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बुधवार, 20 मई 2009

ब्लॉगिंग कार्यशाला: पाठ-४ डॉ.कविता वाचक्नवी (हिन्दी कम्प्यूटिंग) प्रथम भाग

 

“हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया” के बारे में जो कार्यशाला इलाहाबाद में हुई उसकी तस्वीरें, विषय-प्रवर्तन, अखबारी चर्चा, अनूप शुक्ल जी की कथा-वार्ता और डॉ. अरविन्द मिश्रा जी की साइंस ब्लॉगिंग सम्बन्धी वार्ता के बारे में आप पिछली कड़ियों में देख और पढ़ चुके है। अब आगे...

आशीर्वाद मुख्य अतिथि का... इमरान ने बड़े आदर पूर्वक यह बताया कि ब्लॉगिंग की चर्चा को एक ब्रेक देना पड़ेगा क्योंकि हमारे मुख्य अतिथि महोदय को किसी जरूरी कार्य से जाना पड़ रहा है। इसलिए उनके हिस्से की औपचारिकता बीच में ही पूरी करनी पड़ेगी। प्रदेश के पुलिस मुख्यालय में अपर पुलिस महानिदेशक के पद की जिम्मेदारियाँ निभाने वाले एस.पी.श्रीवास्तव जी ने इस कार्यक्रम से इतना भावुक जुड़ाव महसूस किया कि उन्होंने अपनी घोर व्यस्तता के बावजूद उपस्थित श्रोताओं को करीब बीस मिनट तक आशीर्वाद दिया।

मुख्य अतिथि जी बताने लगे कि ब्लैक बेरी पर अंग्रेजी में बहुत दिनों से ब्लॉग लिखते रहे हैं।

“आज का यह कार्यक्रम देखकर मुझे यह ज्ञान हुआ है कि हिन्दी में भी ब्लॉगिंग की जा सकती है। मैं आज ही अपना हिदी ब्लॉग बना डालूंगा और नियमित रूप से लिखता रहूंगा।”

स्मृति चिह्नउन्होंने कम्प्यूटर और इन्टरनेट के बारे में अनेक गूढ़ बातें बतायी। मुख्य अतिथि महोदय कविता के क्षेत्र में भी बड़ा दखल रखते हैं, लेकिन समय ने इसकी इजाजत नहीं दी। उन्होंने वार्ता समाप्त करने के बाद सभी अन्य वक्ताओं को स्मृति चिह्न प्रदान किए जिसे इमरान ने बड़ी मेहनत और शौक से तैयार कराया था।

मुख्य अतिथि जी को आदर पूर्वक विदा करने के बाद इमरान ने अगली वार्ताकार डॉ. कविता वाचक्नवी जी को आमन्त्रित किया। वे यह बताना नहीं भूले कि आप स्त्री विमर्श की विशेषज्ञ हैं। आपका इन्टरनेट पर बहुत बड़ा पाठक वर्ग है। "हिन्दी भारत", वागर्थ, पीढियाँ, स्वर - चित्रदीर्घा, ब्लॉगरबस्ती (BLOGGER BUSTI), "बालसभा", हिन्दुस्तानी एकेडेमी
चिट्ठा चर्चा, Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श), *रामायण- संदर्शन
आदि अनेक ब्लॉग हैं जिनमें आप अकेले या सामूहिक रूप से लेखन का कार्य करती है।

कार्यशाला में यद्यपि ब्लॉगिंग की ही चर्चा की जानी थी और किसी सामाजिक - राजनैतिक मुद्दे पर भटकने की इजाजत नहीं थी लेकिन इमरान उनसे स्त्री विमर्श पर कुछ सुनने का लोभ संवरण नहीं कर सके। उन्हें यह छूट प्रदान कर दिया कि वे अपनी पसन्द से जो बोलना चाहें बोल सकती हैं। लेकिन कविता जी ने कार्यशाला के उद्देश्यों को महत्व देते हुए अन्तर्जाल पर हिन्दी के अनुप्रयोग और हिन्दी टूल्स के बारे में ही चर्चा करना उचित समझा।

कविता वाचक्नवी कविता जी ने अपनी बात की शुरुआत इस ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए किया कि भारत में हिन्दी का बहुत बड़ा प्रयोक्ता समाज है। (वैसे तो बाहर भी कम नहीं है।) हिन्दी का प्रसार हो रहा है। लेकिन कम्प्यूटर में अभी हिन्दी के अनुप्रयोगों में बहुत कुछ किया जाना शेष है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि देवनागरी लिपि में लिखी हुई संस्कृत भाषा कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। लेकिन अंग्रेजी का प्रयोग अभी भी इण्टरनेट पर इतना छाया हुआ है कि हम अंग्रेजी में काम करने के आदी हो गये हैं। यदि हमारा ब्राउजर अंग्रेजी में काम करता है तो हिन्दी पढ़ने-लिखने के बावजूद हम अंग्रेजी प्रयोक्ता ही कहलाएंगे। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी हिन्दी को सर्वथा कम्प्यूटर-समर्थ बनाएं। इस दिशा में अनेक लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर बड़े प्रयास किए हैं। किसी बड़ी संस्था की मदद के बिना भी अनेक उत्साही हिन्दी-सेवियों ने हिन्दी अनुप्रयोगों की विशाल पूँजी इकठ्ठा कर दी है।

कुछ महत्वपूर्ण हिन्दी सुविधाएं निम्नवत्‌ हैं:

१.शब्दकोश (Dictionary):

अब आपको कागज पर छपे शब्दकोश के पन्ने पलटने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया की अच्छी से अच्छी डिक्शनरी ऑन लाइन उपलब्ध है। मॉउस की एक क्लिक के साथ ही आप किसी भी शब्द का अर्थ सहज ही जान सकते हैं। अब हिन्दी का वृहत् शब्दकोश समानान्तर कोश के नाम से उपलब्ध है।

२. अनुवाद (Translation):

अब ऐसे सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं कि आप किसी भी आलेख को दुनिया की किसी भी भाषा का तत्क्षण अनूदित कर सकते हैं। अन्तर्जाल पर विचरण करते हुए यदि आप को मिसाल के तौर पर स्कैन्डिनेवियाई भाषा में कोई रोचक सामग्री प्राप्त होती है तो आप उसे एक माउस की क्लिक से अपनी मनचाही भाषा में बदल सकते हैं। अपना हिन्दी में लिखा लेकर उसका दूसरी भाषाओं में अनुवाद भी करा सकते हैं। हाँलाकि इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ अपेक्षित है। उदाहरणार्थ साहित्यिक रचनाओं का उचित अनुवाद मशीन द्वारा किया जाना सम्भव नहीं लगता है।

३. पारिभाषिक शब्दावली:

कुछ स्वप्रेरित लोगों के परिश्रम से विविध विषयों से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्दों का संकलन तैयार हुआ है। इनका उपयोग भाषा के मानकीकरण में बहुत सहायक है।

४. लिप्यान्तरण (transliteration):

इस सुविधा का प्रयोग उन सभी लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है जिन्हें हिदी टाइपिंग की कोई जानकारी नहीं है। रोमन अक्षरों को की-बोर्ड पर देखकर टाइप करते हुए उनका हिन्दी प्रतिरूप प्राप्त किया जा सकता है। यानि ‘kavita’ टाइप करके ‘कविता’ पाया जा सकता है। यह सुविधा गूगल सहित अन्य अनेक साइट्स पर निःशुल्क ऑन लाइन’ उपलब्ध हैं। barahaIME इसके ‘ऑफ़ लाइन’ संस्करण निःशुल्क उपलब्ध कराती है जो इन्टरनेट से दो मिनट में डाउनलोड करके अपने कम्प्यूटर पर इन्स्टाल किया जा सकता है।

५. यूनीकोड:

इन्टरनेट पर सहज प्रयोग के लिए यूनिकोड फ़ॉण्ट की पद्धति लागू की गयी है। विश्व की सभी भाषाओं के समस्त वर्णों (अक्षरों) के लिए एक युनीक कोड निर्धारित कर दिया गया है तथा सभी कम्प्यूटर निर्माता कम्पनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि सभी कम्प्यूटर इस सुविधा से अनिवार्य रुप से लैस हों। देवनागरी लिपि के वर्णों को भी यूनीकोड फ़ॉण्ट में स्थान प्राप्त है। इससे दुनिया में कहीं भी हिन्दी नेट के माध्यम से लिखी और पढ़ी जा सकती है।

६. पारिभाषिक तकनीकी शब्दावली:

आप ज्ञान के जिस भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हों उस क्षेत्र से सम्बन्धित मानक शब्दों की सर्वमान्य परिभाषा अत्यन्त आवश्यक होती है। हिन्दी सेवियों ने अन्तर्जाल पर इस विषय पर भी कठोर परिश्रम किया है। और विपुल मात्रा में तकनीकी शब्दकोशों की रचना कर डाली है।

७. कविता कोश:

अमीर खुसरो से लेकर आधुनिक भारत के वर्तमान कवियों तक की करीब ६०००० कविताओं को अन्तर्जाल पर कविता कोश में अपलोड कर दिया गया है। यह पूँजी अभी भी लगातार बढ़ रही है।

...क्रमशः

 कविता जी के श्रोता [कविता जी की वार्ता कुछ लम्बी ही थी। पूरे विषय को एक कड़ी में समेटना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने अपनी पाठ्य सामग्री से सम्बन्धित लिंक्स देने को कहा था, जो अभी प्रतीक्षित है। अगली कड़ी में इसे पूरा करने की कोशिश की जाएगी।]

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लग रहा है कड़ी दर कड़ी इस आयोजन के बारे में जानना..जारी रहें.

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  2. काफी क्रमबद्ध तरीके से कविता जी ने इंटरनेट पर हिन्दी के प्रयोग और उसमें काम आने वाले अनुप्रयोगॊं के बारे में समझाया है । कार्यशाला निश्चय ही उपयोगी सिद्ध हुई । आभार ।

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  3. सुन्दर। दो बार सुन चुके हैं उनको। अब अब पढ़ रहे हैं।

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  4. सिद्धार्थ जी,
    सर्वप्रथम तो खेद है की मैं अपनी ओर से अपने वक्तव्य का लिखित पाठ आप को अब तक उपलब्ध नहीं करवा सकी हूँ, वस्तुतः यात्रा से लौटे अभी मात्रा 4 दिन हुए हैं और सब कुछ अस्त व्यस्त है, बल्कि अपने काग़ज़ों के फोल्डर तो अभी खोल भी नहीं पाई हूँ. ऊपर से कल चर्चा का दिन था व आज यहाँ एक कवि सम्मेलन और राष्ट्रीय विचार मंच की गोष्ठी का आयोजन किया है.उसकी व्यस्तता है.अभी आधे घंटे में घर से निकलना है फिर रात 11 बजे तक लौटना हो सकेगा.इसलिए सोचा था कल रात(21मई) तक आप को लिख कर कुछ दे सकूँ, पर आप ने तो अपनी चुस्ती में मुझे उसका अवकाश भी दे दिया.

    - आप ने इतने श्रम पूर्वक चीज़ों को लिखा है उसके लिए आभारी हूँ. कुछ तथ्यात्मक चीज़ें इधर उधर हो गयी हैं, जैसे नेट पर ख़ुसरो से आज तक के कवियों की कविताओं की कुल संख्या 60 हज़ार से ऊपर है, ना कि केवल कविता कोष की. कविता कोष पर लगभग 18 हज़ार व अनुभूति पर भी लगभग 25 हज़ार से ऊपर.

    शेष लौट कर. अभी हड़बड़ी है निकलने की.

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  5. कार्यक्रम समाप्ति की और अग्रसर है कविता जी को सुनना वास्तव में रुचिपूर्ण था
    लिंक दे देंगे तो मज़ा आ जायेगा

    आपका वीनस केसरी

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  6. Hindi Blogging ke liye kafi kuch hai is karyashala mein. Accha lag raha hai varnan.

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  7. फिर से याद आयी इन बातों की !

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