आज मई माह का आखिरी दिन है। यह सबसे गर्म रहने वाला महीना है। ज्येष्ठ मास का आखिरी मंगल जिसे यहाँ लखनऊ में ‘बड़ा मंगल’ के रूप में मनाया जाता है वह भी बीत चुका है। बजरंग बली को खुश करने लिए भक्तजन इस महीने के सभी मंगलवारों को पूरे शहर में नुक्कड़ों और चौराहों पर भंडारा लगाते हैं। खान-पान के आधुनिक पदार्थों का मुफ़्त वितरण प्रसाद के रूप में होता है। कम से कम मंगलवार के दिन शहर में कोई भी व्यक्ति भूखा-प्यासा नहीं रहने पाता। गरीब से गरीब परिवार के सदस्य भी छक कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। लेकिन गर्मी का मौसम जब उफ़ान पर हो तो एक दिन की राहत से क्या हो सकता है। पारा तो चढ़ता ही जा रहा है। देखिए इस ताजे गीत में :
ग्रीष्म-गीत पारा चढ़ता जाये रे, आतप बढ़ता जाये रे... हवा आग से भरी हुई नाजुक तन को झुलसाये भारत की सरकार चल रही देखो राम भरोसे भ्रष्टाचारी मायावी इक राज हटा तो क्या है अन्ना जी की लुटिया डूबी फूट रहे सहयोगी गया चुनावी मौसम तो फिर कूद पड़ी महँगाई (सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी) |
इस गीत को लिखने की प्रेरणा एक खूबसूरत किताब देखकर मिली जिसमें ढेर सारे गीत हैं। आदरणीय सतीश सक्सेना जी ने अपने गीतों का संकलन मुझे भेंट किया। इस पुस्तक की भूमिका ने भावुक कर दिया। इसमें सतीश जी ने अपने हृदय के भाव उड़ेल कर रख दिये हैं। वाह…!
मेरे गीत - सतीश सक्सेना
ज्योतिपर्व प्रकाशन
99, ज्ञान खंड-3, इन्दिरापुरम
गाजियाबाद : 201012
सत्यार्थमित्र