इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कला संकाय की सड़कों व पगडंडियों पर #साइकिल_से_सैर करने व मच्छरों के साये में योगकक्षा में प्रतिभाग करने का पहला दिन जैसे हड़बड़ी में गड़बड़ी वाले अनुभव दे गया उसका किस्सा बता चुका हूँ। इस अनुभव के आधार पर मैंने अगले दिन की तैयारी में ध्यान रखा कि घर से थोड़ा और पहले निकल लूँ ताकि ऑनलाइन योगकक्षा के प्रारंभ होने से पहले ही उपयुक्त स्थान पर पहुँचकर अपना आसन जमा लूँ। परिसर का वह प्रवेश द्वार भी चुनना था जिसपर किसी बाड़ की बाधा का सामना किए बिना साइकिल सहित अंदर जा सकूँ। परिसर के पूरब की ओर खुलने वाला यह गेट डब्ल्यू.एच. की ओर से करीब पड़ता है। मुझे तो यहाँ बिल्कुल विपरीत दिशा से पहुँचना था। मच्छरों के संभावित हमले से बचाव के लिए मैंने पूरे पैर को ढंकने वाला लोवर और कॉलर वाली टी-शर्ट पहन लिया, पैरों में मोजे डाल लिए और शेष खुली त्वचा पर ऑडोमॉस क्रीम का लेपन भी कर लिया।
इस प्रकार पूर्व नियोजित तैयारी के साथ मैं ठीक समय पर उस विशाल वट-वृक्ष के नीचे पहुँच गया। मैंने जब अपनी साइकिल को उसके चौकोर चबूतरे से टिकाकर खड़ा किया तो मन में कुछ ऐसे भाव पैदा हो गए कि फौरन साइकिल को अलग हटाकर उसकी लंगड़ी के सहारे खड़ा कर दिया। दोनों हाथ अनायास प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गए।
सूर्य देवता ने अभी क्षितिज से झाँकना प्रारम्भ ही किया था। इसलिए इस ऊँचे और विशाल घेरे वाले पेड़ की घनी छाया हरी दूब से ढँके मैदान पर दूर-दूर तक फैली हुई थी। इस सुरम्य वातावरण में कुछ विद्यार्थी अपने-अपने पिठ्ठू बैग के साथ एकल या समूह में बैठकर अध्ययन रत थे। कुछ लड़के लड़कियाँ व्यायाम भी कर रहे थे। कुछ बड़ी उम्र के स्त्री-पुरुष किनारे-किनारे टहलते हुए बातें कर रहे थे।
मैंने इस वट वृक्ष के विशाल तने के ठीक सामने पूर्वाभिमुख होकर अपना आसन जमा लिया और मोबाइल खोलकर गूगल-मीट एप्प पर 'आरोग्यम ध्यान योग केंद्र आगरा' की ऑनलाइन योगकक्षा में लॉगिन करके मोबाइल को सामने स्टैंड पर स्थिर रख दिया। इसके बाद योग-गुरू डॉ. आर.के.एस. राठौर जी के निर्देशानुसार क्रमशः मंत्रोच्चार, सूक्ष्म व्यायाम, सूर्यनमस्कार, योगासन, प्राणायाम व ध्यान की क्रिया में सन्नद्ध हो गया। प्रतिदिन किये जाने वाले आसनों के साथ इस दिन डॉक्टर साहब रीढ़रज्जु की काल्पनिक रेखा पर नीचे से ऊपर स्थित सात चक्रों को संतुलित कराने वाले आसनों का अभ्यास करा रहे थे।
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्त्रार नामक सातो चक्रों की क्रमिक स्थिति, इन चक्रों का आकार व रंग-रूप, इनमें पंखुड़ियों की संख्या, इनके अंतर्निहित तत्व- क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, प्रकाश आदि और इनसे संबंधित बीज मंत्रों के उच्चारण का परिचय देते हुए सातो चक्रों के संतुलन के लिए अलग-अलग सात आसन कराए गए।
मूलाधर चक्र के संतुलन के लिए सेतुबंध आसन, स्वाधिष्ठान चक्र के लिए भुजंगासन, मणिपुर चक्र के लिए धनुरासन, अनाहत चक्र के लिए उष्ट्रासन, विशुद्धि चक्र के लिए मत्स्यासन, आज्ञा चक्र के लिए योगमुद्रा व सहस्त्रार चक्र के लिए यथा-सामर्थ्य शीर्षासन या अर्द्ध शीर्षासन का अभ्यास कराते हुए उन्होंने इन चक्रों के संतुलन से प्राप्त होने वाले लाभ भी बताए। ये चक्र क्रमशः अच्छा स्वास्थ्य (health), प्रसन्नता (happiness), शक्ति (power), करुणा (compassion), वाक्-कला (communication), अन्तःप्रज्ञा (intuition), व परमानंद (bliss) प्रदान करने वाले हैं।
सहस्त्रार चक्र को सभी तत्वों से परे बताया गया है जिसमें एक हजार पंखुड़ियाँ होती हैं। यह सिर के सबसे ऊपरी भाग में ब्रह्मरंध्र के साथ अवस्थित है। इसके संतुलित व जागृत होने पर व्यक्ति को परमानंद की प्राप्ति होती है। इसके लिए शीर्षासन का अभ्यास सर्वोत्तम बताया गया है। किंतु यदि शरीर इसकी अनुमति नहीं दे तो अर्द्ध शीर्षासन या सर्वांगासन भी किया जा सकता है।
उपर्युक्त आसनों द्वारा इन सात चक्रों को संतुलित करने के बाद इन्हें जागृत करने का अभ्यास भी बताया गया। इसके लिए ध्यानात्मक आसन में बैठकर दोनों हाथों से क्रमशः सात प्रकार की अलग-अलग मुद्राएं बनानी होती हैं और उनके बीजाक्षर का जप करना होता है। क्रमशः पृथ्वी मुद्रा, वरुण मुद्रा, अग्नि मुद्रा, वायु मुद्रा, आकाश मुद्रा, शंख मुद्रा व षडमुखी मुद्रा द्वारा इन सात चक्रों का जागरण होता है। इसप्रकार शरीर रूपी यंत्र के साथ मंत्र और तंत्र के सम्मिलित प्रयोग द्वारा व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना को साकार करने का साप्ताहिक प्रयास इस विशेष दिन की कक्षा में किया जाता है। इसके पहले वाले दिन रीढ़ की समस्याओं से मुक्ति पाकर इसे मजबूत करने वाले आसन बताए गए थे।
इस योगकक्षा में जितने साधक सम्मिलित होते हैं उनमें कुछ लोग ही शीर्षासन का अभ्यास करते हैं। उम्र व शारीरिक सीमा के कारण शेष लोगों को अर्द्ध शीर्षासन या सर्वांगासन की ही अनुमति दी जाती है। मैंने जब इस वटवृक्ष के समक्ष शीर्षासन की तैयारी की तो इस ऐतिहासिक देशकाल व वातावरण के अविस्मरणीय क्षण को सहेजने का मन हुआ। थोड़ी दूर पर व्यायाम कर रहे एक विद्यार्थी को मैंने इशारे से बुलाया और उन्हें मोबाइल कैमरा थमाते हुए अनुरोध किया कि मेरे शीर्षासन की तस्वीर खींच लें। उन्होंने सहर्ष मुझे उपकृत किया। मेरी अपेक्षा से भी आगे जाकर क्रमवार अनेक मुद्राओं व अनेक कोणों से मेरे शीर्षासन की अच्छी फोटुएं खींच डाली। इसके लिए मैने हृदय से आभार व्यक्त किया। इसलिए भी कि वे चित्र कदाचित् यहाँ पहुँचकर अनेक मित्रों की प्रसन्नता बढ़ा देंगे।
मैंने आप लोगों के लिए उस स्थल के जो चित्र सहेज लिए थे उनमें से कुछ यहाँ छोड़ जाता हूँ। आनंद लीजिए। शेष किस्सा यूँ ही समय-समय पर जारी रहेगा।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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