हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो; और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें।

शनिवार, 5 जुलाई 2008

चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से...

ब्लॉग मण्डली दहल रही है, मचल रहे तूफान से।
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥१॥

‘मसि’जीवी अब हुआ पुरातन, ‘माउस’जीवी उछल रहा,
धूल खा रही कलम-दवातें, बिन कागज सब निकल रहा।
नयी प्रोफ़ाइल खोल रहे हैं, ब्लॉगर देखो शान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥२॥

स्वतंत्रता तब भले रही हो,लेकिन अवसर कमतर था ,
लिखने की अभिलाषा थी, पर छपता तो मुठ्ठी भर था।
ढूँढ रहे थे पाठक तब, वे लगे रहे जी जान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ३॥

प्रिन्ट-मीडिया के प्रहरी, नौ-सिखिए को धकियाते थे,
प्रतिभा खरी धरी रह जाती,घर-बैठे बतियाते थे।
आज मुझे लौटा डाला जी उसने बड़े मकान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ४॥

संपादक जी को रचनाएं पोस्ट बहुत सी कर आया,
धन्यवाद के साथ लिफाफा, हरदम वापस घर आया।
जो भी उसने सुना इधर से,निकल गया उस कान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ५॥

पर अब भागम-भाग थम गयी इण्टरनेट के आने से,
ब्लॉगजगत ने अवसर खोला लिखने लगे ठिकाने से।
इलेक्ट्रॉन की करें सवारी जुड़ने लगे जहान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ६॥

क्या लिखना है, क्यों लिखना है, कैसे उसे सजाना है?
सब कुछ अपने हाथ आ गया, मनचाहा छप जाना है।
रपट, कहानी, कविता लिख लें या भर दें अब गान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ७॥

यूँ मिलती इस आजादी का, कृष्णपक्ष कुछ देखा है,
उचित संग अनुचित भी है, मिट रही बीच की रेखा है।
चिठ्ठाकारों में कुछ भाई, भरे हुए अभिमान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ८॥

निज-भाषा और सभ्यता की, मर्यादा कुछ-कुछ डोल रही,
नंगी स्वतंत्रता हुई आज, जो सिर चढ़कर के बोल रही।
कड़वी सच्चाई की बातें, करते जो विकट-बयान से
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥ ९॥

कुछ स्वर तो इतने तीखे हैं, ज्यों गरल-पान कर आये हैं,
मानो ब्लॉगिंग के भस्मासुर, शिव जी ने इन्हें बनाये हैं।
जैसे हुई विरक्ति इन्हें नर-नारी के गुणगान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥१०॥

कुछ विकट चिठेरे कलमतोड़, हमलावर बन कर लिखते हैं,
किंचित् प्यारा है विघ्नतोष, रणभूमि जमाये दिखते हैं।
अब क्या उम्मीद करें भाई इस बदले से इन्सान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥११॥

कुछ नारीवादी बहनें हैं, हथियार लिये पहरा देतीं,
जो कुछभी बोल पड़े ‘भाई’, तो घाव वहाँ गहरा देतीं।
हो गयी शिकायत है इनको, शायद अपने भगवान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥१२॥

क्या कोई सत्य नहीं ऐसा, जो सार्वभौम माना जाए,
क्या सदा जरूरी है विरोध, जो बस विरोध ठाना जाए?
अज्ञानी अन्धियारा तो मिटता है सच्चे ज्ञान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥१३॥

बस चाहे यह ‘सत्यार्थमित्र’, यूँ बात बिगड़ने ना पाती।
सबके सच का हो आमेलन, इक साझी दुनिया बस जाती॥
कुछ अच्छे संकेत मिले दुनिया को हिन्दुस्तान से;
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥१४॥

ब्लॉग मण्डली दहल रही है, मचल रहे तूफान से।
चरमपंथ की हवा चली है, मध्यमार्ग हलकान से॥


(हमारी कोशिश है एक ऐसी दुनिया में रचने बसने की जहाँ सत्य सबका साझा हो और सभी इसकी अभिव्यक्ति में मित्रवत होकर सकारात्मक संसार की रचना करें.- सत्यार्थमित्र)

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर। शानदार,मजेदार पोस्ट।

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  2. अरे पण्डित; ब्लागरी में भी वही महन्तई, वही धौंस-दपट चलती थी। अभी भी चलाते है कुछ। पर जैसे जैसे विविध विषयोंपर अच्छा लिखने वाले आयेंगे, महन्तई बिलाने लगेगी।
    जमाये रहिये जी!

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  3. बहुत बढ़िया..पढ़ते ही गए. अद्भुत बहाव है.

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  4. सब कुछ सरलता से कह दिया....विवेकी राय के शब्दों में कहूं तो एकदम अफीम की बत्ती है। अच्छा लिखा।

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  5. बधाई हो बंधू जितनी मेहनत आपने इसे लिखने में की है ,काबिले तारीफ़ है.....लगभग सबकुछ कहकर भी एक आशावादी कल्पना....

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  6. बहुत बढ़िया व सुन्दर लिखा है। बहनों पर भी बड़ा मीठा सा व्यंग्य किया। :) मैं जरा हथियार खोजने जा रही हूँ। आप लिखते रहिए ऐसे ही। हम पढ़ते रहेंगे ऐसे ही।
    घुघूती बासूती

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  7. अद्भुत रचना यथार्थ उजागर करती. बेहतरीन. बधाई.

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  8. बहुत सही व्यंग मैं भी घघुती जी के साथ ही हूँ ध्यान रखे :) अच्छा लगा आपका यह ब्लॉग पुराण

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  9. Vah, aapne to mere Azamgarh vale Shri Shyam Narayan Pandey ki yaad dila di, vaise bhula to main unki rachnayen kabhi nahin.

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  10. क्या कोई सत्य नहीं ऐसा, जो सार्वभौम माना जाए,
    क्या सदा जरूरी है विरोध, जो बस विरोध ठाना जाए?

    बहुत सुंदर तथा विचार योग्य कविता लिखी है आपने ! बधाई

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  11. पूरा चित्र और चरित्र कागज पर उतार दिया आपने इन पक्तियों में...
    एकदम सटीक,प्रवाहमयी अतिसुन्दर रचना रची आपने...
    कृपया आगे भी इस प्रकार का प्रयास जारी रखें...

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