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मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

नयी शिक्षा नीति की जमीनी चुनौतियाँ

वर्ष 2020 में भारत सरकार ने नयी शिक्षा नीति घोषित की थी जिसे जमीन पर उतारने की कवायद जोर-शोर से चल रही हैं। मुझे भी एक नये नवेले विश्वविद्यालय में सेवा करने का अवसर मिला है। हाला कि मेरा काम शैक्षिक पक्ष के बजाय वित्तीय पक्ष से जुड़ा हुआ है, फिर भी एक जिज्ञासु प्रेक्षक के रूप में मुझे बहुत से ऐसे अनुभव हो रहे हैं जो धरातल पर उच्च शिक्षा की दयनीय दशा को ही इंगित कर रहे हैं।

नयी शिक्षा नीति में जिन उच्च आदर्शो को प्राप्त करने की परिकल्पना की गयी हैं उनका विवरण देने की न मेरी मंशा है और न ही जरुरत। जिज्ञासु जन इसे सहज ही ऑनलाइन पता कर सकते हैँ।
हम तो आजकल प्रायः रोज ही चौक जाते हैं जब विश्वविद्यालय के उच्च अधिकारी किसी न किसी धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन, शिकायत, सिफारिश, सामूहिक मांग, सूचना-संकलन, शासन में सुनवाई इत्यादि से उत्पन्न किसी ना किसी चुनौती या समस्या से जूझते रहते हैं। इन चुनौतियों का कोई सम्बन्ध नयी शिक्षा नीति से मुझे नहीं दिखाई देता। कुछ उदाहरण :
# पाँचवे सेमेस्टर में दाखिल हो चुके अनेक विद्यार्थी हाल ही में घोषित दूसरे - तीसरे सेमेस्टर की बैक पेपर परीक्षा के परिणाम में फेल हो गए हैं। उनकी मांग है कि उन्हें हर हाल में पास कर दिया जाय नहीं तो प्रदर्शन करेंगे।
# कॉलेज ने आतंरिक मूल्यांकन में बहुत कम नंबर दिया। इसलिए फेल हो गये। यह हम छात्रों के साथ धोखा और अत्याचार हैं। सबको पास करो नहीं तो धरना देंगे।
# प्रैक्टिकल परीक्षा में फेल होने का तो कोई कारण ही नहीं हो सकता। इसमें अनुपस्थित रहने पर मिले जीरो को बढाकर चालीस कर दो नहीं तो घेराव करेंगे।
# पंद्रह बीस साल से जो फीस ली जा रही थी उसमें कोई भी वृद्धि मंजूर नहीं हैं। बढ़ी फीस वापस लो नहीं तो आत्मदाह करेंगे।
# ऑनलाइन फॉर्म भरने की अंतिम तिथि तीन बार बढ़ाई जा चुकी हैं फ़िरभी कुछ छात्र छूटे रह गये हैं। चौथी बार डेट बढ़ाओ नहीं तो बवाल होगा।
# परीक्षा में नकल करते पकड़े गये, नोट्स लिखे दुपट्टे को कॉपी के साथ सील किया गया। कॉपी में वही सब उतारा गया भी मिला। लेकिन आरोप है कि गलत फंसाया गया है। पास करो नहीं तो रो - रोकर बुरा हाल कर दूंगी।
 
करुण क्रन्दन से लेकर बवाल की धमकी भरी ऐसी अनेक मांगो से ठसाठस भरे कमरे में उनपर 'सहानुभूति पूर्वक' विचार करते हुए परीक्षा नियंत्रक, कुलसचिव और कुलपति जी के सामने नयी शिक्षा नीति को लागू करने का सवाल मुँह बाए दरवाजे पर ही "मे आई कम इन सर" बोलता हुआ खड़ा  है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)