“हाँ जी, बोलिए!”
“लगता है, आज भी कुछ पोस्ट नहीं कर पाउंगा।”
“तो …!?”
“तो…, ये कि मेरी गिनती एक आलसी, और अनियमित ब्लॉगर में होनी तय है…।”
“क्यों? आप क्या खाली बैठे रहते हैं?”
“नहीं ये बात नहीं है… लेकिन ब्लॉग मण्डली को इससे क्या? उसे तो हमारी हाजिरी चाहिए नऽ…”
“इतना टाइम तो देते हैं, ...अभी भी कम पड़ रहा है क्या? ...अब यही बचा है कि हमसब कहीं और चले जाँय और आप नौकरी छोड़कर ब्लॉगरी थाम लीजिए। ...बस्स”
“नहीं यार, वो बात नहीं है। …मेरा मतलब है कि दूसरे ब्लॉगर भी तो हैं जो रेगुलर लिखते भी हैं, नौकरी भी करते हैं और परिवार भी देख रहे हैं…।”
“हुँह…”
“ये सोच रहा हूँ कि ...मेरी क्षमता उन लोगो जैसी नहीं हो पाएगी। यह मन में खटकता रहता है।”
“मैं ऐसा नहीं मानती”
“तुम मेरी पत्नी हो इसलिए ऐसा कह रही हो …वर्ना सच्चाई तो यही है”

“नहीं-नहीं… सच्चाई कुछ और भी है।”
“वो क्या?”
“वो ये कि जो लोग रोज एक पोस्ट ठेल रहे हैं, या सैकड़ो ब्लॉग पढ़कर कमेण्ट कर रहे हैं, उनमें लगभग सभी या तो कुँवारे हैं, निपट अकेले हैं; या बुढ्ढे हैं।”
“नहीं जी, ऐसी बात नहीं हो सकती…”
“हाँ जी, ऐसी ही बात है… जो शादी-शुदा और जवान होते हुए भी रेगुलर ब्लॉगर हैं, उन्हें मनोचिकित्सा के डॉक्टर से मिलना चाहिए”
“नहीं ये सरासर झूठ है…”
“नहीं, यही सच्चाई है, आप शर्त लगा लो जी…।”
(इसके बाद दोनो ओर से नाम गिनाए जाने लगे, …ब्लॉगर महोदय हारने लगे, ...फिर जो तर्क-वितर्क हुआ उसका विवरण यहाँ देना उचित नहीं। …थोड़ा लिखना ज्यादा समझना….) :>)
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
बड़े पते की बात, ब्लॉगरी कुंवारे/अकेले और बुड्ढे लोगों की चीज है।
जवाब देंहटाएंजहां लिखने का उत्तम मसाला (दो नन्हे बच्चों के सानिध्य में) जेनरेट होता है, वहां ब्लॉगरी का समय नहीं, और जहां कोई गहन अनुभव नहीं - वहां लोग ठेले जा रहे हैं पोस्टें!
बहुत सटीक लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंये बात तो है। अधिक व्यस्त लोग इतना पोस्ट न तो लिख सकते हैं , न पढ और न ही कमेंट कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंहाहाहा! मनोरंजक, और ज्ञानचक्षुखोलक :)
जवाब देंहटाएंवैसे मैं शादीशुदा नहीं हूं, और जब भी निठल्ला होता हूं, ब्लोगरी पर कुछ खासा ही ध्यान देता हूं। तो शायद मोहतरिमा ठीक ही कह रही हैं! :)
इतना टाइम तो देते हैं, ...अभी भी कम पड़ रहा है क्या? ...अब यही बचा है कि हमसब कहीं और चले जाँय और आप नौकरी छोड़कर ब्लॉगरी थाम लीजिए। ...बस्स”
जवाब देंहटाएं" ha ha ha ha enjoyed reading this post, vaise upper rai shee de gyee hai ha ha "
Regards
हमारा भी एक ऐसा ही विवाद हुआ था.. पर हम जीत गये थे..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब तस्वीर खींची है, सिद्धार्थ जी.
जवाब देंहटाएंकुश कुंवारे हैं तो जी गए. तर्क करने की बात आती तो मैं नहीं जीत पाता. अच्छा है जो मुझे तर्क करने की जरूरत नहीं पड़ती. मैं तो ब्लागिंग से सम्बंधित सारे 'कार्य' आफिस में ही करता हूँ. इसीलिए आजतक चलाये जा रहा हूँ.
कुँवारे हैं, निपट अकेले हैं, बुढ्ढे भी नहीं हैं,नौकरी भी करते हैं... पर रेगुलर बिल्कुल नहीं ! शादी कर ली तो पक्का बंद ही हो जायेगी :-)
जवाब देंहटाएंवैसे ये ब्लॉग्गिंग जो ना उगलवा दे... भला हुआ जो आप अंत-अंत में संभल गए :-)
मै रोज शाम को करीब तीन घण्टे यहां खराब करता हू, ओर बस टिपण्णियां ही देता हू, लेख पढा, सोचा( दुसरो की टिपण्णीयो की नकल नही मारता)कई बार समझ मै नही आता, ओर मुस्किल से १०, १२ टिपण्णीया ही दे पाता हुं, अब आप की बात लोग रोजाना लेख भी ठेलते है, ओर टिपाण्णिया भी ? मुझे लगता हे, उन्होने कोई नोकर रखा होगा, इस से आगे मेरी सोच काम नही करती...
जवाब देंहटाएंbahas me chahe koi bhi jita ho, lekin such yehi hai -
जवाब देंहटाएं“वो ये कि जो लोग रोज एक पोस्ट ठेल रहे हैं, या सैकड़ो ब्लॉग पढ़कर कमेण्ट कर रहे हैं, उनमें लगभग सभी या तो कुँवारे हैं, निपट अकेले हैं; या बुढ्ढे हैं।”
…थोड़ा लिखना ज्यादा समझना….
जवाब देंहटाएंsamajh gaye ji!!!!!!!
बड़े पते की बात!!!!!
बहुत खूब तस्वीर!!!!!!
आप नौकरी छोड़कर ब्लॉगरी थाम लीजिए!!!!!!!