ब्लॉगर बंधुओं, आखिर वो घड़ी आ ही गई जब मुझे पन्द्रह दिन के अर्जित अवकाश पर अपने पैतृक गाँव जाना पड़ रहा है। मेरे दादा जी ने इमरजेन्सी काल पर परिवार के सभी सदस्यों को तुरंत बुला लिया है। लगता है जीवन के ध्रुव सत्य से साक्षात्कार कराने की मंशा है।
वहाँ गाँव में इण्टरनेट और कम्प्यूटर तो दूर की बात बिजली भी कभी-कभी ही आती है। ऐसे में ब्लॉग की दुनिया कुछ समय के लिए दूर हो जाएगी। लेखन कठिन हो जाएगा। इसका दुःख कम है लेकिन निरन्तर बह रही विचारों की अजस्र धारा में डुबकी लगाने का सुख कुछ दिनों के लिए रुक जाएगा इससे थोड़ा उदास हूँ। मेरे लिए तो यह कल्पना करना कठिन हो रहा है कि संचार के इस साधन के बिना दिन कैसे गुजरेंगे। जबकि मात्र दो महीने पहले इस दुनिया से मैं लगभग अन्जान था। बस अखबारी ज्ञान से इसका नाम सुन रख था।
देखते-देखते आपलोगों से इतना जुड़ाव हो गया है कि पंद्रह दिन का विछोह भारी लग रहा है। लेकिन कर ही क्या सकते हैं। जीवन के अन्य पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसलिए मिलते हैं एक ‘छोटे से’ ब्रेक के बाद… नमस्कार।
सिद्धार्थ
एक अलग सोच से यात्रा की जरूरत
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मोर्गन हाउसेल ने अपनी किताब The Art of Spending Money में एक प्रसंग लिखा है
— फ्रेंच लेखक मार्सेल प्राउस्ट (1871-1922) ने एक युवक को; जो अपनी विपन्नता
से द...
1 दिन पहले
रोचक लगता है और सुखद भी जब चिठेरे इस प्रकार की बात ब्लॉगजगत को अपनी एक्स्टेण्डेड फैमिली मान कर करते हैं। यही ब्लॉगिंग नेटवर्क का महत्व है।
जवाब देंहटाएंआशा है आपके दादाजी शतायु हों।
खुशकिस्मत हैं आप कि आपको कोई गाँव बुलाता है!
जवाब देंहटाएंवैसे अजस्र का अर्थ क्या होता है?
इत्मिनान से हो आयें गांव. हम सब इन्तजार करेंगे. दादाजी स्वस्थ रहेंगे, हम सबकी प्रार्थना में वो होंगे.
जवाब देंहटाएंमिस तो करेंगे आपको, यह याद रखियेगा.
बहुत शुभकामनाऐं.
दादाजी के स्वस्थ रहे इसकी शुभकामना... और कभी-कभी तो इस टेक्नोलॉजी से दूर रहना एक तरह से शुकुन होता है.
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा शुभ हो ऐसी दुआ करते है......दादा जी को प्रनाम कहियेगा
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