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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

आशा जगाती एक सार्थक पहल (KGBV)

भारत सरकार या उत्तर प्रदेश सरकार की चर्चा आजकल अच्छे संदर्भ में कम ही हो रही है। टू-जी स्पेक्ट्रम से लेकर काले धन की चर्चा हो या भ्रष्ट मंत्रियों के चुनाव से पूर्व बर्खास्तगी से लेकर एन.आर.एच.एम. घोटाले की जाँच का मामला हो; रोज ही हम सरकारी महकमे की एक खराब छवि ही देखते-गुनते रहते हैं। ऐसे में तमाम अच्छी बातें लोगों तक नहीं पहुँच पाती जो सरकार के माध्यम से चलाये जा रहे कार्यक्रमों से संभव हो रही हैं। कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय (KGBV)  की योजना एक ऐसी ही लाभकारी योजना है जो अनेक परिवारों में फैली गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और पिछड़ेपन की व्याधियों से ग्रस्त लड़कियों के जीवन का अंधकार एक साथ दूर करने में चमत्कारिक रूप से सक्षम है।

प्राथमिक शिक्षा को संविधान में मौलिक अधिकार का दर्जा मिल जाने के क्रम में भारत सरकार द्वारा सबके लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम पारित कर दिये जाने के बाद इस योजना के अंतर्गत अधिकाधिक आवासीय विद्यालय खोले जाने का काम किया जा रहा है। दस से चौदह वर्ष की गरीब निराश्रित लड़कियों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी सरकार द्वारा उठायी जा रही है। उन्हें स्कूल के हॉस्टेल में सरकारी खर्चे पर रखा जाता है। उनका भोजन, कपड़ा, बिस्तर, साबुन, तेल, टूथब्रश, मंजन सबकुछ सरकार के खर्चे पर उपलब्ध कराया जाता है। प्रशिक्षित वार्डेन और शिक्षिकाओं द्वारा न सिर्फ़ उनको उनकी कक्षा का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है बल्कि उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए खेल-कूद, गीत-संगीत, कला-संस्कृति, रोजगारपरक प्रशिक्षण इत्यादि की व्यवस्था भी सरकार द्वारा की जाती है।

यह सबकुछ होता है भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित और प्रदेश सरकारों द्वारा चलाये जा रहे ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के अंतर्गत। सर्व शिक्षा अभियान परियोजना पर यूँ तो हजारो करोड़ रूपये खर्च हो रहे हैं जिनसे प्राथमिक शिक्षा का ढाँचा विकसित करने, शिक्षकों व शिक्षामित्रों की नियुक्ति करने, स्कूलों के भवन बनवाने व अन्य स्थापना सुविधाएँ जुटाने का काम हो रहा है, लेकिन समाज के सबसे पिछड़े वर्ग के लिए जो उपादेयता ‘कस्तूरबा विद्यालय’ की है वह कहीं और नहीं। एक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा इस विद्यालय मे आकर साकार रूप लेती दिखती है।

हाल ही में मैं भारत सरकार की ओर से गठित एक अध्ययन टीम के सदस्य के रूप में राजस्थान के एक ऐसे ही कस्तूरबा विद्यालय (KGBV) को देखने गया। वहाँ रहने वाली बच्चियों को देखकर लगा कि सरकार ने वास्तव में बहुत ही सार्थक योजना का प्रारम्भ किया है।

KGBV-Medraj

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हमने स्कूल और छात्रावास के सम्मिलित प्रांगण में लगभग दो घंटे बिताया। वहाँ की छात्राओं, शिक्षिकाओं व अन्य कर्मचारियों से बात की। निश्चित रूप से हमारे वहाँ जाने की पूर्व सूचना उन्हें थी; और उन्होंने इस बावत विस्तृत तैयारी भी कर रखी थी; लेकिन हमने सच्चाई जानने के लिए छात्राओं से अलग से भी बात किया। कर्मचारियों से सवाल पूछे। सूक्ष्म निरीक्षण करते हुए प्रांगण के कोने-कोने में गये। रसोई घर से लेकर क्लासरूम तक और हॉस्टल के हॉलनुमा कमरों से लेकर आँगन में बने छोटे से मंदिर तक। कम संसाधनों के बावजूद सबकुछ यथासम्भव सुरुचिपूर्वक ढंग से व्यवस्थित किया गया था। सामान्य मानवीय कमजोरियाँ तो सबजगह होती हैं लेकिन उनके बावजूद वहाँ जाकर हमें बड़ा संतोष मिला। प्रायः निराश्रित लायी गयी उन लड़कियों को इस शिक्षा मंदिर के प्रांगण में हँसते-खिलखिलाते, उछलते-कूदते, जीवन के पाठ सीखते और शिक्षा का प्रकाश बटोरते देखकर हम धन्य हुए।

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

12 टिप्‍पणियां:

  1. निश्चय ही सराहनीय प्रयास है, व्यापक चर्चा होनी चाहिये..

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  2. ऐसे विद्यालयों की आवश्यकता हर जिले में है. लेकिन ये राज्य में केवल कुछ स्थानों पर स्थापित किए गए हैं। क्या केवल दिखावे के लिए?

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  3. देर आयद दुरुस्त आयद। बहुत अच्छा प्रयास है, इसका यथासम्भव विस्तार होना चाहिये। जानकारी का आभार!

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  4. आदरणीय डॉ.दिनेश राय द्विवेदी जी, ऐसे विद्यालय हर जिले में ही नहीं हर ब्लॉक (क्षेत्र पंचायत)स्तर पर खोले गये हैं। यहाँ उत्तर प्रदेश में ७२ जिलों में करीब छः सौ केजीबीवी स्कूल हैं। कमी है तो सिर्फ़ जागरूकता और कुशल संचालन की।

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  5. Nishchit hi yah ek sarthak karya ho raha hai. Main to aajkal KGBV ki angrezi adhyapikaon ki training bhi ELTI mein karava raha hoon UNICEF aur SSA ke sanyukt karyakram ke antargat aur is tarah is se juda bhi hua hoon.

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  6. नवयुग विद्यालय छाप चीज लगती है। हमारे पड़ोस में फलाने जी थे नवयुग के। उनके घर में काजू-किशमिश सीधा-पिसान फ्री आते थे।

    यह शायद अच्छा प्रयोग हो, वर्ना उत्तर प्रदेश में शिक्षा भयंकरतम भ्रष्ट व्यवसाय है!

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  7. अपडेट/आँकड़ा सुधार : उत्तर प्रदेश के सत्तर जिलों में कुल 746 कस्तूरबा विद्यालय (KGBV) संचालित है। केवल दो जिले (औरैया, कानपुर नगर) ऐसे हैं जहाँ इसकी जरूरत नहीं महसूस की गयी।

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  8. इसके विपरीत उदयपुर में तो हालात दयनीय है।

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  9. सामाजिक जाँच पर आधारित बहुत ही उपयोगी पोस्ट ...

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