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सोमवार, 22 दिसंबर 2014

फासले बढ़ रहे जिंदगी में (तरही ग़जल)

(बह्‍र : फाइलुन फाइलुन फाइलुन फ‍अ)

फासले बढ़ रहे जिंदगी में
दूरियाँ हो गयीं आदमी में

चल पड़े हैं कहीं से कहीं हम 
ज़ानेजाँ बस तिरी आशिक़ी में

इश्क में डूबने की न पूछो
हुस्न देखा किया चाँदनी में

फूल भी, ख़ार भी मोतबर हैं
हुस्न पोशीदा है हर किसी में

नाज़-नख़रे उठाये बहुत से
फ़र्क़ आया नहीं बेरुख़ी में

बेख़ुदी में सनम उठ गए हैं
ये क़दम अब तिरी आशिक़ी में

काम था तो बड़ा मुख़्तसर ही
हो न पाया मगर काहिली में

आदमी आम कहता था खु़द को
सादगी तो न थी सादगी में

या इलाही बचा पाक दामन
जिस्म को घूरती देहलवी में

तू सितमगर अगर हो गया तो
ख़ुद भी तड़पेगा बेचारगी में

वाह रे जिंदगी की कहानी
तिश्‍नगी ही बची ज़िन्दगी में

हर किसी को बराबर न समझो
फर्क है आदमी आदमी में

शायरी में सितम है रुबाई
बह्‍र में या बधें हथकड़ी में

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत शेरो से सजी ग़ज़ल ... मज़ा आ गया सर ...

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  2. हर किसी को बराबर न समझो
    फर्क है आदमी आदमी में
    ये शेर बहुत खूब है सर, मज़ा आ गया ग़ज़ल पढ़ कर
    Hindi Shayari

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