हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

मोदी-चाय है कि बवाल की दावत…

namochayमीडिया के लिए मोदी की चाय पार्टी से सोशल मीडिया में जो हलचल मची है वह प्याले में तूफान की उक्ति चरितार्थ करती है। प्रिन्ट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रायः सभी बड़ी हस्तियाँ जो देश की राजधानी में कार्यरत हैं उन्हें नरेन्द्र मोदी ने आदर सहित बुलाया, दीपावली की शुभकामनाएँ दीं और स्वच्छ भारत अभियान में उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। देश के सबसे लोकप्रिय राजनेता के पास पहुँच जाने के बाद कुछ लोगों में यह सहज इच्छा पैदा हो गयी कि उनके साथ तस्वीरें खिचवा ली जाय।

मोबाइल फोन में कैमरे की सुविधा ने तो यह हाल कर दिया है कि हमें राह चलते कोई सुन्दर सा कुत्ता भी दिख जाय तो उसके साथ सेल्फ़ी क्लिक करने लगते हैं और तुरन्त देश भर के मित्रों को फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से दिखाने लगते हैं। तो फिर पूरी दुनिया में अपने किस्म की अकेली शख्सियत को देखकर किस चुगद का मन सेल्फ़ी खिंचाने के लिए नहीं ललचा जाएगा। अलबत्ता कुछ स्वनामधन्य ऐसे लोग भी हैं जिन्हें मोदी नाम से ही सख्त नफ़रत है। इन्हें भारतीय लोकतंत्र के किसी भी मूल्य से बड़ा लगता है अपने पूर्वाग्रहों की हर हाल में रक्षा करना।

इस चाय-पार्टी से प्रेस की स्वतंत्रता पर आँच आने की चिन्ता में घुलते तमाम मित्रों के स्टेटस देखकर मैं दंग रह गया। भड़ास4मीडिया पोर्टल पर प्रचुर सामग्री जमा हो चुकी है। कुछ देर के लिए सामान्य शिष्टाचार तो हम अपने दुश्मन के साथ भी निभा लेते हैं। यहाँ तो देश के सर्वोच्च जनप्रतिनिधि ने आदर व सम्मान से बुला रखा था। अब इसे जो लोग उत्कोच समझने कॊ मनोवृत्ति रखते हैं वे निश्चित रूप से यह भी समझते होंगे कि पत्रकार समुदाय में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो थोड़ा सा प्रलोभन सामने आते ही उसओर झपट पड़ेंगे और अपने स्वार्थ के आगे जनहित का ख्याल छोड़ देंगे। namochay.2jpg

भगवान न करे यह बात सच हो; लेकिन यदि इस बात में लेश मात्र भी सच्चाई है कि मीडिया वाले भी मात्र अर्थोपार्जन के उद्देश्य से ही काम कर रहे हैं और ‘मिशन’ वाला हिस्सा पीछे छूट चुका है तो इसके लिए सिर्फ़ उस चाय-पार्टी में सम्मिलित होने को दोष देकर छुटकारा नहीं मिलने वाला। फिर तो पत्रकार बन्धुओं द्वारा गुजारी गयी हर शाम पर निगाह रखनी होगी जिसमें दस-पाँच रूपये की टुच्ची चाय नहीं बल्कि एक से एक उम्दा ब्रैंड की देशी-विदेशी मदिरा और फाइव-स्टार डिनर पार्टी भी आसानी से उपलब्ध है। प्रोफेशनलिज्म की मांग तो यह है कि अपनी स्टोरी को विश्वसनीय बनाने के लिए और अन्दर की सच्ची खबर बाहर लाने के लिए चाहे जिस भी रूप में अन्दर जाना पड़े, चले जाना चाहिए। घोटालेबाज के साथ मक्कारी का खेल खेलकर भी सच्चाई बाहर निकल आये तो ऐसी मक्कारी करने में कोई हर्ज़ नहीं। स्टिंग ऑपरेशन इसे ही तो कहते हैं।

namochay.1jpgलेकिन जो लोग नरेन्द्र मोदी का नाम लेते ही उल्टियाँ महसूस करने लगते हैं, सारी तर्कशक्ति मिथ्या प्रलाप में लगा देते हैं और हास्यास्पद होने की सीमातक प्रतिकार की भाषा बोलने लगते हैं उनका रोग बहुत भयानक और असाध्य है। कोई एक दशक पहले लगा आघात इनके मन मस्तिष्क पर जो निशान छोड़ गया उससे मानो इनमें बदलते समय के साथ आगे बढ़ने की क्षमता ही जाती रही। स्थिति यह हो गयी है कि अब ये “पाप से घृणा करो पापी से नहीं” वाले सन्देश को उल्टा समझते हैं। यानि- वे पाप से भले ही घृणा न करें लेकिन पापी से घूणा करने का दिखावा जरूर करेंगे। अगर वे वास्तव में पाप से घृणा कर रहे होते तो ऐसे पाप की लंबी फेहरिश्त से जुड़े सभी पापियों से समान दूरी बनाकर चलते। लेकिन तमाम दलों में विविध रूप लेकर बैठे इसी प्रकार का पाप कर चुके लोगों की गोद में बैठकर अपना उल्लू सीधा करते रहने में इन्हें कोई शर्म नहीं आती।

लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चर्चित चेहरों के रुख में आये बदलाव को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि लाखो की लागत लगाकर करोड़ो की कमाई करने के लिए कैसे रंग बदलना पड़ता है, कैसे शर्म-हया ताख पर रख देनी पड़ती है और मालिकान के फरमान को हर हाल में पूरा करना पड़ता है। यह सब मोदी की चाय-पार्टी से पहले की बात है; तो फिर इस चाय पर इतना तूफान क्यों?

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने सटीक विश्लेषण किया है और पूर्वाग्रह से पीड़ित कलमकार दिख भी जाते है पर जब मीडिया मोदिया बन जाय तो लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कितना गलत है ?
    देश में आज भी गरीबी है, बेबशी है मोदिय वहां क्यूँ नहीं है...
    आग लगेगी तो धुआं तो उठेगा ही....

    जवाब देंहटाएं
  3. सटीक विवेचन, कुछ भी एक दिन में नहीं बदलता और न ही जबरन बदला जा सकता है,

    जवाब देंहटाएं
  4. कौन नहीं जानता कि अखबार भी अपनी कमाई में जुटे रहते हैं -खबर और पत्रकारिता कई तेल बेचने!

    जवाब देंहटाएं
  5. इन्हें भारतीय लोकतंत्र के किसी भी मूल्य से बड़ा लगता है अपने पूर्वाग्रहों की हर हाल में रक्षा करना।..............................प्रतिदिन इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में प्रकट मीडिया को प्रेस मानेंगे तो शर्मसार होंगे ही। सन् 2000 के बाद से कुकुरमुत्‍तों की तरह उगे इलेक्‍ट्राॅनिक मीडिया चैनलों ने प्रिंट (समाचारपत्रों) के रूप में रही-सही नैतिक पत्रकारिता को भी कुचलने का काम किया है। आप अपने पूरे लेख में अगर वामपंथियों का जिक्र नौसिखिए पत्रकारों के रूप में कर देते तो ठीक रहता। ये सब उकताहट इन्‍हीं को है।

    जवाब देंहटाएं
  6. पहले जितना सम्मानजनक स्थान था मीडिया का, अब उतना ही हास्यास्पद और अविश्वसनीय बना लिया है उसने खुद को.

    जवाब देंहटाएं
  7. mujay lagta hay ki hamaray modi ji ko bolna bhut achcha ata hay is liye log unhay follow kartay hay app ka kiya khyal hay.
    Home

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी हमारे लिए लेखकीय ऊर्जा का स्रोत है। कृपया सार्थक संवाद कायम रखें... सादर!(सिद्धार्थ)