हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

आने वाले धन को रोकती हैं आपकी ये ‘बुरी आदतें’

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आध्यात्मिक और धार्मिक संदर्भों पर रोचक आलेख प्रकाशित करने वाला नियमित स्तंभ स्पीकिंग ट्री अब ऑनलाइन उपलब्ध है और इसका हिंदी संस्करण भी आ गया है, जिसमें अनेक बार ज्योतिष और शास्त्र के नाम पर अंधविश्वास और टोना-टोटका वाली सामग्री भी दिख जाती है। ऐसे में इनपर आँख मूँदकर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन आज एक सामग्री ऐसी मिली जिसके मूल संदेश पर अमल किया जाना चाहिए। भले ही बताये गये परिणाम पर भरोसा न हो। वैसे ही जैसे कि शराब के नशे में धुत्त कोई व्यक्ति यह सीख दे कि शराब पीना अच्छी बात नहीं है, इसके जीवन बर्बाद होता है, परिवार नष्ट हो जाता है, तमाम बीमारियाँ शरीर में घर बना लेती हैं, आदि-आदि; तो उसे यह झिड़की दे्ने के बजाय कि पहले अपना उपदेश खुद पर लागू करो, उसकी बात को प्रत्यक्ष उदाहरण के आधार पर सही माना जा सकता है। आइए जानते हैं कुछ जीवनोपयोगी बाते-

(स्पीकिंग ट्री से साभार)

यदि आप शास्त्रों में विश्वास रखते हैं तो वाकई शास्त्रों में वर्णित निर्देशों का पालन करते होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यदि आप हर समय, हर दिन शास्त्रीय नियमों का पालन करेंगे, तो लाइफ इतनी आसान हो जाएगी कि आप समझ भी नहीं पाएंगे। लेकिन यदि आपको विश्वास नहीं भी है, तब भी आप एक बार शास्त्रीय नियमों का पालन करके देखें, अच्छे परिणाम आप खुद महसूस करने लगेंगे।

शास्त्रों के अनुसार, शास्त्रीय नियमों का पालन करने वाले लोग भी अनजान होकर दिनभर ऐसी कई गलतियां करते हैं, जो उन्हें नहीं करनी चाहिए। ऐसी आदतें मनुष्य को अशुभ फल देती हैं, और उसके आने वाले समय पर हावी भी होती हैं। शास्त्रों के अनुसार हमें सुबह उठने के बाद रात सोने तक ऐसी किसी भी बुरी आदत को अपनाना नहीं चाहिए, जो हमारे लिए अशुभ फल लाए।

जैसे कि कुछ लोगों की आदत होती है कि सुबह नहाने के बाद बाथरूम को गंदा छोड़ने की। ऐसे लोग फर्श पर गिरे पानी को साफ करना तो दूर, अपने गंदे कपड़े भी बाथरूम में छोड़कर बाहर चले आते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से जातक की कुंडली में चंद्र का स्थान बुरा होता चला जाता है। इसलिए इससे बचने के लिए हमेशा अपने बाथरूम की सफाई करें।

बाथरूम वाली बुरी आदत के साथ लोगों की एक और आदत भी बहुत बुरी है, खाने के बाद जूठी प्लेट वहीं छोड़ जाने की। कुछ लोग तो खाना प्लेट में ही छोड़ भी देते हैं। लेकिन शास्त्रों की मानें तो प्लेट में रखा एक-एक अन्न ग्रहण करना चाहिए और साथ ही स्वयं प्लेट लेकर उसे साफ करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि खाना खाने के बाद जूठे बर्तनों को सही स्थान पर रखा जाए तो शनि और चंद्र के दोष दूर होते हैं। साथ ही, लक्ष्मी की प्रसन्नता भी मिलती है। तो आज से आप ध्यान रखेंगे ना इस बात का?

इसके अलावा घर की साफ-सफाई का भी ध्यान रखना जरूरी है। शास्त्रों के मुताबिक कहीं भी चप्पलें उतार देना और बिस्तर की चद्दर को अव्यवस्थित रखना एक बुरी आदत है। इसके कारण व्यक्ति की सेहत खराब रहती है। इसलिए हमेशा बिस्तर को साफ रखें, उसकी चद्दर समय-समय पर झाड़ लें। खासतौर पर रात को सोने से पहले जरूर साफ करें।

शास्त्रों के अनुसार देर रात तक जागना भी नियमों के विरुद्ध है। इससे चंद्र का अशुभ फल मिलता है, जो व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर भी गलत प्रभाव करता है। इसलिए हमेशा समय से सो जाएं और सुबह समय से उठ भी जाना चाहिए।

एक और नियम, जो ना केवल शास्त्रीय संदर्भ से मानना चाहिए, बल्कि अपने आसपास सुखद वातावरण बनाने के लिए भी इस नियम का पालन करना महत्वपूर्ण है। हमें कभी ऊंची आवाज़ में बात नहीं करनी चाहिए। इससे हमारे आसपास के लोग तो परेशान होते ही हैं, साथ ही हमारी सेहत पर भी इसका असर होता है।

ऊंचा बोलने के अलावा कुछ लोगों की बेवजह इधर-उधर थूकने की भी आदत होती है। यदि आप ऐसा करते हैं तो लक्ष्मी जी कभी आप पर कृपा नहीं करेंगी। इसीलिए इधर-उधर थूकने से बचना चाहिए, इस काम के लिए निर्धारित स्थान का ही उपयोग करना चाहिए।

[उक्त छोटी-छोटी बातों का पालन करना एक सभ्य और संस्कारित व्यक्ति की पहचान होते हैं। इसलिए शास्त्र के नाम पर बिदकने वाले भी इसका पालन कर सकते हैं।]

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

धार्मिक अनुष्ठान से स्वास्थ्य रक्षा

कल सुहागिन स्त्रियों ने कजरी तीज का व्रत रखा। कुछ ने तो फलाहार लिया होगा, मेंहदी रचायी होगी, खूब खुशियाँ मनायी होंगी लेकिन बहुतों ने निराहार, निर्जला व्रत किया होगा। अपने प्राण संकट में डाले होंगे, शारीरिक कष्ट में रात गुजारी होगी अपने पति के सुदीर्घ जीवन की कामना से। इस व्रत में कर्मकांडी पंडितों द्वारा जिस भय तत्व का समावेश किया गया है उसपर मैंने एक पोस्ट लिखी थी। आज छः साल बाद फिर से मन उद्विग्न है। इसबार तीज व्रत से नहीं बल्कि मेरे गाँव पर एक और वृहद अनुष्ठान हो रहा है उसको लेकर।

मेरी माता जी की आयु करीब 68 वर्ष हो चुकी है जो पिछले तीन चार महीने से बीमार चल रही हैं। मधुमेह और गठिया से ग्रस्त होने के कारण उन्हें लगातार दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं और खान-पान में भी परहेज रखना होता है। नियमित दवाएँ लेने और यथासंभव परहेज के बावजूद पिछले दिनों उन्हें कुछ ऐसी तकलीफ़ हुई जो डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे। उन्हें भूख लगनी बन्द हो गयी और यदि कुछ खाने की कोशिश करती तो तत्काल उल्टी हो जाती। नियमित घरेलू डॉक्टर की दवा से कोई असर नहीं हुआ तो दूसरे विशेषज्ञों को भी दिखाया गया। सभी प्रकार की जाँच करायी गयी। सबकुछ ठीक-ठाक मिला। अल्ट्रा-साउंड, सीटी-स्कैन, ब्लड इत्यादि की जाँच में कोई ऐसी बात नहीं मिली जिसके आधार पर कोई चिकित्सा करायी जा सके। नियमित डॉक्टर ने बुखार चेक किया और एक-दो दवायें देकर भगवान का नाम लेने को कहा। लेकिन भोजन से अरुचि और उल्टी की स्थिति कमोबेश बनी रही। माताजी का वजन तेजी से गिरा है और बेहद कमजोर हो गयी हैं।

मेरे पिताजी जो सत्तर की उम्र पार कर चुके हैं अपेक्षाकृत स्वस्थ, निरोग और सक्रिय दिनचर्या वाले हैं। गाँव के लोग घरेलू उपयोग के लिए शाक-भाजी उगाने में किये गये उनके परिश्रम और सक्रियता के कायल हैं। वे अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सचेत रहते हैं लेकिन माताजी की हालत से बेहद चिन्तित होकर उन्होंने एक ज्योतिषी से मुलाकात की। मिलकर आने के बाद उन्होंने मुझसे फोनपर बताया कि शास्त्री जी ने क्या कहा -

“आप दोनो लोगों के ऊपर बुरे ग्रहों का दुष्प्रभाव हो गया है। शनिदेव बेहद वक्र दृष्टि से देख रहे हैं। आपने यदि समय रहते इसका उपचार नहीं किया तो कुछ भी बुरा से बुरा हो सकता है। अमंगल अवश्यंभावी है।” पिता जी की वाणी में भयतत्व साफ सुनायी दे रहा था।

मैंने धैर्यपूर्वक पूछा, “शास्त्री जी ने उपचार क्या बताया?”

Tuladan1“कह रहे थे कि आप दोनो लोग तुलादान कराइये, छायादान कराइये, गऊदान कराइये, कुश के रस से रुद्राभिषेक कराइये, सात दिनों तक सात ब्राह्मणों से सवालाख महामृत्युञ्य मंत्रों का जप कराकर हवन कराइए…। गऊदान भी केवल प्रकल्पित (notional) नहीं बल्कि वास्तविक रूप से हाल ही की ब्यायी हुई गाय जिसके नीचे बछिया हो खरीदकर लाइये, उसके खुर और सींग पर सोना मढ़वाइये तब उसका संकल्प करके दान दीजिए…”

इतना सुनने के बाद मेरा धैर्य जवाब दे गया। उस शास्त्री पर क्रोध आया तो स्वर ऊँचा हो गया। पिताजी से मैंने रोष में आकर अपनी असहमति व्यक्त की। यह उन्हें अच्छा नहीं लगा। अपनी उम्र और आस्था की दुहाई देने लगे। यह मुझे भावनात्मक दबाव डालने जैसा लगा जिसे मैंने ‘इमोशनल ब्लैकमेलिंग’ की संज्ञा दे दी। यह शब्द सुनने के बाद उन्होंने आगे बात करना जरूरी नहीं समझा और फोन काट दिया। अचानक फोन कट जाना मुझे खटकता रहा, लेकिन कुछ दूसरी व्यस्तताओं में इतना उलझा रहा कि उस दिन दुबारा बात नहीं हो पायी।

अगले दिन गाँव से फोन आया कि पिताजी की तबीयत रात में बहुत ज्यादा बिगड़ गयी थी। रक्तचाप बेहद नीचे गिर गया था, आवाज बन्द हो गयी थी, अंग शिथिल पड़ गये थे और वे बेहद कमजोर होकर बिस्तर पर निढाल पड़ गये थे। उसके बाद घर वालों ने नीबू-नमक का घोल पिलाया तो हालत में सुधार हुआ। सबेरे अस्पताल गये तबतक सामान्य हो चुके थे। पता चलने पर मैंने डॉक्टर साहब से बात की तो बोले- कुछ खास नहीं था। थोड़ी देर के लिए बीपी नीचे चला गया होगा। मैंने तो पूरी जाँच की, सबकुछ नॉर्मल था।

Tuladan2

घर फोन करने पर पता चला कि पिछले दिन मुझसे बात करने के बाद पिताजी बेहद आहत महसूस कर रहे थे और प्रायः अवसाद (depression) में चले गये थे। उन्होंने उसके बाद परिवार के दूसरे सदस्यों से भी कोई बात नहीं की और रात होने के बात हालत बिगड़ती चली गयी। ऐसे में उन्होंने घरवालों को मुझे सूचित करने से भी मना कर दिया। यह सब सुनने के बाद मुझे काटो तो खून नहीं। विज्ञान पर मेरा विश्वास कर्मकांडों पर अंधविश्वास के आगे अपराधी बन गया।

घर के दूसरे सदस्यों ने तो जुबान दबाये रखी लेकिन श्रीमती जी ने मुझे खुलकर कोसना शुरू किया। घर के बुजुर्ग से ऐसे ही बात करते हैं? …अभी कुछ हो-हवा जाय तो जिंदगी भर पछताना पड़ेगा। …अब वे जैसा चाह रहे हैं वैसा ही करिए। …अपना ज्ञान अपने पास रखिए। …पूजा-पाठ कोई बुरी चीज नहीं है। …भगवान के आगे किसी की नहीं चलती। जैसे इतना हो रहा है वैसे यह भी सही…।

“अरे भाई, मैं भी कोई नास्तिक व्यक्ति थोड़े न हूँ। रोज स्नान के बाद पूजा भी करता हूँ। ऊपर वाले से डरता भी हूँ…। कोशिश करता हूँ कोई पाप न हो। किसी को कष्ट न पहुँचाऊँ, यथा संभव जरूरतमंदों की मदद करूँ… करता भी हूँ; लेकिन ये लालची… कर्मकांडी पंडित मुझे एक नंबर के धूर्त लगते हैं। उनके चक्कर में पड़कर लाखो खर्च करना राख में घी डालने जैसा है। मैं इन शास्त्री जी को तो एक धेला नहीं देने वाला…” कहते-कहते मैं ताव में आ गया।

श्रीमती जी हँस पड़ीं- अच्छा ठीक है। किसी दूसरे पंडित से दिखवा लेते हैं। “जो मन में आये, तुम लोग कर लो” यह कहते हुए मैंने बात खत्म की।

Tuladanअब परिणामी स्थिति यह है कि पिताश्री ने किसी ‘संतोष पंडित’ के पौरोहित्य में तुलादान, छायादान, प्रकल्पित गऊदान आदि का कार्यक्रम संपन्न करा लिया है। ह्वाट्सएप्प पर आयी तस्वीरें बता रही हैं कि दोनो बुजुर्ग प्रसन्नचित्त और प्रायः स्वस्थ हैं। माता जी की उल्टियाँ कम हो गयीं हैं। दवा से फायदा होना शुरू हो गया है। पिता जी ने खुद ही बाजार जाकर अनुष्ठान, दान और ब्राह्मणों की सेवा के लिए विस्तृत खरीदारी की है। सात ब्राह्मणों ने घरपर डेरा जमा लिया है जो सात दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान में महामृत्युंजय जपयज्ञ को कार्यरूप दे रहे हैं। सातो दिन रुद्राभिषेक किया जाना है। इसकी पूर्णाहुति रविवार को होगी जिसमें सपरिवार उपस्थित होने का आदेश प्राप्त हो गया है। ब्राह्मणों के अलावा उस दिन पूरे गाँव के लोगों को भोज दिया जाएगा।

बच्चे अपनी स्कूली परीक्षा के दृष्टिगत गाँव जाने को कत्तई तैयार नहीं हैं। उनके बिना उनकी मम्मी भी नहीं जा सकती। लेकिन मैं ठहरा सरकारी लोकसेवक। आकस्मिक अवकाश की सुविधा मिली हुई है। इसलिए मैंने विधिवत्‌ छुट्टी लेकर रेलगाड़ी में रिजर्वेशन करा लिया है जो अभी वेटिंग बता रहा है। एक पक्का जुगाड़ लग गया है तो बर्थ कन्फ़र्म हो ही जाए्गी। विश्वास है कि यज्ञ का प्रसाद लेने समय से पहुँच ही जाऊंगा। जय हो।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) 

शनिवार, 25 जुलाई 2015

हर आदमी बेज़ार है... (तरही ग़जल)

रायबरेली के स्थानीय शायरों की संगत में पड़कर मैंने जो मासिक तरही नशिस्त पकड़ी थी उसमें सरकारी कामों की व्यस्तता के कारण व्यतिक्रम होता रहता है। इस बार भी यह नशिस्त छूटने ही वाली थी लेकिन मैंने गिरते पड़ते इसमें दाखिला ले ही लिया। इलाहाबाद से भागकर रायबरेली आया। इसबार मशहूर शायर तश्‍ना आलमी साहब हमारे विशेष मेहमान थे। इनका परिचय इनका एक शेर देता है-
पूर्णिमा का चाँद ये मुझसे न देखा जाएगा
मैं बहुत भूखा हूँ रोटी का ख़्याल आ जाएगा
तश्‍ना साहब ने अपने ताज़ा संग्रह “बतकही तश्‍ना की” से कुछ बेहतरीन रचनाएँ सुनायीं। इसके पहले तरही नशिस्त का सिलसिला शुरू हुआ। दस-बारह शायरों ने अपनी-अपनी ग़जलें पेश की। उस्ताद शायर नाज़ प्रतापगढ़ी ने सबकी ग़जलों का बह्‍र, काफ़िया और रदीफ़ परखा और पास किया। मैंने तो उसी दिन इलाहाबाद से रायबरेली लौटते हुए कुछ तुकबन्दियाँ कर डाली थीं ताकि शून्य अंक से बच सकूँ। उस्ताद ने तो पास ही कर दिया। आप भी देखिये, यहाँ ठेलने का तो हक बनता ही है -

हर आदमी बेज़ार है

बेइन्तहाँ सा प्यार है 

करता नहीं इज़हार है 

डर है न मर जाये कहीं 
जो सुन लिया इन्कार है 

मत दर-बदर भटका करो 
बस एक ही भरतार है 

बस एक ही सध जाय तो 
समझो हुआ उद्धार है 

ये दोस्ती ये दुश्मनी 
तय कर रहा बाजार है 

खुद ही विपक्षी हो गये 
यह आप की सरकार है 

विष की गरज शायद न हो 
फुफकार की दरकार है 

यह आप की किस्मत नहीं 
हर आदमी बेज़ार है 

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) www.satyarthmitra.com

शनिवार, 20 जून 2015

गर्मी की छुट्टी में प्रोजेक्ट का बोझ

बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ अब समाप्त होने वाली हैं। लेकिन बच्चे छुट्टी का आनंद लेने के बजाय होमवर्क पूरा करने में लगे हैं।  जैसे-जैसे दिन नजदीक आ रहा है उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। होमवर्क भी ऐसा जिसे अपने दम पर पूरा करना लगभग असंभव ही है। सभी विषयों में एक से एक बीहड़ प्रोजेक्ट पूरा करने हैं। इंटरनेट से सामग्री खोजकर कट-पेस्ट करने की तकनीक को छकाने के लिए ऐसे-ऐसे काम दे दिये गये हैं कि विद्यार्थी घर से बाहर निकलने को मजबूर हैं।
मेरी बेटी कई दिनों से सब्जी मंडी तक जाने की बात कर रही थी वह भी तब जब बाजार अपनी समाप्ति की ओर हो। पहले तो मैं समझ नहीं पाया लेकिन बाद में पता चला कि उसे इस बात का पता लगाना है कि सब्जी-मंडी में जो उच्छिष्ट पदार्थ बचते हैं, अर्थात्‌ फुटकर विक्रेता द्वारा आढ़त से थोक में लाकर सब्जियों की कटाई-छटाई करने के बाद जो कूड़ा बचता है उसका निस्तारण कैसे होता है। इसी प्रकार मोटर वर्कशॉप में जो गंदगी निकलती है उसका निपटान कैसे किया जाता है, यह जानने के लिए उसे किसी गैरेज़ में देखने जाना है। यह सब देखकर उसका आँखो देखा हाल बताने का काम दिया गया है। गनीमत है कि अस्पतालों और नर्सिंग होम्स के कूड़ेदानों की रिपोर्ट नहीं माँगी गयी है।
मैं तो इन पब्लिक स्कूल के शिक्षकों की कल्पनाशीलता का कायल हो गया हूँ जो ऐसे-ऐसे होमवर्क ईजाद कर डालते हैं कि बच्चे का पूरा घर इसे पूरा करने में लग जाता है। बड़ी दीदी, भैया, चाचा, बुआ, पड़ोस की आंटी, अंकल, जो मिल जाय मदद को उससे ही ले ली जाती है। यह एक अलग तरह की समाजिकता बढ़ा रहा है। महानगरों में तो प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए प्रोफ़ेशनल दुकाने भी खुल गयी हैं। कोई मॉडल बनाना हो तो ऑर्डर कीजिए, तैयार मिलेगा। बस जेब में पर्याप्त पैसे होने चाहिए।
अपने दो-दो बच्चों का होमवर्क लिखने में थक चुकी मेरी एक पुरानी मित्र का कहना है कि एड्मिशन के समय जब बच्चे के माता-पिता का इंटरव्यू होता है तो उनकी योग्यता भी इसीलिए देखी जाती है कि वे अपने बच्चे का होमवर्क पूरा कर ले जाएंगे कि नहीं। न सिर्फ़ शैक्षिक योग्यता बल्कि आर्थिक मजबूती भी एक पैमाना होती है।
क्या कोई सरकार द्वारा एक ऐसा नियामक नियुक्त नहीं किया जा सकता जो इस मनमानी और बेतुकी व्यावसायिकता पर लगाम लगा सके और बच्चों की छुट्टियाँ घूमने-फिरने और मस्ती करने के लिए बचा सके?
मैं यहाँ आपको कुछ ऐतिहासिक सुल्तानों की पेंसिल-स्केच के साथ छोड़ जाता हूँ जो मेरी बेटी के एक अन्य प्रोजेक्ट का हिस्सा बने हैं। 

बहलोल लोदी

जलाल-उद्दीन ख़िलज़ी

क़ुतुब-उद्दीन ऐबक

तैमूर लंग

मुहम्मद बिन तुगलक
नोट :
इनकी चित्रों प्रमाणिकता उतनी ही है जितनी गूगलाचार्य के पिटारे में मौजूद है। बस वहाँ जो मिला उन्हें सामने रखकर हाथ से दुबारा बना दिया गया है। हो सकता है अब आगे कोई गूगल करे तो यहाँ से भी ये तस्वीरें उसके सामने आ जाँय।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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रविवार, 24 मई 2015

मंदिरों में सफाई व प्रबंधन का कानून चाहिए

हाल ही में मुझे इलाहाबाद से सटे कौशांबी जिले में स्थित कड़ा-धाम की शीतला देवी के मंदिर जाने का अवसर मिला। मेरे कार्यालय का स्टाफ़ व रायबरेली के अन्य लोगों ने भी बताया था कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण मंदिर है, सिद्ध पीठ है जहाँ दूर-दूर से देवी के दर्शनार्थी आते हैं। साल में एक बड़ा मेला भी लगता है।
लखनऊ से इलाहाबाद जाने वाली सड़क पर  ऊँचाहार से आगे आलापुर व मानिकपुर के बीच से एक सड़क सिराथू के लिए जाती है। इसी सड़क पर देवीगंज है जिसके निकट यह प्राचीन मंदिर अपनी बदहाली की कहानी कह रहा है। वहाँ जाने वाली सड़क इतनी खराब है कि आप इसकी कल्पना ही नहीं कर सकते। यह सड़क नहीं बल्कि छोटे-बड़े गढ्ढों की एक अन्तहीन श्रृंखला है जिनमें धूल, मिट्टी और कंकड़ पत्थर से सना हुआ कीचड़ आपके धैर्य की परीक्षा लेता रहता है। गंगा नदी पर नये बने पक्के पुल को पार करके कौशांबी जिले में प्रवेश करने के बाद सड़क कुछ ठीक हो गयी है। लेकिन इसपर भी बीस-पच्चीस किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ़्तार संभव नहीं है।
फिलहाल मैदानी क्षेत्र के ऐसे दुरूह रास्ते को पार करके जब मैं ‘कड़ा-धाम’ पहुँचा तो यह एक अत्यन्त साधारण गाँव जैसा दिखा। गाँव के बीच में स्थित मंदिर तक जाने के लिए एक संकरी सी गली उपलब्ध है। इसके दोनो ओर रिहाइशी मकानों के दरवाजे खुलते हैं और दरवाजों के बाहर साइकिले, मोटरसाइकिलें, प्रसाद बेचने वाली चौकियाँ, औरतें, बच्चे व बुजुर्ग आदि आराम फरमाते रहते हैं। गलती से यदि कोई कार या जीप लेकर अंदर घुस गया तो उसकी गाड़ी में इधर-या उधर से खँरोच लगने की पूरी संभावना है। कहीं कहीं तो दोनो ओर की दीवारें एक साथ गाड़ी से रगड़ खाने को उद्यत लगती हैं। मेरे कार्यालय से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए चीफ़ कैशियर इसी इलाके के रहने वाले हैं। वे हमारे साथ चल रहे थे। उस गली में गाड़ी सहित घुस जाने की गलती उन्होंने सम्मान-वश हमसे भी करा दी।
मंदिर के पास गाड़ी से उतरते ही चार-पाँच लोग एक साथ हमारी ओर लपके। हमें लगा कि हमारी फँसी हुई गाड़ी को निकालने में मदद के लिए आ रहे होंगे; लेकिन आते ही उन्होंने जिस तरह मंदिर तक हमें ले जाने में रुचि दिखायी उससे स्पष्ट हो गया कि ये लोग पंडा जी हैं जिनकी जीविका इस मंदिर के भरोसे ही चलती है। अपने सहयात्रियों के साथ हम जो काम अपने आप आराम से कर सकते थे उसे कराने के लिए करीब आधे दर्जन स्थानीय लोगों में प्रतियोगिता हो रही थी। गनीमत यह थी कि यह सब विंध्याचल या मथुरा के पंडो की तरह आक्रामक नहीं था। वहाँ तो यदि आपने किसी एक का वरण तत्काल नहीं कर लिया तो उनमे आपसी सिर-फुटौवल की नौबत आ जाती है। मंदिर के द्वार तक जाते-जाते प्रसाद खरीद लेने का आग्रह करती आवाजें कान में शोर मचाती रहीं। मेरी दृष्टि एक ऐसी दुकान पर पड़ी जिसपर एक अत्यन्त बूढ़ी औरत बैठी थी। वह इतनी कमजोर थी कि दूसरों की तरह चिल्ला नहीं सकती थी। मैं उसकी दुकान पर रुक गया। उसने नारियल, इलायचीदाना, सिंदूर, कर्पूर, अगरबत्ती, दियासलाई, फूल, माला इत्यादि ‘प्रसाद’ एक चुनरीनुमा रुमाल में लपेटकर प्लास्टिक की डलिया में थमा दिया।
शीतला देवी के इस प्राचीन मंदिर को भौतिक रूप में देखकर मेरे मन में श्रद्धा व भक्तिभाव के स्थान पर रोष और जुगुप्सा ने डेरा डाल दिया। चारो ओर गंदगी का अंबार, बजबजाती नालियाँ जिनसे बाहर फैलता कींचड़युक्त पानी, इधर-उधर बिखरी पॉलीथीन, दोने और पत्तल, उनपर भिनभिनाती मक्खियाँ। मंदिर की टूटी हुई सीढियों के नीचे हमने चप्पल उतारी और ऊपर चबूतरे पर चढ़ लिये। फूलमाला और चढ़ावे की चुनरियों से लदी हुई माँ शीतला देवी की मूर्ति तक पहुँचा नहीं जा सकता था। स्टील पाइप का एक घेरा उनकी रक्षा कर रहा था और एक पुजारी जी भक्तों के हाथ की डलिया लेकर उसमें से फूल माला मूर्ति के ऊपर फेंकते जा रहे थे। एक अनाहूत पंडा जी ने अगरबत्ती जलाने में मेरी मदद की और इशारा करते रहे कि क्या-क्या करना है। पुजारी महोदय ने मेरी डलिया लेकर उसमें कुछ दक्षिणा द्रव्य डालने की याद दिलायी। जब मैंने यथाशक्ति अपनी श्रद्धा अर्पित कर दी तब उन्होंने दुर्गासप्तशती के कुछ मंत्र बोलना प्रारंभ किया। उनका उच्चारण इतना भ्रष्ट और अशुद्ध था कि मुझे लगा जैसे मुंह में खाने के बीच कंकड़ आ गया हो।
उस घेरे के भीतर मूर्ति के ठीक सामने एक छोटा सा टाइल्स लगा जलकुंड बना हुआ था जिसमें देवी जी को अर्पित जल, नारियल का पानी, व अन्य प्रसाद बहकर इकठ्ठा होता था। वह कुंड लबालब भरा हुआ था और उसमें फूल,पत्ते, अगरबत्ती के टुकड़े और जाने क्या-क्या तैर रहे थे। पूरा भर जाने के बाद उसका पानी बहकर फर्श पर फैल रहा था। उसी चिपचिपी फर्श पर हम खड़े थे। मैं सोचने लगा कि कदाचित उस कुंड के पानी से पुजारी जी के पैर का प्रक्षालन भी होता होगा। दर्शनार्थियों के पैर से उस कुंड से उफनाते द्रव्य का सम्पर्क तो होता ही जा रहा था। तभी पुजारी जी कुंड की ओर झुके और हाथ की अजुरी में वही पानी भर लिया और मुझे इस महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए इशारा करने लगे। मैंने दाहिना हाथ बढाकर हथेली को गहरा करके प्रसाद प्राप्त तो कर लिया लेकिन उसे मुँह में डालने की हिम्मत नहीं हुई। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सोचता रहा। इसी सोच-विचार में अधिकांश पानी हथेली से चू गया और वापस उसी कुंड में समा गया। अपने भींगे हुए हाथ को मैंने होंठ से सुरक्षित स्पर्श करा लिया और देवी के आगे शीश नवाकर वापस मुड़ गया।
अबतक वे अनाहूत पंडा जी मेरा मौन स्वीकार पाप्त कर चुके थे। उन्होंने इशारा किया कि मंदिर की एक परिक्रमा कर लीजिए। परिक्रमा पथ पर टहलते हुए मैंने उनसे पूछ ही लिया कि मंदिर में सफाई की व्यवस्था किसके जिम्मे है। वे झेंपते हुए बोले कि आज भीड़ कुछ ज्यादा थी। हमलोग ही सफाई करते हैं। मेरी शिकायत पूर्ण मुस्कान देखकर उन्हें यह अनुमान हो गया कि इस गंदगी और दुर्व्यवस्था के प्रति मेरे मन में कितना असंतोष है, और इसलिए शायद मैं उन्हें कोई दक्षिणा नहीं देने वाला। उनके कदमों का उत्साह ठंडा पड़ गया था और वाणी मौन हो गयी थी। फिर भी सीढियों से उतरकर मैंने उन्हें नीचे बुलाया, उनके सहयोग के लिए आर्थिक धन्यवाद दिया और सफाई रखने का आग्रह करते हुए विदा ली।
हमारे धर्मप्राण देश में देवी देवताओं के असंख्य मंदिर हैं। बड़े-बड़े मठों, ट्रस्टों और धर्माचार्यों द्वारे विशाल और भव्य मंदिर बनाये भी जा रहे हैं जिनका प्रबंधन भी शानदार है। अक्षरधाम मंदिर हो या कृपालु जी महराज के मथुरा और मनगढ आश्रम के मंदिर हों। इनका वैभव देखते बनता है। लेकिन कुछ बहुत ही पुराने और असीम श्रद्धा के केंद्र रहे ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ की दुर्व्यवस्था और कुप्रबंध देखकर मन दुखी हो जाता है। कुछ दिनों पहले मैं नैमिषराण्य के प्राचीन ललिता देवी के मंदिर गया था। वहाँ की गंदगी और पंडो की लालची प्रवृत्ति देखकर मन कुपित हो गया था।
क्या हमारी सरकारें कोई ऐसा कानून नहीं ला सकतीं जिससे इन प्राचीन आस्था के केन्द्रों की गरिमा बहाल हो सके और यहाँ आने वाले धार्मिक दर्शनार्थी आत्मिक संतुष्टि और तृप्ति का भाव लेकर लौटें?
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) www.satyarthmitra.com

सोमवार, 23 मार्च 2015

कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम

अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को याद करते हुए आज एक मेला लगा है, मुंशीगंज- रायबरेली में। वर्ष 1921 के मुंशीगंज गोलीकांड को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ‘दूसरे जालियाँवाला बाग’ का ऐतिहासिक महत्व प्राप्त है। इन शहीदों के अमर बलिदान के सम्मान में यहाँ सई नदी के तट पर एक भव्य शहीद स्मारक स्थापित है। एक गैर सरकारी संस्था के संयोजन में स्थानीय लोगों द्वारा प्रतिवर्ष २३ मार्च से तीन दिनों का शहीद स्मृति मेला लगता है। शहीदों को पुष्पांजलि, और गणमान्य अतिथियों के उद्‍बोधन के साथ-साथ इस दौरान अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद प्रतियोगिताएँ, किसान मेला, प्रदर्शनी, स्वास्थ्य शिविर इत्यादि आयोजित होते हैं। रायबरेली में तैनाती के फलस्वरूप इस वर्ष मुझे भी यहाँ आयोजित कवि-सम्मेलन का रसास्वादन करने का अवसर मिला है।
आज सुबह इसकी तैयारी करते-करते मन में जो कुछ घूम रहा था उसे शब्दों में जोड़ने का अवसर लखनऊ से रायबरेली की यात्रा के दौरान मिल गया (मार्च महीने में कोषागार में कार्याधिक्य की व्यस्तता के कारण ऐसा ही समय ब्लॉगरी और फेसबुक के लिए मिल पाता है)। इस गीत को वहाँ मंच पर सुनाने का मौका मिलेगा ही लेकिन यहाँ अपने ब्लॉग पर इसे और प्रतीक्षा नहीं करा सकता-
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम

रोज़ शिकायत इनकी-उनकी
अस्त-व्यस्त से जन-जीवन की
देख पराये काले धन की
पीड़ा सहलाते निज मन की
इन सब से बाहर आएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम।1।



हमने नेक समाज बनाया
इसमें है हम सब की छाया
अंग-अंग जब स्वस्थ रहेगा
तभी निरोग रहेगी काया
अपने हिस्से काम मिला जो
पूरा करें, सँवर जाएँ हम
कुछ अच्छा सा कर
जाएँ हम।2।


बेटा हँसता, बिटिया रोती
वह पढ़ता वो घर को ढोती
अधिकारों में भेदभाव क्यों
क्षमता में तो समता होती
पढ़ें बेटियां, बढ़ें बेटियां
कर दें सिद्ध सुधर जाएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम।3।


देशप्रेम से बड़ा प्रेम क्या
राष्ट्रधर्म से बड़ा धर्म क्या
निर्मल स्वच्छ बनायें भारत
इससे सुन्दर और कर्म क्या
नहीं हाथ पर हाथ धरेंगे
कस के कमर उतर जाएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम।4।


अपने संविधान को जानें
अधिकारों को हम पहचानें
लोकतंत्र में शक्ति तभी है
जब हम कर्तव्यों को मानें
धर्म-जाति की छुआ-छूत को
तजकर अपने घर जाएँ हम
कुछ अच्छा सा कर जाएँ हम।5।



सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

अहा ! फरवरी कितनी प्यारी। (गीत)

अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।
कड़ी ठण्ड से पीछा छूटा
सर्दी से गठ बंधन टूटा
अब अलाव है नहीं जरूरी
दूर हुई सबकी मज़बूरी
बच्चे अब भरते किलकारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।1।
बिस्तर से हट गयी रजाई
हीटर की हो गयी विदाई
कम्बल भी बक्से में सोया
सबने ऊनी स्वेटर धोया
अब सूती कपड़ों की बारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।2।
एक सूट खबरों में आया
लाखों जिसका दाम बताया
मचा मीडिया में कोहराम
फिर वो सूट हुआ नीलाम
दाम करोड़ों दें व्यापारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।3।
अच्छे दिन वाली सरकार
भरने लगी विजय हुंकार
आम आदमी ने रथ रोका
दिल्ली की जनता ने टोका
दम्भ पड़ गया इसको भारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।4।
बढ़ा शादियों का भी जोर
विकट बराती हैं चहुँ ओर
फागुन की मस्ती में झूमें
चाहें नर्तकियों को चूमें
लठ्ठम लठ्ठा गोली बारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।5।
बोर्ड परीक्षा शुरू हुई है
शुचिता जिसकी छुई मुई है
अजब नकलची गजब निरीक्षक
सॉल्वर बन बैठे हैं शिक्षक
दस्ता सचल करे बटमारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।6।
राजनीति में फँसा बिहार
लालू जी की टपकी लार
संख्या बल में इतनी खूबी
माझी की ही नैया डूबी
फिर नितीश को मिली सवारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।7।
संसद में घिरती सरकार
भूमि अधिग्रहण को तैयार
अन्ना जी फिर मंचासीन
धरना में फिर सीएम लीन
छुट्टी पर बेटा-महतारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।8।
क्रिकेट कुम्भ आरम्भ हुआ है
सौ करोड़ की यही दुआ है
टीम इंडिया रख ले लाज
बिश्व विजेता हो अंदाज
दिखती है अच्छी तैयारी
अहा ! फरवरी कितनी प्यारी।9।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) www.satyarthmitra.com

बुधवार, 21 जनवरी 2015

एक रुबाई एक ग़ज़ल (तरही नशिस्त से)

रुबाई
हर शाख हरी भरी महकते हैं फूल
जो साथ मिले तेरा चहकते हैं फूल 
लहरा जो गयी हवा तेरा आँचल सुर्ख
पाकर के जवाँ अगन दहकते हैं फूल
ग़ज़ल
आज ये हादसा हो गया
प्यार मेरा जुदा हो गया
बंदगी कर न पाया कभी
यार मेरा ख़ुदा हो गया
आप ने तो जिसे छू लिया
वो ही सोना खरा हो गया
सूखता जा रहा था शजर
तुमने देखा हरा हो गया
आदमी ख़्वाब में उड़ रहा
जागना बेमज़ा हो गया
भाइयों की जुदा ज़िन्दगी
दरमियाँ फासला हो गया
गोद में जिसने पाला कभी
आज वो भी ख़फा हो गया
उसकी उंगली पकड़ के चले
बस यही हौसला हो गया
जब सियासत में रक्खा क़दम
देखिये क्या से क्या हो गया
है सियासत बड़ी बेवफ़ा
दोस्त बैरी बड़ा हो गया
राजधानी में छायी किरन
केजरी क्या हवा हो गया

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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