हिंदी विश्वविद्यालय की अनूठी पहल से हिंदी ब्लॉगिंग को मिलेगी नयी ऊर्जा
हिंदी ब्लॉगिंग का एक दशक पूरा हुआ। अब इसके लिए शैशव काल का विशेषण बेमानी हुआ। अब इसकी अनगढ़ न्यूनताओं, चिरकुट गुटबाजियों और हास्यास्पद कलाबाजियों को बालसुलभ गलतियों का नाम देकर संदेह का लाभ देना नहीं जमेगा। साथ ही तमाम होनहार और प्रतिभासंपन्न ब्लॉग-लेखकों के उपयोगी उत्पाद रूपी मोती को इस महासागर से छानकर आकर्षक ढंग से सजाना होगा ताकि जो गुणग्राही हैं वे इसकी सही कीमत लगा सकें। वे जिसके पात्र है उन्हें वैसी गरिमा दिलानी होगी। अब इस माध्यम की औकात और नियति पर कुछ ठोस निष्कर्ष निकालने होंगे।
आज सोशल-मीडिया के रूप में तमाम मंच हमारे कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर हमें लुभा रहे हैं, हमारा समय खा रहे हैं और प्रायः चु्टकुलों, गपबाजी, चैटिंग, गाली-गलौज और मानसिक कुंठा को बाहर करने का जरिया बन रहे हैं। इनके बीच कभी-कभी बहुत अच्छी और गंभीर बातें भी सामने आती हैं लेकिन इन मंचों पर शब्दों के आने और चले जाने की गति इतनी तेज है कि इसपर कोई गंभीर बात करने और उसे सहेजकर रखने का सुभीता नहीं रह जाता। फेसबुक का स्टेटस और ट्विटर के ट्वीट कितने क्षणजीवी हैं यह किसी से छिपा नहीं है। खाने में चटनी जैसे। लेकिन जिन्हें थोड़ा आराम से कुछ कहना है, सुव्यवस्थित होकर लिखना और पढ़ना है तथा आगे के लिए बहुत कुछ सहेज कर रखना है उन्हें तो ब्लॉग का आशियाना ही भाएगा।
ब्लॉग-जगत में जो कुछ श्रेष्ठ और उत्कृष्ट है उसको साधारण और चलताऊ किस्म की सामग्रियों की भारी भीड़ से अलग पहचान देने की कोई कारगर तकनीक खोजनी होगी। लाखों की संख्या में लिखी जा रही छोटी-बड़ी पोस्टों के आवागमन के लिए कोई एक ऐसा गोल चौराहा तैयार करना होगा जहाँ खड़ा होकर इस साइबरगंज में टहलने वाले अधिकांश रचनाकर्मियों की छटा निहारी जा सके। कोई एक नजर में भा जाय तो उसे दोस्ती का पैग़ाम दिया जा सके। एक दूसरे के यहाँ सहजता से आना जाना हो सके और इस वैचारिक दुनिया की तासीर अधिक से अधिक लोगों तक करीने से पहुँचायी जा सके। कोई नवागन्तुक यहाँ आकर आसानी से यह समझ सके कि इस दुनिया में उसके पसन्द की सामग्री कहाँ मिलेगी और उसकी विशेषज्ञता का मान कहाँ रखा जाएगा।
ब्लॉगवाणी और चिठ्ठाजगत के निष्क्रिय हो जाने के बाद एक ऐसे जंक्शन या डिपो का निर्माण बहुत जरूरी हो गया है जहाँ से इस बहुरंगी दुनिया की सैर को निकला जा सके और इसकी तमाम गलियों की नब्ज टटोली जा सके। इस माध्यम में जो लोग श्रेष्ठ और वरिष्ठ है, जो पूरी दक्षता और निष्ठा से लगे हुए हैं और जो अपना समय और श्रम देकर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं उनके कार्य को दूसरों के लिए एक प्रतिदर्श के रूप में रखा जा सके। इस उत्पाद को विशुद्ध रूप से मांग और आपूर्ति के सिद्धान्त के भरोसे छोड़ देना अब शायद हमारी उदासीनता का परिचय देगा। अच्छी से अच्छी सामग्री भी बाजार में तभी स्थापित हो पाती है जब उसके लिए अच्छे प्रोमोशन अभियान चलाये जाते हैं। अपनी भाषा के ब्लॉग को समुन्नत बनाने के लिए हमें गंभीर प्रयास करने ही होंगे। जब एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय हमें जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने के लिए पहल करे तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है।
सौभाग्य से हिंदी ब्लॉगिंग के प्रोमोशन के लिए एक गंभीर कदम उठाने का निर्णय वर्धा विश्वविद्यालय ने लिया है। जी हाँ, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा एक बार फिर से इन सभी जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से आगे बढ़कर पहल की गयी है। कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने एक बार फिरसे मुझे यह चुनौती दी है कि हिंदी ब्लॉगिंग के दशम् वर्ष में एक बार फिर महामंथन का संयोजन करूँ। एक वृहद् मंच सजाकर इसकी दशा और दिशा की न सिर्फ़ पड़ताल की जाय बल्कि इसे एक सकारात्मक मोड़ देते हुए इस माध्यम की गरिमा को एक नयी उँचाई देने का प्रयास किया जाय। इसे अराजकता के झंझावात से निकालकर एक सुव्यवस्थित, परिमार्जित और उद्देश्यपरक चिन्तन का सकारात्मक वातावरण दिया जाय। मुझे यह लोभ है कि उनके इस औदार्य का सदुपयोग ब्लॉगवाणी या चिठ्ठाजगत की कमी पूरी करने और हिंदी ब्लॉग्स के लिए उससे भी अधुनातन प्लेटफ़ॉर्म बनाने के लिए किया जाय।
“एक बार फिर से” का अर्थ वे लोग तो समझ ही रहे होंगे जिन्होंने 2009 में इलाहाबाद और 2010 में वर्धा में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनारों में प्रत्यक्ष या परोक्षा हिस्सा लिया था। ये दोनो ही कार्यक्रम हिंदी ब्लॉगिंग की यात्रा में मील के पत्थर साबित हुए थे। जो लोग बाद में इस माध्यम से जुड़े हैं उन्हें समय निकालकर इस ऐतिहासिक समागम का हाल जानना चाहिए।
कुलपति जी ने जब पहली बार इलाहाबाद में इस सिलसिले की दागबेल डाली थी तब किसे पता था कि चन्द जुनूनी लोगों के नितान्त निजी प्रयासों से शुरू हुआ हिंदी ब्लॉगरी का कारवाँ आगे चलकर सार्वजनिक प्रतिष्ठानों, सरकारी संस्थाओं और लोक कल्याणकारी राज्य के प्रायः सभी घटकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल होगा। लगभग सभी समाचारपत्र समूह, न्यूज चैनेल और बड़े वेबसाइट्स में ब्लॉग के लिए अनिवार्य रूप से एक मंच बनाया गया है।
तो मित्रों, अब इस महामंथन की तिथियाँ नोट कर लीजिए :
तिथि : 20-21 सितंबर, 2013 (शुक्रवार-शनिवार)
स्थान : महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
आप इस वैचारिक सम्मेलन में जिन-जिन बातों पर चर्चा कराना चाहते हों उनकी सूची बनाकर मुझे एक सप्ताह के भीतर बता दीजिए। अपना ठोस प्रस्ताव तथ्यपरक तर्कों के साथ प्रस्तुत कीजिए। विश्वविद्यालय द्वारा इनपर विचार किया जाएगा। प्रथमदृष्टया जिनके प्रस्ताव महामंथन में सम्मिलित किये जाने हेतु चुने जाएंगे उन्हें वहाँ सादर आमंत्रित किया जाएगा। कोशिश होगी कि वहाँ देश के शीर्ष कोटि के पैनेल को बुलाया जाय और उनसे आपका साक्षात्कार हो। आप स्वयं उसका हिस्सा बनें। इस बीच आप चाहें तो अपना रेल टिकट बुक करा सकते हैं। निजी जोखिम पर। क्योंकि देर हो जाने पर कन्फ़र्म बर्थ मिलने में कठिनाई हो सकती है। हाँ, विश्वविद्यालय केवल उनका व्यय भार ही वहन कर सकेगा जिन्हें औपचारिक आमन्त्रण भेजकर बुलाएगा। हार्दिक स्वागत उन सबका होगा जो इस अवसर पर प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या आभासी तौर पर उपस्थित रहेंगे।
अभी बस इतना ही। शेष बातें टिप्पणियों के माध्यम से अथवा अगली पोस्ट में। इस कार्यक्रम से संबंधित संदेश इस पोस्ट के टिप्पणी बक्से के अतिरिक्त मेरे दूसरे ई-मेल पते (sstwardha@gmail.com) पर प्रेषित कीजिए। प्रतीक्षा रहेगी।
सादर !
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)