लखनऊ में हैं तो जनेश्वर मिश्र पार्क में जरूर जाइए।
#साइकिल_से_सैर
बहुत दिनों हुए मुझसे साइकिल छूटी हुई थी। नए शहर में नौकरी प्रारम्भ हो गयी लेकिन घर का सामान अभी पुराने शहर में पड़ा है। मेरी साइकिल भी वहीं कमरे में बंद मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी। इधर मौसम इतना गुलाबी हो गया है कि मन बरबस प्रकृति की गोद में अठखेलियां करने का हो जाता है। दीपावली के स्वागत के लिए उसदिन हम लखनऊ में थे। मेरे बेटे ने छुट्टी का लाभ उठाने के लिए गोमतीनगर विस्तार स्थित जनेश्वर मिश्र पार्क में अपने फुटबाल-मित्रों के साथ अभ्यास करने का मन बनाया और मुझे सुबह छः बजे गेट नंबर-चार पर छोड़ देने को कहा। मैंने अपनी गूगल मीट पर चलने वाली ऑनलाइन योगासन, प्राणायाम व ध्यान की कक्षा को नमस्कार किया और बेटे को छोड़ने यहाँ आ गया।
मेरे बेटे की इच्छा होती है कि वह अपने अन्य साथियों की तरह स्कूटी से स्वयं यहाँ आया- जाया करे लेकिन 14-15 साल की उम्र में अभी इसकी इजाज़त देना कत्तई संभव नहीं है। वह दूसरे बच्चों के माता-पिता की 'उदारता' से मेरी 'भीरुता' की तुलना करता है और मैं उनके 'दुस्साहस' की आलोचना करते हुए 'कानून के अनुपालन' की बात करता हूँ। इस बहस का अंत इस सहमति पर होता है कि मैं उसे गेट के पास छोड़कर तुरंत वापस चला जाऊं ताकि उसके साथियों को दिखाई न दूँ। असल में मुझे उसकी निगरानी करते देखकर उसके साथी उसे 'छोटा बच्चा' समझते होंगे; ऐसा सोचकर उसे मन ही मन झेंप सी होती है। हो भी क्यों न; इस उम्र में ही उसकी लंबाई मुझसे तीन-चार इंच बड़ी और उन सब दोस्तों की औसत लंबाई से ज्यादा जो हो गयी है।
आज मेरा मन भी हरे-भरे विस्तृत पार्क की शुद्ध और खुली हवा में सांस लेने का हुआ तो मैंने अपने समझौते की काट ढूंढ ली। उसे छोड़कर मैं उसके सामने वापस तो हो गया लेकिन एक किलोमीटर चलकर यू-टर्न लेते हुए वापस आ गया और गाड़ी पार्क करने के बाद गेट नम्बर चार से ही अंदर आ गया। यहाँ साइकिल से सैर के शौकीन लोगों के लिए किराए पर साइकिलें उपलब्ध हैं। एक घंटे के लिए मात्र 20 रुपया चुकाकर पार्क के भीतर बने लगभग चार किलोमीटर के ट्रैक पर साइकिल चलाते हुए तथा हरे-भरे वातावरण में अपने फेफड़ों को प्रचुर ऑक्सीजन की खुराक देते हुए यहाँ के मनोरम दृश्य के बीच समय बिताने का आनंद अनुपम है।
उसदिन मैंने यह आनंद भरपूर उठाया और रास्ते में मिले अन्य टहलने वाले, जॉगिंग करने वाले, दौड़ने वाले, साइकिल चलाने वाले, कसरत करने वाले, क्रिकेट- फुटबाल- बैडमिंटन- आदि खेलने वाले या बेंचो पर बैठकर मोबाइल में डूबे रहने वाले या समूह में कहकहे लगाने वाले लड़के, लड़कियों, स्त्री, पुरुष व वरिष्ठ उम्र के स्वस्थ लोगों को देखकर उनके भाग्य को सराहता रहा जिन्हें प्रतिदिन इस बहुविध स्वास्थ्यवर्धक आनंद का उपभोग करने का अवसर प्राप्त है।मुझे यह आनंद कभी-कभी ही मिलता है इसलिए यहाँ के मनोरम दृश्य को समेट लेने के लिए मेरी जेब में रखा इलेक्ट्रॉनिक साथी भी कुलबुलाने लगा था। अस्तु मेरी साइकिल अनेक स्थानों पर बरबस ही रुकती रही। काफी तस्वीरें लेने के बावजूद न मोबाइल कैमरे का मन भरा, न मेरा।
कुछ तस्वीरें आप भी देखिए और संभव हो तो इस बेहतरीन मौसम में जनेश्वर मिश्र पार्क की सैर का कार्यक्रम जरूर बनाइए।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)