हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

कुछ अलग रहेगा नया साल

जीवन में जबसे कुछ सोचने समझने का सिलसिला शुरू हुआ शायद पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि कैलेंडर की तारीख जब नये साल में प्रवेश करेगी तो हम एक बदले हुए भारत में पहुँच जाएंगे। अबतक तो यही मानता रहा हूँ कि इस अंग्रेजी कैलेंडर का साल बदलने से कुछ भी नहीं बदलता। लेकिन इस बार बात ही कुछ और है…

मन की आशा

अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल
आशावादी मन बोल रहा फिर लौट सकेगा स्वर्णकाल

तथाकथित आजादी में हमने सुख-दुख बहुतेरे देखे
संविधान की रचना देखी इसपर कलुष घनेरे देखे
लोकतंत्र की राजनीति के भीतर बसी गुलामी देखी
वोटों की ताकत के पीछे जाति-धर्म की खामी देखी

आशा प्रस्फुटित हुई मन में कटने वाला है विकट जाल
अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल

संप्रभु समाजवादी सेकुलर हो लोकतंत्र जनगण अपना
बलिदानी अमर शहीदों ने देखा था कुछ ऐसा सपना
बाबा साहब ने भेंट कर दिया देशप्रेम का धर्म ग्रंथ
हम रहे झगड़ते आपस में आधार बनाकर जाति पंथ

जनमानस बदल रहा अब जो लेगा इस दलदल से निकाल
अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल

भ्रष्टाचारी अपराधी जन अब राजनीति से दूर रहेंगे
जनता का हक खाने वाले जेलों में मजबूर रहेंगे
अब नहीं रहेंगी सरकारें बनकर जनता की माई-बाप
सच्‍चे त्यागी जनसेवक  की सेवा लेकर आ गये आप

रिश्वतखोरों को रंगे हाथ पकड़े जाने का बिछा जाल
अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल

बहू बेटियाँ घर की देहरी निर्भयता से पार करेंगी
अधिकारों से जागरूक समतामूलक व्यवहार करेंगी
शिक्षा के उजियारे से ही पिछड़ेपन का तिमिर मिटेगा
ज्ञान और विज्ञान बढ़ेगा नर-नारी का भेद घटेगा

चल रहा राष्ट्र निर्माण यज्ञ सब अपनी आहुति रहे डाल
अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल

मतदाता ने आंखे खोली अंतर्मन की सुनता बोली
अब इसे लुभा ना पाएगी झूठे वादों वाली झोली
गिर रहे पुराने मापदंड परिवारवाद है खंड-खंड
सत्ता लोलुप जो हार रहे तो टूट रहा उनका घमंड

सच्‍चे अच्छे जनसेवक को वोटर अब कर देगा निहाल
अब तक चाहे जो रहा हाल, कुछ अलग रहेगा नया साल

आप सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी 
www.satyarthmitra.com 

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

दहलीज़ पे बैठा है कोई दीप जलाकर (तरही ग़जल)

इस मिसरे को तरही ग़जल के लिए तय करने वाले उस्ताद शायर ने इसके मीटर की कई बारीकियाँ नोट करायी थीं, जो मुझे भूल गयीं। सच कहूँ तो वह सब मुझे समझ में ही नहीं आया था। मुशायरे की तय तारीख नजदीक आने की याद दिलायी गयी तो मैंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन खोलकर देखा और यह ग़जलनुमा कविता/ तुकबन्दी रच डाली। प्यार-मोहब्बत की ‘बातें करने’ में थोड़ा कमजोर हूँ; बल्कि प्यार मोहब्बत ही कर लेना बेहतर समझता हूँ इसलिए मुझे पूरा शक है कि उस मुशायरे में पता नहीं दाद मिले या न मिले। ऐसी स्थिति में यहाँ इस पृष्ठ का नियंत्रक होने का लाभ तो उठा ही सकता हूँ; तो पेश है मेरी ताजा रचना :

(पुनश्च : बड़े भाई सतीश सक्सेना जी और नवगीतकार ओमधीरज जी की सलाह  पर संशोधित/ संपादित/ परिवर्द्धित।)

दहलीज़ पे बैठा है कोई दीप जलाकर

(१)

लो बोल गया काग भी मुंडेर पे आकर
परदेस से लौटेगा कोई आज कमाकर

गौरैया चहकती रही अब सांझ ढल गयी
दहलीज़ पे बैठा है कोई दीप जलाकर

बेफिक्र हुए सो रहे अपने घरों में हम
मुस्तैद है सरहद पे कोई जान लगाकर

मासूम ने आंचल का किनारा पकड़ लिया 
वह लोरियाँ सुनाये प्रेम गीत भुलाकर

दस्तक हुई वो आ गये माँ ने बिठा लिया
तहज़ीब से रुक जाय सिमट जाय लजाकर

बस चंद रोज़ फैलेगी जीवन में चाँदनी
बस चंद रोज़ चमकेगा आंगन में दिवाकर

रह जाएगी फिर साथ में बैरन सी अमावस
उस नौकरी सौतन के साथ बैठ न जाकर

(२)

दंगों में मुलव्विस रहे जो लोग मुसल्सल
अब सुर्खियाँ बटोरते इमदाद दिलाकर

क्या खूब तमाशा किया जनता के वोट ने
वो फर्श पे अब आ गये हैं अर्स गँवाकर

जब आप को सरकार बनाना ही नहीं था
नाहक में लिया वोट बेवकूफ़ बनाकर

ये शर्त है या गर्त में जाने का है पैग़ाम
वो पूछ रहे आप की चिठ्ठी को दिखाकर

वो दिन हवा हुए जो बिकाऊ थे रहनुमा
उलटी बही बयार है इस दौर में आकर

इस गहरी मोहब्बत से यूँ न देख मेरे यार
रोका है अदालत ने इसे जुर्म बताकर

हर एक ने अपना अलग बनाया लोकपाल
“सत्यार्थमित्र” देख रहे आस लगाकर

 

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी 
www.satyarthmitra.com

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

निष्ठुर नियति…

उस दिन मैं ‘बिग बाजार’ में कुछ घरेलू सामानों की खरीदारी के लिए गया हुआ था। वहाँ मैंने देखा कि भुगतान काउंटर पर कैशियर एक बच्चे से उलझा हुआ था। बच्चा मुश्किल से छः-सात साल का रहा होगा। कैशियर ने कहा, “आय एम सॉरी, तुम्हारे पास यह गुड़िया खरीदने भर के पैसे नहीं हैं।” इसपर वह बच्चा मेरी ओर मुड़ा और आशा भरी निगाह से पूछने लगा, “अंकल, आप बताइए मेरे पैसे पूरे नहीं हैं क्या? मुझे यह गुड़िया जरूर लेनी है।”

मैंने उसके पैसे गिने और उसके सवाल का जवाब दे दिया, “प्यारे, यह तो तुम्हें भी पता है कि तुम्हारे पास गुड़िया खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं।” इतना कहकर मैं आगे बढ़ गया था; लेकिन वह नन्हा बच्चा इसके बाद भी उस गुड़िया को अपने हाथ में थामे रहा। उसकी लालसा देखकर मैं वापस उसके पास तक गया और धीरे से पूछा कि यह गुड़िया वह किसे देना चाहता है।

“यह गुड़िया मेरी बहन को बहुत पसन्द थी, हर हाल में वह इसे पाना चाहती थी। मैं उसे यह उसके बर्थडे पर गिफ़्ट करना चाहता हूँ।” उसकी आवाज बेहद स्थिर और कोमल थी। “यह गुड़िया मैं अपनी मम्मी को दूंगा जिसे वह दीदी को दे देगी... क्योंकि वह दीदी के पास जाने वाली है।” यह कहते हुए उसकी आंखों में जो वेदना थी उसे देखकर मैं सिहर उठा।

“मेरी दीदी भगवान के पास रहने चली गयी है... डैडी कह रहे हैं कि मम्मी भी बहुत जल्दी भगवान से मिलने जाने वाली है, इसलिए मैंने सोचा कि मम्मी के साथ गुड़िया भेंज दूंगा तो दीदी पा जाएगी...।”

मेरा कलेजा तो थम ही गया। उस छोटे से बच्चे ने सिर ऊपर उठाकर मेरी ओर देखा और बोला, “मैं डैडी से बोलकर आया हूँ कि अभी मम्मी को जाने मत देना जबतक मैं मॉल से लौटकर नहीं आ जाऊँ।” उसके बाद उसने अपनी एक बेहद खूबसूरत तस्वीर दिखायी जिसमें वह हँस रहा था। फिर बोला, “मैं मम्मी के साथ अपनी यह फोटो भी भेजूंगा जिससे मेरी दीदी मुझे भुला न सके।” अब वह सुबकने लगा था, “मैं अपनी मम्मी को बहुत प्यार करता हूँ और नहीं चाहता कि वह मुझे छोड़कर जाये, लेकिन डैडी कहते हैं कि उसे दीदी के पास रहने के लिए जाना ही पड़ेगा।” इसके बाद उसने फिर उस गुड़िया की ओर कातर दृष्टि से देखा, बहुत शान्त होकर...।

मैंने बच्चे से छिपाकर अपना बटुआ निकाला और उस बच्चे से बोला, “चलो, क्यों न एक बार फिर तुम्हारे पैसे गिन लिये जाय; कहीं ऐसा न हो कि सच में तुम्हारे पैसे गुड़िया की कीमत भर के हों?”

“ठीक है!” वह बोला, “मुझे लगता है कि मेरे पैसे उतने जरूर हैं।” मैंने उसको दिखाये बिना उसके पैसों में अपने पास से कुछ मिला दिये और फिर हम उसे गिनने लगे। अब गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हो गये थे; बल्कि कुछ बच भी रहे थे। नन्हे बच्चे ने कहा, “भगवान, आपको ‘थैंक्यू’! आपने मुझे काम भर का पैसा दे दिया!”

फिर उसने मेरी तरफ़ देखा और बताने लगा, “मैंने कल रात सोने से पहले भगवान से कहा था कि मुझे यह गुड़िया खरीदने भर का पैसा दे देना, ताकि मेरी मम्मी इसे मेरी दीदी तक पहुँचा सके। उसने मेरी सुन ली”

“मैं तो यह भी चाहता था कि काश मेरे पास इतने पैसे होते कि मम्मी के लिए भी एक सफेद गुलाब खरीद सकूँ; लेकिन भगवान से इतना मांगने की हिम्मत नहीं हुई। फिर भी देखिए, भगवान ने मुझे इतना दे दिया कि अब मैं इस गुड़िया के साथ एक सफेद गुलाब भी खरीद लूंगा। मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत अच्छे लगते हैं।” मैं वहाँ अब और नहीं ठहर सकता था।

मैंने अपनी खरीदारी बहुत अन्यमनस्क भाव से की। उस बच्चे की बातें मेरे दिमाग से निकलने का नाम नहीं ले रही थीं। तभी मुझे ध्यान आया कि दो दिन पहले स्थानीय अखबार में एक खबर छपी थी कि शराब पीकर ट्रक चला रहे ड्राइवर ने एक कार को टक्कर मार दी थी जिसमें एक युवती और एक छोटी बच्ची सवार थे। छोटी बच्ची तत्काल मर गयी थी और उसकी माँ गंभीर चोट की हालत में अस्पताल में भर्ती करायी गयी थी। खबर यह थी कि अब उस परिवार को यह निर्णय लेना था कि कोमा में जा चुकी महिला को मशीनों के बल पर कृत्रिम रूप से जिन्दा रखा जाय कि मशीनें बन्द कर दी जाय। यह पक्का हो चुका था कि अब वह कोमा से वापस नहीं आ सकेगी। मेरा कलेजा धक्क से रह गया- कहीं यह परिवार इसी बच्चे का तो नहीं है?

बच्चे से मुलाकात के दो दिन बाद अखबार में खबर छपी कि उस महिला की मौत हो गयी। मैं अपने आप को रोक नहीं सका। मैंने सफेद गुलाबों का एक गुच्छा खरीदा और अंतिम संस्कार वाली जगह पर पहुँच गया। वहाँ उस युवती का पार्थिव शरीर परिजनों, मित्रों और अन्य लोगों के लिए अंतिम दर्शन और श्रद्धांजलि अर्पित करने को रखा गया था। ताबूत में वह लेटी हुई थी जिसके हाथों में सफेद गुलाब पकड़ाया गया था, और उसके सीने पर वही गुड़िया और उस बच्चे की तस्वीर सजाकर रखी गयी थी। मैं वहाँ खड़ा नहीं रह सका। आखें पोंछते हुए वहाँ से फौरन चल पड़ा। ऐसा महसूस हो रहा था कि अब मेरी जिन्दगी हमेशा के लिए बदल गयी...

उस छोटे से बच्चे के मन में अपनी माँ और अपनी बहन के लिए जैसा प्यार था, आज भी उसकी कल्पना करना बहुत कठिन है; और मात्र एक क्षण में उस शराबी ड्राइवर ने वह सब छीन लिया उससे।

[वैसे तो नियति पर किसी का कोई वश नहीं होता; लेकिन ऐसी मानवजनित घटनाएँ तो रोकी ही जा सकती हैं। क्या हम शराब पीने और शराब पीकर गाड़ी चलाने पर पूरी तरह रोक नहीं लगा सकते?]

(usefulinformation के संदेश से अनूदित)

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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