कलम उठाकर लिखते थे हम
शुभकामनाएं नये साल की
लिफाफे को सजाकर कुछ फूलों की डिजायन से
भरते थे उसमें अपना सुलेख
ग्रीटिंग कार्ड तैयार कर लेते थे- सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ
अपने गुरुजनों को, सखा और सखियों को,
बस थमा देते थे अपनी शुभकामनाएं।
स्कूल में पहुँचने पर शुरू होता था नया साल
सबकी जुबान पर चढ़ा होता था
हैप्पी न्यू इयर, हैप्पी न्यू इयर, हैप्पी न्यू इयर
बदला जमाना
आ गया मोबाइल और इण्टरनेट
अब यहीं हो रही है मुलाकात और भेंट
अब नया साल रात में ही आ जाता है।
तीनो सूइयाँ एक दूसरे से मिलते ही शोर मच जाता है
नया साल टीवी के पर्दे से होकर निकलता है
लाइनें जाम हो जाती हैं
संदेश देने को फोन नहीं मिलता है।
आज अभी
होटलों में मोटी रकम खर्च करके भी
कुछ लोग नये साल को आता देख रहे होंगे।
ब्लॉगवाणी में भी शिड्यूल्ड
कुछ शुभकामनाओं के लेख रहे होंगे।
साल की अगवानी में
हम बहुत कुछ अनोखा कर जाते हैं
कुछ लोग तो इस हो हल्ले में
मानवता से ही धोखा कर जाते हैं
लेकिन जो सुविधा विहीन हैं
वे यूँ ही साल को आ जाने देते हैं
जैसे इतने दिन चले गये
आज का एक और दिन चले जाने देते हैं
मैं भी आज जागकर नया साल मना रहा हूँ
जैसे इसके आने में मेरी कोई भूमिका होना जरूरी हो
लिख रहा हूँ यह बोर करती बातें
जैसे कोई मजबूरी हो
लेकिन क्या करूँ
आज देखता हूँ कुछ लोग मुर्दा पीटने में व्यस्त हैं
एक अदनी सी बात का बहाना लेकर
अपना शब्द शौर्य दिखाने में व्यस्त हैं
अन्दर की भयानक गन्दगी
उबलकर बाहर आ रही है
उनके शब्दों की घटिया बाजीगरी
इस ब्लॉगमंच को मुँह चिढ़ा रही है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
यह कलुषित हश्र हो गया है
बुद्धि-विवेक, संस्कार, मर्यादा, सभ्यता और भावसौन्दर्य
इन सबका यह सारा कुनबा मुँह ढंककर सो गया है
अब इस ब्लॉगजगत में
आती-जाती रचनाओं का जो हाल है
वह सकारत्मक रचना कम
और ज्यादा बवाल है
ऐसे में हम क्या विश करें?
बस भगवान से प्रार्थना है
वे अविलम्ब यह विष हरें
नये साल में सबकी मर्यादा पुनरुज्जीवित होकर पुष्पित पल्लवित हो।
हमारा एक सकारात्मक संसार की रचना करने का प्रयास सुफलित हो॥
(शुभकामनाओं सहित)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)