काकचेष्टा,वकोध्यानं ,श्वाननिद्रा,तथैव च।
अल्पाहारी,गृहत्यागी विद्यार्थी पंच सुलक्षणं॥
बचपन में पंडित जी से विद्यार्थी के इन पाँच लक्षणों के बारे में सुना था,फ़िर विद्यार्थियों के (भी)कुम्भ इस महानगर इलाहाबाद में आया तो यही लक्षण मैने कहीं और भी पाये।आप भी देखें कि क्या वे विद्यार्थी है?
अल्पाहारी,गृहत्यागी विद्यार्थी पंच सुलक्षणं॥
बचपन में पंडित जी से विद्यार्थी के इन पाँच लक्षणों के बारे में सुना था,फ़िर विद्यार्थियों के (भी)कुम्भ इस महानगर इलाहाबाद में आया तो यही लक्षण मैने कहीं और भी पाये।आप भी देखें कि क्या वे विद्यार्थी है?
(१)वे ‘अल्पाहारी’ हैं,
दोनों जून मिला कर भी
नहीं पाते एक वक्त का भोजन।
(२) ‘गॄह्त्याग’ से ही तो चलता है,
उनका जीवन,
उनका जीवन,
घर से बहुत दूर तक चले जाते हैं वे,
अपने लक्ष्य के लिये।
(३) ध्यान तो उनका बगुलों से भी तेज,
सामने पड़ी हर वस्तु की उपयोगिता,
बस,एक ही नजर,में परख लेते हैं।
(४) काकचेष्टा ही तो आधार है,
उनकी सफ़लता का,
जिसमे जितनी काकचेस्टा,
सफ़लता उतनी अधिक।
(५) निद्रा तो उनकी श्वान की है ही,
शायद नींद उन्हें आती ही नही,
जब पुकारो जागते मिलेंगे,
आहट हुई नहीं की उठ बैठे।
विद्यार्थी के पाचों लक्षण तो मौजूद हैं उनमें,
‘अल्पाहारी’,‘गृहत्यागी’,‘वकोध्यानं’,‘काकचेष्टा ’ ,‘श्वाननिद्रा’,
सब तो है,
तो क्या वे विद्यार्थी है?
पीठ पर बस्ते की तरह टँगा है बोरा,
ड्रेस भी तो है उनकी,
एक पैण्ट जिसकी जेबें फ़टी है,
चेन टूटी है,शर्ट पर लगी है,कालिख की ढेर
और पैर में टूटा हुआ प्लास्टिक का चप्पल,
साथ में ही घूमते हैं,ठीक विद्यार्थियों की तरह बतियाते हुए
पर अपने लक्ष्य के प्रति सचेष्ट।
तो क्या वे विद्यार्थी हैं?
नहीं, वे कूड़ा बीनने वालें हैं
अल्पाहारी शौकिया नहीं मजबूरी में
गृहत्यागी शिक्षा के लिये नहीं, प्लास्टिक के लिये
ध्यान बगुलें का है सीखने के लिये नहीं,अपितु,
बीनने के लिये,
काकचेस्टा दूसरे से आगे होने के लिये,
और,
(३) ध्यान तो उनका बगुलों से भी तेज,
सामने पड़ी हर वस्तु की उपयोगिता,
बस,एक ही नजर,में परख लेते हैं।
(४) काकचेष्टा ही तो आधार है,
उनकी सफ़लता का,
जिसमे जितनी काकचेस्टा,
सफ़लता उतनी अधिक।
(५) निद्रा तो उनकी श्वान की है ही,
शायद नींद उन्हें आती ही नही,
जब पुकारो जागते मिलेंगे,
आहट हुई नहीं की उठ बैठे।
विद्यार्थी के पाचों लक्षण तो मौजूद हैं उनमें,
‘अल्पाहारी’,‘गृहत्यागी’,‘वकोध्यानं’,‘काकचेष्टा ’ ,‘श्वाननिद्रा’,
सब तो है,
तो क्या वे विद्यार्थी है?
पीठ पर बस्ते की तरह टँगा है बोरा,
ड्रेस भी तो है उनकी,
एक पैण्ट जिसकी जेबें फ़टी है,
चेन टूटी है,शर्ट पर लगी है,कालिख की ढेर
और पैर में टूटा हुआ प्लास्टिक का चप्पल,
साथ में ही घूमते हैं,ठीक विद्यार्थियों की तरह बतियाते हुए
पर अपने लक्ष्य के प्रति सचेष्ट।
तो क्या वे विद्यार्थी हैं?
नहीं, वे कूड़ा बीनने वालें हैं
अल्पाहारी शौकिया नहीं मजबूरी में
गृहत्यागी शिक्षा के लिये नहीं, प्लास्टिक के लिये
ध्यान बगुलें का है सीखने के लिये नहीं,अपितु,
बीनने के लिये,
काकचेस्टा दूसरे से आगे होने के लिये,
और,
श्वाननिद्रा तो इसलिये कि,
भूखे पेट,नंगे शरीर,
खुले छ्त के नीचे,नींद आती ही नहीं।
खुले छ्त के नीचे,नींद आती ही नहीं।
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंमुझे अपनी पोस्ट चिन्दियां बीनने वाला लिखते समय यह फैक्टर ध्यान नहीं आया था।
वाह! झंकझोर दिया जनाब आपने. विद्यार्थी तो हैं यह भी-जीवन की पाठशाला में जीने का अर्थ सीखते/ तलाशते.
जवाब देंहटाएंआप की इस कविता ने वह दिखा दिया जो सामान्य लोग नहीं देख पाते। आप की दिव्यदृष्टि और लक्ष्य को सलाम।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर!
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