बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ अब समाप्त होने वाली हैं। लेकिन बच्चे छुट्टी का आनंद लेने के बजाय होमवर्क पूरा करने में लगे हैं। जैसे-जैसे दिन नजदीक आ रहा है उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। होमवर्क भी ऐसा जिसे अपने दम पर पूरा करना लगभग असंभव ही है। सभी विषयों में एक से एक बीहड़ प्रोजेक्ट पूरा करने हैं। इंटरनेट से सामग्री खोजकर कट-पेस्ट करने की तकनीक को छकाने के लिए ऐसे-ऐसे काम दे दिये गये हैं कि विद्यार्थी घर से बाहर निकलने को मजबूर हैं।
मेरी बेटी कई दिनों से सब्जी मंडी तक जाने की बात कर रही थी वह भी तब जब बाजार अपनी समाप्ति की ओर हो। पहले तो मैं समझ नहीं पाया लेकिन बाद में पता चला कि उसे इस बात का पता लगाना है कि सब्जी-मंडी में जो उच्छिष्ट पदार्थ बचते हैं, अर्थात् फुटकर विक्रेता द्वारा आढ़त से थोक में लाकर सब्जियों की कटाई-छटाई करने के बाद जो कूड़ा बचता है उसका निस्तारण कैसे होता है। इसी प्रकार मोटर वर्कशॉप में जो गंदगी निकलती है उसका निपटान कैसे किया जाता है, यह जानने के लिए उसे किसी गैरेज़ में देखने जाना है। यह सब देखकर उसका आँखो देखा हाल बताने का काम दिया गया है। गनीमत है कि अस्पतालों और नर्सिंग होम्स के कूड़ेदानों की रिपोर्ट नहीं माँगी गयी है।
मैं तो इन पब्लिक स्कूल के शिक्षकों की कल्पनाशीलता का कायल हो गया हूँ जो ऐसे-ऐसे होमवर्क ईजाद कर डालते हैं कि बच्चे का पूरा घर इसे पूरा करने में लग जाता है। बड़ी दीदी, भैया, चाचा, बुआ, पड़ोस की आंटी, अंकल, जो मिल जाय मदद को उससे ही ले ली जाती है। यह एक अलग तरह की समाजिकता बढ़ा रहा है। महानगरों में तो प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए प्रोफ़ेशनल दुकाने भी खुल गयी हैं। कोई मॉडल बनाना हो तो ऑर्डर कीजिए, तैयार मिलेगा। बस जेब में पर्याप्त पैसे होने चाहिए।
अपने दो-दो बच्चों का होमवर्क लिखने में थक चुकी मेरी एक पुरानी मित्र का कहना है कि एड्मिशन के समय जब बच्चे के माता-पिता का इंटरव्यू होता है तो उनकी योग्यता भी इसीलिए देखी जाती है कि वे अपने बच्चे का होमवर्क पूरा कर ले जाएंगे कि नहीं। न सिर्फ़ शैक्षिक योग्यता बल्कि आर्थिक मजबूती भी एक पैमाना होती है।
क्या कोई सरकार द्वारा एक ऐसा नियामक नियुक्त नहीं किया जा सकता जो इस मनमानी और बेतुकी व्यावसायिकता पर लगाम लगा सके और बच्चों की छुट्टियाँ घूमने-फिरने और मस्ती करने के लिए बचा सके?
मैं यहाँ आपको कुछ ऐतिहासिक सुल्तानों की पेंसिल-स्केच के साथ छोड़ जाता हूँ जो मेरी बेटी के एक अन्य प्रोजेक्ट का हिस्सा बने हैं।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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