(... भाग 2 से आगे )
डाक बंगला में थोड़ा आराम करने के बाद अपने अभीष्ट के लिए हम समय से तैयार हुए। बनारस की भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर अपनी कार से चलना वैसे ही मुश्किल था, उसपर मोहर्रम के ताजियों के जुलूस पूरे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को हाँफने पर मजबूर कर रहे थे। ऐसे में ट्रैफिक पुलिस में ही सेवारत हमारे प्रिय अनुज पंकज ने हमारी मुश्किल आसान कर दी। शहर की सड़कों का मकड़जाल भेदना उनके ड्राइवर अनवर के लिए बाएं हाथ का खेल था सो हम उनके साथ निकल पड़े भोलेबाबा का दर्शन करने।
ज्ञानवापी की सुरक्षा में तैनात सशस्त्र प्रहरी दिनरात मुस्तैदी से उस पुरातन ढाँचे की रक्षा कर रहे हैं जिसके अगल-बगल से गुजरते हुए लाखो शिवभक्त तीर्थयात्री विश्वेश्वर के दर्शन को आते-जाते हैं। मोदी जी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर क्या बनवा दिया अब यह परिसर उत्साह, उमंग व आत्मविश्वास से भरे अपार जनसमूह के हर-हर महादेव के समवेत जयकारे से लगातार गूँजता रहता है। अब वो पुरानी तंग गलियाँ और उनमें अपने व्यवसाय के लिए आपको रोकते-टोकते दुकानदार और पंडा प्रजाति के लोग इतिहास में जा चुके है। अब दृश्य कुछ ऐसा है कि दर्शन-पूजन व जलाभिषेक से पहले और उसके बाद भी खुले आसमान के नीचे सफेद संगमरमर के लंबे चौड़े फर्श पर टहलते हुए और रुककर पूरे वातावरण को निहारते, अपनी आंखों में बसाते और धूप-चंदन की सुगंध मिश्रित वहाँ की हवा को अपने फेफड़ों में भरते हुए भारत के कोने-कोने से आने वाले तीर्थयात्री जितनी श्रद्धा व भक्ति के भाव से शिवलिंग को देखते और पूजते हैं उतनी ही वितृष्णा से भरी और कदाचित् श्राप देती दृष्टि उस ढाँचे की ओर भी जरूर डालते हैं जो आजकल न्यायालय में अपने अस्तित्व का परीक्षण करा रहा है।
कॉरिडोर के उत्तरी सिरे पर विशालकाय नंदी की अपलक दृष्टि उस वृहद शिवलिंग की ओर लक्षित है जो एक वजूखाने के उच्छिष्ट पानी में डूबा हुआ है। यह हिमालय की कंदराओं में ध्यानमग्न गहरी तपस्या में डूबे महादेव शिव की याद दिलाता है जिनकी तंद्रा को तोड़ने के लिए कामदेव को अपना उत्सर्ग करना पड़ा था। उनकी तीसरी आंख खुलते ही उसके तेज से कामदेव स्वाहा हो गये थे।
सनातन मान्यता के अनुसार गंगाधर शिव के त्रिशूल पर बसी काशी में उत्तर वाहिनी गंगा जी की अविरल धारा अब इस प्रांगण के पूर्वी द्वार के सामने से गुजरती दिखती है। इस घाट के बगल में ही मणिकर्णिका घाट पर अगणित चिताओं की लपट से उठते धूएँ का गुबार भी एक अटल सत्य की ओर इंगित करता है। मंदिर के गर्भगृह से गंगातट तक का नव निर्माण यहाँ आनेवालों के मन-मस्तिष्क पर जो प्रभाव छोड़ता है वह वर्णनातीत है। इसे यहाँ आकर ही महसूस किया जा सकता है। सुरक्षा कारणों से हमारा मोबाइल गाड़ी में ही अनवर के हवाले था, लेकिन प्रिय पंकज ने अपने सरकारी मोबाइल से कुछ ऐसी तस्वीरें खींच ली थीं जो प्रोटोकॉल में अनुमन्य थीं।
परिसर से बाहर आने का तो हमारा मन ही नहीं कर रहा था लेकिन शनिवार के दिन संकटमोचन मंदिर में रुद्रावतार बजरंग बली का दर्शन करने का लोभ हमें वहां से बाहर ले आया। ट्रैफिक जाम को लगभग चीरते हुए हम गोदौलिया चौराहे पर पहुँचे, ठंडाई पीकर प्यास बुझाई और संकटमोचन मंदिर की वह लंबी राह पकड़ी जो मोहर्रम के जुलूस से प्रायः अछूती थी। अंततः हमने अंतिम आरती से पहले ही "पवनतनय संकटहरन मंगल मूरति रूप" का दर्शन किया, तुलसीदल मिश्रित प्रसाद ग्रहण किया, लेकिन परिसर में पर्याप्त समय लेकर आये हुए असंख्य भक्तों की तरह वहाँ बैठकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ नहीं कर सके। दर्शन मिल जाने के बाद हमारा ध्यान गर्मी, ऊमस व पसीने से भरी देह की ओर चला गया। हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गयी थी। हमने प्रसाद का डिब्बा एक काउंटर पर जाकर वहां रखी सुतली से बांधा, जमा किये गए जूते-चप्पल वापस पहने और भागते हुए बाहर आ गए। यहां भी अंदर फोटो लेने का सुभीता नहीं था। बाहर की भीड़ में पंकज ने एक फोटो क्लिक की। गाड़ी खोजकर हम बैठे और राहत की सांस ली।
हमने प्यास से सूखे गले को तर करने के लिए एक नुक्कड़ पर रुककर गाढ़ी राबड़ी मिश्रित लस्सी पी। बनारस की स्वादिष्ट ठंडाई और मीठी लस्सी हर नुक्कड़ पर तैयार मिलती है। इसके शौकीनों की भी कोई कमी नहीं। मेरा मन तो बनारसी पान खाने का भी था लेकिन काफी देर हो चुकी थी। हमें 'डाक बंगला' पहुँच कर जल्दी से सोना भी था ताकि अगले दिन विंध्यवासिनी देवी के दर्शन के लिए समय से निकल सकें।
यात्रा बनाम यात्राविरक्ति
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14 घंटे पहले
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