जब हमने इमरान प्रतापगढ़ी के साथ इस कार्यशाला के आयोजन की योजना बनायी थी तो हमारे प्रयास का सबसे बड़ा सम्बल आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का इलाहाबाद में उपस्थित होना था। फिर भी जब हम उनकी सहमति लेने उनके आवास पर पहुँचे तो पाँच मिनट के भीतर जो बात हुई उससे हमारा ‘भव्य आयोजन’ खटाई में पड़ता दिखा। उन्होंने कहा कि मैं तो चाहता हूँ कि केवल चुने हुए पच्चीस लोग ही रहें जिनसे सहज ढंग से बातों का आदान-प्रदान किया जा सके। बड़ी सी भीड़ जुटाकर भाषण दिलाना हो तो मुझे घटाकर ही योजना बनाइए।
इमरान ने मुझसे फुसफुसाकर कहा कि सर इतने तो कार्यकर्ता ही हो जाएंगे। मैंने उन्हें मनाते हुए पचास की संख्या पर राजी कर लिया। इसमें आदरणीया रीता भाभी का पूरा सपोर्ट हमारे पक्ष में रहा।
कार्यक्रम के निर्धारित समय से दो मिनट पहले अपने लैपटॉप के साथ पहुँचकर उन्होंने हमें आश्वस्त कर दिया कि सबकुछ अच्छा ही होने वाला है। सबसे वरिष्ठ होने के कारण स्वाभाविक रूप से उन्हें कार्यक्रम के अध्यक्ष की कुर्सी सम्हालनी पड़ी और इसी के फलस्वरुप उन्हे अपनी बात कहने का अवसर सबसे अन्त में मिला। मजे की बात यह रही कि जब कार्यक्रम अपने उत्स पर था तो निराला सभागार ठसाठस भरा हुआ था, लेकिन जब अन्त में ब्लॉगिंग के गुरुमन्त्र जानने की बारी आयी तो हाल में वही पच्चीस-तीस धैर्यवान श्रोता बैठे हुए थे जितने की इच्छा गुरुदेव ने जाहिर की थी।
पीछे की कुर्सियों से उन्हें आगे बुलाया गया और लैप टॉप के की-बोर्ड पर अंगुलिया फिराते हुए ‘पॉवर प्वाइण्ट’ के माध्यम से उन्होंने अपनी सूत्रवत बातें बतानी शुरू कीं। जो सज्जन डॉ. अरविन्द मिश्रा जी की प्रस्तुति अंग्रेजी में होने पर प्रश्न उठा चुके थे वे इस सुन्दर हिन्दीमय झाँकी को देखने के लिए नहीं रहे।
और नमस्कार मेरी ओर से भी... आपने इतने धैर्य से इसे पढ़ने, जानने और समझने के लिए समय निकाला...।
ये शब्द थे दृश्यकला विभाग के मुखिया और इलाहाबादी बकबक नामक ब्लॉग के प्रणेता धनन्जय चोपड़ा जी के जिनके जिम्मे कार्यक्रम के अतिथियों, वार्ताकारों, श्रोताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और माइक-मंच-फर्नीचर के व्यस्थापकों को धन्यवाद देने का जिम्मा सौंपा गया था।
ज्ञान जी की हड़बड़ प्रस्तुति के बाद जो प्रश्नोत्तर काल निर्धारित था उसमें एक बड़ा मौलिक सवाल किया गया- “आखिर ब्लॉग बनाएं कैसे?” सभी पैनेलिस्ट इसका आसान तरीका और गूगल की साइट का पता बताने लगे। तभी धनन्जय जी ने माइक सम्हाल लिया और बोले-
“गूगल सर्च में टाइप करो blog, एक खिड़की खुलेगी, एक जगह लिखा मिलेगा create new blog, उसे चटकाओ और जो-जो कहे करते जाओ। ब्लॉग बन गया।”
“हाँ इसके पहले जी-मेल का खाता होना जरूरी है। यदि नहीं है तो गूगल सर्च में gmail टाइप करो। एक खिड़की खुलेगी, एक जगह लिखा मिलेगा create new account , उसे चटकाओ और जो-जो कहे करते जाओ। खाता दो मिनट में बन जाएगा।”
(समाप्त)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
अच्छी प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंके स्थान पर व्यवस्थित व to the point प्रस्तुति !!
ज्ञान जी की ब्लॉग संबन्धी अपेक्षाएं संबन्धी विचार सबसे महत्त्वपूर्ण लगे!!
बढ़िया लगा ज्ञान जी की कार्यशाला में दी गई प्रस्तुति को देख..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बनाने और जीमेल खाता खोलने का इससे बेहतर उपाय तो शायद ही और कोई बता पाये.
सरल, व्यावहारिक और उपयोगी टिप्स. सक्रिय अनुभव से सँजोए हुए मोती जिन्हें बाँटने में ज्ञान जी को कोई दुविधा नहीं.
जवाब देंहटाएंcow belt के दोनों धुरन्धरों ज्ञानदत्त जी और सिद्धार्थ को धन्यवाद.
ज्ञान जी और आप सभी को इस कार्यशाला को आयोजित करने पर बधाई!
जवाब देंहटाएंइसकी सफलता को कैसे नापेंगे आप? एक पोस्ट इस विषय पर भी हो जाये कि कितने लोगों ने इस ज्ञान को उपयोग में लाने का प्रयास किय।
मैं पुन: कहूंगा कि आपका और इमरान का ईवेण्ट मैनेजमेण्ट शानदार था।
जवाब देंहटाएंपर चाय की दुकान पर भी ज्ञानोदय महत्वपूर्ण है!
यह तो बहुत ही अच्छा कार्यक्रम रहा होगा। हमको तो पढ़कर ही आनन्द आगया। ऐसे कार्यक्रम करते रहिए। आभार।
जवाब देंहटाएंजय हो। इलाहाबाद में फ़ास्ट फ़ार्वर्ड हुये स्लाइड्स भी दिख गये। हरेक का समय आता है। इनका समय अब आना था।
जवाब देंहटाएंज्ञान दद्दा की क्लास अच्छी लगी और उपसंहार में ब्लागर बनने का सब से आसान तरीका...
जवाब देंहटाएं“गूगल सर्च में टाइप करो blog,....ब्लॉग बन गया।”
“हाँ इसके पहले जी-मेल का खाता .......खाता दो मिनट में बन जाएगा।”
ज्ञान जी सच मे गुरू जी हैं।
जवाब देंहटाएंअछ्छा लगा अभी हाल मे सम्पन्न हुए ब्लाग पर कार्यक्रम के बारे मे पढ कर .
जवाब देंहटाएंअच्छी खासी जानकारी उस कार्यशाला के बारे में मिल रही है।
जवाब देंहटाएंचलिये, इसी बहाने हम भी इलाहाबाद विचरण कर आये....virtual ही सही :)
बेहतरीन बाते लगी, बहुत कुछ नया जानना को मिला जो मै पहले नही जानता था।
जवाब देंहटाएंमैंने आज पुनः ध्यान से पढ़ा -यह पुनि पुनि देखिय किस्म का बन पडा है !
जवाब देंहटाएंआज आपका रिपोर्ताज़ का कार्य पूरा हुआ।
जवाब देंहटाएंसभी प्रस्तुतियाँ श्रमपूर्वक संजोई हैं आपने।
पुन: शुभकामनाएँ।
ज्ञान जी की स्लाइडज देखकर ऐसा लगा कि मानो हम भी वहीँ थे.
जवाब देंहटाएंज्ञान जी की जो स्लाइड वहां छूट गई थी वह यहाँ पढने को मिल गई (सौभाग्य की बात है हमारे लिए)
जवाब देंहटाएंहम तो कहते रह गए ठ आगे मत बढाइये झलक तो दिखला दीजिये
ज्ञान जी ने फिर से चाय की दूकान का स्मरण दिलाया है सिध्धार्थ जी अब तो आप समझ गए होंगे ज्ञान जी सीरियस हैं इस मामले में
कब आयोजित कर रहे है टी मीटिंग हमें भी बुलाइयेगा (निवेदन है)
वीनस केसरी
स्लाइड्स तो कमाल की हैं ! देख के ही पता चल रहा है किसने बनाई है !
जवाब देंहटाएंइस कार्यशाला ने बहुत सारी बातें ब्लोगिंग के बारे में स्पष्ट कर दी हैं .
जवाब देंहटाएंहिन्दी मे ब्लाग का प्रयास सराहनीय है. मेरा सुझाव है कि कोई एक प्रासाँगिक विषय वस्तु चुन कर उस विषय पर विशेषज्ञता रखने वाले ज्ञानी जन अपनी अपनी बात बौध्धिक - ब्लाग करते रहेँ तो अच्छा रहेगा . इससे ब्लाग मे एक तारतम्यता बनी रहेगी , स्तर मे उत्तरोत्तर वृध्दि होती रहेगी और ज्ञान सँग्रह भी होता रहेगा.
जवाब देंहटाएंवाकई ज्ञान काका का प्रेज़ेन्टेशन लाजवाब था । काका की स्लाइड्स जिसने ध्यान से पढली समझिये उसको ब्लागिंग का तीन चैथाई ज्ञान हो गया । उस शाम तो जल्दी जल्दी मंे स्लाइड्स फास्ट फारवर्ड कर दी थीं लेकिन धन्यवाद आपका सिद्धार्थ जी कि इन स्लाइड्स को आपने दुबारा ब्लाग पर चस्पा कर दिया । ये स्लाइड्स गागर में सागर के समान हैं । उस शाम मैं भी शरीक हुआ था ब्लागिंग की कार्यशाला में लेकिन किसी फोटो में दिखाई नहीं दिया था । अब इस पोस्ट में चस्पा की गई एक फोटो में मैं भी प्रकाशित हो गया । नेट पर अपना मुखड़ा देखकर जियरा खुश हो गया । सो एक बार फिर धन्यवाद प्रस्ताव पारित करते हैं आपको । सत्यार्थ के मुंडन की भी बधाईयां स्वीकार करिये ।
जवाब देंहटाएंi liked it ...nice :)
जवाब देंहटाएंदेर से ही सही, ज्ञानदत्त पाण्डे जी और आपको धन्यवाद!
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