हे संविधान जी नमस्कार,
इकसठ वर्षों के अनुभव से क्या हो पाये कुछ होशियार?
ऐ संविधान जी नमस्कार…
संप्रभु-समाजवादी-सेकुलर यह लोकतंत्र-जनगण अपना,
क्या पूरा कर पाये अब तक देखा जो गाँधी ने सपना?
बलिदानी अमर शहीदों ने क्या चाहा था बतलाते तुम;
सबको समान दे आजादी, हो गयी कहाँ वह धारा गुम?
सिद्धांत बघारे बहुत मगर परिपालन में हो बेकरार,
हे संविधान जी नमस्कार…
बाबा साहब ने जुटा दिया दुनियाभर की अच्छी बातें,
दलितों पिछड़ों के लिए दिया धाराओं में भर सौगातें।
मौलिक अधिकारों की झोली लटकाकर चलते आप रहे;
स्तम्भ तीन जो खड़े किए वे अपना कद ही नाप रहे।
स्तर से गिरते जाने की ज्यों होड़ लगी है धुँआधार,
हे संविधान जी नमस्कार…
अब कार्यपालिका चेरी है मंत्री जी की बस सुनती है,
नौकरशाही करबद्ध खड़ी जो हुक्म हुआ वह गुनती है।
माफ़िया निरंकुश ठेका ले अब सारा राज चलाता है;
जिस अफसर ने सिस्टम तोड़ा उसको बेख़ौफ जलाता है।
मिल-जुलकर काम करे, ले-दे, वह अफसर ही है समझदार,
हे संविधान जी नमस्कार…
कानून बनाने वाले अब कानून तोड़ते दिखते हैं,
संसद सदस्य या एम.एल.ए. अपना भविष्य ही लिखते हैं।
जन-गण की बात हवाई है, दकियानूसी, बेमानी है;
यह पाँच वर्ष की कुर्सी तो बस भाग्य भरोसे आनी है।
सरकारी धन है, अवसर है, दोनो हाथों से करें पार,
हे संविधान जी नमस्कार…
क्या न्याय पालिका अडिग खड़ी कर्तव्य वहन कर पाती है?
जज-अंकल घुस आये तो क्या यह इसमें तनिक लजाती है?
क्या जिला कचहरी, तहसीलों में न्याय सुलभ हो पाया है?
क्या मजिस्ट्रेट से, मुंसिफ़ से यह भ्रष्ट तंत्र घबराया है?
अफ़सोस तुम्हारी देहरी पर यह जन-गण-मन है गया हार
हे संविधान जी नमस्कार…
आप सबको गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…!!!
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
बहुत खूब्! चकाचक चौकस!
जवाब देंहटाएंआज अपनी सहजता और रौ में हैं सिद्धार्थ जी ,,आपको भी शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंअभी सेवानिवृत्ति की आयु में पहुँचे गणतन्त्र से इतने प्रश्न पूछ डाले, और वह भी इतने प्रवाह में। सेवानिवृत्ति के बाद अब समय मिलना प्रारम्भ हुआ है, देखते हैं धीरे धीरे।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…
जवाब देंहटाएंइस बार तो छक्का मार दिया है आपने। कत्थ्य और प्रवाह दोनो प्रभावित करते है। अच्छी रचना के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंबेबाक..............
जवाब देंहटाएं@Arvind Mishra said...
आज अपनी सहजता और रौ में हैं सिद्धार्थ जी
झकास।
जवाब देंहटाएं---------
हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
JHAKKAS.....PAN GAN HAI TANTRA SE GAYA HAR......
जवाब देंहटाएंPRANAM.
सटीक... प्रवाहमयी....प्रभावशाली..
जवाब देंहटाएंबहुत खुब जी, गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंकुछ लोग जेब में उसे धर घूम रहे हैं
जवाब देंहटाएंसबसे विशाल विश्व में जो संविधान है!
अफ़सोस तुम्हारी देहरी पर यह जन-गण-मन है गया हार
जवाब देंहटाएंहे संविधान जी नमस्कार…
सटीक ...
असंख्य ह्रदय के भावों को आपने सुन्दर प्रभावशाली और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति दी है...
ह्रदय से आपका आभार इस सुन्दर रचना के लिए....
ये जो संविधान के मुंह पर जो दाग देख रहे हो ना, ये दाग नहीं संशोधन है और हुलिया ही बदल दिया है संविधान का :(
जवाब देंहटाएंआप तो सब कुछ कह गये, संविधान जी को मेरा भी नमस्कार..............
जवाब देंहटाएंइस आयातित संविधान को हमारा भी नमस्कार।
जवाब देंहटाएंसंविधान जी से उत्तर मिले तो जरूर लिखिएगा.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता....
अपने लिए आपका मार्गदर्शन चाहूंगा....
सुन्दर प्रभावशाली और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति |आभार|
जवाब देंहटाएंसविधान को वृद्धावस्था पेंशन चाहिये! :)
जवाब देंहटाएंएक इमानदार और जागरूक नागरिक का कर्तव्य और अधिकार है सार्थक सवाल उठाना .....लेकिन दुःख तो इस बात का है की इस देश के उच्च संवेधानिक पदों पर बैठें लोग असंवेदनशीलता तथा गंभीर तर्कसंगत व्यवहार के अभाव नामक बीमारी से ग्रस्त हैं......?
जवाब देंहटाएंएएक एक पँक्ति संविधान की दुर्दशा पर सौ सौ आँसू बहा रही है। बहुत अच्छी लगी रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
एक अच्छी चीज को बिगाड़ने में पूरा योगदान दिया है हमने..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रभावशाली और प्रवाहमयी अभिव्यक्ति|
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की समीक्षा 'जनसंदेश टाइम्स' के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित हुई है। समीक्षा देखने के लिए कृपया
जवाब देंहटाएंयहां क्लिककरें।
शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसचमुच ये जो हिंदुस्तान में गणतंत्र के नाम पर अफसरशाही,भ्रस्टाचार,और वोट बैंक के नाम पर जो दलितगिरी चल रही है,बहुत ही शर्मनाक है,आम आदमी को दाल रोटी के चक्कर में ऐसा फंसाया गया है की बोलने के बजाये हर आदमी सहता जा रहा है,पता नहीं कब तक ये सब चलता रहेगा...
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