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शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

इनकी संख्या अठारह क्यों? …पुराण चर्चा।

कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने करीब एक अरब श्लोकों वाले एक ही पुराण की रचना की थी। लेकिन इसका अध्ययन करने के इच्छुक देवताओं और मनुष्यों की सुविधा के लिए महर्षि वेद व्यास ने इस वृहत् पुराण को अठारह भागों में बाँट दिया, और श्लोकों की संख्या में भी काट-छाँट करके इसे चार लाख तक कर दिया। इस संख्या को अठारह ही क्यों रखा गया, इसके पीछे भी विद्वानों ने खोज की है। आप भी जानिए इस अठारह के रहस्य को:

१.अठारह सिद्धियाँ: अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व अथवा वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य,भावना, अमरता, सर्वनायकत्व।
२.अठारह तत्व: पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, एवं आकाश), पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, नासिका, एवं रसना), पाँच कर्मेन्द्रियाँ (वाक् पाणि, पाद, पायु, एवं उपस्थ), साँख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति और अन्तिम ‘मन’।
३.अठारह विद्याएं: छः वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, और गंधर्ववेद
४.काल के अठारह भेद: एक संवत्सर, पाँच ऋतुएं, और बारह महीने।
५.अठारह अध्याय: श्रीमद् भागवत गीता में।
६.अठारह हजार श्लोक: श्री मद् भागवत पुराण में।
७.अठारह स्वरूप: भगवती जगदम्बा के प्रसिद्ध स्वरूप- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, वगलामुखी, मातंगी, कूष्माण्डा, कात्यायनी, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, पार्वती, श्रीराधा, सिद्धिदात्री, स्कन्दमाता।
८. अठारह भुजाएं: श्री विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं जिनमें उतने ही प्रकार के अस्त्र शस्त्र धारण करती हैं।

महर्षि वेद व्यास जी ने अपने वर्गीकरण में अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप पुराणों को अलग से रच डाला। ये मुख्य पुराणों के ही संक्षिप्त रूप हैं। इन्हें आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में मोटी-मोटी पाठ्य-पुस्तकों के साथ मिलने वाली गाइड बुक्स या कुञ्जी के रूप में समझा जा सकता है। परीक्षा के समय इन्हें पढ़ना आसान समझा जाता है। कुछ विद्यार्थी तो इन्हीं शॉर्टकट औंजारों पर भरोसा करके साल भर मस्ती काटते हैं।

कुछ उप-पुराणों के नाम यहाँ देखें:

सनत्कुमार पुराण, नृसिंह पुराण, दुर्वासा पुराण, मनु पुराण, कपिल पुराण, उशनः पुराण, वरुण पुराण, कालिका पुराण, साम्ब पुराण, नंदी पुराण, सौर पुराण, पराशर पुराण, आदित्य पुराण, माहेश्वर पुराण, भागवत पुराण, वसिष्ठ पुराण।


प्रस्तुति: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

11 टिप्‍पणियां:

  1. सही है - अंक और लेखन में अजब तालमेल है। अंक और दर्शन शास्त्र में भी वैसा ही है। तंत्र तो अंकाधारित है ही!

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  2. अच्छी जानकारी...

    १८ में अंको का योग ९ होता है... और नौ को किसी भी संख्या से गुना करें तो आपस का योग ९ ही होता है. पहाडा पढ़ के देख लें... तो इस प्रकार ये पूर्ण अंक होता है...
    [८ अंक में ये उल्टा होता है... चंद्रमा की तरह बढ़ता घटता रहता है... जैसे १६ (१+६=७),२४ (२+४=६)...]

    रामनवमीं और जन्माष्टमी को भी इस सन्दर्भ से देखिये... और मेरा जन्म दिन भी ९ को पड़ता है :-)

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  4. मैं ने 18 पुराणों को पहली बार पढा था जब मैं आठवीं का विद्यार्थी था. लेकिन इनकी संख्या का कारण आज पहली बार समझ में आया. इस आलेख के लिए आभार!!


    -- शास्त्री

    -- ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने अपने विकास के लिये अन्य लोगों की मदद न पाई हो, अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  5. बहुत बढ़िया जानकारीपूर्ण आलेख धन्यवाद्.

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  6. आपका बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं ! शुभकामनाएं !

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  7. बहुत अच्छा लगा पढ कर

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