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शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

एक दुर्लभ विज्ञापन... सरस्वती से

हिन्दी भाषा सीखने का विज्ञापन उत्तरी भारत के शिक्षा केन्द्र इलाहाबाद से निकलने वाली पत्रिका में देखकर आप क्या सोचेंगे? मुझे तो थोड़ी हैरत हो रही है। ...लेकिन रोमांच कहीं ज्यादा हो रहा है। क्योंकि आम बोल-चाल और चिठ्ठी-पत्री लिखने, अदालतों में प्रार्थना-पत्र आदि लिखने भर की हिन्दी तो हम यूँ ही जान लेते हैं। फिर ऐसा विज्ञापन क्यों...?

आजादी से पहले २०वीं सदी की शुरुआत में ऐसी स्थिति कतई नहीं थी। उसी समय हिन्दी भाषा में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन देश की साहित्यिक गतिविधियों का निरूपण करते हुए हिन्दी भाषा के विकास का साक्षी बन रहा था। इस प्रतिष्ठित पत्रिका के फरवरी-१९०१ के अंक के पृष्ठ आवरण पर छपा यह रोचक विज्ञापन देखिए। इस समय बाबू श्याम सुन्दर दास, बी.ए. इस पत्रिका के सम्पादक हुआ करते थे:



(स्पष्ट देखने के लिए चित्र पर चटका लगाएं)



विज्ञापन का मजमून इस प्रकार है:
सरकारी हुक्म है
कि पश्चिमोत्तर प्रदेश व अवध की सब अदालतों में हिन्दी जारी हो और सब अमले, वकील, मुख़तार, उम्मीदवार और अदालती लोग उर्दू के साथ-साथ हिन्दी पढ़ना लिखना भी सीखें।
आप हिन्दी जानते हैं?
जो न जानते हों तो सीखनी जरूर चाहिए। और जब सीखना ही है तो बाबू नन्दमल, एकस्ट्रा असिस्टन्ट कनसरवेटर, महकमें जंगलात, नैनीताल, की बनाई हुई
मुअल्लिम नागरी
से बढ़कर घर बैठे हिन्दी सिखाने वाली किताब दूसरी और पैदा नहीं हुई है। आप ही के लिए यह किताब छापी जा रही है। पहिली मार्च तक छप कर तैयार हो जाएगी। इसमें उर्दू और नागरी के हरूफ़ों में सरकारी अदालत और दफतरों की सब जरूरी बातें बहुत उमूदः तौर पर समझाई गई है । यह किताब घर बैठे बिना गुरूजी के आपको पण्डित बना देगी।
दाम सिर्फ आठ आने।
डाक महसूल अलग।
कुतुब फ़रोशों और दस जिल्द इकठ्ठा लेने वालों को कमीशन दिया जाएगा।
मिलने का पता-
मैनेजर इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद

15 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक भी है और रोमांचक भी. तब से भाषा कुछ बदली बदली भी है. अब लगता है हिन्दी ने बहुत लम्बा रास्ता तय कर लिया है.

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  2. बड़ी उर्दू बहुल भाषा इस्तेमाल हुई है...

    'आठ आने' अभी भी (छपती)मिलती है क्या? :-)

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  3. भाई वाह क्या दूर की कौडी लाये हो.....

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  4. पहले ऐसी ही भाषा चलती थी.....हमने स्टेट टाइम के बहुत सारे परिपत्र और आदेश पढ़े हैं!इसी तरह के हैं!

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  5. आपने रोचक और दुर्लभ जानकारी दी है। प्रस्तुतिकरण हेतु कोटिशः धन्यवाद...!

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  6. बहुत रोचक. हिन्दी सीखने के लिए भी विज्ञापन!
    बहुत बढ़िया पोस्ट. बिल्कुल हट के.

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  7. यह तो चित्र डाउनलोड कर इत्मीनान से देखा/पढ़ा।
    बड़ा रुचिकर लगा यह पढ़ना। और उस समय की पत्रिका का स्वाद मिला। कठिन काम रहा होगा यह बनाना/निकालना उस समय। अब तो हम खुद लिख कर ब्लॉग पर ठेल सकते हैं।
    धन्यवाद, इस पोस्ट के लिये। चित्र स्कैन कर लगाने और लिखने में बहुत मेहनत लगी होगी।

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  8. सचमुच रोचक व रोमांचक विज्ञापन है।

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  9. वाकई दुर्लभ चीज ले आये. बहुत आभार सबके साथ बांटने का.

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  10. रोचक जानकारी देने के लिए धन्यवाद
    वीनस केसरी

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  11. सुन्दर। शुक्रिया इसे पढ़वाने का।

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  12. maine ek baat jamin ke kagjat dekhe the usme bhi aisi hi urdu bahul hindi thi.jankari ka aabhar

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  13. बढ़िया प्रस्तुति। पुराने गजेटियर्स में भी इसी तरह की भाषा मिलती है। अमृतलाल नागर और भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों में पुराने जमाने की भाषा की झलक मिलती है।

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