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सोमवार, 12 जून 2023

पौधों की संवेदना

पैरामाउंट ट्यूलिप कॉलोनी में किराये के घर में रहना हुआ तो मुझे अपने 25-30 गमलों की देखभाल के लिए जगह कम पड़ गयी थी। फ्लैट नुमा घर की बालकनी में मैंने उनको मुश्किल से सटा-सटाकर रखा तो भी बात नहीं बनी। तुलसी जी सहित एक दो पौधों को पूजाघर में शिफ्ट कर दिया। कुछ को सीढ़ियों पर तो कुछ और को खिड़की के ताख पर एडजस्ट करना पड़ा। इसपर मेरी मकान मालकिन ने कहा कि बालकनी में ज्यादा गमलों से गंदगी जमा होगी। मैंने कोई दूसरा विकल्प नहीं होने की मजबूरी बता उनकी बात को अनसुना कर दिया था। इसपर उन्होंने मौका ताड़कर जब मैं दो-तीन दिनों के लिए छुट्टी पर बच्चों के पास गया था, मेरे सात-आठ बड़े वाले गमले छत पर चढ़वा दिए। जब मैंने लौटकर देखा तो दुःखी हो गया। उनसे आशंका जतायी कि वे पौधे जब नजर के सामने नहीं रहेंगे तो उनकी देखभाल में चूक हो जाएगीऔर वे बिगड़ जाएंगे। इसपर उन्होंने आश्वस्त किया कि वे खुद ही उनकी देखभाल अर्थात पानी डालने का काम करती रहेंगी। इसका भला मैं क्या जवाब देता! चुप हो गया। लेकिन कुछ ही दिनों में मेरी आशंका सही साबित हुई। उपेक्षा के शिकार हो गए उन पौधों को जैसे सदमा लग गया हो। एक-एक कर सब सूखते चले गए। जबकि वो महिला कथित रूप से नियमित देखभाल कर रही थी। मैं भी यदाकदा ऊपर जाकर खर-पतवार साफ कर देता था। लेकिन अपने सुविधाप्राप्त साथियों से बिछोह का आघात उन्हें असमय ही काल कवलित कर गया।

मैंने हमेशा महसूस किया है कि वनस्पतियां भी संवेदनशील होती हैं जो आपसी मेल-जोल व सामाजिक संबंध की भावना रखती हैं और उनके स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ता है कि हमारा मनोभाव उनके प्रति कैसा है। सनातन सांस्कृतिक परंपरा में पेड़-पौधों की पूजा इसीलिए तो की जाती है कि उनमें देवी-देवता का वास होता है। मुझे तो वे साक्षात् दिव्य जीवधारी ही लगते हैं।

अब इस टमाटर के पौधे को ही ले लीजिए। यह मेरे एक गमले में अपने आप उग आया था। शायद टमाटर-युक्त सलाद की कटोरी का अवशिष्ट गमले की मिट्टी में कभी पोषण के लिए डाल दिया गया हो। खर-पतवार निकालते समय जब मुझे इस अनाहूत पादप में टमाटर की पत्तियाँ दिखीं तो उसे यूँ ही बढ़ने के लिए छोड़ दिया। इतनी इज्जत पाते ही ये जनाब गमले के मुख्य पौधे से स्पर्धा करते हुए तेजी से बढ़ने लगे और देखते-देखते इसमें पहले फूल और फिर दो-तीन फल भी लटक आये। अब तो ये विशेष खातिरदारी के हकदार हो गए थे।

इसी बीच मुझे राजकीय मेडिकल कॉलेज परिसर में सरकारी आवास मिल गया तो मैंने बिना देरी किए बोरिया-बिस्तर समेटा और शिफ्ट हो गया। यहाँ बंगले के आगे-पीछे पर्याप्त जमीन मिल गयी तो मुझे अपने पौधों के लिए बहुत खुशी हुई। छत पर सूख चुके गमलों को उतरवाकर जब मैंने गाड़ी पर लोड कराया था तो उन सबकी भेंट बालकनी वाले हरे-भरे गमलों से हुई थी। तब मुझे मन में महसूस हुआ कि जरूर इनके बीच कुछ बातचीत चल रही होगी। अब शायद इनके आँसू पोछने का समय आ गया है। जिस गमले में शरणार्थी टमाटर का पौधा दो बड़े-बड़े फलों के साथ लहलहा रहा था उसे तो स्पेशल स्टेटस का एहसास हो रहा होगा। लेकिन ढुलाई में इस नाजुक पौधे को थोड़ी चोट लगने से आंशिक क्षति हो गयी।

यहाँ आकर मैंने इस पौधे को गमले से निकलवाकर सब्जियों के लिए नई बनी क्यारी में रोपवा दिया। उर्वर जमीन की खुराक पाकर इसका उत्साह बढ़ने की उम्मीद मैं कर रहा था। ऐसा कुछ हुआ भी। इसमें चार-पाँच नए फल आ गए हैं। लेकिन इसकी पत्तियों में जो हरियाली गमले में आयी थी वह अब नहीं रह गयी है। हो सकता है यह पौधा अपनी आयु पूरी कर रहा हो; या यह भी हो सकता है कि गमलों से बिछड़कर जमीन पर आ जाना इसे कुछ अधिक रास न आया हो। आपका क्या ख्याल है?

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

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