आगामी लोकसभा चुनावों की सबसे उत्साहजनक तस्वीर यह होने जा रही है कि इस बार वोट देने वालों की संख्या अबतक की सर्वाधिक होगी। जनसंख्या वृद्धि इसका एक कारण तो है ही लेकिन मैं जिस वृद्धि की बात कर रहा हूँ वह मतदान प्रतिशत की है; जो इस बार पिछले सारे रिकार्ड तोड़ने वाला है।
अभी तक होता यह रहा है कि मतदाता सूची में जितने लोगों का नाम होता था उसमें से आधे से कुछ ही अधिक लोग वोट डालते थे, शेष या तो उस स्थान पर रहते ही नहीं थे या रहते हुए भी वोट डालना बेकार का काम समझते थे। इसका कुफल यह हुआ कि राजनीतिक दलों ने अपनी जीट के लिए पन्द्रह से बीस प्रतिशत मतदाताओं को खुश करने के आसान फॉर्मूले खोजने शुरू कर दिए। जाति और धर्म के आधार पर गोलबन्दी होने लगी, अगड़े-पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक वर्ग के लोग अपनी जातीय या सांप्रदायिक पहचान के आधार पर एकजुट होकर अपने को एक वोटबैंक के रूप में देखने लगे और प्रत्याशियों को चुनने के लिए उनकी जातीय या सांप्रदायिक पहचान को अपने मत का आधार बनाने लगे।
इसका परिणाम यह हुआ कि संकीर्ण क्षेत्रीयता और जातीयता का पोषण करने वाली पार्टियों को चुनावों में सफलता मिलने लगी और सत्ता मिलने के साथ ही एक नये प्रभु वर्ग का उदय हो गया जिसके बारे में घोटालों और भ्रष्टाचार की खबरे ज्यादा और जनहित के लिए काम करने की बातें कम सुनायी देती रहीं। हमारी चुनावी पद्धति ऐसी है कि प्रत्याशी को जीत के लिए आधे वोटों की भी जरूरत नहीं पड़ती इसलिए वह सच्चे बहुमत के बारे में सोचने की जरूरत ही नही समझता।
भारत के चुनाव आयोग ने ठीक ही अपना कर्तव्य समझा कि सच्चे अर्थों में लोकतंत्र तभी स्थापित होगा जब वास्तव में बहुमत से चुने हुए प्रतिनिधि देश की संसद और विधान सभाओं में जायें। इसके लिए एक सुविचारित रणनीति बनायी गयी है। यह एक कोशिश है देश की जनता को जगाने की, यह समझाने की कि वोट देना कितना जरूरी है। देश के प्रत्येक वयस्क नागरिक को यह कर्तव्यबोध कराने की कि दुनिया का तथाकथित सबसे बड़ा लोकतंत्र असफल हो जाएगा यदि देश की जनता के आलस्य और उदासीनता के कारण दोयम दर्जे के नेता देश की बागडोर सम्हालते रहेंगे।
इस अभियान की सफलता के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किये गये हैं। यह सुनिश्चित किया जाना है कि देश का संविधान जिस व्यक्ति को वोट देने का अधिकार देता है वह इस अधिकार का प्रयोग भी जरूर करे। इस अभियान को नाम दिया गया है– स्वीप; अर्थात् Systematic Voters’ Education and Electoral Participation (SVEEP).
चुनाव आयोग ने यह महसूस किया कि देश की जनता को उसके मताधिकार के प्रति जागरूक करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी यह है कि वोट डालने की राह में आने वाली उन सभी बाधाओं को दूर किया जाय जो जागरूक वोटर को भी पोलिंग बूथ तक जाने से रोकती हैं।
देश के एक आम नागरिक को मतदाता के रूप में जो ज्ञान रखना चाहिए और वह वास्तव में जितना जानता है इन दोनो में बड़ा अन्तर है। इस अन्तर को पाटने के लिए आयोग ने गंभीर प्रयास किये हैं। मतदाता पंजीकरण कैसे होगा, फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र (EPIC) कैसे बनेगा, दूसरे पहचान-पत्र क्या हो सकते है, आपका मतदान केन्द्र कहाँ है, बूथ कौन सा है, ई.वी.एम. का प्रयोग कैसे करना है, चुनाव के दिन क्या करना है और क्या नहीं करना है, प्रत्याशी के लिए आदर्श आचार संहिता क्या है, धन-बल का प्रयोग करने वालों की क्या दवा है, समाज के कमजोर और असहाय तबकों का चुनाव के दौरान भयादोहन कैसे किया जा सकता है, और इसे रोकने क्या उपाय हैं; इन सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर बताने के लिए चुनाव आयोग ने बाकायदा एक कार्य योजना बनाकर जिम्मेदार अधिकारियों की फौज इसके क्रियान्वयन के लिए लगा रखी है।
आयोग ने कम मतदान प्रतिशत के लिए मोटे तौर पर जिन कारणों की पहचान की है वे हैं- त्रुटिपूर्ण व अधूरी मतदाता सूची, शहरी वर्ग की उदासीनता, लैंगिक विभेद, युवाओं की बेपरवाही इत्यादि। इनके निवारण के लिए मतदाताओं को शिक्षित करने, जागरूक करने और चुनाव संबंधी प्रशासनिक तंत्र को दक्ष बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाये गये हैं।
मतदाता सूची में अनेक फर्जी और गैरहाजिर लोगों के नाम भरे रहते थे जिन्हें गहन समीक्षा करते हुए निकाल दिया जा रहा है, घर से बाहर रहकर रोजी-रोटी कमाने वालों या सरकारी नौकरी करने वालों का नाम गाँव की सूची से निकालकर उनके सामान्य निवास के स्थान पर जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा तो है ही, सभी बूथॊं के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध एक-एक समर्पित कर्मचारी (BLO) की नियुक्ति करके उसे जिम्मेदारी दी गयी है कि वह उस बूथ से संबंधित मुहल्लों में घर-घर जाकर वैध मतदाताओं की सूची तैयार करेगा, उनके पंजीकरण का फॉर्म भरवाएगा, जो मर चुके हैं या कहीं बाहर चले गये हैं उनका नाम सूची से हटवाएगा और वैध व सच्ची मतदाता सूची तैयार करेगा। इस प्रकार तैयार की गयी अद्यतन सूची की प्रतियाँ बूथ के नोटिस बोर्ड पर लगायी जाएंगी, मतदाताओं की चौपाल लगाकर मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाया जाएगा।
सभी मतदाताओं का फोटोयुक्त पहचानपत्र तैयार कराकर घर-घर ले जाकर प्राप्त कराने तक की जिम्मेदारी इस बी.एल.ओ. को दी गयी है। अपने बूथ के प्रायः सभी मतदाताओं को यह व्यक्तिगत रूप से पहचान सकेगा। मतदान के दिन से तीन-चार दिन पहले ही सभी मतदाताओं को वोटर-पर्ची बनाकर उनके घर पर दे आने का जिम्मा भी यह कर्मचारी उठाएगा। अब पार्टियों की स्टॉल लगाकर पर्ची बाँटने के काम से छुट्टी कर दी गयी है।
लाखों की संख्या में जो सरकारी कर्मचारी, पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों के लोग चुनाव की ड्यूटी होने के कारण अपना वोट नहीं डाल पाते थे उनका वोट भी हर हाल में डलवाने की व्यवस्था कर ली गयी है। पोस्टल बैलेट से लेकर ड्यूटी वाले बूथ पर ही उनका वोट डलवाने के विकल्प खोले गये हैं। यह अभियान ‘पल्स पोलियो अभियान’ या ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की याद दिलाता है जिसका नारा है- “एक भी बच्चा छूटने न पाये।” चुनाव आयोग भी चाह रहा है कि “एक भी वोटर छूटने न पाये।”
चुनाव आयोग मानो कह रहा है कि हे वोटर महोदय, इतनी कृपा कीजिए कि बूथ तक पहुँचकर अपना वोट डाल दीजिए। लोकतंत्र के मंदिर में वोटर को भगवान बनाने की यह मुहीम रंग लाने वाली है। प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में, बौद्धिक सेमिनारों में और गाँव-गाँव की गली-गली तक इस संदेश को पहुँचाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। यह सब देखकर बस यही कहने का मन करता है कि इसके बावजूद यदि आप अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं तो लानत है।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)