इस मिसरे को तरही ग़जल के लिए तय करने वाले उस्ताद शायर ने इसके मीटर की कई बारीकियाँ नोट करायी थीं, जो मुझे भूल गयीं। सच कहूँ तो वह सब मुझे समझ में ही नहीं आया था। मुशायरे की तय तारीख नजदीक आने की याद दिलायी गयी तो मैंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन खोलकर देखा और यह ग़जलनुमा कविता/ तुकबन्दी रच डाली। प्यार-मोहब्बत की ‘बातें करने’ में थोड़ा कमजोर हूँ; बल्कि प्यार मोहब्बत ही कर लेना बेहतर समझता हूँ इसलिए मुझे पूरा शक है कि उस मुशायरे में पता नहीं दाद मिले या न मिले। ऐसी स्थिति में यहाँ इस पृष्ठ का नियंत्रक होने का लाभ तो उठा ही सकता हूँ; तो पेश है मेरी ताजा रचना :
(पुनश्च : बड़े भाई सतीश सक्सेना जी और नवगीतकार ओमधीरज जी की सलाह पर संशोधित/ संपादित/ परिवर्द्धित।)
दहलीज़ पे बैठा है कोई दीप जलाकर |
(१) लो बोल गया काग भी मुंडेर पे आकर गौरैया चहकती रही अब सांझ ढल गयी बेफिक्र हुए सो रहे अपने घरों में हम मासूम ने आंचल का किनारा पकड़ लिया दस्तक हुई वो आ गये माँ ने बिठा लिया बस चंद रोज़ फैलेगी जीवन में चाँदनी रह जाएगी फिर साथ में बैरन सी अमावस (२) दंगों में मुलव्विस रहे जो लोग मुसल्सल क्या खूब तमाशा किया जनता के वोट ने जब आप को सरकार बनाना ही नहीं था ये शर्त है या गर्त में जाने का है पैग़ाम वो दिन हवा हुए जो बिकाऊ थे रहनुमा इस गहरी मोहब्बत से यूँ न देख मेरे यार हर एक ने अपना अलग बनाया लोकपाल |
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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हम भी आस लगाये बैठे,
जवाब देंहटाएंवे हैं, प्यास छिपाये बैठे।
क्या बात है हजूर के इस अंदाजे बयां में
जवाब देंहटाएंकर दिया है लाजवाब इक आईना दिखा कर
तरही की आपकी बरही की शुभकामनाएं भी
जवाब देंहटाएंबधाई खूबसूरत ग़ज़ल के लिए !
जवाब देंहटाएंदो हिस्सों में होती तो और अच्छा होता !१,२,३,५ अलग कर दें , ये खूबसूरत शेर , आप के साथ क्यों ? :)
आपकी सलाह सर माथे। अलगा दिया, कुछ और जोड़कर।
हटाएंवाह बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसीधे ह्रदय में उतरी. बहुत अच्छे है शेर .. और उनका कथ्य.
जवाब देंहटाएंमासूम ने आंचल का किनारा पकड़ लिया
जवाब देंहटाएंवह लोरियाँ सुनाये प्रेम गीत भुलाकर
दस्तक हुई वो आ गये माँ ने बिठा लिया
तहज़ीब से रुक जाय सिमट जाय लजाकर
कमाल की अभिव्यक्ति है भाई जी , यह मोती चुनने आसान नहीं, यह सामान्य नहीं है . . . .
आपकी काव्य प्रतिभा को ह्रदय से नमन ! अनुरोध है कि काव्य सृजन जारी रखेंगे !
आपका आभार !
दंगों में मुलव्विस रहे जो लोग मुसल्सल
जवाब देंहटाएंअब सुर्खियाँ बटोरते इमदाद दिलाकर
क्या खूब तमाशा किया जनता के वोट ने
वो फर्श पे अब आ गये हैं अर्स गँवाकर !
हकीकत बयान की है आपने , मगर काश लोग ध्यान से पढ़ना और सीख लें , साहित्य रचनाओं के संक्रमण काल में लोगों को पढ़ने का शौक नहीं है, ऐसे में मजबूत कलम का रोल महत्वपूर्ण है ! आपको मंगलकामनाएं आदरणीय !!
सिद्धार्थ ने तो सिर्फ हकीकत, बयान की
फिर भी न दिखायी पड़े चश्में भी लगाकर !
बहुत अच्छा प्रयास आप का !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..। पहली कालजयी दूसरी समसामयिक।
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