हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग हेतु पहला कदम बढ़ाइए
मेरी पिछली पोस्ट में सूचना दी गयी थी कि वर्धा में एक बार फिर हिंदी ब्लॉगिंग को केन्द्र में रखकर राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार आगामी 20-21 सितंबर को आयोजित किया जा रहा है। कुछ ब्लॉगर मित्रों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है। कुलपति जी ने इसकी आवश्यक तैयारियों के लिए निर्देश दे दिये हैं। इस सेमिनार के संयोजन से पूर्व उन्होंने मेरे जिम्मे किया है – इस राष्ट्रीय विचारमंथन के लिए एक ऐसे पैनेल के लिए नाम सुझाने का दायित्व जो हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया के तमाम पक्षों पर साधिकार विचार विनिमय कर सके और जिसके माध्यम से कुछ ठोस नतीजों पर पहुँचा जा सके।
इसी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए मैंने पिछली पोस्ट में आप सभी से अनुरोध किया था कि इस मंच पर विचार और बहस के लिए प्रस्तावित विषय सामग्री अपने एक आलेख के रूप में मुझे उपलब्ध करा दें ताकि उनको सम्मिलित करते हुए सभी सत्रों की रूपरेखा तैयार की जा सके। अभी तक कुछ मित्रों से मौखिक बात-चीत हुई है। कुछ लोगों ने अपनी टिप्पणी में एक-दो बिन्दु सुझाए हैं। लेकिन अभी भी आप सबका इनपुट अपर्याप्त लग रहा है। मैं दिल से चाहता हूँ कि बहस के तमाम मुद्दे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया से उभरकर आयें। पिछला अनुभव बताता है कि समय रहते अवसर का सदुपयोग करने में जो भाई लोग आलस्य दिखाते है वे ही बाद में कार्यक्रम का छिद्रान्वेषण करते हैं।
मैं बार-बार अनुरोध करता हूँ कि आप इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने में यदि गहरी रुचि रखते हैं तो इसे जाहिर कीजिए। अपने आलेख द्वारा व अपने सुझावों द्वारा अपनी यू.एस.पी. से हमें परिचित कराइए ताकि हम विश्वविद्यालय से कार्यक्रम के पैनेलिस्टों व प्रतिभागियों का शीघ्रातिशीघ्र अनुमोदन प्राप्त करते हुए आमंत्रण पत्र भेज सकें। वर्धा आने के लिए आपको रेल टिकट भी बुक कराना होगा। समय रहते नहीं करा लिया तो कन्फर्म टिकट मिलने में मुश्किल आ सकती है। कुलपति जी ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा आमंत्रित अतिथियों को वहाँ आने-जाने का किराया रेलगाड़ी की ए.सी.थ्री टियर की सीमा तक भुगतान किया जाएगा।
आज मुझे औपचारिक रूप से एक प्रतिष्ठित प्रिन्ट माध्यम के संपादक व स्वयं एक महत्वपूर्ण ब्लॉगर द्वारा निम्नलिखित विषय सुझाए गये हैं:
साहित्य की ब्लॉगिंग : इसमें इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिए कि वास्तव में ब्लॉग पर पर साहित्य है क्या. इसमें कितने स्थापित, युवा, नवोदित, उदीयमान या शौकिया साहित्यकार हैं. किन विधाओं की अधिकता है और उनमें वास्तव में कितना साहित्य और कितना साहित्य के नाम पर कूड़ा है.
ब्लॉग साहित्य की आलोचना : अगर साहित्य को विकास के लिए आलोचना की ज़रूरत है तो ब्लॉग पर साहित्य के लिए क्यों नहीं? क्या ब्लॉग पर जो साहित्य प्रेषित किया जा रहा है, उसकी आलोचना के लिए कुछ लोग हैं? क्या उन्होंने ब्लॉग साहित्य को केन्द्र में रखकर साहित्य की कसौटी पर उसे कसने की कोशिश कभी की? या केवल सतही टिप्पणियों से ही ब्लॉगरजन ख़ुश हैं?
साहित्येतर ब्लॉग : ब्लॉग पर साहित्य के अलावा जो कुछ है, क्या साहित्य के धुरंधर ब्लॉगर गण उन ब्लॉग्स पर कभी जाते हैं? अगर जाते हैं तो उसे पढ़ने की जहमत उठाते हैं और उसपर टिपियाते भी हैं या केवल एक नज़र मारकर खिसक लेते हैं.
ब्लॉगिंग के विकास में चिट्ठा चर्चा जैसे ब्लॉग्स और अग्रीगेटर्स की अहमियत.
साहित्य, साहित्य के ब्लॉग और समाज : एक-दूसरे से अपेक्षाएं
ब्लॉगिंग कम होने के कारण और उसे बढ़ावा देने की रणनीति.
अविनाश वाचस्पति जी ने पिछली पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए एक महत्वपूर्ण बिन्दु का उल्लेख किया था –
“कि हिन्दी ब्लॉगबुक जैसा एक मंच बनाया जाए जो कि ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत की पूर्ति करे तथा 'फेसबुक' की तरह सदैव प्रवाहमान हो। इसमें हिंदी के सभी ब्लॉग जड़े हों और उनकी पोस्टें क्रम से सामने से गुजरती रहें और जिसे जिसको पढ़ना व अपनी राय देनी है, वह इसमें बिना अलग से लॉगिन किए दे सके। इससे इस मंच को आगे विस्तारित होने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिए तकनीकी और धन-संसाधन की व्यवस्था किसी विश्वविद्यालय से ही की जा सकती है और इसे अमली जामा पहनाया जा सकता है।”
इसी प्रकार आप सभी सुधी जनों से अपेक्षा है कि इस महामंथन के लिए अलग-अलग पहलुओं पर अपना नजरिया प्रस्तुत कीजिए। हमारी कोशिश होगी अधिक से अधिक मुद्दों को मंच पर लाया जाय और उनपर चर्चा करके कुछ ठोस निष्कर्ष निकाले जाय। कुछ ऐसे निर्णय लिए जाय जिनपर विश्वविद्यालय के संसाधनों द्वारा अमल करके हिंदी को अंतर्जाल पर अधिकाधिक प्रयोग की भाषा बनाया जा सके। सूचना, साहित्य और ज्ञान के प्रसार के लिए हिंदी को भी उतना ही समर्थ और सहज-सरल बनाया जा सके जितना अंग्रेजी और अन्य भाषाएँ हैं। यह सब तभी संभव होगा जब प्रत्येक हिंदीप्रेमी जो इंटरनेट से जुड़ा हुआ है पूरे मनोयोग से इस दिशा में अपना योगदान देने के लिए उद्यत हो जाएगा।
तो देर किस बात की है? संभालिए अपना की-बोर्ड और शुरू हो जाइए। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
सोशल मीडिया और राजनीति एक बेहतर विषय हो सकता है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया है। इसपर कुछ विस्तार से लिख भेजिए हर्ष जी!
हटाएंदेखते हैं ,हम किस लायक हैं !
जवाब देंहटाएंआपकी लायकियत किसी से छिपी नहीं है संतोष जी!
हटाएंबिन्दास होकर कुछ लिख भेजिए।
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जवाब देंहटाएंचिट्ठाकारिता : माध्यम या विधा ?
जवाब देंहटाएंमीडिया शब्द के उल्लेख से हमारे सामने प्रिंट मीडिया ,ब्राडकास्ट मीडिया ,डिजिटल मीडिया की एक तस्वीर उभरती है....और जब हम विधा की बात करते हैं तो कविता ,कहानी ,नाटक ,निबंध ,रूपक ,साक्षात्कार,समाचार लेखन /वाचन आदि आदि का बोध हो उठता है .... अब हमारे पारम्परिक प्रिंट या ब्राडकास्ट माध्यमों में इन्ही विधाओं की ही परिधि में जन संवाद होता है ...उद्येश्य चाहे मनोरंजन हो या ज्ञानार्जन . अपने इन्ही पारम्परिक माध्यमों को मुख्य मीडिया /मेनस्ट्रीम मीडिया कहा जाता रहा है .अब जिस मीडिया का नया परचम लहराने लगा है वह डिजिटल मीडिया है ....और इस नए माध्यम ने पारम्परिक माध्यम के कान काटने और पर कतरने शुरू कर दिए हैं ..फिर भी इसे वैकल्पिक मीडिया का संबोधन मिला है.
इसे और विस्तार देकर आपको पृथक से भेज रहे हैं!
बहुत खूब। स्वागत है।
हटाएंहार्दिक धन्यवाद रविकर जी!
जवाब देंहटाएं2013 में यूके से बाहर जा सकने की संभावना न के बराबर है। आमंत्रणों व इच्छा के बावजूद तक नहीं।
जवाब देंहटाएंसमस्त हार्दिक शुभकामनाएँ।
ओह, आपने तो मेरे प्रश्न पूछने से पहले ही उत्तर दे दिया :(
हटाएंब्लॉगिंग साहित्य की रिक्तता भरती है और उसे सततता भी प्रदान करती है।
जवाब देंहटाएंआशा है आपके दर्शन और दिग्दर्शन दोनो मिलेंगे।
हटाएंऔर भी कुछ...।
:)
सिद्धार्थी जी , क्या मैं आ सकता हूँ , और मैं किस विषय पर लिखू , आप थोडा सा बताये तो मैं भी अपना योगदान दे सकूँ.
जवाब देंहटाएंमेरा ईमेल है : vksappatti@gmail.com
आपका बहुत धन्यवाद.
आपका
विजय
सिद्धार्थ जी,
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया के तमाम पहलुओं पर विचार करने के लिए वर्धा विश्वविद्यालय की ओर से की गई इस अभिनव पहल का स्वागत करने के साथ हर प्रबुद्ध ब्लॉगर को इस यज्ञ में अपनी आहुति देने की आवश्यकता है...ये ऐसे समय में और भी आवश्यक हो गया है जब देश की मुख्य धारा का मीडिया कॉरपोरेट के कब्ज़े में आकर उनके निहित स्वार्थ साधने में लग गया है...देश इस समय जिस तरह के संक्रमण काल से गुज़र रहा है, वहां सोशल मीडिया की भूमिका और भी अहम हो जाती है...यही वजह है कि देश का राजनीतिक वर्ग भी मुख्य मीडिया से नहीं सोशल मीडिया से आक्रांत हो रहा है...हर राजनीतिक पार्टी अगले लोकसभा चुनाव से पहले सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए विशेष प्रकोष्ठ बना रही है...सोशल मीडिया देश में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए महत्ती भूमिका निभा सकता है बशर्ते कि इसे सही दशा और दिशा में रखा जाए, मेन मीडिया की पेड न्यूज़ जैसी बुराइयों से इसे कलुषित ना होने दिया जाए...एक विषय और महत्वपूर्ण है कि हिंदी ब्लॉगिंग को युवा पीढ़ी में लोकप्रिय बनाने के लिए अनेकानेक प्रयास किए जाए...जैसे कि स्कूल-विश्वविद्यालयों में छात्रों की लेखन प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए पाठयक्रम के प्रोजेक्ट के रूप में ब्लॉगिंग को सम्मिलित किया जाए...देश का भविष्य युवा पीढ़ी में है...इसलिए हिंदी की पताका को देश-विदेश में ऊंचा रखना है तो देश के नौनिहालों को हिंदी ब्लॉगिंग से जोड़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहन देना होगा...
जय हिंद...
शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंजो भाई लोग आलस्य दिखाते है वे ही बाद में कार्यक्रम का छिद्रान्वेषण करते हैं।
जवाब देंहटाएंoh !!!
यानी जिन भाई और "बहनो" ने पिछली बार ओपिनियन दी थी वो किसी काम की नहीं थी नकारात्मक जो थी , अगर उसको दुबारा पढ़ लिया जाए तो स्वत कुछ बदलाव हो ही सकता हैं , दुबारा वही सब लिखना क्यूँ जरुरी हैं
आदरणीया, यदि आपको ध्यान हो तो पिछले सेमिनार के बाद मैंने जो पोस्ट लिखी थी उसका शीर्षक ही था “प्रयाग का पाठ वर्धा में काम आया शुक्रिया” ये रहा लिंक-
हटाएंhttp://satyarthmitra.blogspot.in/2010/10/blog-post_15.html
इसलिए आप आश्वस्त रहिए कि वर्धा-1 के सभी पाठ वर्धा-2 में याद रखे जाएंगे। ऊपर आपने जिस बात को उद्धरित किया है वह भी इसी पाठ का हिस्सा है जो आप लोगों ने मुझे पढ़ाया है। मेरी कोशिश है हर बार अपने को बेहतर बनाने के लिए जो भी हो सकता है वह करूँ। मेरे इस प्रयास में आप जैसी सचेतन आलोचकों का बहुत बड़ा सहयोग मिलता रहता है। धन्यवाद स्वीकारें।
बड़े संकोच से पूछ रहा हूँ कि क्या आप वर्धा के आगामी सेमिनार में भाग लेने पर विचार कर सकती हैं। यदि हाँ तो मुझे बता दीजिएगा। मुझे आपको आमंत्रित करके बहुत खुशी होगी।
सादर !
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हटाएंशुक्रिया सिद्धार्थ आना संभव नहीं हैं कुछ टॉपिक हैं
हटाएंहिंदी ब्लोगिंग क्या इसलिये कभी पनप नहीं पायी क्युकी जिन लोगो ने इसको शुरू किया उन्होने इसको केवल और केवल सोशल नेटवर्किंग की तरह इस्तमाल किया। उनका उद्देश्य क्या था पता नहीं पर लगता तो ऐसा था जैसे उनके हाथ एक खिलौना लग गया था और जब तक वो नया रहा उनकी रूचि उसमे रही फिर वो नए खिलोने की तलाश में आगे निकल गए
हिंदी ब्लॉग और इंग्लिश ब्लॉग के लेखन और उदेश्य में फरक दिखता हैं। हिंदी ब्लॉग में जन साधारण से जुड़े विषय पर बहुत बाद में काम शुरू हुआ हैं जबकि इंग्लिश ब्लॉग में ये शुरू से रहा।
हिंदी ब्लोग्गर आज भी प्रिंट मीडियम को ब्लॉग से बेहतर मानते हैं इस लिये वो कभी प्रिंट मीडियम में अपने चोरी किये हुए ब्लॉग लेख के खिलाफ आवाज ही नहीं उठाते और उसके ऊपर से बड़ी शिद्दत से उसको अपने ब्लॉग पर पुनः पेस्ट करते है. नारी ब्लॉग के जरिये हमने राष्ट्रीय सहारा को मजबूर किया था की वो सामग्री छपने से पहले पूछे और उसके लिये राशि दे
हिंदी ब्लॉग में आज भी जेंडर बायस हैं , नारी ब्लॉग और चोखेर बाली ब्लॉग के अथक प्रयासों से कम हुआ हैं लेकिन आज भी लोग महिला ब्लोगर के प्रति सही नज़रिया नहीं रखते हैं
हिंदी ब्लॉग में पुरूस्कार देने की परम्परा क्या इसकी इतनी जरुरत थी या हैं
हिंदी ब्लॉग मीट में कितने गंभीर विषय पर बात हुई , केवल पीने , पिलाने , साहित्य चर्चा , कविता पाठ तक सीमित रही हैं ये मीटिंग क्या ब्लॉग लेखन को साहित्य से जोड़ना जरुरी हैं। व्लोग लेखन को अलग विधा क्यूँ नहीं माना जाता ? उसके लेखको को साहित्यकार कहना ही गलत हैं। ब्लोगर और साहित्यकार को दो अलग अलग क्षेणी माने तो ही ब्लॉग लेखन आगे जा सकता हैं। क्या जरुरी हैं की हम ब्लॉग पर साहित्य रचे या उन लोगो को महत्व दे जिन्होने ब्लॉग पर साहित्य रचने की सोची हैं। ठीक हैं उनको एक सुविधा हैं की वो इस माध्यम से ज्यादा लोगो तक अपनी बात पहुचा सकते हैं पर इसकी वजह से ये जरुरी तो नहीं हैं की जो लोग हिंदी की फील्ड से नहीं हैं उनका मज़ाक उड़ाया जाए , उनको सही हिंदी लिखने की सलाह दी जाए
बहुत बढिया. अग्रिम शुभकामनाएं. इस सम्मेलन में ब्लॉग पर फ़ेसबुक जैसी हायपर लिंकिंग की सुविधा उपलब्ध कराने की जरूर चर्चा और कोशिश करें, इससे किसी भी ब्लॉग पर यदि किसी साथी की चर्चा की जाये तो उसे नोटिफ़िकेशन मिल सके वो चाहे पोस्ट का हो या कमेंट का . ताकि सम्बन्धित साथी उस पोस्ट पर अविलम्ब पहुंच सके, जैसा फ़ेसबुक पर होता है. सम्पादक जी द्वारा सुझाये गये मुद्दों में " फ़ेसबुक से ब्लॉगिंग का नुक्सान: कारण और निदान " भी जोड़ लिया जाये तो बेहतर. क्योंकि मुझे लगता है कि आज फ़ेसबुक के कारण ब्लॉगिंग को बहुत नुक्सान हुआ है. तमाम साथी फ़ेसबुक पर सक्रिय हैं लेकिन ब्लॉग पर नहीं. ब्लॉग पर गरमागरम बहसें बंद हैं :( ठीक वैसा ही नज़ारा है जैसे टीवी आने के बाद रेडियो का हाल :(
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग के अनेक पहलू हैं और उन पर गहराई से विचार किया जा सकता है....ब्लॉगिंग मात्र अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं है, इसमें भाषा और तकनीक के अनेकों पक्ष भी जुड़े हैं.....सोसल मीडिया इसका एक पक्ष हो सकता है....पिछले कुछ वर्षों में ब्लॉगिंग ने समाज, साहित्य, कला, संस्कृति आदि के पक्षों पर बखूबी बात की है, भूमंडलीकरण के कारण जो बदलाव हमारी संस्कृति और समाज में आये हैं उनका बखूबी मूल्यांकन ब्लॉगिंग में हुआ है ....इसलिए आपका जो हुकम होगा हम उस पर आपको शीघ्र अति शीघ्र आलेख प्रेषित करेंगे और आपका आशीर्वाद रहा तो उपस्थित भी होंगे ......!!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
ढेरों शुभ कामनाए। जिस सोच और उद्देश्य को ले कर वर्धा में यह आयोजन किया जा रहा है उसका सार्थक प्रतिफल हमारे लिए मार्ग दर्शन से कम न होगा। प्रतीक्षा रहेगी...... सारांश की
जवाब देंहटाएंविषय से सम्बन्धित अभी तक आपके दोनों ब्लॉग पढ़े.. सभी में "सिर्फ ब्लागिंग" विषय पर चर्चा, प्रस्ताव और सुझाव दिए गए हैं... जबकि "सोशल मीडिया" अब इतना व्यापक हो चुका है कि ब्लागिंग इसका "एक पहलू" रह गया है... अतः अनुरोध है कि कार्यशाला में फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब इत्यादि को भी शामिल किया जा सके तो विषय भी व्यापक होगा, चर्चाओं व गोष्ठियों को वेरायटी मिलेगी, तथा पत्रकारिता के युवा छात्रों को काफी लाभ होगा... (यह सिर्फ एक सुझाव है)
जवाब देंहटाएंपूर्ण सहमति। भाई लोग अभी पर तौल रहे हैं शायद। सुझाव/प्रस्ताव देने में।
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जवाब देंहटाएंयह जानकर बहुत खुशी हुई कि हिंदी ब्लॉगिंग के प्रोमोशन के लिए एक गंभीर कदम उठाने का निर्णय महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा ने लिया है
प्रकृति में एकमात्र मानव मस्तिष्कर ही है , जहां सतत् चितन चलता रहता है, भले ही इसका स्तर भिन्न भिन्न हो, अपने अपने स्तार के अनुरूप कोई व्यक्तिगत तो कोई सामाजिक तो कोई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के लिए चिंतन किया करते हैं , स्वार्थी या दुष्ट लोग अपने चिंतन को अभिव्यीक्त नहीं करते , जल्द से जल्द अंजाम देते हैं , पर सकारात्मक विचार वाले खुद जिस राह पर चलना चाहते हैं , उसी राह पर चलने के लिए औरों को प्रेरित भी करते हैं। इसलिए वे अपने विचारों को अभिव्यहक्त करते रहते हैं, यह वर्ग समाज के विकास के लिए सर्वार्धिक चिंतनशील माना जा सकता है और इसी वर्ग के द्वारा देश का विकास संभव है। ब्लॉगिंग से पहले इतने बडे पैमाने पर विचारों को अभिव्यकक्ति देने की स्वततंत्रता किसी को नहीं थी , आज अलग अलग भाषाओं में लोग विचारों को अभिव्यक्ति देने में समर्थ हैं, हिंदी भाषा में ब्लॉगिंग करने वाले पूरे देश के हालात , समस्या ओं और उसके विकास से संबंधित उपायों पर दृष्टि रखते हैं , इसलिए उनकी एकता की बातें सबसे पहले होनी चाहिए , किसी भी धर्म , जाति , राजनीतिक दल से परे हम एक होकर ही अपने या किसी अन्य मामलों में हो रही किसी भी गलत बात का विरोध कर सकते हैं। विद्वानों को व्यक्ति से नहीं , मुद्दों से दोस्ती दुश्मनी होनी चाहिए। एकता के लिए देशभर के ब्लोगरों का एक बडा मंच बनना चाहिए , जिसमें समय समय पर क्षेत्रीय स्तर पर भी क्रियाकलाप चलता रहे। इसके लिए कुछ सहयोग राशि भी ली जानी चाहिए , बेरोजगार या विद्यार्थियों के लिए कुछ छूट दी जा सकती है।
उस मंच के ब्लोगरों के लिए लिखने के दायरे तय किए जाने चाहिए , टिप्पणी वगैरह में भी आपत्तिजनक बातों का विरोध होना चाहिए। कुछ के द्वारा लिखे जाने वाले लेख को एक जगह रखने के लिए एग्रीगेटर आवश्यक है , सारे लेख वहां अपडेट होते रहें , ताकि सारे हिंदी ब्लोगरों के द्वारा लिखे जाने वाले विचारों को लोग पढ सकें। इसके एक कॉलम में फेसबुक , ट्विटर आदि के अपडेट भी आते रहें तो बहुत बढिया हो , क्यों कि ब्लॉग लिखने में समय अधिक लगता है औार कभी कभी समयाभाव में लोग छोटी छोटी बाते इन सोशल साइट्स में ही डाल देते हैं। एग्रीगेटर में प्रतिदिन किसी सामाजिक , राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर व्यापक चर्चा हो , महीने में कम से कम 5 मुद्दों में विचार देना सबके लिए आवश्यक किया जाए , ताकि उसके तमाम पहलू खुलकर सामने आए , उससे जुडे समस्याओं के समाधान के लिए काम किया जा सके। ब्लॉगरों में खास प्रतिभाशाली लोगों जैसे लेखक , चित्रकार, कलाकार के विकास के लिए , जो सरकार की ओर से उपेक्षित हैं , आगे लाने के लिए मिलजुलकर प्रयास करना भी आवश्यक है।
देश के कोने कोने से प्रतिनिधित्व करने वाले सारे हिंदी ब्लॉगर्स एकत्रित हो जाएं , तो हममें काफी मजबूती आ सकती है , हम आज की तरह लाचार होकर सिर्फ कलम ही नहीं चलाएंगे , आनेवाले समय में देशभर में आंदोलन कर देश की दशा और दिशा दोनो बदल सकते हैं। बस शुरूआत में ही दो चार होते हैं , धीरे धीरे कारवां बन जाता है। आपको और वर्धा विश्वोविद्यालय के कुलपति दोनो को शुभकामनाएं!!!!!
सेमिनार के सफल आयोजन हेतु शुभकामनाएं।
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