हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

नयी शिक्षा नीति की जमीनी चुनौतियाँ

वर्ष 2020 में भारत सरकार ने नयी शिक्षा नीति घोषित की थी जिसे जमीन पर उतारने की कवायद जोर-शोर से चल रही हैं। मुझे भी एक नये नवेले विश्वविद्यालय में सेवा करने का अवसर मिला है। हाला कि मेरा काम शैक्षिक पक्ष के बजाय वित्तीय पक्ष से जुड़ा हुआ है, फिर भी एक जिज्ञासु प्रेक्षक के रूप में मुझे बहुत से ऐसे अनुभव हो रहे हैं जो धरातल पर उच्च शिक्षा की दयनीय दशा को ही इंगित कर रहे हैं।

नयी शिक्षा नीति में जिन उच्च आदर्शो को प्राप्त करने की परिकल्पना की गयी हैं उनका विवरण देने की न मेरी मंशा है और न ही जरुरत। जिज्ञासु जन इसे सहज ही ऑनलाइन पता कर सकते हैँ।
हम तो आजकल प्रायः रोज ही चौक जाते हैं जब विश्वविद्यालय के उच्च अधिकारी किसी न किसी धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन, शिकायत, सिफारिश, सामूहिक मांग, सूचना-संकलन, शासन में सुनवाई इत्यादि से उत्पन्न किसी ना किसी चुनौती या समस्या से जूझते रहते हैं। इन चुनौतियों का कोई सम्बन्ध नयी शिक्षा नीति से मुझे नहीं दिखाई देता। कुछ उदाहरण :
# पाँचवे सेमेस्टर में दाखिल हो चुके अनेक विद्यार्थी हाल ही में घोषित दूसरे - तीसरे सेमेस्टर की बैक पेपर परीक्षा के परिणाम में फेल हो गए हैं। उनकी मांग है कि उन्हें हर हाल में पास कर दिया जाय नहीं तो प्रदर्शन करेंगे।
# कॉलेज ने आतंरिक मूल्यांकन में बहुत कम नंबर दिया। इसलिए फेल हो गये। यह हम छात्रों के साथ धोखा और अत्याचार हैं। सबको पास करो नहीं तो धरना देंगे।
# प्रैक्टिकल परीक्षा में फेल होने का तो कोई कारण ही नहीं हो सकता। इसमें अनुपस्थित रहने पर मिले जीरो को बढाकर चालीस कर दो नहीं तो घेराव करेंगे।
# पंद्रह बीस साल से जो फीस ली जा रही थी उसमें कोई भी वृद्धि मंजूर नहीं हैं। बढ़ी फीस वापस लो नहीं तो आत्मदाह करेंगे।
# ऑनलाइन फॉर्म भरने की अंतिम तिथि तीन बार बढ़ाई जा चुकी हैं फ़िरभी कुछ छात्र छूटे रह गये हैं। चौथी बार डेट बढ़ाओ नहीं तो बवाल होगा।
# परीक्षा में नकल करते पकड़े गये, नोट्स लिखे दुपट्टे को कॉपी के साथ सील किया गया। कॉपी में वही सब उतारा गया भी मिला। लेकिन आरोप है कि गलत फंसाया गया है। पास करो नहीं तो रो - रोकर बुरा हाल कर दूंगी।
 
करुण क्रन्दन से लेकर बवाल की धमकी भरी ऐसी अनेक मांगो से ठसाठस भरे कमरे में उनपर 'सहानुभूति पूर्वक' विचार करते हुए परीक्षा नियंत्रक, कुलसचिव और कुलपति जी के सामने नयी शिक्षा नीति को लागू करने का सवाल मुँह बाए दरवाजे पर ही "मे आई कम इन सर" बोलता हुआ खड़ा  है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

पुस्तक चर्चा : विपश्यना में प्रेम (उपन्यास)

दीपावली की छुट्टियों में एक रोचक उपन्यास पढ़ने का अवसर मिला तो इसके बारे में आप सबको बताने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। लीक से हटकर चलती रोचक कथा का अंत भी अनूठा है। आइए आपको इसका कुछ परिचय कराते हैं।
मूलतः पत्रकार रहे आदरणीय दयानंद पांडेय जी ने अपने विशद साहित्यिक लेखन से अपने विशुद्ध पाठकों को अपना प्रशंसक तो बनाया ही है, लेकिन विशुद्ध साहित्यकार का चोला ओढ़े अनेक स्वनामधन्य लेखकों के पेट में दर्द भी पैदा कर दिया है। बेखटक और बेलाग लेखन ही इनकी पूंजी है। इसकी चोट किसी को पहुंचती हो तो वह जाने। 'अपने-अपने युद्ध' से मची खलबली तो बहुतों को याद होगी।

कोई नंगा सच जो इन्हें अपनी आंखों से दिखता है उसे वैसे का वैसा अपनी कलम से चित्रलिखित कर देना इन्हें बखूबी आता है। मन के भीतर विचारों व भावनाओं की श्रृंखला जैसी पैदा होती है उसे वैसे ही नैसर्गिक रूप में कागज पर उतार देना इनकी फितरत है। जिस सच्चाई को ये महसूस करते हैं उसे ऐसा शब्द देते हैं कि पढ़ने वाला भी सहज ही उस सच्चाई को खुद महसूस करने लगता है। न केवल भौतिक घटनाओं का विवरण बल्कि किसी चरित्र के मन में उमड़ते - घुमड़ते भाव विचार भी इनकी लेखनी से निकलकर पाठक के मन पर हुबहू वही छाप छोड़ देते हैं। इनकी बातें पानी की धार जैसी बहती हैं। मन को तर करती जाती हैं। किस्सागोई ऐसी कि बैठकर सुनने वाला आगे झुकता जाय। जिज्ञासा की धार टूटने का नाम न ले।

सहज लेखन की ऐसी ही शैली में पगा उपन्यास 'विपश्यना में प्रेम' पढ़ते हुए मन बार-बार मुस्करा देता है। एक विपश्यना केंद्र जिसे लेखक चुप की राजधानी कहता है वहां नायक विनय के साथ कुछ ऐसा घटित होता है जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी। शांति की तलाश में मौन साधना का अभ्यास करने की राह में कुछ ऐसा क्षेपक आता है जिसका शोर उसे मतवाला कर देता है। लेखक के शब्दों में - विपश्यना शिविर में विनय भी अपने मौन के शोर को अब संभाल नहीं पा रहा था। मौन का बांध जैसे रिस-रिस कर टूटना चाहता था। शोर की नदी का प्रवाह तेज़ और तेज़ होता जाता था। देह का दर्द अब बर्दाश्त होने लगा था। ध्यान का कुछ आनंद भी आने लगा था। पर शोर का सुर ?
एक बानगी यह भी - लोग कहते हैं , मौन में बड़ी शक्ति होती है। तो मौन , मन के शोर को क्यों नहीं शांत कर पाता। किसी चट्टान से सागर की लहरों की तरह पछाड़ खाता यह शोर बढ़ता ही जाता है। विपश्यना के वश का भी नहीं लगता यह शोर।
उपन्यास की जो विषय वस्तु है वह आपको चकित कर सकती है। मुझे तो यह उपमा भी चकित करती है - जैसे किसी युवा होती लड़की के लिए उस का वक्ष ही भार हो जाता है, ठीक वैसे ही विनय के लिए यह साधना भी भार हो चली थी।
उपन्यास में किसी वातावरण का चित्रण पढ़कर लगता है जैसे पाठक स्वयं वहाँ पहुँच गया हो। साधना स्थल का माहौल महसूस कराती ये पंक्तियां देखिए - आचार्य के टेप की आवाज़ में वह डूब गया है। अजब आनंद है इस आवाज़ में भी। इतनी सतर्क, इतनी स्पष्ट और इतने व्यौरे में सनी, किसी नाव की तरह थपेड़े खाती, बलखाती आवाज़ से इस से पहले वह कभी नहीं मिला था। आरोह-अवरोह और श्रद्धा का ऐसा मेल, जैसे कानों में जलतरंग बज जाए, जैसे कोई मीठी सी हवा कानों में चुपके से स्पर्श कर जाए।
चुप की राजधानी में मन को आध्यात्मिक शांति के लिए एकाग्र करने में लगे विनय को चुपके से चिकोटी काटती मल्लिका की पूरी योजना का पता तो उपन्यास के अंत में चलता है, लेकिन पाठक को वहाँ तक पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है। वह तो एक - एक पृष्ठ में बहती रसधार से सिक्त होता चलता है। कथा के बीच अचानक कोई अदभुत दृश्य उपस्थित हो जाय, कोई मनभावन दृष्टांत आ पड़े, कोई मन को छू जाने वाली खूबसूरत उक्ति मिल जाय, अकस्मात रोम - रोम पुलकित करने वाली कोई टिप्पणी मिल जाय या देह - संगीत का कोई नया टुकड़ा आ पड़े, इस संभावना से यह पूरा उपन्यास इस तरह लबरेज है कि आप इसे कूद - फांद कर नहीं पढ़ना चाहेंगे।
यहाँ तो प्रत्येक पृष्ठ आपको बांधकर रखता है। बिल्कुल जैसे गुलजार की कोई नज्म हो। दुबारा तिबारा सोचना भी अच्छा लगता है। बुद्ध और यशोधरा के बिलगाव का संदर्भ है तो मांसलता और कामुकता का चरम भी है। इसे सारंगी, गिटार और वीणा के मधुर संगीत सा पेश किया गया है। यहां माउथऑर्गन की धुन पर थिरकता नृत्य भी है और तबले की थाप पर उचकता जिस्म भी है। यह सब ऐसा दृश्य उपस्थित करता है और ऐसी अनुभूति देकर जाता है कि इसे केवल 'वयस्कों के लिए' उपयुक्त ठहराने का मन होता है। लेकिन यह इस उपन्यास की सीमा नहीं है बल्कि दयानंद जी की एक विलक्षण उपलब्धि है। 
पुस्तक : विपश्यना में प्रेम

लेखक : दयानंद पांडेय, प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, 4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए पेपरबैक : 299 रुपए पृष्ठ : 106

अमेज़न (भारत) पर ऑर्डर करें हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

गृहस्थ, आश्रम और तीर्थ भाग-4 (समापन)

(...भाग 3 से आगे)

Gyan Dutt Pandey जी से मेरा प्रथम परिचय 2007-08 में अंतर्जाल की दुनिया में तब हुआ था जब मैंने हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया का ककहरा सीखना शुरू किया था और वे उस दुनिया के लब्ध प्रतिष्ठ शीर्षपुरुष बन चुके थे। उनकी मानसिक हलचल इसी नाम के हिंदी ब्लॉग (https://gyandutt.com/) के माध्यम से न केवल लोकप्रियता के नए आयाम छू रही थी, बल्कि इनके द्वारा असंख्य नव प्रवेशियों को बिंदास लिखने की प्रेरणा देने के साथ-साथ तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाता था। मैंने तो इन्हें ब्लॉगरी के लिए विधिवत् अपना गुरुदेव मान लिया था। सौभाग्य से हम दोनों एक ही शहर इलाहाबाद, अब प्रयागराज में नौकरी कर रहे थे, इसलिए वर्चुअल दुनिया से बाहर निकलकर हम असली दुनिया में भी मिल गए। मुझे उनसे बड़े भाई जैसा पारिवारिक स्नेह भी मिला और रीता भाभी जी के हाथ का लजीज व्यंजन सपरिवार जीमने का अवसर भी कई बार आया। ब्लॉगरी की पाठशाला से लेकर राष्ट्रीय सेमिनार तक आयोजित कराने जैसी अनेक ऐतिहासिक उपलब्धियाँ गुरुदेव के मार्गदर्शन में प्राप्त हुईं।

प्रयागराज से शुरू हुई यह गुरू-शिष्य परंपरा व बड़े-छोटे भाई जैसी आत्मीयता अभी भी बदस्तूर जारी है। पांडेय सर ने रेलवे की बड़ी नौकरी (IRTS) में पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक के उच्च पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण स्वेच्छा से एक ग्राम्य जीवन चुन लिया है। रेलवे-अफसरी की चादर को कबीरदास जी की तरह बड़े जतन से ओढ़ने के बाद ज्यों की त्यों वहीं धर आए। अब वे गाँव में बसकर ऐसे बन गए हैं जैसे कभी रेल के एलीट क्लास से कोई लेना-देना ही न रहा हो। जी.टी. रोड पर औराई के निकट के गाँव विक्रमपुर में अपना आश्रम जैसा घर बनाकर गुरुदेव ने वानप्रस्थ आश्रम की एक नयी जीवंत पारी प्रारम्भ की है।

बनारस के डाक बंगले में अलस्सुबह तैयार होकर और बत्तखों की केलि-क्रीड़ा का छोटा वीडियो बनाकर जब हम वहाँ से विंध्याचल के लिए निकले तो मैंने गुरुदेव को फोन मिलाया। जवाब नहीं मिला तो मैं समझ गया कि अभी हाथ खाली नहीं होंगे। साइकिल पर व्यस्त होंगे। थोड़ी देर में ही पलटकर कॉल आ गयी। मैंने लोकेशन शेयर करने को कहा और अपना लाइव लोकेशन भेज दिया। करीब चालीस मिनट बाद हम दोनो परानी उनके गेट पर थे जहाँ वे दोनो आदरणीय खड़े होकर प्रतीक्षा करते मिले। गुरुदेव ने मुझे बाहों में भर लिया। स्नेह और आशीष की बारिश में भींगने के साथ हमें गुलाबजामुन की मिठास और समोसे के चटपटे स्वाद का आनंद भी मिला।

यहाँ पर गाँव के शुद्ध पर्यावरण में हरे-भरे फलदार पेडों व फूलदार सजावटी पौधों के साथ तुलसी और एलोवेरा जैसे औषधीय पादप भी घर के सुदीर्घ लॉन में सुव्यवस्थित थे। सहयोग के लिए एक माली तो है लेकिन वहाँ मुस्कराते खिलखिलाते पौधे यह बता रहे थे कि ये दोनो वानप्रस्थी इन्हें अपने हाथों से भी सवांरते पुचकारते हैं।

पहले DrArvind Mishra जी और अब ज्ञानदत्त जी के सार्थक, स्वास्थ्यपूर्ण और सुखदायी सेवानैवृत्तिक जीवन से प्रेरणा लेकर मुझे इस गंभीर चिंतन ने जकड़ रखा है कि महानगरीय जीवनचर्या किसी व्यवहारिक मजबूरी में तो चल सकती है लेकिन अवसर होने पर इसका परित्याग कर देने में ही भलाई है। गुरुदेव इसे 'रिवर्स माइग्रेशन' का नाम देते हैं। अपने ब्लॉग पर नियमित लेखन के माध्यम से वे इस ग्राम्य जीवन की खूबियों और खामियों के बारे में सच्ची तस्वीर दिखाते रहते हैं। विद्युत आपूर्ति पर निर्भर भौतिक सुख के भारी संसाधन छोड़ दिये जाय तो और कोई कमी नहीं है। बता रहे थे कि निकट में ही रिलायंस ने स्मार्ट पॉइंट नामक स्टोर भी खोल दिया है।

इस प्रकार हमने संबंधों की ताज़गी में कुछ और ऊर्जा भरकर वहाँ से विदा ली और माँ विंध्यवासिनी के दरबार में हाजिर हुए। पंडा अमित गोस्वामी जी व्हाट्सएप पर मुझे प्रतिदिन देवी माँ की मंगला आरती की तस्वीर भेजते रहते हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन में माँ भगवती का साक्षात् दर्शन करके हम बाहर आये। यहाँ के मंदिर परिसर में भी एक विशाल कॉरिडोर का निर्माण कार्य चल रहा है। यहाँ पहुँचने वाली पतली गलियों को चौड़ी सड़क में बदलने का काम प्रगति पर है। अभी थोड़ी अस्त-व्यस्त स्थिति है लेकिन दर्शनार्थियों का रेला पूरे धैर्य के साथ अपनी श्रद्धा और भक्ति का अनुष्ठान माँ के दरबार में अहर्निष करता जा रहा है।

माँ विन्ध्यवासिनी धाम की खास पहचान वाली चुनरी और अन्य प्रसाद के साथ चूड़ी-कंगन-बिंदी इत्यादि की किफायती खरीद के बाद श्रीमती जी Rachana Tripathi को अब गर्म जलेबी के आस्वादन की अपनी लंबित इच्छा पूरी करने का ध्यान आया। सामने ही एक साफ-सुथरी दुकान पर कड़ाही चढ़ी हुई थी। जलेबी के साथ हमने गर्मागर्म कचौड़ियां व आलू की रसदार सब्जी का आनंद भी लिया। जब उसके उत्तम स्वाद की प्रशंसा की गई तो परोसने वाले बच्चे ने कहा- अभी तो टमाटर पड़ा ही नहीं है, नहीं तो आप उंगलियां ही चाटते रह जाते।

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भाग-1, भाग-2, भाग-3

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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

गृहस्थ, आश्रम और तीर्थ (भाग-3)

(... भाग 2 से आगे )

डाक बंगला में थोड़ा आराम करने के बाद अपने अभीष्ट के लिए हम समय से तैयार हुए। बनारस की भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर अपनी कार से चलना वैसे ही मुश्किल था, उसपर मोहर्रम के ताजियों के जुलूस पूरे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को हाँफने पर मजबूर कर रहे थे। ऐसे में ट्रैफिक पुलिस में ही सेवारत हमारे प्रिय अनुज पंकज ने हमारी मुश्किल आसान कर दी। शहर की सड़कों का मकड़जाल भेदना उनके ड्राइवर अनवर के लिए बाएं हाथ का खेल था सो हम उनके साथ निकल पड़े भोलेबाबा का दर्शन करने।

ज्ञानवापी की सुरक्षा में तैनात सशस्त्र प्रहरी दिनरात मुस्तैदी से उस पुरातन ढाँचे की रक्षा कर रहे हैं जिसके अगल-बगल से गुजरते हुए लाखो शिवभक्त तीर्थयात्री विश्वेश्वर के दर्शन को आते-जाते हैं। मोदी जी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर क्या बनवा दिया अब यह परिसर उत्साह, उमंग व आत्मविश्वास से भरे अपार जनसमूह के हर-हर महादेव के समवेत जयकारे से लगातार गूँजता रहता है। अब वो पुरानी तंग गलियाँ और उनमें अपने व्यवसाय के लिए आपको रोकते-टोकते दुकानदार और पंडा प्रजाति के लोग इतिहास में जा चुके है। अब दृश्य कुछ ऐसा है कि दर्शन-पूजन व जलाभिषेक से पहले और उसके बाद भी खुले आसमान के नीचे सफेद संगमरमर के लंबे चौड़े फर्श पर टहलते हुए और रुककर पूरे वातावरण को निहारते, अपनी आंखों में बसाते और धूप-चंदन की सुगंध मिश्रित वहाँ की हवा को अपने फेफड़ों में भरते हुए भारत के कोने-कोने से आने वाले तीर्थयात्री जितनी श्रद्धा व भक्ति के भाव से शिवलिंग को देखते और पूजते हैं उतनी ही वितृष्णा से भरी और कदाचित् श्राप देती दृष्टि उस ढाँचे की ओर भी जरूर डालते हैं जो आजकल न्यायालय में अपने अस्तित्व का परीक्षण करा रहा है।

कॉरिडोर के उत्तरी सिरे पर विशालकाय नंदी की अपलक दृष्टि उस वृहद शिवलिंग की ओर लक्षित है जो एक वजूखाने के उच्छिष्ट पानी में डूबा हुआ है। यह हिमालय की कंदराओं में ध्यानमग्न गहरी तपस्या में डूबे महादेव शिव की याद दिलाता है जिनकी तंद्रा को तोड़ने के लिए कामदेव को अपना उत्सर्ग करना पड़ा था। उनकी तीसरी आंख खुलते ही उसके तेज से कामदेव स्वाहा हो गये थे।

सनातन मान्यता के अनुसार गंगाधर शिव के त्रिशूल पर बसी काशी में उत्तर वाहिनी गंगा जी की अविरल धारा अब इस प्रांगण के पूर्वी द्वार के सामने से गुजरती दिखती है। इस घाट के बगल में ही मणिकर्णिका घाट पर अगणित चिताओं की लपट से उठते धूएँ का गुबार भी एक अटल सत्य की ओर इंगित करता है। मंदिर के गर्भगृह से गंगातट तक का नव निर्माण यहाँ आनेवालों के मन-मस्तिष्क पर जो प्रभाव छोड़ता है वह वर्णनातीत है। इसे यहाँ आकर ही महसूस किया जा सकता है। सुरक्षा कारणों से हमारा मोबाइल गाड़ी में ही अनवर के हवाले था, लेकिन प्रिय पंकज ने अपने सरकारी मोबाइल से कुछ ऐसी तस्वीरें खींच ली थीं जो प्रोटोकॉल में अनुमन्य थीं।

परिसर से बाहर आने का तो हमारा मन ही नहीं कर रहा था लेकिन शनिवार के दिन संकटमोचन मंदिर में रुद्रावतार बजरंग बली का दर्शन करने का लोभ हमें वहां से बाहर ले आया। ट्रैफिक जाम को लगभग चीरते हुए हम गोदौलिया चौराहे पर पहुँचे, ठंडाई पीकर प्यास बुझाई और संकटमोचन मंदिर की वह लंबी राह पकड़ी जो मोहर्रम के जुलूस से प्रायः अछूती थी। अंततः हमने अंतिम आरती से पहले ही "पवनतनय संकटहरन मंगल मूरति रूप" का दर्शन किया, तुलसीदल मिश्रित प्रसाद ग्रहण किया, लेकिन परिसर में पर्याप्त समय लेकर आये हुए असंख्य भक्तों की तरह वहाँ बैठकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ नहीं कर सके। दर्शन मिल जाने के बाद हमारा ध्यान गर्मी, ऊमस व पसीने से भरी देह की ओर चला गया। हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गयी थी। हमने प्रसाद का डिब्बा एक काउंटर पर जाकर वहां रखी सुतली से बांधा, जमा किये गए जूते-चप्पल वापस पहने और भागते हुए बाहर आ गए। यहां भी अंदर फोटो लेने का सुभीता नहीं था। बाहर की भीड़ में पंकज ने एक फोटो क्लिक की। गाड़ी खोजकर हम बैठे और राहत की सांस ली।

हमने प्यास से सूखे गले को तर करने के लिए एक नुक्कड़ पर रुककर गाढ़ी राबड़ी मिश्रित लस्सी पी। बनारस की स्वादिष्ट ठंडाई और मीठी लस्सी हर नुक्कड़ पर तैयार मिलती है। इसके शौकीनों की भी कोई कमी नहीं। मेरा मन तो बनारसी पान खाने का भी था लेकिन काफी देर हो चुकी थी। हमें 'डाक बंगला' पहुँच कर जल्दी से सोना भी था ताकि अगले दिन विंध्यवासिनी देवी के दर्शन के लिए समय से निकल सकें।

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(...जारी)

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रविवार, 6 अगस्त 2023

गृहस्थ, आश्रम और तीर्थ (भाग-2)

(... भाग 1 से आगे)

सुरम्य आश्रम सरीखे आवासीय परिसर 'मेघदूत' से जब हम विदा होने लगे तो DrArvind Mishra जी ने हमें सलाह दी कि बनारस से पहले जौनपुर से लगभग 12 किमी. आगे एक प्राचीन मंदिर है - त्रिलोचन महादेव, उसे भी देखते जाँय। इसप्रकार अपनी तीर्थयात्रा में हमने इस पवित्र स्थान को भी जोड़ लिया।

त्रिलोचन महादेव मंदिर का परिसर अभी सरकारी कृपा की बाट जोह रहा है। यहाँ श्रद्धालुओं की ठीक-ठाक भीड़ थी। ठेले-खोमचे व गुमटियों में विविध प्रकार की दुकानें सजी हुई थीं। एक ग्रामीण मेले का दृश्य उपस्थित था। श्रीमती जी ने एक ठेले पर गर्मागर्म जलेबी छनती देखकर कहा कि दर्शन के बाद इसे लिया जाएगा। हमने मंदिर के बरामदे से लगे असंख्य पुजारी गण की चौकियां देखीं जहाँ पूजन व जलाभिषेक के साधन उपलब्ध थे। बेलपत्र, भांग-धतूर व मंदार पुष्प की प्रधानता वाले पूजन सामग्री का दोना लेकर और माथे पर चंदन का औदार्यपूर्ण लेप व ॐ का तिलक लगवाकर हमने लोटे में जल भरा और मंदिर के गर्भगृह में जाकर शिवलिंग का दर्शन-पूजन किया। आशुतोष औघड़दानी को जल चढ़ाकर मैंने मन ही मन कहा कि मुझे जो चाहिए वह मुझसे बेहतर आप स्वयं जानते हैं इसलिए तदनुसार ही कृपा करें। ईश्वर की सदाशयता में पूरी आस्था रखना भक्तिभाव की पहली शर्त है।

बाहर आकर हमने कुछ सेल्फी ली जो मनचाही नहीं आ रही थी। एक वालंटियर तलाशना पड़ा। फिर हम जलेबी वाली जगह पर गए तो ठेला वहाँ से अंतर्ध्यान हो चुका था। शायद वहाँ की जलेबी पर हमारा नाम नहीं लिखा था। एक दूसरी दुकान पर कड़ाही चढ़ी तो थी लेकिन वहाँ की गंदगी देखकर श्रीमती जी का मूड बदल गया। हम फौरन बनारस की ओर चल पड़े।

बनारस में हम पूर्व निर्धारित गेस्ट-हाउस में रुके जिसे डाक-बंगला का नाम दिया गया है। छावनी क्षेत्र में स्थापित यह विशाल प्रांगण कदाचित् आजादी से पहले बना होगा। हरे-भरे लॉन और फलदार पेडों के बीच दूर-दूर बने सुइट्स का नामकरण विभिन्न नदियों के नाम पर किया गया है। हमें सरयू नामक कमरा मिला था। बगल में ही राप्ती और ताप्ती नामक कमरे थे। किचेन के सामने वाले लॉन में बारिश का पानी जमा था। इसमें सफेद बत्तखों का झुंड अठखेलियाँ कर रहा था। हम इस मनोरम दृश्य को कैमरे में कैद करने का लोभ संवरण नहीं कर सके। परिसर में दौड़ते एक सफेद खरगोश की तस्वीर हम नहीं खींच सके।

कमरे में सभी मौलिक सुविधाएं मौजूद थीं। करीब तीन सौ किमी. की ड्राइविंग करने के बाद आराम तो करना ही था। हमने जल्दी से लंच लिया। स्थानीय सहयोगी से वार्ता के बाद मंदिर जाने का कार्यक्रम शाम पांच बजे के लिए तय हुआ। इसमें अभी दो घंटे बाकी थे। इसलिए हम चादर तानकर सो गए।

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(...जारी)

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शनिवार, 5 अगस्त 2023

गृहस्थ, आश्रम और तीर्थ (भाग-1)

पिछले सप्ताहांत में दो दिन की छुट्टी थी- शनिवार को मोहर्रम फिर रविवार। सावन का महीना और एकादशी तिथि। मेरी धर्मपत्नी ने इसबार काशी विश्वनाथ के दर्शन का मन बनाया और हम दोनों प्राणी निकल पड़े एक छोटी मनभावन तीर्थयात्रा पर। वाहन-चालक का काम भी मैंने खुद ही सम्हाला। यह अनुभव इतना शानदार रहा कि पूछिए मत। जीवन संगिनी के साथ यात्रा किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति के बिना करने का आनंद ही कुछ और है।

बनारस पहुँचने से पहले हमारा पहला पड़ाव था- मेघदूत। बड़े भाई सा स्नेह देने वाले DrArvind Mishra का पैतृक आवास जो तेली-तारा राजस्व ग्राम में है। यह लखनऊ-वाराणसी हाईवे पर जौनपुर से कुछ पहले ही चुरावनपुर उर्फ चूड़ामणि पुर ग्राम पंचायत का अंग है। विज्ञान विषयों पर विशद लेखन करने और प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाले, अनेक पुस्तकों के लेखक, और ब्लॉग व फेसबुक पर भी वैज्ञानिक चेतना की अलख जगाने वाले डॉ. मिश्र ने सेवानिवृत्ति के बाद अपने लिए ग्रामीण जीवन चुना है। यह बहुत प्रेरित करता है। प्राकृतिक हरियाली के बीच प्रचुर मात्रा में ऑक्सिजन और अपने खेत की साग-सब्जी, अनाज और फल-फूल का उपभोग करने का आनंद और कहाँ मिल सकता है। आदरणीया भाभी जी के साथ भाई साहब सपरिवार इतनी आत्मीयता से मिलते हैं कि वहाँ बार-बार जाने का मन करता है। छोटे भाई DrManoj Mishra को तो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी भी मेघदूत से आ-जाकर कर पाने का सौभाग्य प्राप्त है। उनकी बेटी स्वस्तिका ने हम लोगों की तस्वीरें जिस दक्षता से क्लिक किया वह यादगार बन गया।

हमने यहाँ लगभग दो घंटे बिताए। किचन गार्डन के उत्पादों का आनंद लिया, पेड़ से आम, अमरूद और फूल तोड़े। विशालकाय कटहल का स्पर्श किया (क्यों कि उदरस्थ करने की क्षमता नहीं थी)। हरे-भरे आकर्षक चबूतरे मेघ-मंडपम् के साथ फोटो-शूट किया गया। Rachana ने स्वस्तिका की फरमाइश पर मुझे जूड़े में फूल लगाने का अवसर दिया। नई नई शादी के समय जो छूटा रह गया था वह इस सुरम्य आश्रम में घटित हो गया।

(...जारी)

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बुधवार, 28 जून 2023

पेड़ लगाने का आनंद

राजकीय मेडिकल कॉलेज परिसर में आवास मिलने के बाद इसे हरा-भरा बनाने की कोशिश कर रहा हूँ। साग-सब्जी और फूल-पत्ती उगाने के उपक्रम प्रारम्भ हो चुके हैं जो निराई-गुड़ाई की निरंतरता मांगते हैं। मेरे सहयोगी मोहनलाल इसे बखूबी कर रहे हैं।

इसके साथ ही अहाते में कुछ स्थायी करने की इच्छा व्यक्त करने पर मेरे सहकर्मी सोहन बाबू आज मुझे अम्बाला रोड पर स्थित 'बगिया नर्सरी' नामक पौधशाला में लेकर गये। हमने परिसर में उपलब्ध स्थान को देखते हुए दो आम्रपाली, दो आंवले, एक नीबू और एक अमरूद का पेड़ खरीदा। घर लाकर उसे तत्काल गढ्ढा खोदकर रोप दिया। इस कार्य मे सहयोग स्वरूप बॉबी माली व वाहन चालक जावेद ने भी श्रमदान किया।

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अब से चार-पाँच साल बाद जो इनका फल चखेगा वो जरूर हमें याद रखेगा। पौधे लगाकर उनका पालन-पोषण करना बहुत सुकून देता है। विश्वास न हो तो आजमा कर देखिए।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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