हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

शनिवार, 4 जून 2022

ऐतिहासिक वटवृक्ष की छाया में योग-अभ्यास

282685911_10227128851037219_5303430858485102274_nइलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कला संकाय की सड़कों व पगडंडियों पर #साइकिल_से_सैर करने व मच्छरों के साये में योगकक्षा में प्रतिभाग करने का पहला दिन जैसे हड़बड़ी में गड़बड़ी वाले अनुभव दे गया उसका किस्सा बता चुका हूँ। इस अनुभव के आधार पर मैंने अगले दिन की तैयारी में ध्यान रखा कि घर से थोड़ा और पहले निकल लूँ ताकि ऑनलाइन योगकक्षा के प्रारंभ होने से पहले ही उपयुक्त स्थान पर पहुँचकर अपना आसन जमा लूँ। परिसर का वह प्रवेश द्वार भी चुनना था जिसपर किसी बाड़ की बाधा का सामना किए बिना साइकिल सहित अंदर जा सकूँ। परिसर के पूरब की ओर खुलने वाला यह गेट डब्ल्यू.एच. की ओर से करीब पड़ता है। मुझे तो यहाँ बिल्कुल विपरीत दिशा से पहुँचना था। मच्छरों के संभावित हमले से बचाव के लिए मैंने पूरे पैर को ढंकने वाला लोवर और कॉलर वाली टी-शर्ट पहन लिया, पैरों में मोजे डाल लिए और शेष खुली त्वचा पर ऑडोमॉस क्रीम का लेपन भी कर लिया।

इस प्रकार पूर्व नियोजित तैयारी के साथ मैं ठीक समय पर उस विशाल वट-वृक्ष के नीचे पहुँच गया। मैंने जब अपनी साइकिल को उसके चौकोर चबूतरे से टिकाकर खड़ा किया तो मन में कुछ ऐसे भाव पैदा हो गए कि फौरन साइकिल को अलग हटाकर उसकी लंगड़ी के सहारे खड़ा कर दिया। दोनों हाथ अनायास प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गए। 286088687_10227128850797213_2148969932489192006_n

सूर्य देवता ने अभी क्षितिज से झाँकना प्रारम्भ ही किया था। इसलिए इस ऊँचे और विशाल घेरे वाले पेड़ की घनी छाया हरी दूब से ढँके मैदान पर दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस सुरम्य वातावरण में कुछ विद्यार्थी अपने-अपने पिठ्ठू बैग के साथ एकल या समूह में बैठकर अध्ययन रत थे। कुछ लड़के लड़कियाँ व्यायाम भी कर रहे थे। कुछ बड़ी उम्र के स्त्री-पुरुष किनारे-किनारे टहलते हुए बातें कर रहे थे।

मैंने इस वट वृक्ष के विशाल तने के ठीक सामने पूर्वाभिमुख होकर अपना आसन जमा लिया और मोबाइल खोलकर गूगल-मीट एप्प पर 'आरोग्यम ध्यान योग केंद्र आगरा' की ऑनलाइन योगकक्षा में लॉगिन करके मोबाइल को सामने स्टैंड पर स्थिर रख दिया। इसके बाद योग-गुरू डॉ. आर.के.एस. राठौर जी के निर्देशानुसार क्रमशः मंत्रोच्चार, सूक्ष्म व्यायाम, सूर्यनमस्कार, योगासन, प्राणायाम व ध्यान की क्रिया में सन्नद्ध हो गया। प्रतिदिन किये जाने वाले आसनों के साथ इस दिन डॉक्टर साहब रीढ़रज्जु की काल्पनिक रेखा पर नीचे से ऊपर स्थित सात चक्रों को संतुलित कराने वाले आसनों का अभ्यास करा रहे थे।285748806_10227128845117071_8397330393272350840_n

मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्त्रार नामक सातो चक्रों की क्रमिक स्थिति, इन चक्रों का आकार व रंग-रूप, इनमें पंखुड़ियों की संख्या, इनके अंतर्निहित तत्व- क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, प्रकाश आदि और इनसे संबंधित बीज मंत्रों के उच्चारण का परिचय देते हुए सातो चक्रों के संतुलन के लिए अलग-अलग सात आसन कराए गए।

286368311_10227133500873462_3835053133894648443_n

मूलाधर चक्र के संतुलन के लिए सेतुबंध आसन, स्वाधिष्ठान चक्र के लिए भुजंगासन, मणिपुर चक्र के लिए धनुरासन, अनाहत चक्र के लिए उष्ट्रासन, विशुद्धि चक्र के लिए मत्स्यासन, आज्ञा चक्र के लिए योगमुद्रा व सहस्त्रार चक्र के लिए यथा-सामर्थ्य शीर्षासन या अर्द्ध शीर्षासन का अभ्यास कराते हुए उन्होंने इन चक्रों के संतुलन से प्राप्त होने वाले लाभ भी बताए। ये चक्र क्रमशः अच्छा स्वास्थ्य (health), प्रसन्नता (happiness), शक्ति (power), करुणा (compassion), वाक्-कला (communication), अन्तःप्रज्ञा (intuition), व परमानंद (bliss) प्रदान करने वाले हैं।

सहस्त्रार चक्र को सभी तत्वों से परे बताया गया है जिसमें एक हजार पंखुड़ियाँ होती हैं। यह सिर के सबसे ऊपरी भाग में ब्रह्मरंध्र के साथ अवस्थित है। इसके संतुलित व जागृत होने पर व्यक्ति को परमानंद की प्राप्ति होती है। इसके लिए शीर्षासन का अभ्यास सर्वोत्तम बताया गया है। किंतु यदि शरीर इसकी अनुमति नहीं दे तो अर्द्ध शीर्षासन या सर्वांगासन भी किया जा सकता है।

उपर्युक्त आसनों द्वारा इन सात चक्रों को संतुलित करने के बाद इन्हें जागृत करने का अभ्यास भी बताया गया। इसके लिए ध्यानात्मक आसन में बैठकर दोनों हाथों से क्रमशः सात प्रकार की अलग-अलग मुद्राएं बनानी होती हैं और उनके बीजाक्षर का जप करना होता है। क्रमशः पृथ्वी मुद्रा, वरुण मुद्रा, अग्नि मुद्रा, वायु मुद्रा, आकाश मुद्रा, शंख मुद्रा व षडमुखी मुद्रा द्वारा इन सात चक्रों का जागरण होता है। इसप्रकार शरीर रूपी यंत्र के साथ मंत्र और तंत्र के सम्मिलित प्रयोग द्वारा व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना को साकार करने का साप्ताहिक प्रयास इस विशेष दिन की कक्षा में किया जाता है। इसके पहले वाले दिन रीढ़ की समस्याओं से मुक्ति पाकर इसे मजबूत करने वाले आसन बताए गए थे।

286129106_10227128849517181_4362910555992611720_n 285960982_10227128849917191_6360087015096056692_n
286186766_10227128849717186_8840783128191329340_n 286161141_10227128851277225_5673216342641779174_n

इस योगकक्षा में जितने साधक सम्मिलित होते हैं उनमें कुछ लोग ही शीर्षासन का अभ्यास करते हैं। उम्र व शारीरिक सीमा के कारण शेष लोगों को अर्द्ध शीर्षासन या सर्वांगासन की ही अनुमति दी जाती है। मैंने जब इस वटवृक्ष के समक्ष शीर्षासन की तैयारी की तो इस ऐतिहासिक देशकाल व वातावरण के अविस्मरणीय क्षण को सहेजने का मन हुआ। थोड़ी दूर पर व्यायाम कर रहे एक विद्यार्थी को मैंने इशारे से बुलाया और उन्हें मोबाइल कैमरा थमाते हुए अनुरोध किया कि मेरे शीर्षासन की तस्वीर खींच लें। उन्होंने सहर्ष मुझे उपकृत किया। मेरी अपेक्षा से भी आगे जाकर क्रमवार अनेक मुद्राओं व अनेक कोणों से मेरे शीर्षासन की अच्छी फोटुएं खींच डाली। इसके लिए मैने हृदय से आभार व्यक्त किया। इसलिए भी कि वे चित्र कदाचित् यहाँ पहुँचकर अनेक मित्रों की प्रसन्नता बढ़ा देंगे।

286052587_10227128851357227_1042852347866100241_n 286064361_10227128851117221_3134066195544263906_n 286253353_10227128849837189_3913572099984833782_n
286053659_10227128848837164_6489189994409015638_n 286119296_10227128850957217_5343815929655895439_n 285624189_10227128850037194_3221107425146470580_n

मैंने आप लोगों के लिए उस स्थल के जो चित्र सहेज लिए थे उनमें से कुछ यहाँ छोड़ जाता हूँ। आनंद लीजिए। शेष किस्सा यूँ ही समय-समय पर जारी रहेगा।

285714090_10227128841836989_7816365244458703021_n

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

www.satyarthmitra.com

गुरुवार, 2 जून 2022

विश्वविद्यालय परिसर में साइकिल से सैर व योग-साधना

#साइकिल_से_सैर #योग_साधना

285542573_10227119878892921_8071141837975921966_n (1)    इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कला संकाय का प्रांगण मेरे जीवन की उपलब्धियों के लिए एक ग्रीन हाउस की तरह रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की स्कूली शिक्षा के बाद जब मैं स्नातक बनने इस प्रांगण में आया तबसे लेकर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा एक राजपत्रित अधिकारी के रूप में चुने जाने तक की यात्रा का संवाहक यह प्रांगण ही रहा है। इसलिए इस परिसर से भावनात्मक लगाव स्वाभाविक है। इसीलिए बारह साल के अंतराल पर जब प्रयागराज में दूसरी बार तैनाती मिली तो मन में अतिरिक्त उत्साह भर गया।   

कल मैंने योगासन-प्राणायाम-ध्यान के अपने दैनिक कार्यक्रम को प्रातःकालीन #साइकिल_से_सैर के शौक के साथ जोड़कर चलने की योजना बनायी। योग की चटाई और दरी-चादर लपेटकर मैंने साइकिल के पीछे दबाया और विश्वविद्यालय की ओर चल पड़ा। विज्ञान संकाय का मुख्य द्वार बंद मिला। एक आदमी ने बताया कि इसके भीतर का स्टेडियम दो-तीन साल पहले बन्द कर दिया गया है। मैंने साइकिल मोड़ी और यूनिवर्सिटी रोड पर चलता हुआ लाल पद्मधर की प्रतिमा वाले गेट से कला संकाय के परिसर में प्रवेश कर गया। 'गूगल मीट' पर ऑनलाइन योग-कक्षा प्रारम्भ होने का समय हो चुका था इसलिए मैं जल्दी में था। 285702768_10227119894053300_3024193389550851120_n

परिसर के भीतर जाने के इस रास्ते पर लोहे की पाइप से ऐसी बाड़ लगी है जिसे पैदल ही पार किया जा सकता है। लेकिन सुबह के निर्जन सन्नाटे में एक किनारे ऊंघ रहे सिक्योरिटी गार्ड की नज़र बचाकर मैंने उस बाड़ के नीचे से आड़ा-तिरछा करके साइकिल निकाल ली। अब आसन बिछाने के लिए सर्वोत्तम स्थान चुनने के लिए समय नहीं था। मैंने दर्शनशास्त्र विभाग के सामने वाले लॉन में ही एक किनारे साइकिल खड़ी की और गोल्डमोहर के नीचे फौरन आसन बिछा लिया। जब मोबाइल एप्प पर मैंने लॉगिन किया तो योग-गुरु डॉ.आर.के.एस. राठौर मंत्रोच्चार आदि पूरा कराकर सूक्ष्म व्यायाम प्रारम्भ करा चुके थे। मैंने जैसे-तैसे उनकी रफ्तार से अपनी गति मिलाने का प्रयास तो किया लेकिन एक बाधा आ पड़ी। जिससे डरते थे वही बात हो गयी।

285723454_10227119887733142_2046627726549780451_n

उस लॉन की घास और आवारा झाड़ियों की कटाई-छटाई हाल ही में हुई थी। जिसमें पलने वाले मच्छरों की खेप मानो खार खाए बैठी थी। मुझ अकिंचन को वहाँ पाकर वे सब मुझपर टूट ही पड़े। मैंने उमस भरी गर्मी को देखते हुए हाफ पैंट और छोटी बांह की वी-गले वाली हल्की टी-शर्ट पहन रखी थी। हवा का नामोनिशान नहीं था। लंबी-लंबी टांगों व सूंड़ वाले काले-काले मच्छरों ने मेरे कानों में संगीत सुनाते हुए ऐलानिया युद्ध शुरू कर दिया था। अब मुझे समझ में आया कि उस लॉन में मेरे अलावा उपस्थित जो एकमात्र सज्जन अखबार लेकर आये थे वे बेंच पर बैठने के बजाय अखबार टहलते हुए क्यों पढ़ रहे थे।    

285699185_10227119886053100_7606367857493023949_n 285696369_10227119893613289_3065089320462313325_n
285878003_10227119885013074_5602000030496155205_n 285663516_10227119901933497_7241037895367156033_n

यहाँ बताता चलूँ कि आगरा में अपनी तैनाती होने पर अपने आवास के निकट जिस पार्क में मैंने योगासन का अभ्यास डॉ. राठौर के सान्निध्य में प्रारम्भ किया था उसी पार्क से वे अब भी हम जैसे बिछड़े हुए दूरस्थ लोगों का ऑनलाइन निर्देशन करते रहते हैं। पार्क में उनके प्रत्यक्ष फॉलोवर्स की संख्या तो अच्छी खासी है ही, उनकी निःशुल्क, निःस्वार्थ व निश्चित समय से प्रारंभ होने वाली निर्बाध व निरंतर कक्षा का ऑनलाइन लाभ उठाने वाले भी कम नहीं हैं। हाल ही में प्रकाशित उनकी पुस्तक "योग के प्रयोग" की चर्चा मैं पहले भी कर चुका हूँ। कॅरोना के आतप से अपने-अपने घरों में बंद रहने को मजबूर लोगों के स्वास्थ्य को योग के माध्यम से अक्षुण्ण रखने का सफल प्रयास डॉक्टर साहब ने ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से प्रारंभ किया था जो बदस्तूर जारी है।

खैर, मच्छरों से युद्ध का मोर्चा सम्हालते हुए मैंने योगासन, प्राणायाम व ध्यान का क्रम पसीना बहाते हुए पूरा किया। इस दौरान मेरे हाथों जितने मच्छर काल-कवलित हुए उनकी संख्या गिनी जाती तो मुझे आसानी से “तीसमार खां” की उपाधि मिल जाती। लेकिन मेरा उस ओर कोई झुकाव नहीं था।     

286060409_10227119901373483_7509108661807860114_nमैंने इस बीच यह भी देखा कि अनेक उम्रदराज स्त्री-पुरुष व किशोरवय छात्र-छात्राएं प्रांगण में घूमने-टहलने आते रहे। कोई पूजा के फूल तलाशता मिला तो कोई सपरिवार कुत्ता भी टहलाता-बहलाता दिखायी दिया। जब एक दो सुरक्षा कर्मी बाइक दनदनाते हुए चक्कर लगा गए तो मुझे ज्ञान हुआ कि अंदर आने का कोई रास्ता बिना बाड़ का भी होगा। अतः साइकिल सहित बाड़ पार करने का मेरा अपराधबोध जाता रहा।

   मैंने अपना आसन समेटा और साइकिल पर सवार हो दो-तीन लक्ष्य निर्धारित किए - पहला, पूरे परिसर का चक्कर लगाकर यह देखना कि एक विद्यार्थी के रूप में जब मैंने पच्चीस साल पहले यह परिसर छोड़ा था तबसे अवस्थापना संबंधी क्या परिवर्तन हुए हैं; दूसरा, यह पता लगाना कि परिसर के भीतर आने और बाहर जाने के लिए बाधा रहित मार्ग किस गेट से जुड़ा है और तीसरा, परिसर की शुद्ध हवा व हरियाली का आनंद लेते हुए शांतिपूर्वक योगासन प्राणायाम व ध्यान के लिए आसन बिछाने का सबसे उपयुक्त स्थल क्या हो सकता है इसकी खोज करना। मैंने अपनी साइकिल से चक्कर लगाते हुए प्रायः सभी विभागों और कार्यालयों की देहरी देखी। बहुत कुछ बदला और बढ़ा हुआ देखा। अनेक भवन जो पहले खुले-खुले होते थे उन्हें बंद-बंद देखा। सुरक्षा पर अधिक जोर है शायद। विकलांग छात्रों की सुविधा के लिए बने रैंप देखे। मुख्य प्रशासनिक भवन के बगल में नया-नया बना एक विशाल भवन देखा जिसपर अभी कोई परिचयात्मक बोर्ड नहीं लगा है।     

285584175_10227119893453285_2146891261739933304_n

   अंत में मैंने देखा वह विशाल बरगद का पेड़ जो शायद सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। एक किंवदंती बना यह वटवृक्ष हरियाली और ऊर्जा के अजस्र स्रोत के रूप में बेशक अभी भी भरपूर जवान है। इसकी घनी छाया पूरे मैदान पर फैली हुई थी जिसमें बैठे कुछ विद्यार्थियों को पढ़ते देखकर मेरा मन भावुक हो गया। मन में Quot Rami Tot Arbores (जितनी शाखाएं उतने वृक्ष) का ध्येय वाक्य बरबस कौंध उठा। साथ ही मुझे आसन बिछाने की उपयुक्त जगह भी दिख गयी। कुछ चित्र सहेजकर मैं पूर्वी गेट से बाहर निकल आया हूँ। अगले दिन की बात अगली किश्त में जारी...!

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

www.satyarthmitra.com