तरही नशिस्त में उस्ताद जी ने चुनौती दी रुबाई कहने की। शायरी में रुबाई छंद कठिन माना जाता है। इसमें बीस-बीस मात्राओं की चार लाइनें कहनी होती हैं जिनकी पहली, दूसरी और चौथी लाइन की तुक (काफिया) समान होता है। सभी लाइ्नों में मात्राओं का क्रम (बह्र) एक समान रखना होता है और चारो लाइनों में अभीष्ठ बात पूरी (मुकम्मल) करनी होती है। उस्ताद द्वारा उदाहरण स्वरूप एक लाइन (मिसरा) समस्या के रूप में दे दी जाती है। उसी रूप और गुण वाली चार लाइने तैयार करके रुबाई पूरी होती है। मुझे जो मिसरा मिला उसकी बहर और उनके घटक (औजान) भी बताये गये जो निम्नवत् है-
कुछ लोग बुरा भला मुझे कहते हैं
मफ़ऊल मफाइलुन मफाईलुन फअ
फलफूल सुफूलफल सुफलफलफल फल
इसके आधार पर जो रुबाई मेरे द्वारा कही गयी उसे उस्ताद ने पास कर दिया है। लीजिए आप भी शौक फरमाइए -
-1- कमज़ोर सदा नज़र झुकी रखते हैं कमज़र्फ बहुत सितम किया करते हैं इक रोज बड़ी सज़ा मिलेगी उनको जो लोग बुरा भला इन्हे कहते हैं * |
-2- इक नजर तिरी उथल पुथल करती है पुरजोर कशिश महक महक जाती है सब लोग चकित पलट पलट तकते हैं जो आग बुझी लहक लहक उठती है ** |
-3- *** |
मुझे पता है कि आप हौसला आफ़जाई तो करेंगे ही। नया-नया फितूर है। आपकी दाद से ही यह परवान चढ़ेगा।
(इस मौके पर जो ग़जल कही गयी वह अगली पोस्ट में।)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-12-2014) को "नये साल में मौसम सूफ़ी गाएगा" (चर्चा-1833)) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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