“हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया” के बारे में जो कार्यशाला इलाहाबाद में हुई उसकी तस्वीरें, विषय-प्रवर्तन, अखबारी चर्चा और अनूप शुक्ल जी की कथा-वार्ता आप पिछली कड़ियों में देख और पढ़ चुके है। अब आगे...
अनूप जी की कथा-वार्ता के बाद इमरान ने हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में वैज्ञानिक विषयों पर लिखने वाले बनारस के डॉ. अरविन्द मिश्रा जी को आमन्त्रित किया। अरविन्द जी का साईंब्लॉग हिन्दी जगत के चिठ्ठों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वे पिछले कई दशक से विज्ञान के संचार के क्षेत्र में सक्रिय हैं।
इन्होंने अपने वैज्ञानिक लेखों की लम्बी श्रृंखला में लोकप्रिय विज्ञान, जानवरों का व्यवहार, सौन्दर्य व सौन्दर्यशास्त्र (beauty and aesthetics), साँप और सर्पदंश, अन्तरिक्ष तथा धर्म और विज्ञान जैसे विषयों पर खोजपरक और उपयोगी लेखन किया है।
विज्ञान की बात करनी हो और वह भी अन्तर्जाल पर इसके लेखन की बात करनी हो तो जाहिर है कि तकनीक का प्रयोग होना ही था। सो, इन्होंने विषय को ‘पॉवर प्वाइण्ट’ के माध्यम से प्रस्तुत किया। इमरान शायर बार-बार इसे ‘पॉवर प्रेजेण्टेशन’ कहते रहे और मैं दर्शकों की विपरीत प्रतिक्रिया की सम्भावना से शंकाग्रस्त होता रहा। डर था कि कहीं कोई इसे ‘शक्ति-प्रदर्शन’ न समझ बैठे।
खैर इमरान जी ने माइक थमाया तो अरविन्द जी ने भी सबसे पहले यही बताया कि इलाहाबाद के लिए वे मेहमान नहीं हैं। यहीं के विश्वविद्यालय से वर्ष १९८३ में उन्होंने प्राणिशास्त्र में डी.फिल. किया था। यहीं उनका alma mater है। यह अपने घर जैसा लगता है। बोले, “यहाँ लगता है जैसे कि मैं अपने माँ के पास आया हूँ।”
थोड़ी मशक्कत के बाद ही सही लेकिन ज्ञानदत्त पाण्डेयजी के नियन्त्रणाधीन लैपटॉप से निसृत होकर श्रोताओं के सामने जमायी गयी स्क्रीन (श्वेत-पटल ) पर पहली स्लाइड चमक उठी। आगे की प्रत्येक स्लाइड में विषय वस्तु को कुञ्जी रूप में व्यवस्थित किया गया था। अरविन्द जी क्रम से उन विन्दुओं की व्याख्या करते रहे और ज्ञानजी ‘नेक्स्ट’ का निर्देश पाकर माउस से स्लाइड्स आगे बढ़ाते रहे। कहीं कोई भटकाव नहीं, कोई दुहराव नहीं। मुझे प्राइमरी में पढ़ी हुई विज्ञान की परिभाषा याद आने लगी।
यहाँ संक्षेप में इन झलकियों की विषय-वस्तु प्रस्तुत कर रहा हूँ:
- वेब+लॉग = ब्लॉग
- १९९७- दुनिया में ब्लॉग्स का आविर्भाव
- अब प्रत्येक दस सेकेण्ड में एक नया ब्लॉग बन रहा है।
- वेब लॉग शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जे.बार्गर ने १९९७ में किया था।
- इसमें प्रविष्टियाँ या पोस्टें उल्टे समयानुक्रम मेम दिखायी देती हैं- अर्थात् आखिरी पोस्ट सबसे पहले प्रदर्शित होती है।
- प्रविष्टियों में आलेख, चित्र, वीडियो, और दूसरे जालस्थलों की कड़ियाँ निहित होती हैं।
- पाठक इन प्रविष्टियों पर टिप्पणी कर सकते हैं जिससे यह दो-तरफा आदान-प्रदान का अनुभव देता है।
- इसमें आर.एस.एस. की फीड शामिल होती है।
ब्लॉग बहुत सी भिन्न सामग्रियों से तैयार हो सकता है...
- व्यक्तिगत डायरी या पत्रक
- समाचार और सूचना सेवा
- चालू प्रोजेक्ट की रिपोर्ट्स
- चित्र वीथिका
- अन्तर्जाल की कड़ियों का संग्रह
- इत्यादि... और भी बहुत कुछ
- विज्ञान की चिठ्ठाकारी
- एक विज्ञान का चिठ्ठा वह है जिसे कोई विज्ञान-वेत्ता लिखे
- शोध और व्यक्तिगत डायरी के तत्व शामिल हों
- प्रायः विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर लिखा जाय
- या दोनो बातें ही हों...।
- ब्लॉगिंग इन्डेक्स और खोजी-इन्जन
- टेक्नॉराती- http://www.technorati.com/
- गूगल ब्लॉग खोज-
- आपका संकलन कर्ता: जैसे- ब्लॉगवाणी, चिठ्ठाजगत, नारद
- ब्लॉगर: वह व्यक्ति जिसने ब्लॉग बना रखा है और उसपर लिख-पढ़ रहा है।
- ब्लॉगिंग: ब्लॉग बनाने और चलाने का कार्॥
- ब्लॉगरोलिंग: ब्लॉगजगत में एक ब्लॉग से दूसरे ब्लॉग पर विचरण करना।
- ब्लॉ्ग्रोलोडेक्स: दूसरे ब्लॉगों की सूची जो प्रायः अपने ब्लॉग के साइड-बार पर लगायी जाती है।
- ब्लॉगेरिया: प्रतिदिन सैकड़ों पोस्टें पढ़ने और लिखने की सनक, विषय सबकुछ और कुछ भी।
- यह अन्तर्जाल पर अद्यतन जानकारी बाँटने का जुगाड़ है।
- रिच साइट समरी
- रियली सिम्पल सिण्डिकेशन,
- आर.एस.एस. अन्तर्जाल पर चढ़ाई गयी प्रत्येक सामग्री सबको सुलभ कराता है।
- ब्लॉग संकलन कर्ता एक्स.एम.एल. जाल स्थलों को पूर्वनिर्धारित समय से संकलित करते हैं ( प्रत्येक मिनट से लेकर केवल अनुरोध के अनुसार अनियमित तौर पर कभी-कभार भी।)
- शार्प रीडर (?)
यहाँ क्या-क्या हो सकता है...?
- अन्धविश्वासों से भिड़न्त
- छद्म विज्ञान का विरोध
- वैज्ञानिक विनोदशून्य मशीन की भाँति चलायमान जीव नहीं हैं। उनमें भी सम्वेदनाएं हैं। उनके जीवन में भी ‘रास-रंग’ है।
- विज्ञान सम्बन्धी विषयों पर आधारित समाचारों पर सजग दृष्टि रखना
- विज्ञान का इतिहास लेखन
- विज्ञान का कला विषयों के साथ आमेलन
- सीधे अपने कार्यक्षेत्र से चिठ्ठाकारी
- सामुदायिक प्रकाशन: ब्लॉग महोत्सव का आयोजन
- लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं के सम्पादकों द्वारा चिठ्ठाकारी
कुछ लोकप्रिय विज्ञान-विषयक ब्लॉग
अरविन्द जी ने अपनी वार्ता में उदाहरण देकर समझाया कि किस प्रकार में अन्धविश्वासों ने जड़ जमा रखा है। ब्लॉगिंग के हथियार से इनका मूलोच्छेदन किया जा सकता है। यह सत्य है कि ‘बड़ी माता’ नामक बिमारी का उन्मूलन हो चुका है। लेकिन अभी भी प्रत्येक १०-१५ किलोमीटर पर शीतला माता का मन्दिर बना हुआ है। आज भी समाज कूप-मण्डूकता का शिकार बना हुआ है।
फलित ज्योतिष के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने का काम हो रहा है। यह एक छद्म विज्ञान है। बाजारों में अनेक नीम-हकीम [क्वैकायुर्वेदाचार्य :)] लोगों की अशिक्षा और अन्धविश्वास पर पल रहे हैं।
आये दिन अखबारों में अवैज्ञानिक खबरें छपती रहती हैं। प्रायः हम पढ़ते हैं कि तस्करों से चीते की खाल बरामद हुई। जबकि भारत में चीता पाया ही नहीं जाता है। वस्तुतः Tiger का हिन्दी अनुवाद व्याघ्र ( देखें कामिल बुल्के) है। किन्तु भार्गव की डिक्शनरी ने गलती से इसे चीता बता दिया। अब लिट्टे वाले भी तमिल चीता ही कहलाते हैं जो गलत है।
अरविन्द जी ने यह चर्चा भी किया कि विज्ञान को मानविकी से जोड़कर अनेक अच्छी पुस्तकें लिखी गयी हैं। आजकल चार्ल्स डार्विन की द्विशती मनायी जा रही है। उन्होंने विज्ञान का विशद लेखन किया। विज्ञान गल्प अब धीरे-धीरे डगमग कदमों से चलना शुरू कर रहा है। उन्होंने बताया कि सन् १९०० में पहली विज्ञान कथा ‘चन्द्रलोक की यात्रा’ केशव प्रसाद सिंह जी ने लिखी थी जो तबकी प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सरस्वती’ में छपी थी।
यहाँ बताते चलें कि डॉ अरविन्द ने सभी वार्ताकारों को अपनी प्रतिनिधि विज्ञान कथाओं के संग्रह ‘एक और क्रौंच वध’ की प्रतियाँ भेंट कीं। इनमें उनकी लिखी बारह रोचक कहानियों का संकलन किया गया है। अरविन्द जी से अनुरोध है कि इन्हें अपने ब्लॉग पर यदि अबतक पोस्ट न किए हों तो अवश्य कर दें। पहले से मौजूद हो तो लिंक दें।
पोस्ट बहुत लम्बी होती जा रही है। अनूप जी की छाया पड़ गयी लगती है। अन्त में इतना बता दूँ कि इस वार्ता के अन्त में एक बुजुर्ग सज्जन ने यह सवाल दाग दिया था कि हिन्दी ब्लॉगिंग की चर्चा के कार्यक्रम में पॉवर प्वाइण्ट अंग्रेजी में क्यों दिखाया गया? अब इसका सम्यक उत्तर देने की जरूरत वहाँ नहीं समझी गयी, क्यों कि अरविन्द जी ने पूरी चर्चा हिन्दी में ही की थी। स्लाइड्स का प्रयोग केवल विषय पर केन्द्रित रहने के लिए किया गया था।
इस प्रकरण पर विस्तृत चर्चा ज्ञान जी की मानसिक हलचल पर हो चुकी है। यहाँ मैने उन स्लाइड्स का हिन्दी रूपान्तर करने की कोशिश की है। आशा है उन सज्जन की शिकायत भी दूर हो जाएगी। यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।
...जारी
अगला पाठ:
डॉ. कविता वाचक्नवी- कम्प्यूटर में हिन्दी अनुप्रयोग
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
सिद्धार्थ जी,
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी से कई जानकारी मिली थी जो मेरे लिए बिलकुल नई थी
समय का आभाव न होता तो शायद वो कुछ और बातें भी कहते
स्लाइड के इंग्लिश में होने के विषय में जो भी हुआ उस विषय में तो ज्ञान जी की पोस्ट पर टिप्पडी कर चुके हैं अब बार बार क्या कहें
अरविन्द जी की बांतों का ही असर है शायद की आजकल विज्ञान कथा पढ़ रहे हैं
वीनस केसरी
bade hee aanand man se is gyanvardhak vivran ko padh raha hoon . aglee kadee ka intezar hai !
जवाब देंहटाएंबहुत परिश्रम किया है आपने सिद्धार्थ जी -पावर पाईंट का कितना बढियां हिन्दी प्रस्तुती करण किया है आपने ! वाह ! आप जैसे ब्लागमित्र पर मुझे गर्व है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर! सब कुछ फ़िर से याद आ रहा है!
जवाब देंहटाएंबढिया रिपोर्टिंग .. पढ रही हूं .. अगली कडी का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी और बेहतरीन प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!काफ़ी मेहनत की गई है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति और अच्छी जानकारी है.बढिया रिपोर्टिंग.
जवाब देंहटाएंहम जैसे कई नवोदितों को अरविन्द जी ने अपने प्रोत्साहन से यहाँ अग्रसर रहने की प्रेरणा दी है, और साइंस ब्लॉग पढ़ने की अपनी रुचि का कारण तो मैं अरविन्द जी की सुघर अभिव्यक्ति को ही मानता हूँ । सब कुछ बोधगम्य- सहज ही ।
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति के लिये आभार ।
Viggan blogging par kuch aur bhi janane ko mila. Dhanyavad.
जवाब देंहटाएंbahut hi achchee prastuti.post lambi hai magar rochak hai is liye akhir tak padhi gayi.
जवाब देंहटाएं[gyan sir ji ke blog par bhi wahi sawaal ka mudda utha tha.....us sawal ka jawab shayad yahi hai..ki power point banane ke liye hindi mein abhi tak suvidha nahin hai[?]
-baqi darshkon mein sabhi ko sawaal jawab karne ka haq hai hi..
is vivran ko padh kar achchha laga
जवाब देंहटाएंआपने तो साक्षात् (मय अनुवाद) वहाँ पहुँचा दिया।
जवाब देंहटाएंऔर खूब मेहनत कर डाली.
इतिहास बनाया जा रहा है उस अवसर को। बधाई।
बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंयह तो बहुत दमदार रिपोर्टिंग है। बहुत मेहनत और बहुत ईमानदारी से।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
सचमुच मज़ा आ गया. जितनी वैज्ञानिक अरविन्द जी की प्रस्तुति है, उतनी ही वैज्ञानिक आपकी रिपोर्टिंग. बधाई.
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
जितनी दमदार अरविन्द जी की प्रस्तुति थी उससे कहीं ज्यादा शानदार उसकी रिपोर्टिंग हुई है। बधाई । ये पोस्ट सहेज रखने के लायक है।
जवाब देंहटाएंPrastuti aur report, dono hi ati sundar.
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