आगरा में जब मेरी तैनाती हुई और मैं अपने कार्यालय के निकट जयपुर हाउस की टीचर्स कॉलोनी में अस्थायी आवास में रहने गया तो सबसे पहले इस नई जगह पर मैंने अपनी नियमित योग कक्षा को मिस करना शुरू किया। सेहत की रक्षा के लिए साइकिल से सैर पर्याप्त नहीं थी इसलिए मैं योगासन करने के लिए एक उपयुक्त स्थान की तलाश करने निकल लिया। पास के ही जयपुर हाउस पार्क में मेरी तलाश पूरी हो गयी जहाँ के हरे-भरे वातावरण में करीब दर्जन भर स्त्री-पुरुष आसन बिछाकर योग साधना करते दिखाई दिए। उन्हें योग की बारीकियों को समझाते और साथ ही स्वयं करके दिखाते हुए जो सज्जन योग-गुरू की भूमिका में थे उन्हें मैंने अपना परिचय दिया और समूह में सम्मिलित होने की इच्छा जतायी।
इस नए परिचय की मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही आदरणीय आर.के.एस.राठौर जी से भेंट जिनके सान्निध्य और मार्गदर्शन में मुझे योगासन करने और सीखने का अवसर मिला। अपने कार्य के प्रति अप्रतिम समर्पण, योगासन-प्राणायाम-ध्यान से मेल खाते आदर्श अनुशासन व एक दक्ष प्रशिक्षक के धैर्य व औदार्य से भरे व निरंतर अपने विशाल ज्ञान-भंडार में अभिवृद्धि करते रहने के लिए चिरंतन जिज्ञासा से ओत-प्रोत डॉक्टर राठौर जैसा कोई दूसरा नहीं है। सरलता और सज्जनता की प्रतिमूर्ति डॉक्टर साहब ने योग-साधना को व्यावहारिक जीवन में ऐसी सहजता से उतार रखा है कि यह बहुत ही आसान और सुलभ विद्या लगने लगती है।
कोविड-19 महामारी के फलस्वरूप लागू लॉक-डाउन की अवधि में देश भर के पार्क जब आम जनता के लिए बंद कर दिए गए तब यह योग-कक्षा ऑनलाइन चलने लगी। सभी सदस्य अपने-अपने घरों में आसन बिछाकर कंप्यूटर या मोबाईल स्क्रीन से डॉक्टर साहब के निर्देशों को सुनकर व देखकर अभ्यास करने लगे। यह सिलसिला बिना किसी ब्रेक के लगातार चलता जा रहा है। नए लोग आते हैं कुछ पुराने लोग छूट जाते हैं लेकिन ‘आरोग्यम ध्यान केंद्र’ की कक्षा कभी बंद नहीं होती। बताते हैं कि पिछले पंद्रह वर्ष से निरंतर डॉक्टर साहब यह श्लाघनीय कार्य कर रहे हैं जब वे आगरा के प्रतिष्ठित आर.बी.एस. कॉलेज के विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मैं स्वयं उनको लगभग दो वर्ष से बिना नागा प्रतिदिन निश्चित समय से योग-कक्षा का निर्देशन करते देखा रहा हूँ। समूह के योग-साधकों को चरणबद्ध आसानों को करने का तरीका बोलकर बताते हुए साथ ही साथ बिना किसी त्रुटि के स्वयं करते जाना और सामने वालों की त्रुटियों पर पैनी नजर रखते हुए उन्हें ठीक कराते जाना डॉक्टर साहब की एक विलक्षण क्षमता है।
कोविड महामारी की दो-दो लहरों के गुजर जाने और तीसरी लहर के आसन्न संकट को देखते हुए अब योगासन-प्राणायाम-ध्यान की महत्ता किसी से छिपी नहीं है। अब यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपरिहार्य हो गया है कि अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसे अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करे।
डॉक्टर आर.के.एस.राठौर ने योग साधना के इच्छुक व्यक्तियों के उपयोग के लिए उनकी कक्षा में दैनिक रूप से सिखाई जा रही योग की बारीकियों को सुव्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध करते हुए एक उपयोगी पुस्तक का प्रकाशन हाल ही में किया है। अब उनकी कक्षा का लाभ लेने के लिए भौगोलिक दूरी और आनलाइन जुड़ने में आने वाली यत्किंचित कठिनाइयों से छुटकारा मिल सकता है। उस कक्षा में सप्ताह के सात दिनों में बांटकर जिस प्रकार योग-आसन कराए जाते हैं, जो बातें बताई जाती हैं और प्रारंभ व अंत में जो प्रार्थना दुहराई जाती है उसे इस पुस्तक में हू-बहू प्रस्तुत किया गया है। आसनों का सही तरीका समझाने के लिए चित्रों का सहारा भी लिया गया है जो स्वयं डॉक्टर साहब द्वारा प्रदर्शित विविध आसनों व मुद्राओं की तस्वीरें हैं।
आगरा से प्रयागराज स्थानांतरण हो जाने के बाद भी मुझे डॉक्टर साहब के सान्निध्य में योगासन का अभ्यास करने का लाभ ऑनलाइन मिलता रहता है। अब इस पुस्तक के आ जाने से इसका लाभ ऑफ लाइन रहने पर भी मिलता रहेगा। हाल ही में जब मुझे एक-दो दिन के लिए आगरा जाना हुआ तो यह पुस्तक डॉक्टर साहब ने मुझे भेंट की। उनकी बातों से मुझे लगा कि यह कार्य भी उन्होंने “स्वांतः सुखाय परिजन हिताय” ही किया है। इस अत्यंत उपयोगी व सहज-सरल पुस्तक को व्यावसायिक उद्देश्य से प्रकाशित व प्रसारित किया जाना चाहिए था किन्तु इस संत ने “नेकी कर दरिया में डाल” की उक्ति ही चरितार्थ कर रखी है।
इस पुस्तक के प्रकाशक ने डॉक्टर साहब का परिचय इस प्रकार दिया है -
पुस्तक की पूरी सामग्री ही बहुत उपयोगी है। इसमें से यहाँ मैं वह अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमें अपने व्यवहार का नियमन करने वाले ग्यारह ऐसे नियमों का पाठ करने की सलाह दी गयी है जिनका पालन करने पर हम एक बेहतर मनुष्य तो बनेंगे ही; साथ ही ये हमारे व्यक्तित्व को तराश कर समाज और देश के लिए और बेहतर बनाने व जीवन को सार्थक बनाने में बहुत सहायक हैं।
मानव सेवा संघ के 11 नियमों का पाठ: 1.आत्मनिरीक्षण, अर्थात प्राप्त विवेक के प्रकाश में अपने दोषों को देखना। 2. की हुई भूल को पुनः न दोहराने का व्रत लेकर सरल विश्वास पूर्वक प्रार्थना करना। 3. विचार का प्रयोग अपने पर और विश्वास का दूसरों पर अर्थात न्याय अपने पर और प्रेम तथा क्षमा अन्य पर। 4. जितेंद्रियता, सेवा, भगवत चिंतन, और सत्य की खोज द्वारा अपना निर्माण। 5. दूसरों के कर्तव्य को अपना अधिकार, दूसरों की उदारता को अपना गुण और दूसरों की निर्बलता को अपना बल ना मानना। 6. पारिवारिक तथा जातीय संबंध ना होते हुए भी, पारिवारिक भावना के अनुरूप ही, पारस्परिक संबोधन तथा सद्भाव अर्थात कर्म की भिन्नता होने पर भी, स्नेह की एकता। 7. निकटवर्ती जन समाज की यथाशक्ति क्रियात्मक रूप से सेवा करना। 8. शारीरिक हित की दृष्टि से, आहार-विहार में संयम तथा दैनिक कार्यों में स्वावलंबन। 9. शरीर श्रमी, मन संयमी, बुद्धि विवेकवती, हृदय अनुरागी तथा अहं को अभिमान शून्य करके अपने को सुंदर बनाना। 10. सिक्के से वस्तु, वस्तु से व्यक्ति, व्यक्ति से विवेक तथा विवेक से सत्य को अधिक महत्व देना। 11. व्यर्थ-चिंतन-त्याग तथा वर्तमान के सदुपयोग द्वारा, भविष्य को उज्जवल बनाना। |
आशा है आप इस पुस्तक को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे और और अपनी दिनचर्या में योगासन प्राणायाम व ध्यान को सम्मिलित कर अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की राह पर चल पड़ेंगे।
पुस्तक परिचय : योग के प्रयोग मूल्य रु.100/-, लेखक - डॉ रामकिशोर सिंह राठौर , संपादक- अतुल चौहान, प्रकाशक व मुद्रक -राष्ट्र भाषा ऑफसेट प्रेस, 26/470 राजा की मण्डी (निकट पुराना डाकघर) आगरा 0562-2215016, 3556960
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)