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गुरुवार, 27 मई 2010

साँईं बाबा का प्रसाद और ज्ञानजी की सेहत…

 

श्री साँई बाबाआज वृहस्पतिवार है। शिर्डी वाले साँई बाबा के भक्तों का खास दिन। इस दिन व्रत-उपवास रखकर श्रद्धालु जन साँईं मन्दिरों में दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। इलाहाबाद का मुख्य मन्दिर भी इस दिन विशेष आकर्षण का केन्द्र हो जाता है। श्रद्धा और सबूरी के बीज मन्त्रों से प्रेरित भक्तजन बड़ी भीड़ के बावजूद पूरी तरह अनुशासित रहकर लम्बी लाइन में अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए साँईं मन्त्रों का जप करते हैं और आगे बढ़ते हैं। शाम के वक्त तो इतनी भीड़ हो जाती है कि व्यवस्थापकों को रस्सियाँ तानकर लाइन बनानी पड़ती है जो मन्दिर के भीतर कई चक्रों में घूमने के बाद भी बाहर सड़क तक आ जाती है।

श्रद्धा-सबूरीजब श्रीमती जी के आग्रह पर पहली बार मैं इस मन्दिर में दर्शन करने गया था तो साँईं बाबा के प्रति श्रद्धा से अधिक एक अच्छे पति होने की सदिच्छा के वशीभूत होकर गया था। यहाँ आकर जब मैंने भक्तों की अपार भीड़ देखी और यह अनुमान किया कि भीतर साँईं बाबा की मूर्ति तक पहुँचने में कम से कम दो घण्टे लगेंगे तो मेरे पसीने छूट गये। भीड़ में तिल रखने की जगह नहीं थी इसलिए करीब ढाई साल के बेटे को भी गोद में लेना अपरिहार्य हो गया था। इस दुस्सह परिस्थिति में भी हम लोगों ने धैर्यपूर्वक दर्शन किये थे। वहाँ साँई बाबा के भजनों और उनकी जय-जयकार के बीच इतना अच्छा भक्तिमय माहौल बना हुआ था कि मन में किसी कठिनाई के भाव ने कब्जा नहीं किया।

साँईं प्रसादालयउस प्रथम दर्शन के समय एक ऐसी बात हो गयी थी जो साँईं बाबा के चमत्कारी प्रभाव की पुष्टि करती सी लगी। मेरे लाख सिर हिलाने के बावजूद श्रीमती जी तो इसे चमत्कार ही मानती हैं। हुआ ये कि जब मैं लाइन में लगा था उसी समय मेरा मोबाइल बज उठा। बड़ी मुश्किल से जब मैंने इसे जेब से निकालकर ‘काल रिसीव’ किया तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह एक ऐसे व्यक्ति का फोन था जिसे मैं करीब दो साल से ढूँढ रहा था। वह मेरे तीस हजार रुपये लौटाने में लगातार टाल-मटोल करते हुए अबतक मुझे टहलाता रहा था। उसदिन उसने अचानक फोन पर बताया कि रूपयों की व्यवस्था हो गयी है। किसी को भेंज दीजिए, आकर ले जाय। बस क्या था, मेरी पत्नी ने इसे साँईं बाबा का अनुपम प्रसाद मानते हुए उनमें अपना अडिग विश्वास प्रकट किया और आगे ऐसी कुछ अन्य उपलब्धियों को भी साँई बाबा की कृपा मानने सिलसिला शुरू हो गया। ऐसे प्रत्येक अवसर पर हमने साँईं के दर्शन किए। लेकिन मैने समय की अनुपलब्धता के कारण हमेशा वृहस्पतिवार को दर्शन से परहेज किया। मुझे लगता है कि पूजा-अर्चना में शान्तचित्त होकर बैठना और ध्यान करना अधिक महत्वपूर्ण है, न कि भीड़ में गुत्थमगुत्था होकर प्रसाद चढ़ाना।

साँईं इम्पोरियमआज रचना ने वृहस्पति को ही वहाँ जाने की खास वजह बतायी। उन्होंने लगातार नौ गुरुवार साँईं का व्रत रखा था जिसका आज समापन (उद्यापन) करना था। इसके अन्तर्गत गरीबों और लाचारों को भोजन कराना होता है। हलवा और पूड़ी का मीठा भोजन थैलियों में पैक करके हम मन्दिर गये। लेकिन शाम को नहीं, सुबह साढ़े दस बज गये। इस समय भीड़ बहुत कम थी।  मन्दिर और इसके आस-पास का वातावरण दर्शन, पूजन, और दान-पुण्य करने के लिए आवश्यक सभी अवयवों से युक्त है। मन्दिर प्रांगण में ही पूजन और प्रसाद की सामग्री के लिए साँई प्रसादालय है तो वहीं साँईं इम्पोरियम में बाबा से जुड़ी अनेक पुस्तकें, मूर्तियाँ, तस्वीरें, चुनरी, चादरें, ऑडियो कैसेट्स, सीडी, और अन्य प्रयोग की वस्तुएं उपलब्ध हैं। जूते-चप्पल रखने के लिए एक ओर बने स्टैण्ड में दो तीन कर्मचारी मुस्तैद हैं जो अलग-अलग खानों में इसे सुरक्षित रखकर टोकन दे देते हैं। हाथ धुलने के लिए और पीने के लिए स्वच्छ और शीतल पेयजल की व्यवस्था है।

मन्दिर के बाहर वाहन स्टैण्ड भी है और बड़ी संख्या में भिखारी भी। उनमें से अनेक विकलांग, अपंग और लाचार हैं तो कई बिल्कुल ठीकठाक सुविधाभोगी और अकर्मण्य भी। साधुवेश धारी कुछ व्यक्ति कमण्डल लटकाये या रामनामी बिछाए हुए भी मिले जो कदाचित्‌ गुरुवार को ही यहाँ दान बटोरने आते हैं। अनेक महिलाएं अपने झुण्ड के झुण्ड बच्चों के साथ भीख इकट्ठा करने के लिए जमा थीं। सड़क पर भी फूल-माला और प्रसाद की अनेक दुकानें सजी हुई थीं। हर स्तर के भक्तों के लिए अलग-अलग सामग्री यहाँ मौजूद है।

जब हम गाड़ी से उतरकर भोजन की थैलियाँ बाँटने शारीरिक रूप से अक्षम कुछ गरीबों के पास गये तो वहाँ एक व्यक्ति रसीद-बुक लिए खड़ा था। उसने उसे आगे बढ़ाते हुए कहा कि साहब यह रसीद कटा लीजिए। इसका पैसा विकलांगों की सेवा में खर्च होता है। मैंने पूछा- इसकी क्या गारण्टी? वह बोला- साहब आप विश्वास कीजिए। उसकी वेश-भूषा और शैली देखकर मुझे कत्तई विश्वास नहीं हुआ। हमने साक्षात्‌ दरिद्रनारायण की यथासामर्थ्य सेवा की और वहाँ से दर्शन-पूजन करने के बाद प्रसाद लेकर आदरणीय ज्ञानदत्त जी‌ का कुशल क्षेम जानने रेल-अस्पताल की ओर चल पड़े। (मन्दिर के भीतर फोटो खींचने की मनाही है इसलिए हमारा कैमरा ज्यादा कुछ नहीं कर सका।)

    रेलवे अस्पताल के वी.आई.पी. केबिन में आसन जमाए ज्ञानजी किसी भी तरह से मरीज जैसे नहीं लगे। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और परिवारीजन के साथ बातचीत में मशगूल थे। वागीशा और सत्यार्थ (मेरे बेटी-बेटे) ने उनका पैर छुआ तो प्रमुदित होकर दोनो हाथों से आशीर्वाद दिया। वहाँ ‘बाबूजी’ सबसे सक्रिय और मुस्तैद दिखे। सुबह से शाम तक लगातार अपने बेटे के आस-पास रहते हुए उन्होंने अपना सुख और आराम मुल्तवी कर रखा है। वैसे तो शुभेच्छुओं और तीमारदारों की कोई कमी नहीं है, लेकिन बाबूजी की उपस्थिति पिता-पुत्र के बीच विलक्षण आत्मीय सम्बन्ध को रेखांकित करती हुई भावुक बना देती है।

     एम.आर. आई. रिपोर्ट आ चुकी है। सबकुछ प्रायः सामान्य है। मस्तिष्क के दाहिने हिस्से में हल्की सी सूजन पायी गयी है जो दवा से ठीक हो जाएगी। तीन-चार दिन अस्पताल में ही रहना होगा। आज दूसरा दिन बीत गया है। अगले पन्द्रह दिनों तक दवा चलेगी। उसके बाद सबकुछ वापस पटरी पर आ जाएगा। ज्ञान जी किसी को मोबाइल पर बता रहे हैं - कुछ लोग इसे ब्लॉगिंग से जोड़ रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। ब्लॉगिंग तो मेरे लिए केवल टाइम-फिलर है। यह मेन जॉब तो नहीं ही है।

ए.सी. कमरे में एक्स्ट्रा बेड और सोफे पड़े हुए  हैं, और टीवी भी लगी है। लैप-टॉप भी आ गया है जो अभी खोला नहीं गया है, लेकिन मोबाइल पर लगातार हाथ चल रहा है।

    सबकुछ चंगा है जी…

 एक एसएमएस कर लूँ...     DSC02790

मेरी पिछली पोस्ट पर अबतक की सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं दर्ज हुईं। ज्ञान जी के लिए आप सबका प्रेम और आदर देखकर अभिभूत हूँ। दद्दा तूसी ग्रेट हो जी…

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

22 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञान जी की अस्वस्थता का संबंध ब्लागीरी से तो कतई नहीं है। हाँ उन की नौकरी के दौरान होने वाला काम का तनाव का यह असर हो सकता है या कुछ और। ब्लागीरी तो वस्तुतः काम के तनाव से निकलने का एक तरीका है जो व्यक्ति को भौतिक और मानसिक रूप से तनावरहित करती है।
    ज्ञान जी दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति हैं। शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ हो कर घर लौटेंगे।

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  2. पिता के लिये पुत्र और पुत्र के लिये पिता, दोनों ही एक-दूसरे के लिये अमूल्य हैं। इसलिये पिताजी का चिन्तित होना स्वाभाविक है। मैं आदरणीय दिनेश जी से १००% सहमत हूं कि ज्ञान जी की अस्वस्थता का संबंध ब्लागीरी से तो कतई नहीं है। यह उनकी नौकरी के दौरान होने वाले काम के तनाव के कारण भी नहीं है। ब्लागीरी तो वस्तुतः काम के तनाव से निकलने का एक तरीका है जो व्यक्ति को भौतिक और मानसिक रूप से तनावरहित करती है। निश्चित रूप से वे दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति हैं। शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ होकर घर लौटेंगे।

    Thursday, 27 May, 2010

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  3. ज्ञान जी की खुद की तिपियाई पल पल की बाकलम खुद और निजी जानकारी भी ट्विटर पर मिल रही है ..और द्रवित कर रही है ....कैसे पजामे की डोर बंधने में उन्हें असुविधा है -कैसे उन्हें लोग धार्मिक पुस्तकें देते जा रहे हैं और जबकि वे व्यंग पढ़ना चाहते हैं ..कैसे नत्तू पांडे और बिटिया रानी के आने पर खिल उठे हैं ..हम तो भैया सीधे श्रीमुख से ही आरोग्य-कथामृत सुन लाभान्वित हो ले रहे हैं और ईश्वर से प्रार्थना है की वे शीघ्र स्वस्थ हों ..साईं बाबा की कृपा उन पर भी हो !

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  4. ईश्वर से प्रार्थना है की वे शीघ्र स्वस्थ हों .

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  5. मेरा भी मानना है कि ब्लॉगरी एक तरह का खुद का रिक्रिएशन है जो समय व्यतीत करने का एक बढ़िया साधन है।

    कई बार इस ब्लॉगिंग से मन तो उचटता है पर फिर वही ढाक के तीन पात, ले दे कर उसी में रमना अच्छा लगता है मुझे।

    सो ज्ञान जी की ब्लॉगरी मेरे हिसाब से उनके लिए एक अच्छी चीज ही है।

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  6. प्रभू से प्रार्थना है की वे शीघ्र स्वस्थ हों

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  7. पुन:
    शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की कामना

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  8. बहुत अच्छा लगा जानकर. राहत मिली. वैसे तो ज्ञान जी से सीधे फस्र्ट हैण्ड खबर प्राप्त हो गई है.

    मगर आप अपडेट देते रहें.

    ज्ञान जी शीघ्र स्वस्थ हो ब्लॉगिंग के मैदान में लौटें मुस्कराते हुए, ईश्वर से यही कामना है.

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  9. अनियमितता के कारण ज्ञानदत्त जी की अस्वस्थता के बारे में देर से पता चला ...
    वे जल्दी स्वस्थ हों और फिर से ब्लॉगजगत में सक्रिय रहे ...
    शुभकामनायें दीजियेगा हमारी भी ...

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  10. ज्ञान जी के स्वास्थ्य के बारे में इस अपडेट के लिए धन्यवाद. उन्हें हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  11. ज्ञान दत्त जी जल्द ठीक हो यही हमारी भी कामना है ,प्रबुद्ध लोगों को तकलीफ होती है लेकिन भगवान उन्हें जल्द उन तकलीफों से निकाल भी देतें हैं /

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  12. मेरे शहर में अब कई सांई मंदिर हैं। या कहूं तो पिछले दस सालों में मानों अधिकांश शहरों में सांई मंदिर इतने ज्यादा हो गए हैं कि बात कुछ समझ में नहीं आती। एक उदाहरण दूंगा।
    मेरे शहर से नेशनल हाइवे 6 गुजरता है। उस पर यादव समाज का एक हनुमान मंदिर था। चौड़ीकरण में मंदिर का बरामदा तोड़ा गया। मुआवजा मिला, मुआवजे के बाद वहां सांई मंदिर बना दिया गया बस दो साल पहले। अब वहां इतनी भीड़ रहती है कि पहले हनुमान मंदिर में नहीं रहती थी। ट्रस्ट को आमदनी कितनी बढ़ी होगी? क्या यह भक्त की भावनाओं का व्यवसायीकरण नहीं चाहे वह सांई या कोई और मंदिर के बहाने?
    खैर,

    ज्ञान जी की फितरत में नहीं शायद आराम से चुप्पेचाप बैठना :)
    जल्द ही स्वस्थ हो वे लौटें घर यही कामना है।

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  13. साईं बाबा में भाभी जी की आस्था श्रद्धा जगाती है...कहीं ना कहीं आस्था का होना बहुत जरूरी है...positive vibes मिलते हैं...
    ज्ञान जी को तो अब जल्दी से पूरी तरह स्वस्थ होना ही है...पिताजी,बिटिया..नत्तु पाण्डेय सब देखरेख में लगे हैं..शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएं

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  14. ज्ञान जी जल्दी से स्वस्थ हो घर वापस आयें यही कामना है...

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  15. बाबा ने कभी किसी का बुरा नहीं किया है इसलिए वे कभी किसी का बुरा नहीं करेंगे। मैं उन पर बड़ी श्रद्धा रखता हूं।

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  16. ज्ञान जी जल्दी स्वस्थ होकर घर लौटें ईश्वर से यही कामना है ,

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  17. ज्ञान काका के स्वास्थ्य के प्रति हम सभी चिंतित है । भगवान उन्हें जल्दी ठीक करे यही हमारी प्रार्थना है ।

    दद्दा तूसी ग्रेट हो जी…

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  18. हमारी तरफ़ से भी उन्हें गेट वैल सून कहिएगा…।:)He is a fighter...woh jald blogging karte nazar aayenge...aameen

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  19. आदरणीय ज्ञानदत्त जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिये ईश्वर से प्रार्थना है ।

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  20. यात्रा तो प्रोजेक्ट के लिए हर सप्ताह ही जारी रहेगी पर पिछले सप्ताह की यात्रा बहुत सारी थकान के लिए याद रहेगी. पांच दिन, चार हवाई यात्राएं, दो देश, तीन शहर, लगभग २००० मील आना जाना, २ होटल, ४०+ घंटे ऑफिस का कार्य और न जाने कितने नए रेस्तराओं में खाना. सुनने में बढ़िया पर भुगतने में कठिन. राहत की बात की ऑफिस के अन्य कार्यों के साथ साथ वीजा का काम आसानी से हो गया.
    मोंट्रियल में इंडियन भी बहुत हैं, बहुत सारे इंडियन रेस्तरां भी हैं. जैसे मिर्ची है पुराने मोंट्रियल शहर में. पुराना मोंट्रियल बहुत खूबसूरत है ये यूरोप की याद दिलाता है, खाने के तो क्या कहने. तरह तरह के बार और रेस्तरां, जो मन में आये खाओ और दोपहर या शाम बिताओ. मुझे तो सबसे ज्यादा पसंद आया 'ला पोपेसा' जो की ११५ सैंट अंटोनियो स्ट्रेट पर है. गजब का पास्ता बनाकर दिया. लेने के लिए २० मिनट एक लम्बी लाइन से गुजरना पड़ा. पर अंत में परिणाम मजेदार रहा. अंत भला तो सब भला....वैसे भी दिन के १:३० बज रहे थे और भूख चरम सीमा पर थी.
    लौटते लौटते ट्रैफिक ने रंग दिखाया, जैसे मेने पहले कहा था की मोंट्रियल में ट्राफिक की हालत बहुत ख़राब है, ५:५० की फ्लाईट पकड़ने के लिए ३:१५ पर निकला था, रेंगते रेंगते ऐसे तैसे एअरपोर्ट पहुंचा, पोर्टर एयर लाइन से बहुत कम लोग ट्रेवल करते है और इस बात का फायदा मुझे मिला, ५ बजे की फ्लाईट में जगह और VIP पास सिक्यूरिटी की लम्बी कतार को स्किप करने का. पता नहीं क्या दिखा मेरे चहरे में, मैडम ने VIP पास लगा दिया बोर्डिंग पास पर, फिर क्या ५ मिनट में सब कुछ हो गया. वैसे मोंट्रियल एअरपोर्ट पर सिक्यूरिटी की बहुत लम्बी कतार थी. जब लड्डू मिल रहे हों तो कौन खाने से मना करेगा ?
    चलो शुक्रवार को ही घर पहुँच गया समय रहते, नहीं तो अंग्रेजी के 'दे' और 'ही' के चक्कर में घर निकाला ही मिल जाता ...कुछ चित्र जो आइ फ़ोन महाराज की कृपा से संभव हुये ...

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  21. ज्ञान भाई के लिए, अगर आप किसी होमिओपैथ को नज़दीकी से जानते हों तो उन्हें देखियेगा! होमिओपैथी में किसी भी बीमारी की चिकित्सा संभव है अगर रोगी की मानसिक चित्रण ठीक दिया जाए ! एक बार सही जानकारी के बाद रोगी की चिकित्सा आसानी से की जा सकती है सिर्फ होमिओपैथी की जानकारी ठीक तरह से होनी चाहिए !
    ईश्वर उन्हें स्वस्थ और प्रसन्नचित्त बनाये रखे !

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