दो साल पहले जब केन्द्रीय विश्वविद्यालय- वर्धा छोड़कर उत्तर प्रदेश सरकार की नौकरी पर वापस गया था तो इसका परिसर अभी निर्माणाधीन था। सीमेन्ट की सड़कें तब बन ही रही थीं। पथरीली पहाड़ियों को तराशकर और काट-छीलकर भवन खड़े करने के लिए समतल किया जा रहा था और अनेक संकायों की इमारत खड़ी की जा रही थी। आज जब दो साल बाद यहाँ दो दिन के लिए आना हुआ तो परिसर की साज-सज्जा और तैयार खड़ी इमारतों को देखकर मुग्ध हो गया।
नागार्जुन सराय का भवन तो अभी बनना शुरू ही हुआ था। आज हमें इसी गेस्ट हाउस में ठहराया गया है। सबकुछ इतना बढ़िया है कि मुझे अपने ब्लॉगर मेहमानों के आराम की अब कोई चिन्ता ही नहीं रह गयी। यहाँ का स्टाफ भी आये दिन होने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों व गोष्ठियों में आने वाले मेहमानों की आव-भगत करने में इतना दक्ष हो चुका है कि मुझे कुछ बताने की जरूरत ही नहीं रह गयी है। उसपर से कुलपति जी की प्रशासनिक सजगता और छोटी-छोटी बातों पर सतर्क दृष्टि और सदाशयता ने मेरा काम बिल्कुल आसान कर दिया है। इस सहजता से संगोष्ठी की सभी तैयारियाँ हो गयी हैं कि मुझे भी अन्य मेहमानों की तरह घूमने-फिरने और फोटू खिंचाने का पूरा मौका मिल गया है। तो लीजिए आज दिन भर की कुछ झाँकी आप भी देखिए मोबाइल कैमरे की नज़र से:
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
दक्षता का पक्ष बहुत पसंद आया। बेहतरता के लिए दक्षता के साथ पक्षपात अवश्य किया जाना चाहिए। पर यह पक्षपात राजनीतिक दलों से इतर सकारात्मक रहता है। अभी कार्य चालू हैं। बेहतरता की ओर दमदार कदम सदा बढ़ते रहते हैं। बढ़ते रहने भी चाहिए।
जवाब देंहटाएंअरे वाह नुक्क्ड़ जी आप यहां चलिये कहीं तो ट्क्कर हुई :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
आज हम आकर नागार्जुन बाबा की सराय में ठहर गये।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ... सभी फोटो बेहद उपर्युक्त दिखीं... आप की इस पोस्ट से लोग इस विश्वविद्यालय में आ रहे अद्भुत बदलावों के बारे में घर बैठे देख पाएंगे.. सभी फोटो भी सुंदर एवं उपर्युक्त हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआशा है कि यह संस्थान बदलते समय के साथ अपना मूल स्वरूप नहीं बदलेगा.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चित्र । प्राञ्जल प्रस्तुति । हम सबको को आपस में मिलवा कर आपने इस ब्लॉग सेमिनार को ब्लॉग-कुंभ बना दिया है । अविस्मरणीय,अनिवर्चनीय ।
जवाब देंहटाएं