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शनिवार, 31 मई 2014

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है

चुनावी कार्यक्रम की जिम्मेदारियों से निवृत्त होने के बाद तरही नसिश्त के संयोजक से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि अगली बैठक में तो आना ही पड़ेगा। मैंने पूछा मिसरा क्या है तो बोले – “कितना रौशन-रौशन उसका चेहरा है।” फिर क्या था मेरे भीतर शायरी का कीड़ा कुलबुलाने लगा। इसके बाद जो कुछ अवतरित हुआ है वह आपकी नज़र करता हूँ :

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है

(भाग-१)

कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है
बैठा उस पर काले तिल का पहरा है

आँखें अपलक देख रहीं हैं सूरत को
दिल भी मेरा उसी ठाँव पर ठहरा है

प्यारी सूरत से ही प्यार हुआ है जो
प्यार का तूने सीखा नहीं ककहरा है

जिसने सूरत से बेहतर सीरत समझा
उसके सर पर सजता सच्चा सेहरा है

चक्कर खा गिर पड़े अचानक अरे मियाँ
बस थोड़ा सा उसका आँचल लहरा है

 

(भाग-२)

वह पुकारती रही सांस थम जाने तक
उसे पता क्या यह निजाम ही बहरा है

अच्छे दिन आने की आस लगी मुझको
मुस्तकबिल उनके संग बड़ा सुनहरा है

वो आये तो अन्धकार मिट जाएगा
ऐतबार इस चमत्कार पर गहरा है

नौजवान उठ खड़ा हुआ तो ये समझो
छंटने वाला बदअमनी का कोहरा है

जिसके सर तोहमद है कत्लो गारद की
गुनहगार वो असल नहीं बस मोहरा है

बदल गयी है बात चुनावी मौसम की
राजनीति का यह चरित्र ही दोहरा है

बैरी ने हमको जब भी ललकारा है
उसके सर पे सदा तिरंगा फहरा है

 

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
www.satyarthmitra.com

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम और परिवर्तन साथ साथ ही चलते हैं ... हर शेर कहानी कह रहा है ... लाजवाब ..

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  2. एक अच्छी कृति सुंदर काफिये का इस्टेतेमाल

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  3. शृंगार ,रीति,नीतिऔर राजनीति के साथ वीर रस की ललकार भी , एक मिसरे के बहाने ! वाह !!

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