भोजनावकाश के बाद प्रथम चर्चा सत्र प्रारम्भ हो चुका है। मंच पर विशिष्ट जन आसन जमा चुके हैं। इस सत्र में चर्चा का विषय है-
हिंदी ब्लॉगिंग : सामान्य परिचय
इस विषय पर चर्चा हेतु गठित पैनेल इस प्रकार है :
अध्यक्ष : डॉ.आर.पी.त्रिवेदी (पूर्व प्राचार्य, बिड़ला कॉलेज)
विषय विशेषज्ञ : अविनाश वाचस्पति (दिल्ली), रवीन्द्र प्रभात (लखनऊ)
विशेष अतिथि : आलोक भट्टाचार्य (मुम्बई), डॉ. वी.के. मिश्रा (झाँसी)
प्रपत्र वाचक : डॉ. संगीता सहजवानी, डॉ. शशि मिश्रा (मुम्बई), डॉ. पवन अग्रवाल (लखनऊ), डॉ. संगीता सहजवानी (मुम्बई) नरेन्द्र नारायण प्रभू (मुम्बई)
सत्र संयोजक : डॉ.आर.बी.सिंह (उप प्राचार्य, के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय)
डॉ. संगीता सहजवानी जी अपना प्रपत्र पढ़ रही हैं। बहुत उम्दा प्रस्तुति है “अंतरराष्ट्रीय चौपाल पर आप सब आमन्त्रित हैं” बहुत अच्छी बातें। समेटना मुश्किल है। कह रही हैं अकेलेपन का दुश्मन है ब्लॉग। वाह!
***
पुनश्च,
अभी अभी
डॉ. शशि मिश्रा जी ने अपना सुन्दर वक्तव्य समाप्त किया। बोलीं- मैने जब पहली बार मनीष से इस सेमिनार की चर्चा सुनी तो पूछा कि ‘यह ब्लॉगिंग किस चिड़िया का नाम है?’ लेकिन जब इस माध्यम के बारे में जानना चाहा तो बस डूबती चली गयी। उन्होंने बहुत साहित्यिक गाम्भीर्य से अपना अध्ययन पत्र रखा। अनेक ब्लॉग्स का उद्धरण दिया। इसी क्रम में उन्होंने रचना त्रिपाठी के
ब्लॉग से यह उद्धरण भी दिया
हम और विरना खेले एक साथ,
खेले एक साथ अम्मा खायें एक साथ ।
विरना कलेवा अम्मा हँसी-हँसी देबो,
हमरा कलेवा तुम दीजो रिसियायी।
मैं खुश हो गया। कारण को बगल में बैठी अनिता कुमार जी ने सबसे जाहिर कर दिया। वक्ता को टोकते हुए बोलीं- रचना त्रिपाठी इनकी पत्नी हैं। शशि जी ने मंच से तुरन्त कहा - यही तो ब्लॉग की अद्भुत बात है, हम व्यक्ति को नहीं जानते लेकिन उसके विचारों से जुड़ जाते हैं। उन्होंने रचना जी को अपनी ओर से बधाई और धन्यवाद ज्ञापित करने का मुझसे अनुरोध किया। यह दायित्व मैं यहीं से पूरा करता हूँ।
अब
डॉ. पवन अग्रवाल अपना शोध पत्र व्याख्यायित कर रहे हैं। कह रहे हैं कि ब्लॉग की तुलना पारम्परिक डायरी से मत करिए। यह उससे आगे की चीज है। ऐसी तुलना हमें दोयम दर्जे का बताती है। उन्होंने किसी विद्वान साहित्यकार का वक्तव्य दोहराया कि ब्लॉग का एक फायदा यह है कि प्रकाशन के योग्य न लिख पाने वालों की बातों से अब हंस जैसी पत्रिकाओं के संपादक को अपना कान नहीं खिलाना पड़ेगा। लेकिन अब स्थिति यह है कि हंस में ही यह प्रकरण पीछे हो गया है और ब्लॉग विषयक आलेख वहाँ प्रकाशित हो रहे हैं। वे आगे चलकर अनेक ख्यातिनाम ब्लॉग्स का परिचय करा रहे हैं।जैसे; अक्षरग्राम, मोहल्ला, वाटिका, गवाक्ष, शब्दों का सफर, प्रभाकर गोपालपुरिया का भोजपुरी ब्लॉग, रचनाकार, कबाड़खाना,पिताक्षरी कई रचनाएँ, अनुगूँज इत्त्यादि।
अब बस्ती से आये
डॉ. बलजीत श्रीवास्तव जी भी ब्लॉगिंग के स्वरूप पर अपना पर्चा पढ़ना शुरू कर दिया है...
इस कार्यक्रम की लाइव स्ट्रीमिंग (वीडियो) भी हो रही है। यहाँ देखें
अब विषय विशेषज्ञ रवीन्द्र प्रभात बोल रहे हैं
ऊपर: रवीन्द्र प्रभात, नीचे (अगली पंक्ति में) अनिता कुमार, शैलेश भारतवासी, रवि रतलामी, केवलराम
पुनश्च,
रवीन्द्र प्रभात जी ने कुछ पूर्व वक्ताओं की बातों में संशोधन प्रस्तुत किया। जैसे ब्लॉग को दोयम दर्जे का कतई न मानें, ब्लॉगों की संख्या हिन्दुस्तान में कुल पाँच लाख हो सकती है किन्तु अकेले हिंदी में नहीं। कुछ तर्क-वितर्क भी हुए। रवि रतलामी जी ने बीच बचाव किया। अंतिम समाधान अभी नहीं निकला है।
इस मुद्दे को यहीं छोड़कर रवीन्द्र जी BLOG की व्याख्या कर रहे हैं
B= Brief, L=Logical, O=Operational, G=Genuine
(इस व्याख्या में जो नियम बताये गये हैं उनकी संख्या से ज्यादा उनके अपवाद दिखते हैं क्या ब्लॉगजगत में? मुझे नहीं पता... :D)
इन्हीं शब्दों की विशद व्याख्या करते हुए रवीन्द्र जी ने अपनी बात पूरी की, अन्त में यह जोड़कर कि - शुरू-शुरू में मुझे भी ब्लॉग बनाना नहीं आता था।
१९९५ में २००५ में। मुझे बसन्त आर्य ने ब्लॉग बनाकर दे दिया था। लेकिन आज मेरी दो-किताबे और अलेक्सा रैंकिंग में १३वें स्थान का ब्लॉग
परिकल्पना मेरे नाम से दर्ज है। आप मुझसे से भी बड़ा ब्लॉगर बन सकते हैं। शुरुआत छोटी ही होती है। धीरे-धीरे बड़ा काम अन्जाम दे दिया जाता है।
अब तेताला और नुक्कड़ वाले
अविनाश जी बोल रहे हैं।
अविनाश जी चाहते हैं कि जितने लोगों के पास मोबाइल है कम से कम उतने लोगों के पास ब्लॉग भी होना चाहिए। (जिनके पास एक से ज्यादा मोबाइल है उनके पास एक से ज्यादा ब्लॉग भी होने चाहिए ) घर-घर में ब्लॉग होना चाहिए। प्राइमरी कक्षाओं के पाठ्यक्रम में इसको अनिवार्य रूप से शामिल किया जाय। सभी कॉलेजों में ऐसे सेमिनार आये दिन होने चाहिए, आदि-आदि। जय-जय ब्लॉगिंग।
उनके बाद अध्यक्षीय वक्तव्य मुम्बई के
आलोक भट्टाचार्य जी द्वारा दिया जा रहा है। वे बोलने से ज्यादा मंत्रमुग्ध लग रहे हैं। बड़े खुश हैं। कह रहे हैं कि नये नये लोगों ने कितने नये और उत्तम विचार दिए हैं, यह देखकर मन आह्लादित है। लेकिन कुछ खतरे और कमजोरियाँ भी हैं। उन्होंने इशारे से बताया कि कैसे एक केंद्रीय मंत्री की इच्छा हो गयी तो बहुत सारे पेज रातो-रात फेसबुक से गायब हो गये। हमें स्वतंत्रता मिली है तो हमें अपना उत्तरदायित्व भी समझना चाहिए। उन्होंने ब्लॉग के लिए चिट्ठा शब्द के प्रयोग पर असहमति जतायी। बोले इससे भंडाफोड़ करने की बात इंगित होती है जो बहुत सीमित और नकारात्मक अवधारणा है।
उन्होंने मेरी लाइव रिपोर्टिंग पर भी आश्चर्य व्यक्त किया। अचम्भित थे।
अगला सत्र चाय विश्राम के बाद शुरू होगा जिसमें मुझे मंच पर बैठना होगा। इसलिए उसके बारे में बात में बात हो पाएगी। अभी इतना ही। नमस्कार धन्यवाद।
(...जारी)