दूसरी ओर के खेत में अभी अभी धान की रोपनी की गई थी। बल्कि आजकल धान की रोपनी का सीजन अपने उत्स पर है। एक खेत में धान रोपती स्त्रियों का सुंदर दृश्य भी दिखा लेकिन मैंने संकोचवश फोटो लेने का विचार त्याग दिया।

आज की यात्रा में 22 किमी से अधिक का साइकिल चालन हुआ जो कार्डियोवैस्कुलर व्यायाम की श्रेणी में आता है। इससे मेरे व्यायाम निर्देशक निश्चित ही बहुत प्रसन्न होंगे।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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शनिवार, 6 जुलाई 2024

झमाझम मानसून और अमराई में ताक-झांक

साइकिल_से_सैर

मानसून के बादल पूरे उत्तर भारत के ऊपर छा चुके हैं। प्रचंड गर्मी के बाद पड़ने वाली पहली फुहारों का तेजाबी चरण भी निपट गया है। अब बरसात में भींगने का आनंद लेने का समय आ गया है। इसी आनंद के लिए में अलस्सुबह साइकिल लेकर पुंवारका से बरौली की ओर निकल पड़ा।

रिमझिम बारिश का असर क्या है? आम जनजीवन के साथ-साथ इस राह में पड़ने वाले चहुंओर फैले आम के बगीचों, धान के हरेभरे महकते खेतों और खुले आसमान के नीचे रहने वाली भेड़ों का मेघवृष्टि ने क्या हाल किया है? आज मुझे यह देखने का मौका तो मिला ही, साइकिल चलाते हुए भींगकर खुले आसमान में शुद्ध हवा व पानी के बीच फेंफड़ों में भरपूर ऑक्सीजन भर लेने का लाभ भी मिला।

आज गांव के लोग घर के बाहर कम ही दिखे। इक्के दुक्के लोग छाता लगाकर आते-जाते दिखे। अनुमान हुआ कि कदाचित् ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत हर घर में शौचालय सुनिश्चित करने की सरकारी योजना इनके घर तक नहीं पहुंची है। भरी बारिश के बीच एक मोहतरमा अपने पक्के दुआर पर झाड़ू लगा रही थीं और बहारन को फुटपाथ पर इकठ्ठा कर रही थीं। लखनौती गांव के बड़े से तालाब की सतह पर मछलियों की हलचल कुछ बढ़ी हुई लगी। पानी के ऊपर मंडराता हुआ केवल एक ही बगुला दिखा जो शायद अधिक भूखा होगा। वर्ना अधिकांश तो बारिश में उड़ने के बजाय शांत बैठकर मौन साधना कर रहे थे।

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खेतों की हरियाली बारिश से धुलने के कारण कुछ ज्यादा ही निखर आई थी। उसपर हल्की हवा का इशारा पाकर पेड़ पौधे मस्ती से झूम रहे थे। पशुओं के चारे के लिए खेतों में ज्वार बाजरा की फसल जो ज्यादा बढ़ गई थी उसे बारिश के साथ आने वाली तेज हवाओं ने जमीन पर सुला दिया था। एक किसान इस चारे को खेत से जल्दी निकाल लेने की तजबीज करता दिखा। गन्ने की फसल तनकर खड़ी थी क्योंकि चतुर किसानों ने समय रहते गन्नों को समूहों में बांध दिया था।

छः किलोमीटर की यात्रा पूरी करने के बाद मैं एक बड़े से बाग में चला गया। बाग के बीच में रखवाली के लिए बनाए गए पक्की छत वाले चबूतरे की ओर जाने के लिए सड़क से उतरा तो एक कच्ची पगडंडी मिली जिसपर पानी जमा होने से फिसलने का डर था। मैंने साइकिल को भरपूर सावधानी से आगे बढ़ाया। फिर भी एक जगह फंस ही गया। मजबूरी में एक पैर उस कीचड़ में उतारना पड़ा।

रखवाली के उस अड्डे पर दो खाटें पड़ी थीं। एक खाली थी और दूसरी पर रखवाले साहब सो रहे थे। थोड़ी देर रुककर मैंने उन्हें जगा दिया। वे हड़बड़ाकर उठे और मेरा परिचय पूछा। फिर मेरे पूछने पर उन्होंने अपना जो अस्पष्ट नाम बताया उसमें मुझे रॉकिन शब्द ध्वनित हुआ। रॉकिन ने बताया कि कुल 250 पेड़ों वाले बाग को उन्होंने दो साल की फसल के लिए 13 लाख में खरीदा है। मैंने पेड़ से टपके देसी आम के बारे में जानकारी चाही तो उन्होंने एक टोकरी दिखाई। दशहरी और मालदा के बीच अटके पड़े दो-चार छोटे-छोटे पीले रंग के बीजू आम दिखाई दिए। मैंने दो आम वहीं चख लिए जिसमें पहला खट्टा निकला और दूसरा मीठा। मैने मीठे वाले की शक्ल-सूरत वाले मुश्किल से तीन चार आम टोकरी से खोज निकाले और एक पॉलीथिन में लटकाकर रॉकिन को धन्यवाद देकर वापस लौट पड़ा।

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वापसी में मैंने उस महकते धान के खेत पर रुककर एक-दो तस्वीरें लीं। इस खेत के धान की बालियां अब सभी पौधों में निकल आई हैं। हमारे अपने गांव में जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में है अभी धान की रोपाई चल रही है।

भेड़ों के बाड़े के पास आकर मैंने जो देखा उससे मन थोड़ा दुखी हो गया। बारिश में भींगने से बचाव का कोई रास्ता उन बेचारी भेड़ों के पास नहीं था। उनका बाड़ा चार दीवारों और दरवाजों वाला तो है लेकिन उसमें कोई छत नहीं है। भींगती हुई भेड़ें कष्ट में थीं। उनका करुण क्रंदन यही बता रहा था। उनके पालक गड़ेरिए प्रमोद ने अपने बचाव के लिए सड़क किनारे एक कामचलाऊ बरसाती डाल रखी थी। लेकिन यह भी कतई सुरक्षित नहीं थी।

बाड़े के सामने ही सड़क की दूसरी ओर स्थित ईंट भट्ठे की स्थाई चिमनी शांत पड़ी थी। अर्थात् उसमें से धुआं नहीं निकल रहा था। अब पहले से तैयार पकी हुई ईंटों को बेचकर काम चलेगा। गेट के भीतर एक खाली बुग्गी खड़ी थी जिसमें जुता हुआ घोड़ा भी खुले में भींगने को मजबूर बोझ लादे जाने की प्रतीक्षा कर रहा था।

कुल 12 किलोमीटर की सैर के बाद वापस लौटा तो साइकिल और क्रॉक्स की चप्पल सहित मेरे सभी कपड़े भींगे हुए तो थे ही उनमें कीचड़ भी पर्याप्त मात्रा में सनी हुई थी। लेकिन मन में केवल आनंद ही आनंद घुला हुआ था। घर के बाहर की तस्वीरें बाद में रीटेक करनी पड़ी क्योंकि इसे खींचने के लिए मेरे सहायक मेरे बुलाने पर बाहर आए।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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रविवार, 30 जून 2024

सहारनपुर के बाग के आम और महकता धान का खेत

#साइकिल_से_सैर

आज दुबारा पुंवारका से बरौली रोड पर 8 किलोमीटर तक बिना रुके साइकिल से गया। मील के पत्थर पर रुका, कुछ सेल्फी ली और वापस मुड़कर पैडल पर पांव रखते हुए यह सोचने लगा कि जब दूरी की इकाई किलोमीटर में लिखी है तो इसे 'माइल-स्टोन' क्यों कहते हैं। अंग्रेजी विरासत यहां भी उपस्थित है।

वापसी के दौरान बरबस मुझे दो - तीन बार रुकना पड़ा।

सबसे पहले एक आम के बाग ने आकर्षित किया। मैने रुककर पूछा कि पककर तैयार आम मिलेंगे क्या? वहां खड़े एक आदमी ने टोकरी दिखाई जिसमें डाल से टपके हुए फल रखे थे। मैने चुनचुनकर 10-12 ताजे आम निकाले, डिजिटल तराजू पर तौल कराई, पैसे दिए और साइकिल के कैरियर पर थैली को बांधकर चल दिया। इसमें मालदा, दशहरी, और एक अन्य कलमी प्रजाति भी थी जो मुझे याद नहीं। देसी प्रजाति वाले बिज्जू आम दो चार दिन बाद मिलेंगे।

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रास्ते में जो सबसे बड़ा वाला तालाब है उसके ऊपर दो तीन बगुले मंडरा रहे थे। वे पानी की सतह पर खुली हवा में सांस लेने के लिए ऊपर आने वाली मछलियों के शिकार का प्रयास कर रहे थे। मन हुआ कि इसका वीडियो बनाऊँ लेकिन संकोच कर गया। कार्डियो वर्कआउट में विराम जो लग जाता।

आगे बढ़ा तो एक हरे-भरे खेत के बगल से गुजरते हुए मेरे नथुने एक विशेष सुगंध से भर उठे। ऐसी सुगंध तो रसोई में तब फैलती है जब बासमती या कालानमक चावल उबल रहा होता है। मैं वहां बरबस ही रुक गया। किसी सुगंधित प्रजाति का धान था जिसकी बालियां इस खेत में फूटने वाली थीं। देखने से स्पष्ट था कि यह किसी बड़े और शौकीन किसान का खेत है। खेत की तस्वीर में इससे उठती मादक सुगंध तो कैद नहीं हो सकती थी लेकिन इसके सौंदर्य का आनंद तो लिया ही जा सकता है।

आगे बढ़ा तो एक गड़ेरिए का बाड़ा मिला जहां भेड़ों का समूह शांति से बैठकर आराम कर रहा था। मेरी नजर एक किनारे पर गई तो देखा कि एक भेड़ सिर को जमीन पर चिपकाए हुए आपादमस्तक पसरी हुई है और लगभग उसके ऊपर ही बैठा हुआ एक आदमी उसके बाल काट रहा है। कौतूहल वश साइकिल खड़ी करके मैं उसके पास चला गया। भेड़ के बाल काटने की कैची कुछ विशिष्ट आकार-प्रकार की थी। इसे चलाने के लिए दोनो हाथों की जरूरत पड़ती है। गड़ेरिया प्रमोद ने बताया कि साल में तीन बार बाल काटे जाते हैं। उनके पास कुल 130 भेंड़ और 7-8 बकरियां हैं। रोज उन्हें जंगल में चराने ले जाते हैं। इनके भटक जाने या चोरी हो जाने का डर बना रहता है। इसलिए बहुत निगरानी रखनी पड़ती है। भेंड़ के बाल की तौल की इकाई 'धड़ी' होती है जो लगभग 5 किलो के बराबर होती है।

यह सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करने और केश-कर्तन का वीडियो बनाकर मैं आगे बढ़ा और घर लौट आया। आम का थैला खोलकर उसमें से एक आम निकाला जो डाल से अपने आप टपका हुआ था। बाग वाले ने इसे मालदा बताया था। स्वाद में मुझे यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के कपुरी जैसा लगा।

सच में प्रकृति के समीप जाने का अवसर मिले तो आनंद ही आनंद मिलता है। आधुनिक मशीनी सभ्यता में जीवनयापन करते हुए भी इसका अवसर खोजते रहना चाहिए।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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रविवार, 16 जून 2024

सहारनपुर की हरियाली का आनंद

सहारनपुर शहर से लगभग 14 किलोमीटर दूर जनता रोड पर ग्राम पुंवारका के पास नवनिर्मित विश्वविद्यालय परिसर में सबसे पहले डेरा जमाने का रिकॉर्ड अपने नाम करने और शिफ्टिंग की जद्दोजहद को प्रायः पूरा कर लेने के बाद आज मैंने अपनी साइकिल से सैर के नए रास्ते तलाशने का मन बनाया।

शहर से पुंवारका आने वाली जनता रोड आगे बरौली तक जाती है। यहां से बरौली 12 किलोमीटर है। साफ सुथरी, चौड़ीकृत और गढ्ढामुक्त इस सड़क पर भारी वाहनों का आवागमन प्रातःकाल में प्रायः नगण्य है। सड़क के दोनो ओर हरे-भरे खेत, पॉपलर के सघन पेड़ और दूर दूर तक फैले आम के बगीचों में लटकते हरे चमकते फल देखकर मन प्रफुल्लित हुआ। यहां का ग्रामीण क्षेत्र उन्नत कृषि और बाग-बगीचों की हरियाली से अत्यंत समृद्ध और लुभावना लगता है। लेकिन नगरीय विकास की आंच भी गांवों तक पहुंच रही है।

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परिसर से बाहर निकलकर मैने बरौली की ओर रुख किया और 8 किलोमीटर तक जाकर वापस लौटने का लक्ष्य निर्धारित किया। वर्कआउट मॉनिटर करने की सुविधा डिजिटल घड़ी और मोबाइल फोन में आ ही चुकी है, इसलिए उसका सदुपयोग भी हुआ। रास्ते में पहले लखनौती कलां फिर लंढौरा और उसके बाद करौंदी गांव को पार करने के बाद जो मील का पत्थर आया वहां मैंने साइकिल रोक दी। आधा लक्ष्य पूरा करके मुझे वापसी यात्रा करनी थी।

इन तीनों गांवों में मैंने भरपूर पानी से भरे हुए बड़े-बड़े तालाब देखे। तालाब की सतह पर उठते बुलबुले बता रहे थे कि भीतर बड़ी संख्या में मछलियां मौज कर रही हैं। एक दो बगुले भी शिकार की तलाश में मंडराते नज़र आए। गांव में प्रायः सबके मकान पक्के हैं। करौंदी के पास एक पेट्रोल पंप भी है और गांव में ही एक अंग्रेजी शराब की दुकान भी थी। लंढौरा में एक इंटरनेशनल स्कूल भी दिखा और मंदिर मस्जिद भी। सड़क किनारे गोबर के उपले बनाती औरते दिखीं तो कूड़े के ढेर पर डस्टबिन खाली करते मर्द भी मिले। एक लड़की दरवाजे पर रखे गमलों में पानी डाल रही थी।

एक जगह इंडिया मार्क टू हैण्ड पम्प में जुड़ा टुल्लू मोटर चल रहा था जिसके प्रेशर से नल के चारो ओर फव्वारे निकल रहे थे। उसके मुंह पर बंधी प्लास्टिक की पाइप शायद किसी सब्जी के खेत की ओर सींचने जा रही थी। सड़क किनारे एक बाड़े से निकलती भेड़ों का झुंड दिखा जो गड़ेरिए के साथ बाहर चरने के लिए निकल रही थीं।

गांव से गुजरते हुए सड़क पर टहलते कुछ आवारा कुत्तों से सामना हुआ तो धड़कन बढ़ सी गई। कौन जाने किसी के मन में शरारत भरी हो या ये अपनी सहज वृत्ति वश ही दौड़ा ले। लेकिन संतोष हुआ कि सभी कुत्ते शरीफ ही निकले। बल्कि रास्ते में दो जगह इस निराश्रित जीव की क्षत विक्षत लाशें मिलीं जो किसी भारी वाहन से रौंद दिए गए लगते थे। कौवों का झुंड इकठ्ठा होकर उसमें से अपना निवाला ले रहा था जो सवारियों के आने-जाने से बार बार बिखरता और पुनः जुट जाता था। इस दृश्य को पार करते हुए मुझे अपनी सांसे रोककर रखनी पड़ी।

शेष यात्रा में जो प्रातःकाल की शुद्ध ऑक्सीजन मैं अपने फेंफड़ों में भरता हुआ फूला नहीं समा रहा था उसपर ऐसे दो-तीन ग्रहण और लगे। एक ईंट भट्ठे से गुजरा तो आग में पकती मिट्टी की ईंटों से निकलने वाली दुर्गंध ने घेर लिया। सांस रोककर तेजी से आगे बढ़ गया। आगे एक आम के बड़े से बाग में ट्रैक्टर से जुड़ा एक टैंकर दिखा। उसमें कीटनाशक भरा हुआ था जिसका छिड़काव स्प्रे मशीन से आम के फलों पर किया जा रहा था। ऊंचे ऊंचे पेड़ों के शिखर तक पहुंचती जहरीले पानी की फुहार हवा के साथ घुलकर सड़क तक आ रही थी। मेरे नथुनों ने इसकी तीखी गंध को महसूस किया तो मेरे मन ने कच्चे आम की चटनी पुदीने के साथ खाने की पसंद पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। इन बागों से निकलकर आने वाली अमिया इस जहर से अछूती नहीं ही होगी।

वापस लौटते समय विश्वविद्यालय परिसर के निकट हाल में खोला गया 'रॉयल जिम' दिखा जो आज रविवार को बंद था। यहां के आसपास अनेक खेतों को आवासीय कॉलोनी में बदले जानें का उपक्रम भी दिखा। अनेक खेतों की प्लॉटिंग करके कॉलोनी का गेट बना दिया गया है। प्लॉट बुक किए जा रहे हैं। एक गेट पर टीचर्स कॉलोनी का बोर्ड लगा है। एक 'बाला जी धाम' नामक कॉलोनी के भीतर बजरंग बली की विशाल प्रतिमा खड़ी की गई है जिसके पीछे चारदीवारी के उसपार बहुत बड़ा आम का बाग है। मुझे डर है कि भविष्य में यह हरा भरा बाग भी व्यवसायिक लाभ के लिए किसी बिल्डर के हाथों एक नई कॉलोनी की भेंट न चढ़ जाय।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

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रविवार, 5 मई 2024

हरी-भरी छाया में साइकिल से सैर

लंबे अंतराल के बाद आज #साइकिल_से_सैर का संयोग बना। मेडिकल कॉलेज परिसर से निकला तो सहारनपुर से अंबाला जाने वाले हाईवे पर निकल गया। राधास्वामी सत्संग भवन के विशाल प्रांगण के पास से हाईवे को काटती नहर की पटरी पर बाएं दक्षिण की ओर मुड़ गया। पिछली बार इस पटरी की कंकड़ीली ऊबड़ खाबड़ सड़क ने बहुत तकलीफ दी थी। लेकिन इस बार चमचमाती हुई नई नवेली पेंटिंग से सजी हुई इस ग्राम्य सड़क ने बरबस ही आकर्षित कर लिया। कदाचित् आसन्न चुनाव का प्रभाव रहा हो जो इस ओर के निवासियों के आवागमन की सुधि ले ली गई हो।

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नहर की साफ-सुथरी पटरी के दोनो ओर हरियाली की छटा देखते ही बनती है। ताजा और शुद्ध ऑक्सीजन जब फेफड़ों तक पहुंचती है तो फर्क साफ महसूस होता है। औद्यानिक पौधों के अलावा पॉपलर की खेती खूब होती है यहां। सबेरे सात बजे ही सूरज की किरणें तीखी हो चली थीं। लेकिन हरे-भरे पंक्तिबद्ध लंबे पेड़ों की ऊंची दीवार की छाया में चलते हुए धूप की गर्मी से सामना प्रायः नहीं करना पड़ा। राधास्वामी केंद्र की जालीदार चारदीवारी के ऊपर रंगीन वोगनबेलिया व दूसरी लताओं की खूब मोटी परत करीने से काट-छांट कर इतनी आकर्षक बनाई गई है कि मन वहीं ठहर सा जाता है। लेकिन मुझे तो आज लंबी दूरी तक साइकिल चला कर अपना कार्डियो वर्कआउट का लक्ष्य पूरा करना था। इसलिए मैं बिना रुके चलता रहा। आगे से बाएं पूरब की ओर मुड़कर एक अन्य पिचरोड पर आगे बढ़ गया। अनुमान था कि हरे - भरे खेतों व कुछ गावों को पार करती हुई यह सड़क वापस सहारनपुर शहर की ओर ले जाएगी।

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रास्ते में मुझे अलीपुरा गांव मिला। गांव के भीतर मुड़ी-तुड़ी पक्की सड़क के दोनो ओर पक्के मकान थे। कुछ दुकानें भी थीं। खेती से संबंधित उपकरण वा मशीनरी बता रही थी कि यहां के लोग खुशहाल ही होंगे। इसी क्रम में ग्राम तौली से होते हुए मैं कुम्हार हेरा पहुंच गया। रास्ते में ब्लूम एरा एकेडमी नामक विद्यालय दिखा जहां कोई हलचल नहीं दिखी। मेरी घड़ी बता रही थी कि अबतक 40 मिनट में करीब 12 किलोमीटर की यात्रा हो चुकी थी। अभी भी मुझे अपनी वापसी के रास्ते का ठीक-ठीक पता नहीं था।

कुम्हार हेरा गांव के किनारे-किनारे बनी आरसीसी सड़क पर चलता हुआ जब गांव को पार करके पूरब की ओर बढ़ा तो अचानक इस सड़क से टी-प्वाइंट बनाती हुई एक चौड़ी सी सड़क नजर आई। इस पर भारी भरकम ट्रक और बसें दौड़ रही थीं। पता चला कि यह सहारनपुर से गंगोह जाने वाली व्यस्त सड़क है। यहां से मेरा आवास लगभग 10 किमी दूर था। बाएं मुड़कर मैं शहर की ओर चल पड़ा। सड़क के किनारे दो - दो इंट भठ्ठों की चिमनियां दिखीं। उनाली गांव का नुक्कड़ दिखा जहां चाय की दुकानें थीं। मन में यहां रुकने का विचार उठा लेकिन मैंने बिना देर किए उसे दबा दिया। आगे एमआरएस मेमोरियल स्कूल व प्रज्ञान स्थली सहित अनेक शिक्षण संस्थान दिखे। फिर मानक मऊ पहुंचकर मुझे अपनी पहचानी हुई सड़क दिखी। फिर वह चौराहा भी दिखा जहां से कई बार सर्किट हाउस की ओर गया हूं। यहां सरकारी बस अड्डा है। यहां से अंबाला रोड की ओर मुड़कर मैं अपने हाईवे पर वापस आ गया।

बड़ी नहर के पुल की चढ़ाई पार कर जब ढलान पर पैडल रोकने का मौका मिला तो बाईं ओर मेरा जिम 'मसल-मास्टर्स' नजर आया जो आज बंद था। इस जिम ने मेरी देहयष्टि में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है। यहां से घर पहुंचने से पहले मैं बेल का शरबत पीने के लिए रुका। बिना चीनी वा बिना बर्फ वाला ताजा बना शरबत सारी थकान को मिटाने वाला था।

करीब डेढ़ घंटे में 21 किलोमीटर की प्रायः अनवरत साइकिल यात्रा ने आज भरपूर ऑक्सीजन के साथ अप्रतिम ऊर्जा व आनंद की आपूर्ति की। घर के दरवाजे पर खींचा गया चित्र इसकी गवाही दे रहा है।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मतदाता जागरूकता गीत

आजकल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में पूरी ताकत से लगा हुआ है। प्रशासनिक मशीनरी वोटर लिस्ट की तैयारी से लेकर विविध प्रकार के संसाधनों को जुटाने में लगी है। इसी क्रम में देश के मतदाताओं को उनके मताधिकार के बारे में जागरूक करने के लिए विशेष अभियान (SVEEP) भी चलाया जा रहा है। तमाम स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएं, एन.जी.ओ., रंगकर्मी आदि इस कार्य में व्यस्त हैं।

जो नौजवान पहली बार वोटर बने हैं उन्हें हरहाल में पोलिंग बूथ तक आने को तैयार करना है। इसी सिलसिले में कुछ संस्थाओं कि मांग पर मैंने दस साल पहले रायबरेली में लिखे इस इस गीत के दूसरे और तीसरे अंतरे को दुबारा लिखा है। अब यह बिल्कुल नया सा हो गया है। आनंद लीजिए, गुनगुनाइए और पसंद आए तो प्रसारित कीजिए।  

 

मतदाता जागरूकता गीत

(धुन- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की ...)

वोट डालना अच्छा है जी, लगता इसमें दाम नहीं।

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

लोकतंत्र की नींव बनेगी, मतदाता के वोटों से

लोकनीति भी नेक रहेगी, मतदाता के वोटों से

ऊंच-नीच का भेद मिटेगा, जाति-धर्म भी होगा दूर

हरगरीब का क्लेश कटेगा, मतदाता के वोटों से

वोटर के अधिकारों में है, भेद-भाव का नाम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

देशप्रेम की शान दिखाए लंबी लाइन वोटर की

बहुमत की सरकार बनाए लंबी लाइन वोटर की

सत्ता की कुंजी है इसमें कानूनों का उद् गम भी

सबसे बड़ी अदालत है ये लंबी लाइन वोटर की

जिम्मेदारी बहुत बड़ी, अब बिना वोट आराम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

अपनी संसद नयी बनी है भारतवासी हाथों से

फिर सरकार नयी चुननी है भारतवासी हाथों से

लोकतंत्र का धर्म हमें इस दुनिया को समझाना है

अब तकदीर नयी लिखनी है भारतवासी हाथों से

देना है संदेश शांति का इस पर लगे विराम नहीं

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता … जागो मतदाता, जागो मतदाता

वोट डालना अच्छा है जी, लगता इसमें दाम नहीं।

वोट डालकर आने से है, अच्छा कोई काम नहीं।।

जागो मतदाता, जागो मतदाता… जागो मतदाता, जागो मतदाता

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ‘सत्यार्थमित्र’

बुधवार, 17 जनवरी 2024

कब बदलेगा मौसम

मन की उथल-पुथल भारी

क्या जल्दी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

क्या सर्द हवा से 

राजनीति की गर्मी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

कहीं बढ़े उल्लास राम से

कहीं बढ़ रहा ग़म

कब बदलेगा मौसम

गारंटी है एक बांटता

दूजा फोड़े उसपर बम

कब बदलेगा मौसम

अब विपक्ष की प्रत्याशा

इंडिया सके ना जम

कब बदलेगा मौसम

जैसे जैसे यात्रा बढ़ती

जन-रुचि जाती थम

कब बदलेगा मौसम

अब युवराज अधेड़ हुए

क्यों राह अगोरें हम

कब बदलेगा मौसम

भानमती के कुनबे में

नीतीश न पाते रम

कब बदलेगा मौसम

आँखों के आगे अंधेरा

फिर छाए ना मातम

कब बदलेगा मौसम

एक उड़ाये जेट विमान

दूजा हाँके टमटम

कब बदलेगा मौसम

गंगाजल को यह पूजे

और वो आबे-जमजम

कब बदलेगा मौसम

सीएम रहे साल पंद्रह

फिर उतना ही पीएम ?

कब बदलेगा मौसम

मकर राशि में सूरज आकर

सर्दी करे खतम

अब बदलेगा मौसम

नेताजी का अब चुनाव

वोटर दिखलाये दम

अब बदलेगा मौसम

टीवी चैनल लहालोट

ऐंकर करते बमबम

अब बदलेगा मौसम 

मकर संक्रांति, 15 जनवरी 2024 :

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

‘सत्यार्थमित्र’

 

 

 

 

 

 

बुधवार, 10 जनवरी 2024

राष्ट्रधर्म निर्वाह

 

आओ हमसब चुन लें अपने देशप्रेम की राह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह।।

(1)

भौतिकता की चकाचौंध में नौजवान भरमाये,

मूल्यहीन पश्चिम की शिक्षा मनोरोग भी लाये।

वाम और दक्षिण के पथ जब इक-दूजे को काटें,

युगों-युगों का ज्ञान सनातन सच्ची राह दिखाये॥

मुखर हुई जनजन में अब अपने गौरव की चाह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह॥

(2)

विद्या विनयशील कर दे जो दक्ष बनाये हमको,

अर्जित धन से धर्म करें जो सुख पहुँचाये सबको।

परहित सबसे बड़ा धर्म पर-पीड़ा है अधमाई,

भारत का संदेश यही पहुँचाना है इस जगको॥

युद्धों का उन्माद कर रहा कितने देश तबाह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।।

(3)

राजनीति में जाति-पंथ की पैठ न बढ़ने पाये,

अच्छा सच्चा जनसेवक ही इसमें चुनकर आये।

लोकतंत्र में भाईचारा पर संकट मत डालो,

अज्ञानी, अपराधी, पापी से यह देश बचा लो॥

सांस्कृतिक उत्थान दे रहा सबको नेक सलाह।

कर लें मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।।

सत्यार्थमित्र

Rashtradharm

सांकेतिक चित्र : गूगल से साभार.