मित्रों, मुझे सहारनपुर में नई तैनाती के पद पर कार्यभार ग्रहण किए हुए तीन महीने हो गए। लेकिन इन तीन महीनों पर ही जैसे ग्रहण लगा हुआ था जो अब छँटता दिख रहा है। माँ शाकंभरी देवी के पवित्र तीर्थ क्षेत्र में उन्हीं के नाम से राज्य सरकार द्वारा नव-स्थापित विश्वविद्यालय में प्रथम अधिकारी के रूप में पहले कुलपति जी, फिर कुलसचिव व उसके बाद वित्त अधिकारी के रूप में मेरी तैनाती हुई है। हम तीन पूर्ण कालिक अधिकारियों के अतिरिक्त जो लोग भी इस विश्वविद्यालय के लिए काम कर रहे हैं वे सभी या तो उधार के हैं, या बेगार के हैं या किसी ठेकेदार के हैं। सभी इस उम्मीद में हैं कि जल्द ही यह ग्रहण कटेगा, उम्मीद की किरण फूटेगी और शिक्षा के प्रसार का यह सूरज चमकेगा। माननीय मुख्यमंत्री जी की विशेष अभिरुचि इस विश्वविद्यालय को एक भव्य और उत्कृष्ट अध्ययन केंद्र बनाने में है। बेहद प्राथमिकता के साथ इस विश्वविद्यालय कि प्रगति समीक्षा निरंतर की जा रही है और इसके निर्माण व विकास के कार्य को गति प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय की सर्वोच्च नियामक संस्था है - इसकी कार्यपरिषद (Executive Council) और वित्तीय व्यवस्था संबंधी निर्णय लेती है - वित्त समिति (Finance Committee) जिसकी संस्तुतियों का अनुमोदन कार्यपरिषद करती है। लंबी प्रतीक्षा के बाद कार्य परिषद का गठन होते ही इसकी प्रथम बैठक का कार्यक्रम तय हुआ और गत 14 सितंबर 2022 को जब सबलोग अपने-अपने तरीके से हिन्दी-दिवस का जश्न मना रहे थे तब हम लोग कार्य-परिषद से विश्वविद्यालय के लिए बजट स्वीकृत करा रहे थे और दूसरे तमाम नीतिगत फैसलों पर मुहर लगवा रहे थे। इस बैठक के सम्पन्न होने के साथ ही अब महत्वपूर्ण निर्णयों को क्रियान्वित करने का समय आ गया है। विश्वविद्यालय के लिए कार्मिक प्रबंधन से लेकर सम्बद्ध महाविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया का संचालन, और परीक्षा कराने के लिए ली गई उधारी और बेगारी का भुगतान करने का समय भी आ गया है। मतलब अब थोड़ा व्यस्त रहने का समय है।
मेरा निजी अनुभव है कि लेखन या कोई भी रचनात्मक कार्य बिल्कुल बेकारी के समय करने का मन ही नहीं होता है। मैं अगर किसी सार्थक काम के अभाव में खाली बैठा रहता हूँ तो कोई शौकिया काम भी करने का उत्साह नहीं रह जाता है। इस दौरान मैं अपने ब्लॉग पर तो प्रायः निष्क्रिय रहा ही चटपट स्टैटस वाला फेसबुक भी अपडेट करने में मुझे आलस्य घेरे रहा है। नियमित योगासन, प्राणायाम और ध्यान की अपनी ऑनलाइन कक्षा की झलकियां तथा साइकिल से सैर के रोचक अनुभव भी आपसे साझा करने में कोताही हुई है। इस नई जगह पर कितने ही नए अनुभव हुए जिसपर मजेदार पोस्ट लिखी जा सकती थी। लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन कुंजी-पटल से दूर ही रहा। माँ शाकंभरी की शक्ति-पीठ का प्रसिद्ध मंदिर वह प्रथम स्थान था जहां मैं ज्वाइन करने के बाद दर्शन के लिए गया था। उसकी झलक तो दिखानी ही थी। सहारनपुर में एक किराये का घर खोजने का अनुभव, घर मिल जाने के बाद उसमें गृहस्थी बसाने का अनुभव, भोजन बनाने वाला या वाली को ढूँढने और अपने मन-माफिक भोजन पाने-न पाने के संघर्ष का अनुभव, पास के सुरम्य मंदिर प्रांगण के हरे-भरे लॉन में नियमित योगाभ्यास व पैरामाउंट ट्यूलिप कॉलोनी की सड़कों व पार्कों में साइकिल चलाते हुए बारिश में भींगने का अनुभव। क्या कुछ नहीं था इस अञ्चल में पसरा हुआ मेरे लिए बिल्कुल तारों-ताजा! लेकिन पता नहीं क्यों खलिहर बैठे रहने का स्थायी भाव मेरे भीतर तक इतनी गहरी पैठ बना चुका था कि मैं उसी का रसास्वादन करने लगा था। निठल्लेपन का सुख कैसा होता है इसकी थोड़ी अनुभूति मुझे इस दौर में हुई है।
पिछली तैनाती प्रयागराज में हुई तो लगा था कि ब्लॉगरी की यात्रा जहां से शुरू हुई थी वहाँ पहुंचकर सबकुछ फिरसे लहलहा उठेगा लेकिन करोना प्रतिबंधों से बाहर निकलकर दुबारा सामान्य दिनचर्या बहाल करते हुए आप सबसे सक्रियता से जुडने की तैयारी हो ही रही थी कि सरकार ने मेरी पदोन्नति कर दी और एक नए घोषित विश्वविद्यालय को धरातल पर उतारे जाने की प्रक्रिया का वित्तीय पक्ष सम्हालने की चुनौती देकर मुझे अपने परिवार से बहुत दूर और पैतृक गाँव से सर्वाधिक संभव दूरी के स्थान पर भेज दिया। आज्ञा शिरोधार्य करनी ही थी।
अब जबकि इस नए शहर में अपनी गृहस्थी प्रायः जम गई है और विश्वविद्यालय भी अपना आकार लेने लगा है तब एक बार फिर कुंजी-पटल (keyboard) से यारी हो जाने का उत्साह हिलोरें ले रहा है। इस हरे-भरे इलाके में घुमक्कड़ी करने और उसे लिपिबद्ध करने की अपार संभावनाएं हैं। कुछ नए अनुभव हो रहे हैं जिन्हें आप तक पहुंचाने का मन है। कोशिश होगी यहाँ कुछ नियमित आने की और अन्तर्जाल पर पुराने मित्रों से दुबारा जुड़ने की। आशा है आप सबका साथ मिलता ही रहेगा।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)