जबसे सचिन तेन्दुलकर को भारतरत्न का सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा हुई है तबसे ध्यानचंद का नाम ऐसे लिया जा रहा है जैसे किसी स्कूली वाद-विवाद प्रतियोगिता में लगभग एक जैसा प्रदर्शन करने वाले दो बच्चों में से एक के जीत जाने पर दूसरे के लिए सहानुभूति व्यक्त करने वालों की होड़ लग जाती है। यहाँ तक कि उसे सहविजेता घोषित कर देने की मांग कर दी जाती है; इसलिए कि दोनो में से किसी बच्चे को अपनी मेहनत व्यर्थ जाने का मलाल न रहे। कई बार निर्णायक मंडल ऐसे फैसले कर भी लेता है। लेकिन हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का केस भी क्या ऐसा ही है?
भारतरत्न पुरस्कार की शुरुआत आजाद भारत में पहली संवैधानिक सरकार गठित हो जाने के बाद 1954 में हुई थी। सम्प्रभु देश की लोकतांत्रिक सरकार ने जब इन पुरस्कारों की परिकल्पना की थी तो ये पुरस्कार कला, साहित्य, विज्ञान और लोकसेवा के क्षेत्र में असाधारण/ विशिष्ट योगदान के लिए ही दिये जाने का प्रस्ताव किया गया था। भारतवर्ष की आजादी के बाद जिन लोगों ने इन क्षेत्रों में देश का नाम रौशन किया उन्हें ही स्वाभाविक रूप से इन पुरस्कारों के लिए योग्य माना गया। शुरुआत में ऐसे महापुरुष ही इसकी सूची में आये जिन्होंने आजादी की लड़ाई में खास योगदान दिया था और/ या आजाद भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। सी.राजगोपालाचारी, सी,वी,रमन, राधाकृष्णन, भगवान दास, विश्वैश्वरैया, नेहरू, जी,बी.पन्त, डी.के. कर्वे, बी.सी.रॉय, पी.डी.टंडन, राजेन्द्र प्रसाद, जाकिर हुसेन,पी.वी.काने, लाल बहादुर शास्त्री इत्यादि जो भी नाम आये वे स्वंतंत्रता के बाद भी सक्रिय थे।
आजादी से पहले जिन महापुरुषों ने भारत का नाम उज्ज्वल किया उनमें अनेक अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे जिनका परिश्रम, त्याग और बलिदान अप्रतिम रहा; लेकिन जिनका जीवन आजाद भारत के लिए नींव की ईंट बनकर रह गया। विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, बालगंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह या स्वयं महात्मा गांधी के लिए यदि भारत रत्न की मांग नहीं की गयी तो गुलाम भारत की ब्रिटिश इंडियन फौज में काम करते हुए वर्ष 1928, 1932, और 1936 के ओलंपिक खेलों में अनेक अंग्रेज खिलाड़ियों के साथ भाग लेने वाले ध्यानचंद को भारतरत्न देने की चीत्कार अब क्यों मच रही है? मेजर ध्यानचंद का जन्म 1905 में हुआ था। उनका खेल कैरियर 1921 में अंग्रेजों की इंडियन आर्मी की टीम से शुरू हुआ और 1948 में पूरी तरह समाप्त हो चुका था।
ध्यानचंद की विलक्षण प्रतिभा को लेकर किसी प्रकार का संशय नहीं है; लेकिन जिस कालखंड में उन्होंने अपना प्रदर्शन किया उस कालखंड के लिए भारतरत्न की परिकल्पना नहीं की गयी थी। यदि इतिहास के महापुरुषों को पुरस्कृत करने का दौर शुरू हो जाता तो यह श्रृंखला कितने पीछे ले जायी जाय यह विवाद का विषय बन जाता। इतना ही नहीं, खेल के लिए भारतरत्न देने की बात तो तब शुरू हुई जब आजादी के साठ से अधिक साल बीत चुके थे, ध्यानचंद का स्वर्गवास (1979) हो चुका था और खेलजगत में सचिन तेन्दुलकर नाम के एक ऐसे विलक्षण सितारे की चमक बिखर चुकी थी जिसकी तुलना किसी पूर्व के खिलाड़ी से की ही नहीं जा सकती थी। बल्कि वर्ष 2011 में जब खेलों को भी एक श्रेणी के रूप में स्वीकार किया गया तो इसके अभीष्ठ सचिन तेन्दुलकर ही थे।
ध्यानचंद का युग तो काफी पहले बीत चुका था और तबकी पीढ़ी के लोग भी इस धरा-धाम से जा चुके थे। पुरस्कार मिलने से जिसे सबसे ज्यादा खुशी होती है वह स्वयं पुरस्कृत व्यक्ति होता है, उसके बाद उसके परिवार वाले, फिर इष्टमित्र जिन्हें वह जानता हो उसके बाद उन लोगों को जो उसे पसन्द करते हों और उसे जानते हों। आज ध्यानचंद को पुरस्कार दे भी दिया जाय तो इस सम्मान की खुशी का सर्वाधिक अनुभव कौन करेगा? किसकी आंखें भर आएंगी? राष्ट्रपति के हाथों ट्रॉफी लेने कौन खड़ा होगा? तालियों की गड़गड़ाहट किसके कानों को रोमांचित करेगी? स्वर्गीय ध्यानचंद की तो कतई नहीं। इसपर एक नीरस अकादमिक चर्चा के अलावा कुछ भी नहीं हाथ लगेगा। तब कौन होगा जो भावुक होकर यह पुरस्कार अपनी माँ को समर्पित कर देगा, या आश्चर्य में डूबकर खुशी से रो पड़ेगा और अपने विद्यार्थियों और सहकर्मियों को गले लगाकर उसका श्रेय सबमें बाँटेगा जैसा सी.एन.आर. राव ने किया? पुरस्कार की खुशी का असली हकदार जब नहीं रहा तो इस टोकनबाजी का क्या मतलब है?
आज पूरा देश एक सच्चे भारतीय खिलाड़ी को भगवान का रुतबा देकर रोमांचित और उल्लसित है। आंकड़े बयान कर रहे हैं कि जो चालीस साल का व्यक्ति भावुक होकर देश के क्रिकेट फैन्स को संबोधित कर रहा है उसके जैसा शायद भविष्य में कोई दूसरा नहीं आने वाला। मुझे याद नहीं कि इससे पहले किसी दूसरे व्यक्ति को यह पुरस्कार मिलने पर एक साथ इतने लोगों ने ऐसा जश्न मनाया हो। ऐसे में तेन्दुलकर के सामने ध्यानचंद का नाम खड़ा कर देने का काम एक खास मानसिकता का परिचायक है। यह वही सोच है जो हर मामले में सोशल इन्जीनियरिंग, जेंडर बायस, या दूसरे भेद-भाव की गुंजाइश सूंघती रहती है और सही परिप्रेक्ष्य में स्थिति का मूल्यांकन करने के बजाय हर जगह राजनीति घुसेड़ने के चक्कर में रहती है। पुरस्कार तो वैसे भी राजनीति का अखाड़ा बनने के लिए सबसे आसान शिकार होते जा रहे हैं।
राजसत्ता द्वारा पुरस्कार और दंड का प्रयोग अपनी धाक और प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए किया ही जाता है। लोकतांत्रिक सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इसमें यथासंभव पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता रखें लेकिन व्यवहार में यह संभव नहीं है। इस पुरस्कार के नियम इतने लचीले हैं कि यह प्रधानमंत्री (न कि मंत्रिपरिषद) की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता हैं। इसके लिए किसी औपचारिक संस्तुति की आवश्यकता नहीं होती। सत्ता की असली बागडोर जिसके हाथ में है वह किसी को भी यह माला पहना सकता है। अबतक के सभी भारतरत्न पुरस्कृत विभूतियों की सूची देखिए, आंख खुल जाएगी।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com
हर जगह राजनीति घुसेड़ने के चक्कर में रहती है।
जवाब देंहटाएंइस मामलें में तो शुरुऐ से घुसी हुयी है। ध्यानचंद को भारतरत्न से न नवाजने के तर्क बहुत लचर हैं।
...तो आप कुछ दमदार तर्क रख दीजिए। ताजा मुद्दा अटलविहारी वाजपेयी को भारतरत्न देने का हो गया है।
हटाएंन भाई अब ध्यानचंद जी के लिये भी तर्क देने का मन नहीं हैं।
हटाएंतेंदुलकर से हमें कोई एतराज नहीं है। एक महान खिलाड़ी, अच्छा समर्पित इंसान। लेकिन तेंदुलकर को भारत रत्न ऐसे दिया गया जैसे हमारे यहां रिटायरमेंट के दिन पेंशन पेपर थमा देते हैं। इसके बाद अब अंदर मत घुसना। यह तेंदुलकर के ही हित में नहीं है। आप देख लेना तेंदुलकर ऐसा कोई काम नहीं कर पायेंगे अब आगे जिससे सामूहिक भले की बात हो। अधिक से अधिक वे कोच बन जायेंगे या फ़िर अपने देश के खेल राजदूत।
हाकी-काकी के कहाँ, काके कितने वोट |
जवाब देंहटाएंदद्दा चुप्पै बैठिये, गोल-पोस्ट में खोट |
गोल-पोस्ट में खोट, जाय हिटलर हड़काये |
देंगे भारत-रत्न, गोल्ड पर कितना लाये ?
रविकर अंतर-ध्यान, चन्द बुड्ढे ही बाकी |
उनके कितने वोट, युवा ना देखें हाकी ||
इस मुद्दे पर इतना कचरा पढ़ चुकी हूँ (एफ बी के हजारों स्टेटस सहित) कि कुछ भी सुनने पढ़ने को तो क्या, कहने को भी मन नहीं था.
जवाब देंहटाएंउस कचरे के बीच यह पहली एक सेंसिबल पोस्ट मिली है.साधुवाद आपको.
असल में दुष्यंत की पंक्तियों के विपरीत सिर्फ हंगामा करना हमारा मकसद है.
सर,,, आपकी बात से एकमत सहमत हूँ लेकिन सर सी. वी. रमन जी को भी 28 फरवरी 1928 में की गई उनकी विशेष खोज "रमन प्रभाव" के लिए वर्ष 1930 के भौतिक का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था, जिसके सम्मान में भारत सरकार ने उन्हें देश के प्रथम पुरस्कार "भारत रत्न" के लिए चुना था, वो भी पुरस्कार पाने वाली पहले तीन लोगों में और साथ ही साथ जवाहरलाल नेहरू जी को "भारत रत्न" क्यों मिला ?? क्या वो गांधी जी के प्रिय थे या फिर वो स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री थे इसलिए ? !!! मुझे उम्मीद है कि आप इसका उत्तर अवश्य देंगे
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : मेरी भोपाल यात्रा (पहला दिन) - श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, भोपाल
हर्षवर्धन जी, विकीपीडिया में देखिए- Raman retired from the Indian Institute of Science in 1944 and established the Raman Research Institute in Bangalore, Karnataka a year later. He served as its director and remained active there until his death in 1970, in Bangalore, at the age of 82.
हटाएं१-रमन आजादी के बाद भी सक्रिय थे, २-विज्ञान का क्षेत्र प्रारंभ से ही भारत रत्न के लिए एक श्रेणी के रूप में परिकल्पित था।
उन्हें नोबेल मिलने के कारण भारतरत्न मिला यह बहुत बचकानी बात है। इस आधार पर तो टैगोर को भी मिल जाना चाहिए था।
जवाहर लाल नेहरू के संदर्भ में आपने कुछ नहीं कहा!! क्यों ? अगर "भारत रत्न" के लिए योगदान देखा जाता है तो क्यों डॉ. भीमराव अंबेडकर जी, सरदार वल्लभ भाई पटेल जी और जयप्रकाश नारायण जी को इतने समय बाद क्रमश : 1990, 1991 और 1998 में मरणोपरांत "भारत रत्न" मिला ?
हटाएंआपने मुझे भारतरत्न चयन समिति का सर्वकालिक प्रवक्ता तो नहीं समझ लिया। मैंने तो तथ्यों के आधार पर ध्यानचंद के बारे में एक बात रखी थी।
हटाएंरही बात जवाहरलाल नेहरू की तो उनके बारे में बहुत सी बातें हैं जिनका उल्लेख न किया जाय तो बेहतर। प्रधानमंत्री रहते हुए स्वयं पुरस्कार के लिए नामित हो जाना नेहरू के कलेजे की ही बात थी। कुछ लोग और परिवार नैतिकता और सिद्धान्त के सामान्य नियमों से ऊपर उठ चुके होते हैं। उनकी यह प्रास्थिति देश की जनता बनाती है,जिसे काटजू ने नब्बे प्रतिशत मूर्ख कहा है।
एक साथ ढेर सारी फिल्मी हस्तियों का नाम लेकर आपने जवाब खुद ही दे दिया। सर्वोच्च सम्मान तो अद्वितीय टाइप लोगों को मिलना चाहिए। एक जैसे कई हों तो सर्वोच्च कैसे हुए?
इस देश में नकारात्मक विचार हावी होने लगे हैं , जो स्पोर्ट्स का abc नहीं जानते वे भी इसमें अपनी नाक घुसेड़ रहे हैं !
जवाब देंहटाएंहमारे इस देश में वैसे भी अब गर्व लायक कम ही बचा है , पिछले २० वर्षों में सचिन ने जो सम्मान देश को दिलाया वह अतुलनीय है , वे भारत रत्न ही हैं, और उन्हें ही मिलने का औचित्य था !
आभार इस पोस्ट को लिखने के लिए !
a very well documented post and i agree with each word of it .
जवाब देंहटाएंसचिन को भारत रत्न मिलने में किसी को दिक्कत नहीं है। बावजूद इसके कि ये ब्रांड, बाजार, टीवी, टीआरपी, मुंबई और राजनीति इतने तत्वों को मिलाकर मिला है सचिन रमेश तेंदुलकर को भारत रत्न। ध्यानचंद पर आपने जो बात की वो तर्क ठीक हो सकते हैं लेकिन, दुनिया में हॉकी में (खेल में ही कह लें तो बेहतर होगा) ध्यानचंद का जो योगदान है और भारत उनका वजह से जिस स्वर्णिम काल को सोचकर कुहुकता रहता है। उसी एक आधार पर वो भारत रत्न के हकदार हैं। 24 घंटे का टीवी होता, विज्ञापन के पैसे मिलते तो ध्यानचंद के अलावा कपिलदेव, सुनील गावस्कर, विजय अमृतराज, प्रकाश पादुकोण, विश्वनाथन आनंद, मिल्खा सिंह पीटी ऊषा और न जाने कितने खिलाड़ी भारत रत्न के स्वाभाविक दावेदार होते। मैं बस यही कहूंगा कि काबिल सचिन सौभाग्यशाली भी बहुत हैं। वरना मुंबई का दबाव न होता और लगातार 3 सालों तक खराब प्रदर्शन पर सचिन टीम से बाहर कर दिए जाते तो कहानी कुछ और ही होती।
जवाब देंहटाएंकालखंड की बात यदि महत्वपूर्ण नहीं है तो पहले साहित्य, कला और विज्ञान की दुनिया में असाधारण नाम कमाने वाले भारतीयों को चुनिये। मुंशी प्रेमचंद, राजा रवि वर्मा, डॉ.हरगोविन्द खुर्राना, जे.सी.बोस, टैगोर; या फिर सूर कबीर तुलसी ही क्यों पीछे रहें। महात्मा गांधी की बात पहले ही कह चुका हूँ। खेलजगत भी कोई ‘भारतरत्न’ पैदा कर सकता है इसकी ओर ध्यान दिलाने वाले तो SRT ही हैं।
हटाएंफ़िल्म भी तो कला के क्षेत्र में आता है तो क्यों ना दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, एस. डी. बर्मन, मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार जी को भी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए !! (अगर लता मंगेशकर जी सम्मानित हो सकती है तो ये लोग क्यों नहीं।।)
हटाएंइस देश में गुणी जनों की कमी कभी नहीं रही , तब नहीं मिल पाया पुरस्कार , अब मिल रहा है तो कम से कम यह सोच कर खुश होना चाहिए कि एक अच्छी शुरुआत हुई , आगे अन्य गुणीजनो को मिलने की सम्भावना तो बनी !
जवाब देंहटाएंअच्छा मान लिए मगर अटल जी के बारे में क्या राय है ?
जवाब देंहटाएंऔर क्या सचिन को अभी ही भारत रत्न पकड़ा देना उचित टाइमिंग है ?
अटल जी को भारत रत्न मिले तो मुझे खुशी होगी। जिन्हें मिल चुका है उनमें से बहुतों से आगे हैं अटल जी।
हटाएंअभी ही नहीं तो कब? सचिन का खेल तो अब पूरा हो लिया न। खेल के नाम पर देने के लिए यह समय सर्वथा उपयुक्त था। अपने जीवन में यह हीरो यदि राजनीति या लोकसेवा में कोई असाधारण अद्वितीय/ विशिष्ट योगदान करता है तो दुबारा सोच लेंगे। :)
दद्दा को भारतरत्न मिलना ही चाहिये।
जवाब देंहटाएंKash! Bharat may FRAN.compies pale aa ghi hoti To Dhayan ko bhi Bharatrantan mil jata!! sahin is biggest selesman of India.(See facebook for my comment)
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