(बह्र : फाइलुन फाइलुन फाइलुन फअ) |
फासले बढ़ रहे जिंदगी में
चल पड़े हैं कहीं से कहीं हम
इश्क में डूबने की न पूछो
फूल भी, ख़ार भी मोतबर हैं
नाज़-नख़रे उठाये बहुत से बेख़ुदी में सनम उठ गए हैं काम था तो बड़ा मुख़्तसर ही
आदमी आम कहता था खु़द को
या इलाही बचा पाक दामन
तू सितमगर अगर हो गया तो
वाह रे जिंदगी की कहानी
हर किसी को बराबर न समझो
शायरी में सितम है रुबाई
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) |