चुनावी कार्यक्रम की जिम्मेदारियों से निवृत्त होने के बाद तरही नसिश्त के संयोजक से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि अगली बैठक में तो आना ही पड़ेगा। मैंने पूछा मिसरा क्या है तो बोले – “कितना रौशन-रौशन उसका चेहरा है।” फिर क्या था मेरे भीतर शायरी का कीड़ा कुलबुलाने लगा। इसके बाद जो कुछ अवतरित हुआ है वह आपकी नज़र करता हूँ :
कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है |
(भाग-१) कितना रौशन रौशन उसका चेहरा है आँखें अपलक देख रहीं हैं सूरत को प्यारी सूरत से ही प्यार हुआ है जो जिसने सूरत से बेहतर सीरत समझा चक्कर खा गिर पड़े अचानक अरे मियाँ
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(भाग-२) वह पुकारती रही सांस थम जाने तक अच्छे दिन आने की आस लगी मुझको वो आये तो अन्धकार मिट जाएगा नौजवान उठ खड़ा हुआ तो ये समझो जिसके सर तोहमद है कत्लो गारद की बदल गयी है बात चुनावी मौसम की बैरी ने हमको जब भी ललकारा है
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(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
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जय हो, प्रवाह पूर्ण है।
ReplyDeleteचकाचक है!
ReplyDeleteek bhag ke bad bhag dubara hai
ReplyDeletekitna raushan-raushan uska chehra hai !
प्रेम और परिवर्तन साथ साथ ही चलते हैं ... हर शेर कहानी कह रहा है ... लाजवाब ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
एक अच्छी कृति सुंदर काफिये का इस्टेतेमाल
ReplyDeleteशृंगार ,रीति,नीतिऔर राजनीति के साथ वीर रस की ललकार भी , एक मिसरे के बहाने ! वाह !!
ReplyDeleteवाह, वाह!
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