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सोमवार, 5 सितंबर 2011

सत्यकथा : अन्ना रे अन्ना…

 

उसे कभी किसी ने सराहा नहीं था। कभी मेहनत नहीं की थी उसने पढ़ाई में। न ही किसी दूसरे धन्धे में पसीना बहाया था। पिता ने कई जगह लगाना चाहा लेकिन कोई धन्धा कामयाब नहीं हो पाया। काम के प्रति निठल्लापन बार-बार बेरोजगार बना देता। बेरोजगारी का नतीजा - गरीबी। जीवन प्रायः अभावग्रस्त। लेकिन फक्कड़ हालात में भी उसे मौज करने के बहाने मिल ही जाते। संगीत का शौक था उसे। देवी जागरण के मंचों पर उसकी मांग थी। कुछ वाद्य यंत्र बजाना जानता था। भरती का कलाकार था। मुख्य गायक के आने से पहले खाली समय भरने के लिए उसे थोड़ी देर माइक पकड़ने को भी मिल जाता था। रेडियो स्टेशन में उसे लोकगीतों की रिकॉर्डिंग में गायकों  की संगत के लिए झाँझ बजाने का काम मिल जाया करता था। लेकिन वहाँ महीने दो महीने पर एकाध बार ही मौका मिलता।

सरकारी रेडियो के लिए वाद्य यंत्र बजाने वाले कैजुअल कलाकारों को अपनी बारी का बहुत इन्तजार करना पड़ता। इनकी संख्या बहुत अधिक थी और अवसर बहुत कम। मांग कम थी और आपूर्ति ज्यादा, इसलिए भाव गिरना तय था। एक रिकॉर्डिंग का सरकारी पारिश्रमिक था बाइस सौ रूपये, लेकिन अपनी बारी लगवाने के लिए उन्हें इसमें से कुछ कमीशन देना पड़ता। कमीशन देने की परंपरा काफी मजबूत हो चुकी थी। इतनी कि अब सबके लिए नियम बराबर ही था। चाहे जिसकी भी बारी आ जाये उसे पता होता था कि चेक लेने के लिए अपनी जेब में आठ सौ रूपये लेकर जाना होगा। फिर भी घंटे भर की रिकॉर्डिंग के लिए एक दिन का समय लगाकर चौदह सौ रुपये भी मिल जाय तो बुरा क्या है। बेकार ही तो बैठे रहते हैं। इसलिए यह डील स्थायी प्रकृति की हो चुकी थी।

अभी पिछले हफ्ते एक लोकगीत की रिकॉर्डिंग में शामिल होने का उसका नम्बर लगा। शाम को जब चेक लेने की बारी आयी तो कैशियर आदतन उसकी जेब की ओर देखने लगा। मामूल के मुताबिक उसे अपने चेक के लिए आठ सौ रूपये निकालने थे; लेकिन उसकी सुस्ती देखकर कैशियर ने टोका - जल्दी कर भैये, बहुत लोगों को चेक बाँटना है।

-जल्दी तो आपको करनी है भाई साहब, मैं तो कबका झाँझ बजाकर रिकॉर्डिंग पूरी करा चुका हूँ।

-मैंने भी तो कबका चेक तैयार कर लिया है। बस अब फटाफट निपटाओ।

-तो देते क्यों नहीं, देर किस बात की?

-अरे, देर तो तुम कर रहे हो… निकालो हमारा हक दस्तूर!

-यह क्या होता है?

-क्या मजाक कर रहे हो, तुम कोई नये आदमी तो हो नहीं… इतना भी नहीं जानते?

-ओहो…! माफ करिएगा… अब वो बात नहीं हो पाएगी!

-क्यों, चेक नहीं लेना है क्या?

-लेना क्यों नहीं है, लेकिन बिना रिश्वत दिए। हमने अन्ना हजारे से शपथ ली है।

-अन्ना हजारे से…?

-जी हाँ, अब मैं हक दस्तूर के नाम पर रिश्वत नहीं दे सकता।

-अच्छा ले भाई, जब तूने ऐसी शपथ ले ली है तो हम ही क्यों पापी बनें…! आज हम भी कमीशन नहीं लेंगे। ले जाओ भाइयों आज सबको चेक फ्री मिलेगा।

अन्ना रे अन्ना !!!

भक्त : हे भगवान, मेरा प्रोमोशन करवा देना। इक्यावन रुपया का भोग आपके चरणों में रख रहा हूँ।

भगवान : पागल मरवाएगा क्या? अन्ना देख रहा है…।

उपसंहार :  इस हृदय परिवर्तन की घटना के अगले ही दिन उसे एक विश्व बैंक परियोजना (सर्व शिक्षा अभियान) में कंप्यूटर चलाने की संविदा आधारित नौकरी मिल गयी। वह भी बिना कोई रिश्वत दिए।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

15 टिप्‍पणियां:

  1. अन्ना इफेक्ट इतनी जल्दी? कहीं यह मनोहर कहानी तो नहीं?
    यह सच हो जाए तो भगवान् को एक सौ एक रुपये का प्रसाद चढाऊंगा... लेकिन कहीं अन्ना न देख ले!

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  2. अन्ना का प्रभाव चारो तरफ दिखने लगा है. उपसंहार बहुत अच्छा रहा.......................

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  3. बधाई हो सर्वशिक्षा अभियान में नौकरी लगने पर! :)

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  4. भगवान करे यह इफेक्ट ऐसे ही फलता - फूलता रहे!

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  5. मन की थोडी सी दृढ़ता ही रिश्‍वत से बचा लेती है। आपने तो भगवान को भी डरा दिया। वाह।

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  6. एक फिल्म देखी थी..कमल हसन की, जिसमे वे अपने आप को हिन्दुस्तानी कहते हैं और यदि कोई भी कहीं रिश्वतखोरी करे तो उसका क़त्ल पक्का था...

    आपकी यह कथा पढ़ते पढ़ते वही फिल्म याद हो आई...

    जो इफेक्ट आपने दिखाया है न, शायद उसी रास्त आयेगी,ह्रदय परिवर्तन तो होने से रहा...

    लातों के भूत ऐसे कैसे केवल मीठी बातों से भाग लेंगे...

    फिर भी पूरे दिल से हम अन्ना जी के साथ हैं...

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  7. सद्प्रयास हैं तो सफ़लता मिलेगी ही, थोड़ा आगे-पीछे हो सकती है।

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  8. अन्ना हजारे हर उस सच्चे ,इमानदार व न्याय प्रिय व्यक्ति का नाम है जो इस देश की हर गली,मुहल्लों,गांवों में भ्रष्ट मंत्रियों,सांसदों,विधायकों और उनके चमचे अधिकारियों द्वारा हर तरह से सताए जाते हैं...लेकिन अब तस्वीर बदलने वाली है अब अन्ना हजारे जैसे लोगों से ये शर्मनाक स्तर के भ्रष्ट लोग सताये और सुधारे जायेंगे....

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