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गुरुवार, 7 मई 2009

मैने यह दृश्य पहली बार देखा... आप भी देखिए!

 

मेरे एक सीनियर अधिकारी कानपुर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में किसी काम से आ रहे थे। कानपुर से निकलते समय मुझे फोन किया। सुबह सात बजे मैं ‘मेयोहाल’ जाने के लिए बैडमिन्टन की किट टांगकर निकलने वाला ही था कि उन्होंने फरमाया-

बहुत दिनों बाद इलाहाबाद आ रहा हूँ। मेरे लिए फाफामऊ से दो बोरी खरबूज मंगा लो।

मैने सोचा शायद मजाक कर रहे होंगे। पूछा- दो बोरी कुछ ‘कम’ नहीं है?

बोले- मजाक नहीं कर रहा हूँ। सच में चाहिए।

मैने फिर पूछा- ये तरबूज वही न जो बड़ा सा हरा-हरा होता है? खाने में पानी टपकता है?

आदेश के स्वर में बोले- ज्यादा पूछो मत। तुरन्त निकल लो। देर हो जाएगी तो माल मिलेगा ही नहीं। दो बोरी लाना...।

मैंने मन की दुविधा को परे धकेल दिया। स्कूटर अन्दर किया। कार की चाभी ली, दो बोरे और सुतली रखा, और चल पड़ा। तेलियरगंज होते हुए गंगा जी के पुल को पार करते ही मन्जिल आ गयी। गाड़ी को सड़क किनारे खड़ा कर लिया।

किसी से अभीष्ठ स्थान का पता पूछने की जरुरत नहीं पड़ी। पुल समाप्त होते ही गंगा की रेत में पैदा होने वाले तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी इत्यादि की सड़क पर लगने वाली थोक बाजार बिल्कुल सामने थी। कुछ ट्रैक्टर ट्रॉलियों से माल उतर रहा था। तरबूज के पहाड़ सड़क के किनारे जमाए जा रहे थे। अन्य माल थोड़ा कम मात्रा में था।

मैं मोल-भाव करने और पूरी बाजार में न्यूनतम मूल्य पता करने के उद्देश्य से मुख्य सड़क की पूर्वी पटरी से निकलने वाली छोटी सड़क पर आगे बढ़ गया जो नदी के तट पर जाती है। इस राह पर शवदाह प्रक्रिया से सम्बन्धित सामग्रियों की दुकाने भी हैं लेकिन मुझे उनमें कोई रुचि न थी।

सुबह के वक्त मैने वहाँ जो दृश्य देखा वह मेरे लिए बिल्कुल नया था। सड़क के किनारे पंक्तिबद्ध होकर पीठ पर तरबूजों से भरे विशेष आकृति के विशाल पात्र (छेंवकी) लादे पूरे अनुशासन से बैठे हुए दर्जनों ऊँटों की श्रृंखला देखकर मुझे थोड़ी हैरत हुई। अपने लम्बे पैरों को जिसप्रकार मोड़कर और शरीर को सिकोड़कर ये बैठे हुए थे उन्हें देखकर झटसे मेरा मोबाइल कैमरा चालू हो गया।

पहली तस्वीर तो चित्र-पहेली के लायक है। लेकिन मेरे पास धैर्य की कमी है इसलिए सबकुछ अभी दिखा देता हूँ:

तरबूज (2)

इसको ठीक से समझ पाने के लिए आगे से देखना पड़ेगा:

तरबूज

इन्हें इनके मालिक ने अलग बैठा दिया है। शायद डग्गामारी का इरादा है।

तरबूज (4)

असली पाँत वाले तो यहाँ हैं:

तरबूज (3) 

इस दृश्य को आपतक पहुँचाने का उत्साह मेरे मन में ऐसा अतिक्रमण कर गया कि मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि मुझे क्या-क्या खरीदना था। मैने दो बोरी तरबूज खरीद डाले। दो अलग-अलग दुकानों से ताकि सारे खराब होने की प्रायिकता आधी की जा सके। गंगाजी की रेती में उपजा ताजा नेनुआ और खीरा भी मिल गया। लेकिन गड़बड़ तो हो ही गयी...।

जब हमारे मेहमान सपत्नीक पधारे तो घर के बाहरी बरामदे में ही दोनो बोरियाँ देखकर खुश हो गये। मैने भी चहकते हुए बताया कि इन्हें मैं अपने हाथों खरीदकर और गाड़ी में लाद कर लाया हूँ। उन्होंने बोरी का मुँह खोलकर देखा तो उनका अपना मुँह भी खुला का खुला रह गया...।

मैंने उनके चेहरे पर आते-जाते असमन्जस के भाव को ताड़ लिया। “ सर, क्या हुआ। आपने तरबूज ही कहा था न...?”

“नहीं भाई, मैंने तो खरबूज कहा था। लेकिन कोई बात नहीं। यह भी बढ़िया है।” मैने साफ देखा कि उनके चेहरे पर दिलासा देने का भाव अधिक था, सन्तुष्टि का नहीं...।

...ओफ़्फ़ो, ...खरबूज तो पीला-धूसर या सफेद होता है। कुछ हरी-हरी चित्तियाँ होती हैं और साइज इससे काफी छोटी होती है। मुझे वही लाना था लेकिन ऊँटों के नजारे में कुछ सूझा ही नहीं। ढेर तो इसी तरबूज का ही लगा था।

मैने ध्यान से सोचा और कहा; “वो खरबूज तो वहाँ इक्का-दुक्का दुकानों पर ही था और अच्छा नहीं दिख रहा था।”

“हाँ अभी उसकी आवक कम होगी। लेकिन फाफामऊ का खरबूज जितना मीठा होता है उतना कहीं और का नहीं। जब कभी मौका मिले तो जरूर लाना” वे मेरे उत्साह को सम्हालते हुए बोले।

परिणाम: जाते-जाते वे एक बोरी तरबूज तो ले गये लेकिन दूसरी बोरी मेरे गले पड़ी है। तीन दिन से सुबह-दोपहर-शाम उसी का नाश्ता कर रहा हूँ। पर है तो बड़ा मीठा। यही सन्तोष की बात है। :)

(सिद्धार्थ)

29 टिप्‍पणियां:

  1. इनका तो कारवां गुजरते देखा है। स्टेशन जाने वाले पुल पर।

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  2. वैसे हमने तो बहुत ऊंट देखे है... जोधपुर, बाडमेर और बीकानेर में.... लेकिन आपने इलाहबाद में देखॆ ये खास है... बहुत अनुशासित है..

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  3. मीठे रसीले, लाल-लाल तरबूजे । सिद्धार्थ भइया, अगर थोड़े बहुत बच गये हों तो कल ब्लागर्स क्लास में लेते आइयेगा । तरबूज पार्टी हो जायेगी ।

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  4. ऊंट को ऐसे बैठे तो हमने भी देखा है लेकिन बालू लदे हुए. इलाहाबाद में होते तो हम खाने भी आते, अब यहाँ से तो मन मसोस कर ही रह गए. :)

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  5. ऊंटों पर तो नही मगर यंहा भी तरबूज़ के ढेर देखने मिल जाते हैं।महानदी मे उगे तरबूज़ तो बेहद मीठे होते हैं।

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  6. तसल्ली की बात यह रही कि तरबूज यहाँ भी आते हैं..और उँट आपने दिखा ही दिये, सो धन्य हुए. अब आप खाईये आराम से बैठकर.

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  7. के एम् मिश्र जी की टिप्पडी पर ध्याद दिया जाना चाहिए

    वीनस केसरी

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  8. वाह हुस्नोजमाल की पीठ पर मीठे मीठे तरबूज़ और खरबूज़े:)

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  9. वैसे अभी खरबूजा कम ही आ रहा है ....शायद १५ दिनों ज्यादा मात्र में उपलब्ध होगा . हमारे इलाके में बिन्दकी के पास सेलवन गावं के खरबूजे बहुत प्रसिद्द हैं पर खाने को कम ही मिलते हैं क्योंकि उनका बहार के ब्वाजरों में निर्यात किया जाता है ,

    वैसे जो तरबूज के चित्र दिख रहे हैं वह अब शायद कम दीखते हैं क्योंकि अब नयी प्रजाति " माधुरी " आई है जोकि खूब मीठी होती है .


    प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

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  10. आपके ब्‍लाग पर पहली बार आया और आते ही एक तरबूजिया कथा मिली आनंद आ गया । तरबूज बचे है क्‍या ।

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  11. Bhai Wah! Bahut badhia photo. Aur jahan tak ek bori bachi hai to yaar, yaar-doston ke yahan bhijavaya ja skata tha, khair aaj ke workshop mein bloggeron ke beech hi uska rasaswadan ho yeh achcha vichar hai.

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  12. राजस्‍थान से ऊँट ले गए हो तो कम से कम उसके बदले तरबूज, खरबूज तो भेज ही दीजिए। यदि इसका बोझ ज्‍यादा लगे तो खीरा ककड़ी से भी काम चल जाएगा। बधाई सिद्धार्थ जी, बहुत ही बढ़िया चित्रण।

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  13. पढ़कर कई भाव मन में उपजे ! पहले तो इतनी धाँसू रिपोर्टिंग के लिए बधाई कि ज्ञान जी की एरिया में जाकर आप ने ऐसी रिपोर्टिंग की जो आश्चर्य है उनसे छूट गयी थी ! उनसे ही क्या दिग्गज रिपोर्टरों से छूट गयी थी -अब शायद आपका ब्लॉग देख ब्वाहान मीडिया स्टोरी करने जाय !
    अब आपकी बुद्धि और हालाते तरबूज पर भी तरस कि बोला क्या गया और आपसे समझा क्या गया ! हाँ कुछ लोग ऐसे कनफूजन में सिद्धहस्त हैं ! कहो सेव ( नमकीन ) तो लाते हैं सेब ! बहरहाल ब्लॉग सम्मलेन में ले ही आईये वहीं शेष का कम तमाम कर दिया जायेगा ! देखिये पहुँच जाऊं तब ! सुबह से लोअर बैक पेन उभार दिया है ! बड़ी खस्ता हालत है !
    खरबूज तो जमैथा जौनपुर का या फिर इन दिनों हरे छिलका वाला मऊ का -खा के तो देखिये -आप भी क्या याद रखेंगें ! भाभी जी से मेलन शेक अलग से बना कर पीजिये !

    हाँ जरा ज्यादा मत खा लीजिएगा - ज्यादा खाने से लघु शंकाओं पर विराम लग जाता है -बच्चों को खासकर ! यह भोगा हुआ यथार्थ है !

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  14. इस प्रविष्टि के दृश्य तो खैर तरबूज का रस दे ही गये । पर एक शंका है, लघु है या दीर्घ, पता नही - यह लघु शंका के कितने प्रकार होते है? अरविन्द जी ने कहा "ज्यादा खाने से लघु शंकाओं पर विराम लग जाता है"।

    बहुत ज्यादा तरबूज के चित्र देख लिये हैं यहाँ , डर लग रहा है । अभी बच्चा ही तो हूँ ।

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  15. सुबह शाम इसी का नाश्‍ता कर रहे हैं तो मिनरल्‍स और पानी की कमी से बचे रहेंगे। जहां तक मुझे पता है तरबूज में नब्‍बे प्रतिशत तक पानी ही होता है। गर्मी में इससे बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता। :)

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  16. ये तो नितांत ज्ञानदत्तीय पोस्ट लगी आज मुझे..

    वाकई पहली फोटो तो चित्र पहेली के लिए उपयुक्त है..
    दो बोरी अलग अलग दूकान से खरीदने वाली बात भा गयी ये सिद्दांत हम भी गाँठ बाँध लेते है..

    वैसे अगर तरबूज ज्यादा हो रहे है तो दो चार इधर पार्सल करवा दीजिये.. बहुत पसंद है मुझे..

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  17. बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट ...तरबूज तो लगता है सब बंट गए :)

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  18. yahan kai din maine tarbooj kharidane ki ichchha se, dukan ka rukh kiya par meethe taraboojo ki pahachan na hone ki vajah se kuch aur lekar laut aaya.ab hare chittidar tarboojon ko aajmaunga.

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  19. अरे वाह मजा आ गया .जल्द ही मैं भी जमैथा का खरबूज आपको खिलाता हूँ .

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  20. दो बोरी तरबूज.....वाकई कुछ 'कम ' नहीं हैं क्या?

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  21. तस्वीर देख कर हम सकुचा से गए की भैय्या कही दूसरा ब्लॉग तो नहीं खोल लिए......पहली तस्वीर गजब की है.......आज की पोस्ट वाकई "ज्ञानदत्तीय पोस्ट "है जी......

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  22. यहाँ खाड़ी देशों मे ऊँट सजे हुए दिखते है और अपने देश मे लदे हुए दिखे....यही भाग्यलेखा माना जाता है..
    हम तो गर्मी के मौसम मे तरबूज़ और खरबूजे को फलों के राजकुमार मानते हैं.

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  23. इसीलिये तो मैं भी गाता रहता हूँ -

    अच्छा लगता है मुझे
    इलाहाबादी खरबूजे की ललचाती लकीरें

    ललचाती लकीरों का ध्यान रखते तो तरबूज और खरबूज में गडबड न होती।

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  24. अब जो एक बोरी बची है उसमें से आधी बोरी प्रयागराज से बुक करा दीजिए. मैं यहां छुड़ा लूंगा.

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  25. सुन्दर प्रस्तुति, वाकई में ऊँट तो ब्लॉगरों से भी ज्यादा अनुशासित दिख रहे हैं… :)

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  26. आपका ये लिखना की एक बोरी तरबूज रह गए हमारे पास
    ये तो जी का जंजाल हो गया आपके लिए
    अब किसको किसको बांटा जाये एक अनार सौ बीमार हो गए यहाँ तो ...

    हा हा हा

    वीनस केसरी

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  27. हमारे यहां भीई तरबूज तो खूब आते हैं पर मीठे बिल्कुल भी नहीं, काश आपके बचे तरबूजों को पूरा करने में हम भी कुछ मदद कर सकते।
    अन्तिम पंक्तियां पढ़ कर हंसी छूट गई। बहुत बढ़िया लिखा।

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  28. साधारण और रोजमर्रा की बातें भी सधे लेखन और रिपोर्टिङ से कितनी रुचिकर हो जाया करती हैं !

    अद्भुत लिक्खड़ हो तुम. जुग जुग जियो..

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