इस पाठ के प्रथम भाग में हमने जाना कि डॉ.कविता वाचक्नवी ने अपने वक्तव्य में हिन्दी कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में होने वाली बड़े कार्यों का उल्लेख किया था। कविता कोष से सम्बन्धित बिन्दु-७ पर उनका स्पष्टीकरण आया है कि नेट पर ख़ुसरो से आज तक के कवियों की कविताओं की कुल संख्या 60 हज़ार से ऊपर है, ना कि केवल कविता कोष की। कविता कोष पर लगभग 18 हज़ार व अनुभूति पर भी लगभग 25 हज़ार से ऊपर कविताएं संकलित की गयी हैं।
८. साहित्य कोश:
अन्तर्जाल पर हिन्दी साहित्य का विपुल भण्डार उपलब्ध है। गद्य और पद्य दोनो में। प्रेमचन्द जी का लगभग पूरा साहित्य ही नेट पर उपलब्ध है। वागर्थ, नया ज्ञानोदय, तद्भव, हंस, अन्यथा जैसी अनेकानेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के साथ ही साथ १०-२० नेट पत्रिकाएं जैसे: अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, इन्द्रधनुष आदि भी सुलभ हैं
९.हिन्दी समाचार:
प्रायः सभी हिन्दी समाचार पत्र और साप्ताहिक पत्र पत्रिकाएं जैसे इण्डिया-टुडे, बी.बी.सी. पत्रिका, ऑउटलुक आदि हिन्दी प्रयोक्ताओं के लिए उपलब्ध हैं। बी.बी.सी. रेडियो (हिन्दी समाचार) सेवा से कौन अपरिचित होगा। अब यह ऑन लाइन सुनी जा सकती है।
९.विकीपीडिया:
अंग्रेजी संस्करण की तर्ज पर ही हिन्दी में भी यह मुक्त ज्ञानकोष लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे न सिर्फ़ आप दुनिया के किसी भी विषय पर अच्छी जानकारी पा सकते है बल्कि इसमें अपनी जानकारी को जोड़कर इसके भण्डार को और समुन्नत भी बना सकते हैं।
९. चर्चा समूह:
अब हिन्दी में भी अनेक विशिष्ट विषयों पर आधारित चर्चा समूह और फोरम सक्रिय हो चुके हैं। हिन्दीभारत, ई-कविता, हिन्दीफ़ोरम, तकनीकी व वैज्ञानिक हिन्दी, .....आदि बीसियों सहायता व विमर्श हेतु जालस्थल(sites) उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त ऑर्कुट और फेसबुक जैसी
१०.फॉण्ट परिवर्तक:
फॉण्ट की पारम्परिक समस्या अब नहीं रही। यूनिकोड फॉण्ट में ऑफ़लाईन/ऑनलाईन टंकड़ के औंजार उपलब्ध हैं। फ़ोनेटिक औंजार भी सुलभ हैं; जैसे- इंडिक ट्रांसलिट्रेशन व क्विलपैड सीधे देवनागरी में टंकड़ की सुविधा देते हैं।
पुरानी से पुरानी किसी फॉण्ट में रखी सामग्री को यूनिकोडित करने हेतु २० से अधिक फॉण्ट परिवर्तक मुफ़्त में उपलब्ध हैं। जिस फॉण्ट का परिवर्तक उपलब्ध नहीं है उसे अधिकतम एक सप्ताह में तैयार कर आपकी सेवा में उपलब्ध कराने के लिए कुछ तकनीकी महारथी सदैव तत्पर हैं। अनुनाद जी, नारायण प्रसाद जी, और हरिराम जी ने इस दिशा में स्तुत्य प्रयास किया है।११. संकलक (एग्रेगेटर्स):
अब हिन्दी के ब्लॉग्स को उनके प्रकाशन के समय और श्रेणी के अनुसार एक स्थान पर संकलित करके व्यवस्थित ढंग से नेटप्रयोक्ताओं को सुलभ कराने का काम ब्लॉगवाणी, नारद, चिट्ठाजगत आदि कर रहे हैं। निरन्तर शोध और रचनात्मक कौशल द्वारा इन्होंने चिठ्ठाकारी की दुनिया में सहज विचरण को आसान और सुरुचिपूर्ण बना दिया है। ब्लॉग्स की लोकप्रियता और सक्रियता के आँकड़े आसानी से देखे जा सकते हैं।
१२. खोज इन्जन:
नेट पर सबसे बड़े खोज इन्जन गूगलसर्च में भी हिन्दी/देवनागरी में ‘सर्च’ की सुविधा उपलब्ध हो चुकी है। अब आपकी खोज को पूरा करने के लिए हिन्दी में उपलब्ध सम्पूर्ण सामग्री भी गूगल द्वारा खंगाली जाती है। दूसरे सर्चइन्जन भी हिन्दी आधारित विषयों को उपलब्ध करा रहे हैं।
कविता जी ने उपरोक्त के अलावा यह भी बताया कि वाचान्तर (सीडैक)नाम से एक ‘स्पीच रिकॉग्निशन’ सुविधा है जो पैसा लेकर दी जाने वाली एकमात्र सुविधा है। हिन्दी की शेष सभी सुविधाएँ व संसाधन निःशुल्क हैं।
कई ब्लॉग्स पर हिंदी में प्रौद्योगिकी विषयक लेखन हो रहा है
इसके अतिरिक्त TTS (text to speech/hindi sceen reader) जैसी दृष्टिबाधित उपयोक्ताओं के लिए हिन्दी में अनेक सुविधाएं विकसित की गयी है।
अब सभी मुख्य ब्रॉउजर हिन्दी में उपलब्ध हो चुके है। ऑनलाइन लाइब्रेरीज, शब्दकोश, तकनीकी शब्दावली कोश, मुहावरा कोश, वर्तनी शुद्धिकरण यन्त्र के साथ ही हिन्दी में बाजार विषयक लेखन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। सभी बड़ी संस्थाओं की साइट्स हिन्दी में बनायी जा रही है। MSN,google,Yahoo आदि ने हिन्दी में संदेशों के आदान-प्रदान और गप्पे लड़ाने (चैटिंग) की सुविधा दे रखी है।
हिन्दी कम्प्यूटिंग के महत्व को रेखांकित करते हुए कविता जी ने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में भारत का जो बड़ा बाजार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दृष्टि में है उसपर कब्जा जमाने के लिए उन्हें हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना अपरिहार्य होगा। इसलिए अब इस दिशा में बदलाव आना शुरू भी हो चुका है।
अब अंग्रेजी पर निर्भर होने की मजबूरी नहीं है। मुझे आजतक ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो अपने बच्चों को इंलिश मीडियम से इसलिए पढ़ाता हो कि उसे अंग्रेजी से बहुत प्यार है। बल्कि वह यह समझता है कि आज के समाज में कैरियर की सफलता के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है। अब यदि हिन्दी में दक्षता आपको रोजगार उपलब्ध करा दे तो अंग्रेजी पढ़ना एक मजबूरी नहीं रह जाएगी। उन्होंने पूछा कि अमेरिका की सिलिकॉन वैली में जाकर भारतीय बच्चे यदि उनके लिए अंग्रेजी में सॉफ्टवेयर विकसित कर रहे हैं तो वही बच्चे भारत में रहकर हिन्दी में अच्छे सॉफ़्टवेयर क्यों नहीं बना सकते?
अपने वक्तव्य की समाप्ति कविता जी ने एक अपील से की- वह थी सभी हिन्दी प्रेमियों से हिन्दी की सेवा का व्रत लेने की। उन्होंने कहा कि आप सभी अपनी रुचि के अनुसार किसी एक साहित्यकार, कवि या लेखक को चुन लीचिए। उनके रचना संसार को यूनीकोड में टाइप करके इण्टरनेट पर अपलोड करिए। अभी यह सारी सुविधा निःशुल्क है। अपने पसंदीदा साहित्य को अन्तर्जाल पर सुरक्षित कराइए। इससे यह मात्र एक-दो पीढ़ियों तक नहीं बल्कि अनन्त काल तक अक्षुण्ण रह पाएगा।
(पाठ-४ समाप्त)
एक अनुरोध: समयाभाव व तकनीकी कमजोरी के कारण बहुत से उपयोगी लिंक इच्छा रहते हुए भी नहीं दे पाया हूँ। आप इस कमी को पूरा कर सकते हैं। अपनी टिप्पणियों में आप चाहें तो हिन्दी अनुप्रयोगों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण लिंक दे सकते हैं जो नये जिज्ञासु पाठकों और चिठ्ठाकार भाइयों-बहनों के लिए उपयोगी हो सकता है।
लिंक देने का तरीका /कोड: <a href="लिंक का युआरएल ">चयनित शब्द जिसपर लिंक देना है</a>
(अगला और अन्तिम पाठ:
कुशल ब्लॉग प्रबन्धन- ज्ञानदत्त पाण्डेय)
आपके चार आलेख (रपट) पढ कर मन को बढा सकून मिला. आखरी रपट का इंतजार है.
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
पूरी क्लास हो गयी जी। तीसरी बार सीखे सब कुछ!
जवाब देंहटाएंसारगर्भित !
जवाब देंहटाएंkai nai jaankariyon ke liye dhanywad.
जवाब देंहटाएंबहुत साड़ी काम की जानकारी मिली इस पोस्ट से तो. कमाल की रिपोर्टिंग की है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ..
जवाब देंहटाएं'रपटी सिद्धार्थ' के चक्कर में 'लिक्खड़ सिद्धार्थ' खो सा गया था कहीं...
जवाब देंहटाएंसकून है कि अब 'लिक्खड़ सिद्धार्थ' फिर सक्रिय होगा.
अरे भाई क्षमा करना. अभी एक सोपान शेष है. मैं देख नहीं पाया.
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी
जवाब देंहटाएंसभी लिंक काम के है
बढ़िया प्रस्तुति,अब ज्ञान जी के कुशल ब्लॉग प्रबन्धन का बेसब्री से इंतज़ार है
वीनस केसरी
बहुत सारे कामयाब लिंक दे दिये गये हैं । आभार । प्रतीक्षा अगली कड़ी की है बेसब्री से ।
जवाब देंहटाएंआपने इतना समय दे कर यह सब लिपिबद्ध किया। धन्यवादी हूँ। लैप टॊप की धुलाई सफ़ाई का काम चल रहा है, सो आज ही देख पाई हूँ।
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