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पानी के सैलाबों में से, कुछ जगह दिखाई देती है।
कुछ लोग दिखाई पड़ते है, आवाज सुनाई देती है॥
सब डूब गया, सब नष्ट हुआ,कुछ बचा नहीं खाने को है।
बीवी को बच्चा होना है, और भैंस भी बियाने को है ॥
अम्मा जपती है राम-नाम, दो दिन से भूखी बैठी है।
वो गाँव की बुढिया काकी थी,जो अन्न बिना ही ऐंठी है॥
मोहना की मेहरारु रोती, चिल्लाती है, गुस्से में है।
फूटी किस्मत जो ब्याह हुआ, यह नर्क पड़ा हिस्से में है॥
रघुबर काका बतलाते हैं, अबतक यह बाढ़ नही देखी।
सत्तर वर्षों की उमर गयी, ऐसी मझधार नहीं देखी॥
कल टी.वी. वाले आये थे, सोचा पाएंगे खाने को।
बस पूछ्ताछ कर चले गए,मन तरस गया कुछ पाने को॥
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पानी में प्यासे बैठे हैं, पर शौच नही करने पाते।
औरत की आफ़त विकट हुई, जो मर्द पेड़ पर निपटाते॥
पानी में बहती लाश यहाँ, चहुँओर दिखाई देती है।
कातर सी देखो गौ-माता, डंकार सुनाई देती है॥
मन में सवाल ये उठता है, काहे को जन्म दिये दाता ?
सच में तू कितना निष्ठुर है, क्यों खेल तुझे ऐसा भाता ?
किस गलती की है मिली सजा,जिसको बेबस होकर काटें।
सब साँस रोककर बैठे हैं, रातों पर दिन - दिन पर रातें॥
हो रहा हवाई सर्वेक्षण, कुछ पैकेट गिरने वाले हैं।
मन्त्री-अफसर ने छोड़ा जो, वो इनके बने निवाले हैं॥
है अंत कहाँ यह पता नहीं, पर यह जिजीविषा कैसी है।
‘कोसी’ उतार देगी गुस्सा, आखिर वो माँ के जैसी है॥
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शब्द-दृश्यांकन: बालमन
यथार्थ चित्रण कर दिया है आपने बाढ़ का... ये हर साल का नाटक हो गया है अब तो... नाटक ही तो है निति निर्माताओं की नज़र में !
ReplyDeleteओह, क्या त्रासदी है। यथार्थ चित्रण किया है आपने।
ReplyDeleteत्रासदी ही कहा जा सकता है। काव्य चित्रण बहुत ही यथार्थ बन पड़ा है।
ReplyDeleteबाढ़ त्रासदी की पीडा भरी अभिव्यक्ति !इन क्षणों में आप के साथ हूँ !
ReplyDeleteसच कहूँ क्या हमारा देश हर साल की इन आपदायो से कुछ सीखता नही है.......जो बिहार देश को इतने बुद्धिजीवी इतने आईएस इतने आईटी सॉफ्टवेयर दे रहा है वहां के राजनेता इतने पंगु क्यों है ?२७ लाख लोग मुश्किल में है...पशुओ का जिक्र बाद में आता है...इतनी गरीबी इतनी परेशानी ?क्यों भारत के पास प्राकतिक आपदायो से निपटने के साधन नही है ? .....
ReplyDeleteबाढ़ की त्रासदी का यथार्थ चित्रण. दुःख है.
ReplyDeleteविकट त्रासदि का यथार्थ काव्यीकरण.
ReplyDeleteआज सवेरे से रेलवे इस त्रासदी में अपनी तत्परता दिखा रही है। खाने का सामान, पानी वहन के मालगाड़ी के डिब्बे; बड़ी लाइन पर मीटरगेज के सवारी डिब्बों का लदान कर सहरसा त्वरित गति से भेजना आदि कार्य प्रारम्भ कर दिये हैं।
ReplyDeleteपूरे स्टाफ को हमने सेंसिटाइज करने में समय लगाया आज।
आपकी पोस्ट बहुत सामयिक है।
यथार्थ चित्रण के साथ कविता में यथार्थ दर्शन कराया है आपने।
ReplyDeleteक्या त्रासदी यथार्थ चित्रण है...
ReplyDeleteIshwar sabhi ki is trasadi se Raksha kare. meri samvedanaye sabhi ke sath hai.
ReplyDeleteबाढ़ में मन डूब-सा गया। कविता का यथार्थ भाव रुआंसा कर गई।
ReplyDeletea scientific plan is needed for this area...perfect kavita...I salute this poetry !!
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