हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

बुधवार, 17 जनवरी 2024

कब बदलेगा मौसम

मन की उथल-पुथल भारी

क्या जल्दी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

क्या सर्द हवा से 

राजनीति की गर्मी होगी कम

कब बदलेगा मौसम

कहीं बढ़े उल्लास राम से

कहीं बढ़ रहा ग़म

कब बदलेगा मौसम

गारंटी है एक बांटता

दूजा फोड़े उसपर बम

कब बदलेगा मौसम

अब विपक्ष की प्रत्याशा

इंडिया सके ना जम

कब बदलेगा मौसम

जैसे जैसे यात्रा बढ़ती

जन-रुचि जाती थम

कब बदलेगा मौसम

अब युवराज अधेड़ हुए

क्यों राह अगोरें हम

कब बदलेगा मौसम

भानमती के कुनबे में

नीतीश न पाते रम

कब बदलेगा मौसम

आँखों के आगे अंधेरा

फिर छाए ना मातम

कब बदलेगा मौसम

एक उड़ाये जेट विमान

दूजा हाँके टमटम

कब बदलेगा मौसम

गंगाजल को यह पूजे

और वो आबे-जमजम

कब बदलेगा मौसम

सीएम रहे साल पंद्रह

फिर उतना ही पीएम ?

कब बदलेगा मौसम

मकर राशि में सूरज आकर

सर्दी करे खतम

अब बदलेगा मौसम

नेताजी का अब चुनाव

वोटर दिखलाये दम

अब बदलेगा मौसम

टीवी चैनल लहालोट

ऐंकर करते बमबम

अब बदलेगा मौसम 

मकर संक्रांति, 15 जनवरी 2024 :

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

‘सत्यार्थमित्र’

 

 

 

 

 

 

बुधवार, 10 जनवरी 2024

राष्ट्रधर्म निर्वाह

 

आओ हमसब चुन लें अपने देशप्रेम की राह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह।।

(1)

भौतिकता की चकाचौंध में नौजवान भरमाये,

मूल्यहीन पश्चिम की शिक्षा मनोरोग भी लाये।

वाम और दक्षिण के पथ जब इक-दूजे को काटें,

युगों-युगों का ज्ञान सनातन सच्ची राह दिखाये॥

मुखर हुई जनजन में अब अपने गौरव की चाह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्र-धर्म निर्वाह॥

(2)

विद्या विनयशील कर दे जो दक्ष बनाये हमको,

अर्जित धन से धर्म करें जो सुख पहुँचाये सबको।

परहित सबसे बड़ा धर्म पर-पीड़ा है अधमाई,

भारत का संदेश यही पहुँचाना है इस जगको॥

युद्धों का उन्माद कर रहा कितने देश तबाह।

प्रण हो मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।।

(3)

राजनीति में जाति-पंथ की पैठ न बढ़ने पाये,

अच्छा सच्चा जनसेवक ही इसमें चुनकर आये।

लोकतंत्र में भाईचारा पर संकट मत डालो,

अज्ञानी, अपराधी, पापी से यह देश बचा लो॥

सांस्कृतिक उत्थान दे रहा सबको नेक सलाह।

कर लें मानवता की सेवा राष्ट्रधर्म निर्वाह।।

सत्यार्थमित्र

Rashtradharm

सांकेतिक चित्र : गूगल से साभार.

सोमवार, 1 जनवरी 2024

कैसे नववर्ष मनायें

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कैसे नववर्ष मनायें

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सूर्य छिपा कोहरे के पीछे तनमन ठिठुरा जाए

बर्फीली सी सर्द जमीं कैसे नववर्ष मनायें

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चढ़ी रजाई, कंबल दुहरा फिर भी कांपें टांगें

रैन बसेरे भरे हुए लकड़ी अलाव की मांगें

जब गरीब की खोली कच्ची बच्चे भी अधनंगे

बाजारों की चकाचौंध में घूम रहे भिखमंगे

बदली है तारीख मगर कुछ नया नजर ना आए

बर्फीली सी सर्द जमीं कैसे नववर्ष मनायें

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संवत्सर का परिवर्तन मधुमास लिए आता है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हर्षित मुस्काता है

ऋतु वसंत से पुलकित धरती सँवर सँवर जाती है

नवलय नवगति ताल छंद नव गीत मधुर गाती है

सत्य सनातन चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष बताए

बर्फीली सी सर्द जमीं कैसे नववर्ष मनायें

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पश्चिम की जो हवा चली सब डूबे उसके रस में

भौतिकता की भेड़चाल ले जाए इन्हें तमस में

केक काटते धुआँ उड़ाते भूले कुमकुम चंदन

माता-पिता और गुरुओं का भूल गए अभिनंदन

मांस और मदिरा की बोतल घर-घर खुलती जाए

बर्फीली सी सर्द जमीं कैसे नववर्ष मनायें

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सत्यार्थमित्र