आपलोग भले ही यहाँ इस चर्चा में फेसबुक और ट्विटर के आने से ब्लॉगिंग के पिछड़ जाने की चिन्ता कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि यह माध्यम कभी खत्म नहीं हो सकता। ऐसी आशंकाएँ पहले भी व्यक्त की गयी हैं। जब भी अभिव्यक्ति का कोई नया माध्यम आया है तो पुराने माध्यम के बारे में ऐसी भविष्यवाणी की जाती है। लेकिन इतिहास गवाह है कि कोई माध्यम हमेशा के लिए समाप्त नहीं होता। अठारहवीं शताब्दि में जब अखबार आया तो लोगों ने कहना शुरु किया कि अब फिक्शन के दिन लद गये। हमारे जीवन के आसपास की घटनाएँ जब अखबारों के माध्यम से हमारे पढ़ने के लिए रोज उपलब्ध होंगी तो कोई गल्प की ओर क्यों जाएगा जो प्रकारान्तर से मनुष्य के जीवन के इर्द-गिर्द ही बुना जाता है। लेकिन यह आशंका निर्मूल बनी रही। अखबार के साथ-साथ फिक्शन भी खूब लिखा गया। इसी प्रकार इलेक्टॉनिक माध्यम (टेलीविजन) के आने के बाद अखबारों के समाप्त हो जाने की बात की गयी। पत्र-पत्रिकाओं के इतिहास बन जाने की बात की गयी लेकिन स्थिति यह है कि आज देश में जितनी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएँ छप रही हैं उतनी हमारे इतिहास में पहले कभी नहीं छपी होंगी। यही हाल हिंदी ब्लॉगिंग का है। फेसबुक और ट्विटर के आ जाने से ब्लॉग का कोई नुकसान नहीं होने वाला…।
जब सेमिनार के समापन सत्र में कुलपति जी ने ये बाते कहीं तो हमारा मन सुख, संतुष्टि और प्रसन्नता से बल्लियों उछलने लगा। कारण यह नहीं कि पहले मुझे इस बात पर कोई शक था बल्कि इस लिए कि हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया पर चर्चा कराने के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन की जो चुनौती मुझे कुलपति जी ने दी थी उसका उपसंहार वे स्वयं कर रहे थे और बिल्कुल उसी रूप में जिस रूप की कल्पना मैंने की थी। एक के बाद एक वक्ताओं द्वारा दो दिनों तक जिस बेबाकी से इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी और विश्वविद्यालय के सजग विद्यार्थियों ने जिस प्रकार पूरी बहस को जीवन्त बनाये रखा वह देखकर मुझे यह मलाल नहीं रह गया कि इस सेमिनार के लिए मैंने कुछ बड़े लोगों को बुलाने की कोशिश की थी और वे अपने-अपने ज्ञात-अज्ञात कारणों से नहीं आये। जिन लोगों ने अपनी कठिनाइयों, व्यस्तताओं और किंचित पूर्वाग्रहों को धता बताकर वर्धा का रुख कर लिया और सेमिनार के मंच तक आ गये उनका योगदान ही हमारे लिए पर्याप्त खुशियाँ दे गया।
जिन ब्लॉगर मित्रों ने मेरा अनुरोध स्वीकारा और अपना अमूल्य समय इस गोष्ठी के लिए दिया उनका हम तहे दिल से शुक्रिया करते हैं। यद्यपि यहाँ प्रतिभाग के लिए सबको अवसर दिया गया था। उन्हें भी जिन्हें मैं पहले से बिल्कुल नहीं जानता था, और उन्हें भी जो मुझे पहले से बिल्कुल नहीं जानते थे। इन दोनो श्रेणियों के लोग इस अवसर पर आये और मेल-जोल का मेरा दायरा बढ़ा कर गये। वे मुझे खुश होने का पूरा मसाला दे गये। मुझे जो कुछ निराशा हुई वह ऐसे लोगों से जिन्हें मैं भली-भाँति जानता था और जो मुझे भली-भाँति जानते थे। मुझे जिनपर पूरा भरोसा था कि वे मेरे संयोजक के दायित्व को बहुत आसान बना देंगे उन्होंने ही अंतिम समय पर मेरी कठिनाइयाँ बढ़ा दीं। कुछलोगों ने तो एकदम अंतिम समय में अचानक पल्ला पटक दिया। मेरे धैर्य की परीक्षा ही ले डाली। लेकिन भगवान जब एक रास्ता बन्द कर देता है तो दूसरे तमाम रास्ते खोल भी देता है। अन्ततः सबकुछ अच्छा ही रहा। कुलपति जी का वरद्-हस्त मेरी सभी परेशानियों को समूल नष्ट करने वाला था। विश्वविद्यालय परिवार से दूर रहकर भी मुझे सबका अपार स्नेह और सहयोग मिला। आभारी हूँ उन सबका।
इस सेमिनार में जो चर्चा हुई उन्हें रिकार्ड में लाना जरूरी है। सभी ब्लॉगर मित्र अपनी स्मरण शक्ति का परिचय दें और लिख डाले जो कुछ वहाँ सार्थक कहा गया। रोचक यात्रा वृत्तान्त तो आयेंगे ही।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
हिंदी ब्लॉगिग के स्वर्णिम भविष्य के प्रति न तो कभी मेरे मन में संदेह रहा है और न कभी रहेगा। हम समस्त हिंदी एवं ब्लॉगप्रेमियों को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए। समस्याएं और उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं, पर वे भय की भीत का नहीं, इस नए माध्यम से प्रीत का संबल मजबूत करते हैं।
जवाब देंहटाएंसभी कहें सभी लिखें तो एक महाकाव्य बने -वर्धा के ब्लॉगर सम्मलेन का !
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी की ब्लॉग सक्रियता और समर्पण देख कर अच्छा लगता है ! अच्छे आयोजन के लिये उन्हें और विश्वविद्यालय परिवार को बधाई !
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (24-09-2013) मंगलवारीय चर्चा--1378--एक सही एक करोड़ गलत पर भारी होता है|
में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सेमिनार के सफल आयोजन के लिए बधाई. विवरण का इन्तेज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से ब्लॉग का भविष्य उज्ज्वल है ,इसमें कोई सन्देह नहीं है । मुझे इस सेमिनार से बहुत कुछ सीखने को मिला ।
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएं:)
(:(:(:
जवाब देंहटाएंpranam.
भविष्य सुखद तय है।
जवाब देंहटाएंअपना अपना सभी लिखे तो महाकाव्य बन जायेगा, हम अगले सप्ताह से लिखेंगे।
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिए बधाई .. ब्लॉगिंग जिंदाबाद :)
जवाब देंहटाएंकुछ पोस्ट्स पढ़ी हैं इस आयोजन के बारे में ... आपकी पोस्ट से और भी जानकारियां मिली ... इस सफल आयोजन और सराहनीय प्रयास के लिए बधाई....
जवाब देंहटाएंहमने तो २१ की रात से ही लिखना शुरु कर दिया है भाई :)
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिए बहुत-बहुत बधाई … कुलपति जी ने ठीक कहा फेसबुक और ट्विटर कभी भी ब्लॉग का स्थान नहीं ले सकते, उसका अपना अलग महत्व है। जाने - अनजाने लोगों से परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंलिख रहे हैं हम भी..
जवाब देंहटाएंआप एवं कुलपति महोदय दोनों इस आयोजन के लिए धन्यवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंब्लागिंग के लिए जरूर सुखद रहा सम्मेलन।
जवाब देंहटाएंसम्मेलन नितांत आवश्यक हैं । हिन्दी ब्लोगिंग के क्षेत्र में आज कल बहुत से युवाओं का आगमन हो रहा है । यह एक सुखद संकेत है । निश्चय ही अच्छा ही होगा ।
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिए बधाइयाँ!
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