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शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

प्रति-उपकार की कभी मत सोचें

कृतज्ञता

क्या आपको अपने जीवन में कभी दूसरों की मदद पाने की जरूरत पड़ी?
क्या आप को किसी ने ऐसे समय में आर्थिक सहायता की जब आपके पास जरूरी पैसे नहीं थे और कठिनाई में फँसे हुए थे?
क्या कभी आप बीमार पड़े और आपके किसी मित्र ने आपकी सेवा-सुश्रुषा की, डॉक्टर के पास ले गया?
क्या आपकी पत्नी या बच्चे के सड़क-दुर्घटना का शिकार हो जाने पर एक अपरिचित राहगीर ने उनकी सहायता की, मलहम-पट्टी करायी?
क्या आपका भाई झगड़े के पुलिस केस में फँसा तो किसी प्रभावशाली दोस्त ने अपने रसूख का प्रयोग करके उसे बचाया था?
क्या किसी तनाव के कारण जब आप मानसिक अवसाद के शिकार होते जा रहे थे तब आपके सहकर्मी ने अपना हाथ बढ़ाकर आपको सम्बल दिया था ?

यदि इन प्रश्नों का उत्तर ‘हाँ’ है तो ऐसे मददगारों के प्रति आपके मन में कृतज्ञता का भाव जरूर पैदा होता होगा। आप उनके उपकार के भार से दबा हुआ महसूस करते होंगे। आभारी होंगे उनके। यह आभार उनसे प्रदर्शित भी करते होंगे। थैंक्यू बोलकर मन कुछ हल्का हो जाता होगा। कृतज्ञता का यह भाव रखना कदाचित्‍ अच्छा माना जाता है।

लेकिन क्या आप ऐसे उपकार का बदला चुकाने के बारे में भी सोचते हैं?  क्या मन में ऐसी ख्वाहिश पालते हैं कि काश आपको भी ऐसा अवसर मिलता कि जिस व्यक्ति ने आपकी मदद की उसकी मदद आप भी कर सकें? आपके ऊपर जो एहसान किया गया है उसे याद रखते हुए क्या आप प्रति-उपकार के अवसर की तलाश में रहते हैं? क्या आप यह कामना करते हैं कि ईश्वर आपको इस लायक बनाये कि आप भी इनकी मदद कर सकें? और सबसे बढ़कर, क्या आप अपनी इस भावना से दूसरों को अवगत भी कराते हैं जिन्होंने आपकी मदद की है?

यदि इन प्रश्नों का आपका उत्तर ‘हाँ’ है तो सावधान हो जाइए। आप सही नहीं हैं। आप अन्जाने में अपने दोस्तों, मददगारों व हितैषियों का अहित कर रहे हैं। आपकी प्रति-उपकार की भावना उन्हें संकट में डाल सकती है। आप यदि ईश्वर से अपने लिए ऐसे अवसर की कामना कर रहे हैं जिसमें आप अपने ऊपर किये गये एहसान का बदला चुका सकें तो इस कामना में यह भी शामिल है कि भगवान उनके लिए कोई ऐसी परिस्थिति बनाये जिसमें उन्हें किसी की मदद की जरूरत पड़ जाय। यानि जाने-अनजाने आप उनके लिए बुरे दिनों की कामना कर रहे हैं। उन्हें आर्थिक बदहाली, बीमारी या दुर्घटना का सामना करने की नौबत आ जाय तभी आपकी वह इच्छा पूरी होगी जिसे आप उपकार का बदला चुकाना समझ रहे हैं।

इसलिए आप एहसान चुकाने की बात मत सोचें। कहीं आपकी इच्छा का मान रखने के लिए प्रकृति ऐसे उपाय न कर दे कि अगले को कठिनाई पैदा हो जाय। इसलिए बेलौस होकर अपने ऊपर किये गये एहसान का एकाउंट बनाना भूल जाइए। यह याद मत रखिए कि अमुक व्यक्ति ने आपके गाढ़े वक्त में मदद की थी। और मुझे भी उसके गाढ़े वक्त में….। ना बाबा ना…। कत्तई नहीं। छोड़ दीजिए उसे उसके हाल पर। ईश्वर उसे अच्छे कार्य का पुरस्कार देगा।

इसका एक दूसरा पहलू भी है जो आम तौर पर एक अन्य कारण से समझाया जाता है। वह यह कि आप किसी की कोई मदद करते हैं तो काम हो जाने के बाद उसे अवश्य भुला दीजिए। नेकी कर दरिया में डाल। यह भुला देना सबसे ज्यादा आपके लिए लाभदायक है। यदि आप बदले में कुछ अपेक्षा करते हैं तो नुकसान ही नुकसान है। अव्वल तो आपकी उम्मीद पूरी नहीं होने पर आप निराशा के शिकार हो जाएंगे और मानसिक त्रासदी झेलेंगे। लेकिन दूसरी महत्वपूर्ण बात यह होगी कि आप अन्जाने में  स्वयं अपने लिए बुरे वक्त को न्यौता देते रहेंगे। आप यदि चाह रहे हैं कि आपको भी अमुक व्यक्ति वैसी ही सहायता करे जैसी आपने की थी तो आप सबसे पहले अपने लिए वैसी विपरीत परिस्थिति की परिकल्पना कर रहे हैं।

इसलिए यदि अपना भला चाहते हैं तो अपनी उपलब्धियों के लिए केवल ईश्वर को धन्यवाद दीजिए और उससे प्रार्थना कीजिए कि वह आपको कभी भी एहसान का बदला चुकाने का मौका न दे; और न ही किसी दूसरे के मन में ऐसी भावना पैदा होने दे कि वे आपकी मदद करने की कामना पालें। एक बार इस दृष्टि से सोचकर देखिए आपके मन का बहुत सा असंतोष और भार पल भर में मिट जाएगा और आप बहुत हल्का महसूस करेंगे। करना ही है तो उनकी मदद कीजिए जिनसे आपको कोई रिटर्न लेने की गुन्जाइश नहीं है। फिर मस्त रहेंगे।

मैंने तो जबसे यह सूत्र पाया है बहुत मजे में हूँ। Smile
आप भी आजमाइए…। क्या ख्याल है?

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी - सत्यार्थमित्र)