राजकुमारी देवी को मैं बचपन से जानता हूँ लेकिन मुझे उनका यह नाम पहली बार सुनने को मिला जब अखबार में एक खबर छपी। मेरे गाँव के एक मजदूर परिवार में ब्याही गयी इस महिला को हम नरेश की पत्नी या ‘नरेश-बऽहु’ के रूप में ही जानते और पहचानते रहे।
मैने पिछले २०-२५ वर्षों के दौरान अपने गाँव में इस महिला का कम उम्र में ब्याह कर आना, एक के बाद एक तीन बेटों को जन्म देकर उन्हें पालना-पोसना, गोद में बच्चा लेकर घर का चूल्हा-चौका निपटाने से लेकर गाँव से लगे खेत-खलिहान में मेहनत मजदूरी करना, बेटों के बाल-विवाह के बाद कम उम्र में ही सास फिर दादी बन जाना और हाल के वर्षों में कुछ बड़े लोगों के घरों में चौका-बरतन करना सब कुछ अपनी आँखों से देखा है। यह सब एक सामान्य सहज दिनचर्या है जो अनपढ़ मजदूरों की बस्ती में दिख ही जाती है। ... ... लेकिन हाल ही में जो असामान्य घटना हुई, उसने इसे सुर्खियों में ला दिया।
दैनिक जागरण के स्थानीय अंक में ३० सितम्बर को जब यह खबर छपी कि मेरे गाँव (पिपरा-बुजुर्ग, जिला कुशीनगर) किनारे एक गन्ने के खेत से एक लावारिस नवजात शिशु (लड़की) पायी गयी है; और असंख्य चीटियों द्वारा काटे जाने पर उसके रोने की आवाज सुनकर इकठ्ठा हो गए गाँव वालों के बीच में से निकलकर एक गरीब मजदूर औरत ने उस अभागन बच्ची को अपनाने का फैसला कर लिया तो मेरा कौतूहल बढ़ना स्वाभाविक ही था। फोन द्वारा हम गाँव से समाचार लेते रहे। मेरी पत्नी के मन में ‘नरेश-बहु’ के लिए विशेष सम्मान का भाव भर गया जिसके सेवा-भाव का लाभ इन्हें भी मिलता रहा है। ...इसके दस दिन बाद जब हम दशहरे की छुट्टियों में गाँव पहुँचे तो कहानी पूरी हो चुकी थी। वह बच्ची गाँव में नहीं थी।
किसी महानगर के कू्ड़ेदान में मिले लावारिस बच्चे की कहानी से इस कहानी का कोई मेल नहीं है। यहाँ अपना शर्म छिपाने के लिए एक अभागन माँ के पास भारी भीड़ में छिपने का सुभीता नहीं है। न ही अनाथालय या बालगृह जैसी कोई संस्था है। गाँव में अभी भी सब एक दूसरे को बहुत नजदीक से जानते हैं। सबकी गतिविधियाँ लोगों को पता रहती हैं। ...तो यहाँ ग्रामीण समाज ने अफ़वाहों के बीच लगभग पता ही कर लिया कि यह लावारिस सन्तान किसकी करनी का नतीजा है। बस सबूत सामने लाने का साहस कोई नहीं जुटा सका।
फिर तो राजकुमारी देवी का अपना परिवार ही उसका दुश्मन बन गया। उसकी बहू ने उसको घर के बरतन छूने तक से भी मना कर दिया। कसूर ये कि वह एक दलित जाति की नवजात बच्ची को उठा लायी थी। उसने एक तरफ़ उस मासूम को कीड़े-मकोड़ों और चींटियों के दंश से छुड़ा, उसकी प्राणदात्री बनकर ममता का गौरव बढ़ाया था और दुग्ध-धवल काया की धनी उस अति-सुन्दर बालिका को अपना वात्सल्य देकर उसके करुण क्रन्दन को हँसी की किलकारी में बदल दिया था; तो दूसरी ओर अपने ही परिवार में पति, बेटों और बहुओं द्वारा त्याज्य बना दिये जाने के बाद उसका अपना जीवन ही संकटग्रस्त हो गया था।
ऐसी मनोदशा में लगभग एक सप्ताह का समय बड़ी कठिनाई से गुजार सकी थी राजकुमारी देवी। अख़बार में तस्वीर छप जाने के बाद तमाशा देखने वालों की संख्या तो बढ़ती रही लेकिन राजकुमारी के लिए उस नवजात के दूध की व्यवस्था भी भारी पड़ने लगी। अपने ही घर में हुक्का-पानी बन्द हो चुका था उसका...।
(शेष सच्चाई अगली कड़ी में... )
(सिद्धार्थ)
और मचान बन गया
-
*** और मचान बन गया *** मैने खेत में एक मचान बनवाने की सोची थी, पर फिर इरादा
बदल कर घर की चारदीवारी से सटा मचान बनवाने का निर्णय लिया। उस मचान से खेत,
उसके ...
1 दिन पहले
राजकुमारी देवी को नमन..आगे की जानकारी का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंराजकुमारी देवी में सचमुच दैवी चरित्र है तभी एक अनाथ को ममता की छांह मिली।
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
कंट्रास्ट देखो एक ही परिवार में राजकुमारी देवी भी है उसकी अन्यायी बहू भी है!
जवाब देंहटाएंबहुत नेक काम किया .पर आगे क्या हुआ ...जानने के इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंकहानी की तरह उत्सुकता से इंतज़ार है...
जवाब देंहटाएंकहानी ही कहेंगे... पढ़कर अच्छा या बुरा कह देने के अलावा हम करेंगे भी क्या !
इंतजार है , आगे और क्या क्या होनेवाला है।
जवाब देंहटाएंराजकुमारी देवी को नमन .
जवाब देंहटाएंइनको लाखो सलाम ....सच कहूँ भाई जीवन में इतने दुःख है की पूछो मत ....कल ही मै दिल्ली अपने दोस्त के २ महीने के बेटे को जिसका एस्कोर्ट में ओपेरातिओं हुआ है मिलने गया था लौटकर आते समय उसके पिछले गेट इमर्जेंसी वाले गेट के थोड़ा बाहर एक ५ साल की अधनंगी बच्ची अपने डेड दो सल् के अधनंगे कमजोर भाई को लेकर एक कोने में रोती हुई बैठी थी .उससे कुछ कदम दूर उससे एक दो साल बड़ा उसका भाई एक चादर बिछा रहा था....भीख मांगने के लिए ....सच कहूँ दिल दहल गया .पर कहाँ कहाँ किसके दुःख कितना बटोरे ?कितनी गरीबी है हमारे देश में ओर हम अब भी जात ,धर्म ....न जाने किन चीजो का झूठा अंहकार लेकर आपस में लड़े जा रहे है ...रोज कई बम फ़ुट रहा है कई नारे लग रहे है ....पर बेचारा जो गरीब है ,शोषित है ,जिसको वाकई जरुरत है.....वो वही का वही रुका हुआ है ...ऐसी औरते समाज से ओर हम जैसे लोगो से कही अच्छी है...कही ज्यादा हिम्मती है.
जवाब देंहटाएंकारुणिक,प्रेरक किन्तु सामाजिक विद्रूप का घिनौना चेहरा दर्शाने वाला सत्य!
जवाब देंहटाएं