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शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

गृहस्थ, आश्रम और तीर्थ भाग-4 (समापन)

(...भाग 3 से आगे)

Gyan Dutt Pandey जी से मेरा प्रथम परिचय 2007-08 में अंतर्जाल की दुनिया में तब हुआ था जब मैंने हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया का ककहरा सीखना शुरू किया था और वे उस दुनिया के लब्ध प्रतिष्ठ शीर्षपुरुष बन चुके थे। उनकी मानसिक हलचल इसी नाम के हिंदी ब्लॉग (https://gyandutt.com/) के माध्यम से न केवल लोकप्रियता के नए आयाम छू रही थी, बल्कि इनके द्वारा असंख्य नव प्रवेशियों को बिंदास लिखने की प्रेरणा देने के साथ-साथ तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाता था। मैंने तो इन्हें ब्लॉगरी के लिए विधिवत् अपना गुरुदेव मान लिया था। सौभाग्य से हम दोनों एक ही शहर इलाहाबाद, अब प्रयागराज में नौकरी कर रहे थे, इसलिए वर्चुअल दुनिया से बाहर निकलकर हम असली दुनिया में भी मिल गए। मुझे उनसे बड़े भाई जैसा पारिवारिक स्नेह भी मिला और रीता भाभी जी के हाथ का लजीज व्यंजन सपरिवार जीमने का अवसर भी कई बार आया। ब्लॉगरी की पाठशाला से लेकर राष्ट्रीय सेमिनार तक आयोजित कराने जैसी अनेक ऐतिहासिक उपलब्धियाँ गुरुदेव के मार्गदर्शन में प्राप्त हुईं।

प्रयागराज से शुरू हुई यह गुरू-शिष्य परंपरा व बड़े-छोटे भाई जैसी आत्मीयता अभी भी बदस्तूर जारी है। पांडेय सर ने रेलवे की बड़ी नौकरी (IRTS) में पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक के उच्च पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण स्वेच्छा से एक ग्राम्य जीवन चुन लिया है। रेलवे-अफसरी की चादर को कबीरदास जी की तरह बड़े जतन से ओढ़ने के बाद ज्यों की त्यों वहीं धर आए। अब वे गाँव में बसकर ऐसे बन गए हैं जैसे कभी रेल के एलीट क्लास से कोई लेना-देना ही न रहा हो। जी.टी. रोड पर औराई के निकट के गाँव विक्रमपुर में अपना आश्रम जैसा घर बनाकर गुरुदेव ने वानप्रस्थ आश्रम की एक नयी जीवंत पारी प्रारम्भ की है।

बनारस के डाक बंगले में अलस्सुबह तैयार होकर और बत्तखों की केलि-क्रीड़ा का छोटा वीडियो बनाकर जब हम वहाँ से विंध्याचल के लिए निकले तो मैंने गुरुदेव को फोन मिलाया। जवाब नहीं मिला तो मैं समझ गया कि अभी हाथ खाली नहीं होंगे। साइकिल पर व्यस्त होंगे। थोड़ी देर में ही पलटकर कॉल आ गयी। मैंने लोकेशन शेयर करने को कहा और अपना लाइव लोकेशन भेज दिया। करीब चालीस मिनट बाद हम दोनो परानी उनके गेट पर थे जहाँ वे दोनो आदरणीय खड़े होकर प्रतीक्षा करते मिले। गुरुदेव ने मुझे बाहों में भर लिया। स्नेह और आशीष की बारिश में भींगने के साथ हमें गुलाबजामुन की मिठास और समोसे के चटपटे स्वाद का आनंद भी मिला।

यहाँ पर गाँव के शुद्ध पर्यावरण में हरे-भरे फलदार पेडों व फूलदार सजावटी पौधों के साथ तुलसी और एलोवेरा जैसे औषधीय पादप भी घर के सुदीर्घ लॉन में सुव्यवस्थित थे। सहयोग के लिए एक माली तो है लेकिन वहाँ मुस्कराते खिलखिलाते पौधे यह बता रहे थे कि ये दोनो वानप्रस्थी इन्हें अपने हाथों से भी सवांरते पुचकारते हैं।

पहले DrArvind Mishra जी और अब ज्ञानदत्त जी के सार्थक, स्वास्थ्यपूर्ण और सुखदायी सेवानैवृत्तिक जीवन से प्रेरणा लेकर मुझे इस गंभीर चिंतन ने जकड़ रखा है कि महानगरीय जीवनचर्या किसी व्यवहारिक मजबूरी में तो चल सकती है लेकिन अवसर होने पर इसका परित्याग कर देने में ही भलाई है। गुरुदेव इसे 'रिवर्स माइग्रेशन' का नाम देते हैं। अपने ब्लॉग पर नियमित लेखन के माध्यम से वे इस ग्राम्य जीवन की खूबियों और खामियों के बारे में सच्ची तस्वीर दिखाते रहते हैं। विद्युत आपूर्ति पर निर्भर भौतिक सुख के भारी संसाधन छोड़ दिये जाय तो और कोई कमी नहीं है। बता रहे थे कि निकट में ही रिलायंस ने स्मार्ट पॉइंट नामक स्टोर भी खोल दिया है।

इस प्रकार हमने संबंधों की ताज़गी में कुछ और ऊर्जा भरकर वहाँ से विदा ली और माँ विंध्यवासिनी के दरबार में हाजिर हुए। पंडा अमित गोस्वामी जी व्हाट्सएप पर मुझे प्रतिदिन देवी माँ की मंगला आरती की तस्वीर भेजते रहते हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन में माँ भगवती का साक्षात् दर्शन करके हम बाहर आये। यहाँ के मंदिर परिसर में भी एक विशाल कॉरिडोर का निर्माण कार्य चल रहा है। यहाँ पहुँचने वाली पतली गलियों को चौड़ी सड़क में बदलने का काम प्रगति पर है। अभी थोड़ी अस्त-व्यस्त स्थिति है लेकिन दर्शनार्थियों का रेला पूरे धैर्य के साथ अपनी श्रद्धा और भक्ति का अनुष्ठान माँ के दरबार में अहर्निष करता जा रहा है।

माँ विन्ध्यवासिनी धाम की खास पहचान वाली चुनरी और अन्य प्रसाद के साथ चूड़ी-कंगन-बिंदी इत्यादि की किफायती खरीद के बाद श्रीमती जी Rachana Tripathi को अब गर्म जलेबी के आस्वादन की अपनी लंबित इच्छा पूरी करने का ध्यान आया। सामने ही एक साफ-सुथरी दुकान पर कड़ाही चढ़ी हुई थी। जलेबी के साथ हमने गर्मागर्म कचौड़ियां व आलू की रसदार सब्जी का आनंद भी लिया। जब उसके उत्तम स्वाद की प्रशंसा की गई तो परोसने वाले बच्चे ने कहा- अभी तो टमाटर पड़ा ही नहीं है, नहीं तो आप उंगलियां ही चाटते रह जाते।

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भाग-1, भाग-2, भाग-3

www.satyarthmitra.com

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

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