तरही नशिस्त के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस बार उस्ताद ने जो मिसरा दिया उसने मुझे बहुत परेशान किया। लेकिन आखिर कुछ तुकबन्दियाँ बन ही गयीं। आप भी समाद फरमाइए :
जुगनू अपना फर्ज़ निभाते रहते हैं |
सरकारों ने दिये बहुत उपहार उन्हें जंग जीतता सूरज सदा अँधेरे से बीज डालने की फितरत कुछ लोगों की छोटे से छोटे को छोटा मत समझो मर्दों ने तामीर मकानों की कर ली मन में हो तूफान मगर मत घबराना अच्छी फसलें बहुत सजोनी पड़ती हैं सदाचार सच्चाई की है राह कठिन -सत्यार्थमित्र |
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंअच्छा है। खासकर ये :
जवाब देंहटाएं"अच्छी फसलें बहुत सजोनी पड़ती हैं
खर पतवार बिना बोये ही उगते हैं।"
उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ......
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर उद्बोधन !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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